सैयद एस.तौहीद
अनुराग कश्यप की अग्ली, वासेपुर का नगरीय विस्तार नहीं
ज्यादातर अपहरण के मामलों में फिरौती की कॉल नहीं आती. लेकिन जिन मामलों में आती भी है तो उनमें क्या होता है ? अनुराग कश्यप की ‘अग्ली’ इन्ही परतों का अन्वेषण कर रही. कहानी की शुरुआत अपहरण के बदसूरत मोड़ से जन्म लेती है. उससे भी काला फिरौती की रकम के लिए आई कॉल सबके निजी लालच की सीढ़ियां चढ़ते हुए शर्मनाक उंचाई तक पहुंच गयी.क्या परिस्थितियां इंसान को गिरने के लिए मजबूर कर रही ? अथवा यह लोग वाकई ठोस चरित्र के नहीं? किसी का चरित्र मजबूत नहीं दिख रहा .अपहरण की परतों में मानवीय मूल्यों से मोहभंग भी साथ चल रहा…सामने जो बातें चल रहीं वो मूल्यों को निर्ममता से धाराशायी कर रहीं.अनुराग की तरफ से एक डार्क तोहफा .
कहा जाता कि खराब इंसान नही हालात हुआ करते…लेकिन मालूम होकि यह कमजोरी का एक्सक्यूज बनता जा रहा. स्वयं की सीमाओं की गिरफ्त में आकर इंसान खुद को सीमित संकीर्ण व क्रूर बना लेता है. बारह साल की मासूम कली का अपहरण के जरिए मुंबई पुलिस की कार्यशैली का बारीकी से अध्ययन देखना चाह रहे तो ‘अग्ली’ देखिए . पिता द्वारा कार में छोड़ दिए जाने का नुकसान कली को उठाना पड़ा … अपहरणकर्त्ता उसको अगवा कर ले गए .कली की जिंदगी माता –पिता के दुखद रिश्ते से बोझिल थी. असल पिता अब मां के साथ नहीं..दोनों का तलाक हो गया. इंसानी कमजोरी में उलझी मां ने दूसरा विवाह कर लिया. वो एक परेशान निराश हारी हुई गृहिणी का प्रतिरूप थी .
कली तीन लोगों के हक में उलझी कहानी थी …पहला संघर्षरत फ़िल्म कलाकार दूसरा कुटिल चिडचिडा पुलिस अफसर. तीसरी इरादों की कमजोर मां. मामला ‘अग्ली’ इसलिए क्योंकि किरदारों को बच्ची की तलाश से अधिक निजी हिसाब-किताब बराबर करने का ख्याल था..इसलिए भी कि पुलिसिया दुनिया का काला पक्ष दिखाया गया. इसलिए कि काली परतों का सच सामने नजर आ रहा. इस कहानी में केवल कली ही मासूम थी.. पापा की फिक्र करनी वाली …उनसे प्यार करने वाली. कली को नहीं मालूम कि मम्मा की पापा से क्या अपेक्षा थी ? दोनों किस वजह से अलग-अलग हुए ? नहीं मालूम कि मम्मा दूसरे पापा के साथ क्यूं हो ली ? पापा के साथ होने का ईनाम देखिए … अगवा कर ली गयी.. स्वार्थी लालची बेरहम लोगों की निगाहों में आ गयी . अपनी मासूमियत खुश कली के अलावा फ़िल्म का कोई भी किरदार स्वार्थ व लालच से परे नहीं… फिल्मकार की किसी भी पात्र से सहानुभूति नही . अनुराग ने सच भाव से उन्हें पेश कर दिया… सीमाओं एवं कमजोरियों से पराजित किरदार. कमजोरियों से लगाव रखने वाले किरदारों की दुनिया. इनसे गुजरते हुए महसूस हो रहा कि अनुराग इंसानों की काली दुनिया को दिखाने में विशेषता रखते हैं.जिंदगी की अडचनों को बारीकी से देखकर स्याह पहलू सामने लाना जानते हैं…
’अग्ली’ भले ही वासेपुर का नगरीय विस्तार लगे लेकिन वो इससे आगे की फ़िल्म नजर आ रही . कली सरीखा बच्चों की नजर देखी जाने वाली जरुरी फ़िल्म. उत्तरदायी समाज की तालाश में निकली कहानी. साधारण सी दिखने वाली अपहरण की घटना की परतों में रिश्तों व बड़े स्तर पर समाज का भी काला सच सामने आता देखें… लेकिन ज़रा सोचें कि ‘अग्ली’ सरीखा फिल्में मानवीय रिश्तों पर से एकदम भरोसा नहीं उठा रही ? समाज एकांतवास की ओर जा रहा… अकेलापन जिंदगी को भारी कर रहा.. सफर को मुसाफिरों की जरूरत है. उदासीन हताश व निराश समाज को विश्वास में जीत की कहानियां अधिक नहीं चाहिए ?