सुजीत ठमके
एनडीटीवी इंडिया हिंदी का प्राइम टाइम शो दर्शको की खूब वाहवाही बटोरता है। भलेही टीआरपी के दौड़ में पीछे रहा हो किन्तु दर्शको के पसंदीदा शो में से एक है । और इसमें वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार की सूझबुझ वाली एंकरिंग के साथ थोड़ा इतिहास के पन्नो को खंगालने की कोशिश हो तो शो की अहमियत, संवेदनशीलता, गम्भीरता १०० फीसदी बढ़ जाती है। रवीश भाई का प्राइम टाइम शो यानी अन्य न्यूज़ चैनल्स जैसे आक्रमकता नही। हो हल्ला नहीं। एंकरिंग के दरम्यान को प्रोवोक नहीं। हर मुद्दो को सहज, सरल, आम बोलचाल की भाषा में रवीश कुमार रखने की कोशिश करते है। शो के बीच बीच में मुहावरे, किसी उर्दू शायरों के शायरी, मुशायरा, कभी कभी कबीर का दोहा, या किसी विद्वान समाजशास्त्री, इतिहासकार, पंडितो का कोट रवीश कुमार प्राइम टाइम शो में कहने को नहीं भूलते। चूकि रवीश कुमार इतिहास के छात्र रहे है। साहित्य में रूचि रखते है। उपन्यास, शायरी, मुशायरा, कविता लिखने पढ़ने में दिलचस्पी रखते है। शो के दौरना कबीर का दोहा अक्सर रखते है। जुमले का भरपूर इस्माल करते है। रवीश कुमार के इस अनूठे अद्भुत, लाजवाब प्रस्तुति से दर्शको ने उन्हें फर्श से अर्श तक पहुंचा दीया। उनके शो को संजीदगीसी से सुनाने वाला एक ख़ास तबका है। इसीलिए उनके होस्ट किये गए लगभग सभी कार्यक्रम दर्शको को खूब भाते है। रवीश कुमार इन दिनों उत्तरप्रदेश के गाँव , कस्बे, मोहल्ले से असली भारत खोज रहे है। शहरों के विकास में गाँव क्यू पीछे रहे।
वाराणसी या यू कहे काशी यानी संत, महंत, घाटो की नगरी। इसी घाटो की नगरी से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव मैदान से ताल ठोका है। चूकि मुकाबला त्रिकोणी एवं दिलचस्प है। इसी सिलसिले में रवीश कुमार वाराणसी से २०० कि. मी बसे एक गाँव में रिपोर्टिग के लिए गए। ग्रामीणो से कई मुद्दो पर बात की। समस्या जानने की कोशिश की। गाँव में सवर्ण दलित छुआछूत, सड़क, बिजली, पानी, मनरेगा, स्वस्थ, शिक्षा, चुनावी चौपाल आदी। रवीश भाई ने गाँवके हर क्षेत्र का जायजा लिया। ग्रामीणो से रुबरु होते हुए एक विकलांग सज्जन रवीश कुमार से सामने आया। आम बोलचाल की भाषा में रवीश भाई ने पूछा आखिरकार आप के गाँव का विकास क्यू नहीं हुआ। किसी सरपंच, विधायक, सांसद, सरकारी अफसर, मुख्यमंत्री को इस बारे में आप लोगो ने कभी ज्ञापन दिया है। विकलांग सज्जन ने कहा जी……. हां दिया ….. है लेकिन कुछ नहीं हुआ। विकलांग सज्जन के रहन सहन, बोलचाल, पेहराव से तो लगा यह ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं है। किन्तु ” सयुक्त राष्ट्र संघ” के बारे में कई पढ़ा या सूना होगा। फिर रवीश भाई ने पूछा तो अब क्या करने की योजना है। विकलांग सज्जन ने जवाब दिया जी….. सयुक्त राष्ट्र संघ को रिपोर्ट बनाके भेजना चाहिए। रवीश भाई हस…. हस… कर लौटपौट हो गए। रवीश भाई कॉमेडी मूड में आये और विकलांग को पूछने लगे इसमें सयुक्त राष्ट्र संघ क्या करेंगा ? हम रिपोर्ट बनाके भेजेंगे तो सयुक्त राष्ट्र संघ पैसा देगा। रवीश कुमार जाते जाते उस विकलांग को हसी मजाक में बोले तो फिर बनाये एक रिपोर्ट सयुक्त राष्ट्र संघ को भेजने के लिए। भलेही वो विकलांग सयुक्त राष्ट्र संघ की कार्यप्रणाली, ढाँचा, अधिकार आदी से अवगत ना हो किन्तु उन्हें आस है की सयुक्त राष्ट्र संघ कुछ करता है। हमारे जैसे दर्शक ना हसते बन रहे थे ना रोते……. मानो देश के ग्रामीण भी यह मान चूके है देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था, नेता, अफसरशाही से कुछ नहीं सकता। अब सयुक्त राष्ट्र संघ से कुछ उम्मीदे है।
सुजीत ठमके
पुणे- ४११००२