रवीश कुमार-किरण बेदी इंटरव्यू या लफ्फाजी
राजीव रंजन झा
@ fb : रवीश ने किरण बेदी का जो इंटरव्यू लिया, उसमें उन्होंने बेदी को सबसे पहले इस बात पर खींचा कि वे हर दिन किसी आम आदमी से सुबह 9 बजे क्यों मिलेंगी! पूछते हैं कि सुबह 9 बजे कोई बेरोजगार मिल गया तो क्या उसे तुरंत नौकरी दे देंगी? एक व्यक्ति की समस्या सुलझा भी लें तो उसके जैसे लाखों लोगों की समस्या हल हो जायेगी क्या?
अब एक तरफ हम इस बात पर चिंता जताते हैं कि हमारा राजनीतिक नेतृत्व जमीन से कटता जा रहा है और लोगों से दूर होता जा रहा है। दूसरी तरफ अगर किसी ने ऐसा इरादा जताया कि उसे अपने हर दिन की शुरुआत में आम लोगों से मिलना है तो हम इस इरादे की सराहना करने के बदले उसे लफ्फाजी वाले सवालों में क्यों उलझाना चाहते हैं?
विनय जायसवाल रवीश का सवाल सही और सटीक था, किरण की अपरिपक्वता उन्हें ले डूबी।राजनीति में मकसद हमेशा महत्वपूर्ण है, वह उसे सलीके से सामने रख सकती थी लेकिन वह तो रवीश को थाने का इंस्पेक्टर समझकर डांटने तक लगी।
Chandra Prakash रवीश पत्रकारिता के नए गॉडमैन हैं। उनके भक्तों को आपकी बात नहीं पसंद आएगी।
Jey Sushil हाहाहाहाहा किरन को इस्तेमाल करना चाहिए था इस सवाल का..लेकिन उन्होंने मामला हाथ सेजाने दिया…नौकरी की बात कर के..स्क्लि्स की बात कर के..एख जवाब ये भी हो सकता था…कि मैं जमीन से कनेक्ट रहूंगी इस तरीक से…औऱ आज क्या…सीएम बनने के बाद भी ऐसा करती रहूंगी…
Rajeev Ranjan Jha किरण बेदी ने नौकरियों की बात, स्किल की भी बात की, बताया कि उनकी योजना शाम को खाली रहने वाले सरकारी स्कूलों में पॉलिटेक्निक शुरू करने की है, मगर रवीश उस बात की भी खिल्ली उड़ाते नजर आये।
Rajeev Ranjan Jha पूरे इंटरव्यू का इरादा ही एकदम क्रांतिकारी लगा, और उसके बाद बचा हुआ काम क्रांतिकारी साथियों ने उन्हें सुपर पत्रकार घोषित करके पूरा कर दिया है! रवीश मित्रवत रहे हैं। गॉडमैन बनना तो उन्हें भी रास नहीं आयेगा.
Jey Sushil अपना अपना पर्सपेक्टिव है..देखने का…….किसी को खिल्ली उड़ाना लग रहा है.किसी को अच्छा सवाल लग रहा है….मेरे हिसाब से हर पत्रकार किसी नेता के पास अपने एजेंडे को लेकर ही जाता है….हम.सब अपना मवाद दिमाग में ढो के चलते होंगे……ये तो नेता के ऊपर है कि वो उस मवाद में कूदे या मवाद से अपना फायदा निकाले………..इस मामले में किरन उस मवाद में कूदीं और डूबती नज़र आईं हैं……..वैसे मोदी भक्त और भेदी भक्त ये भी कह रहे हैं कि मोदी भी इंटरव्यू से भागे थे तो इससे कोई असर नहीं पड़ता….भक्त दोनों तरफ हैं…चाहे मोदी के हों या रवीश के………
Rajeev Ranjan Jha आपने कहा कि उन्हें ऐसा जवाब देना चाहिए था। उन्होंने वही जवाब दिया था। “अपना-अपना पर्सपेक्टिव है…”
Jey Sushil जवाब कमज़ोर और बचकाने थे किरन जी के…निश्चित रुप से…वो इंटरव्यू का फायदा नहीं उठा पाईं..रवीश तो चलिए खींचने गए थे मान लिया..किरन जी को खिंचना नहीं चाहिए था….
Anuranjan Jha डिसक्लेमर – मैं मोदी भक्त नहीं … एक बात गौर करने वाली है… जिन-जिन संपादकों, पत्रकारों और इस प्रजाति से मेल खाते हुए लोगों की भावनाएं लोकसभा चुनाव के वक्त आहत हुई ( जो बीजेपी को १५०-१८० सीट दे रहे थे) घीरे-घीरे सब मौका देख चौका लगाने में लगे हुए हैं .. कभी भेदी के बहाने तो कभी बेदी के बहाने … ” सेनोरिटा ”
Jey Sushil आजकल लोगों को हर बात पर डिस्क्लेमर देना पड़ रहा है………मैं फलां नहीं हूं..मैं फलां नहीं हूं….क्या जमाना आ गया है….ये किसी पर निजी़ टिप्पणी नहीं है लेकिन सोचने वाली बात है कि हम लोग कैसे अविश्वास के दौर में जी रहे हैं कि कोई बात कहने से पहले डिस्कलेमर देना पड़ रहा है
Chandra Prakash Rajeev Ranjan Jha सारी दिक्कत मित्रवत होने की ही तो है। इसीलिए ज्यादातर लोग चुप हैं। वरना ‘मैं आपको मुलेठी खिला दूंगा’ जैसी बातें कम से कम कोई पेशेवर पत्रकार नहीं बोलेगा। आप पोलिटिकल इंटरव्यू लेने गए थे या एक सीएम कैंडिडेट से हंसी-ठिठोली करने गए थे। इंटरव्यू में अगर किसी महिला को ये कहना पड़ गया कि ‘प्लीज़ बी रिस्पेक्टफुल टु मी’ तो ये तारीफ की नहीं, चिंता की बात है।
Dharmendra K Singh रवीश बाबू अभी किसी और दुनिया में हैं। वो भी नेताओं की तरह जमीनी सच्चाई से दूर आसमान में उड़ रहे हैं। हमारे पत्रकार बिरादरी में कुछ लोग इस खुशफहमी में जी रहे हैं कि उनके जैसा कोई दूसरा बुद्धिजीवी इस दुनिया में हैं ही नहीं।