रवीश कुमार
आदरणीय यू आर अनंतमूर्ति जी,
आप जानते हैं कि जब से टीवी में करने के लिए कोई काम नहीं रह गया है मैं ब्लाग पर बड़े बड़े लोगों को चिट्ठियाँ लिखते रहता हूँ । कई लोग कहते हैं कि मैं एक साधारण एंकर हूँ और मैं भी उसी तरह का कूड़ा उत्पादित करता हूँ जिस तरह का अंग्रेजी के बड़े एंकर करते हैं और अपनी बेहयाई का नित्य प्रदर्शन करते रहते हैं । टीवी की अंग्रेजी पत्रकारिता और हिन्दी पत्रकारिता दोनों के गटर छाप होने के इस दौर में हिन्दी को लेकर मेरी हीन भावना समाप्त हो गई है । बराबरी के दौर में एक ही हीन भावना बची है ।
आपने कहा है कि नरेंद्र मोदी के भारत के प्रधानमंत्री बनने पर आप देश छोड़ कर जाने वाले हैं । वाउ ! हाउ क्यूट न ! मेरी हीन भावना ये है कि मुझे विदेशों में रहने का एतना शौक़ है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमत्री बनने से पहले ही और वो भी आज ही भारत छोड़ दूँ । मुझे नहीं मालूम कि आपका पहले से किसी देश में मकान-वकान है या लेने वाले हैं अगर हाँ तो एक जुगाड़ मेरे लिए भी कर दीजियेगा ।
दरअसल आपने जो यह बात कही है वो निहायत ही कायर और ग़ैर लोकतांत्रिक बात है । फासीवादी उद्घोषणा है । आपकी बात से ऐसा लगता है कि अगर यहाँ की जनता आपको भारत में रखना चाहती है तो नरेंद्र मोदी को न चुने । इस तरह की बात करने का मतलब यही है कि नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ आपके पास कोई तार्किक दलील नहीं बची है । इस तरह की बातों को हम ग़ैर साहित्यिक ज़ुबान में थेथरई कहते हैं । आपके पास मोदी के ख़िलाफ़ कोई दलील है तो पब्लिक में जाइये । मोदी के ख़िलाफ़ लड़िये । लड़ाई को लोकतांत्रिक बनाइये । फासीवाद का मुक़ाबला फासीवाद से होगा या लोकतंत्र से । रोज़ दस लोगों को समझाइये कि फासीवाद क्या होता है, क्यों ख़तरनाक होता है । लोग नहीं समझते तो उनकी क्या ग़लती है । अब वो तो साहित्य अकादमी वाले नहीं हैं न जी । आपका यह बयान नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ होता तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होती लेकिन आपने भारत की जनता को लानत भेज कर चिरकुटई का काम किया है ।
गुजरात में ३९ फ़ीसदी जनता नरेंद्र मोदी को वोट नहीं करती है लेकिन क्या उनके पास भारत छोड़ने के विकल्प हैं । ३९ फीसदी लोग तीन चुनावों से मोदी के ख़िलाफ़ वोट दे रहे हैं । इस बार उन्हें एक मामूली कामयाबी मिली । ३८ फ़ीसदी से बढ़कर ३९ फ़ीसदी हो गए । मोदी को दो तिहाई बहुमत तो नहीं ही मिली उनके खाते की दो सीटें भी कम हो गईं । यह बहुत ही मामूली कामयाबी है । इसका मतलब यह नहीं कि वे गुजरात या भारत छोड़ कर चले जाएँ । ग़नीमत है इन ३९ फ़ीसदी लोगों में से कोई अनंतमूर्ति नहीं है वर्ना हवाई अड्डों पर भसड़ मच जाती । गुजराती वैसे ही विदेश चले जाते हैं मगर इस कारण से पलायन करते तो भी क्या मोदी का कुछ बिगाड़ लेते । आप उन ३९फीसदी लोगों के धीरज की कल्पना कीजिये । तीन बार से हार रहे हैं फिर भी मोदी के पक्ष में गुजरात को शत प्रतिशत नहीं होने दिया । आपने उनका अपमान किया है ।
मैंने आपको नहीं पढ़ा है क्योंकि मेरे लिए पढ़ने का मतलब नौकरी प्राप्त करना था और वो हो जाने के बाद मैंने लोड लेकर पढ़ना बंद कर दिया । आप शायद मेरे कोर्स में नहीं रहे होंगे । पर सुना बहुत है कि आप कमाल के रचनाकार हैं । होंगे ही । इसीलिए इस बयान को बदलिये, लोगों के बीच काम कीजिये और लोकतांत्रिक तरीके से मोदी के विरोध का साहस दिखाइये । भारत छोड़ देंगे ! आपके ऐसे बयान से मोदी को कितनी मज़बूती मिली है पता है आपको । मैं यह पत्र मोदी के समर्थन में नहीं लिख रहा हूँ । आप जैसे महान परंतु किन्हीं चिरकुट हरकतों में संलग्न हो जाने के बचकानेपन के ख़िलाफ़ लिख रहा हूँ । अपनी दलीलों में भरोसा है तो यहीं रहिये । लड़िये और हारने के बाद भी लड़ते रहिए । हम आपका सम्मान करेंगे । हार के डर से लड़ने वालों को पहले ही भागने का रास्ता मत दिखाइये । मोदी का जीत जाना कत्तई महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण और दुर्भाग्यपूर्ण है प्रतिरोध करने वालों के पलायन का एलान करना । आपने मोदी के ख़िलाफ़ मतदान करने वाले करोड़ों लोगों का अपमान किया है । आप मोदी का विरोध कीजिये । कहिये कि मैं पूरा प्रयास करूँगा । सबको मिलकर लड़ना है । जितना बन सकता है उतना ही कीजिये । ये क्या कि भारत छोड़ दूँगा और वो भी अकेले अकेले !
अगर आप मेरे लिए भी विदेशों में फ़्लैट देख सकें तो चलूँगा । क्योंकि मैं विदेशी बनना चाहता हूँ । टाइम मिलते ही आपको पढ़ता हूँ सर ।
आपका ग़ैर पाठक
रवीश कुमार ‘ एंकर’
(रवीश कुमार के ब्लॉग से साभार)