उदय प्रकाश,साहित्यकार @fb
रवीश कुमार के एक कार्यक्रम में असली ‘नारी-शक्ति’ को देखा. सुबह पांच बजे से दोपहर बाद दो- तीन बजे तक पानी के लिए टैंकर या नलके के पास बर्तन लेकर इंतज़ार में बैठी दिल्ली की महिलाएं और फिर पानी मिलने पर इतने भारी बर्तनों को सिर, कंधों, कमर पर लाद कर संकरी-गंदी गलियों से अपने वर्षों से बसे ‘अनधिकृत’ कच्चे-अधपके ‘घरों’ तक ढोती हुई नारियां.
एक दुबली-पतली, अधेड़ उम्र की ‘नारी’ को तो ड्रम में पानी भर कर एक-डेढ़ किलोमीटर दूर तक पैरों से लुढ़्काते हुए, ले जाते देखा.
अब पानी दो दिन बाद मिलेगा और इन दो दिनों तक जैसे किसी जादू से घर-परिवार के सारे सदस्यों का सारा काम चलेगा.
रवीश की टिप्पणी थी, कि जब दिल्ली स्मार्ट सिटी बन जायेगी तो ये औरतें मोबाइल एप्प से पानी डाउनलोड कर लिया करेंगी.
जैसे कि वायदा है कि मोबाइल में अपना ‘बिजली सर्वर’ चुनने की आसान सुविधा सभी को होगी, जिस तरह हम कभी ‘आइडिया’, ‘एयरटेल’ या ‘वोडाफोन’ चुन लेते हैं, शायद भविष्य की ‘स्मार्ट सिटी’ की ये नारियां, पानी सर्वर भी मनचाही कंपनियों से ले लिया करेंगी.
हर बार चुनावों में राजनीतिक पार्टियां इन चालीस-पचास लाख बाशिंदों से वायदे कर के वोट ले जाती हैं और फिर ‘नारी-शक्ति’ ही इन घरों को चलाती है.
जो लीडर महिलाएं ‘नारी-शक्ति’ की बात करती हैं, ज़रा इतना बोझा उठा कर और इस तरह घर-परिवार चला कर दिखाएं.
राजनीति को इस तरह व्यर्थ और अनुपयोगी या ‘फ़ालतू’ होते पहले कभी ठीक से नहीं देखा था.