ब्लैकमेलिंग प्रकरण की आंच से ज़ी न्यूज़ की साख क्या ख़ाक हुई, एक – एक कर वरिष्ठ पत्रकारों ने भी चैनल का साथ छोड़ना शुरू कर दिया है. इसी कड़ी में नया नाम ‘रवि पराशर’ का है.
हालांकि आधिकारिक पुष्टि नहीं हो पायी, लेकिन सूत्रों के मुताबिक उन्होंने इस्तीफा दे दिया है और संभवतया सहारा ज्वाइन कर सकते हैं. उनके इस्तीफे की वजह भी वही है जिसके कारण पिछले कुछ महीनों में दो दर्जन से अधिक पत्रकार (सीनियर) चैनल छोड़कर जा चुके हैं.यानी ब्लैकमेल के आरोपी संपादक के अधीन काम करना. वाकई में ये दुष्कर कार्य है.
रवि पराशर का ज़ी न्यूज़ से बहुत पुराना नाता रहा है. वे तकरीबन 12 सालों से ज़ी न्यूज़ के साथ काम कर रहे थे. ज़ी न्यूज़ के न्यूज़रूम इंचार्ज भी वही थे. ऐसे में उनका जाना ज़ी न्यूज के लिए ठीक नहीं रहेगा. वैसे भी वे टिक कर काम करने वाले पत्रकार हैं. ज्यादा संस्थान नहीं बदलते. अब तक के अपने करियर में वे बहुत कम जगह ही गए और शायद अब भी नहीं जाते, यदि ज़ी में ऐसी परिस्थितियां नहीं बनती.
वैसे भी ब्लैकमेलिंग के आरोपी संपादक सुधीर चौधरी के नेतृत्व में ज़ी न्यूज़ देखते हुए अब लाइव इंडिया और इंडिया टीवी का एहसास होता. टैगलाइन ‘सोंच बदलो, देश बदलो’ की तर्ज पर इसकी भाषा भी बदल गयी है.
अंग्रेजी को जबरदस्ती ऐसे घुसाया जा रहा है जैसे ज़ी न्यूज़ हिंदी का नहीं बल्कि द्विभाषीय (bilingual) चैनल हो. सतीश के सिंह के जाने और ब्लैकमेलिंग प्रकरण के बाद ज़ी न्यूज़ खो सा गया है.
ऐसे में तमाम दूसरे वरिष्ठ लोगों के चैनल से किनारा कर लेने के बाद चैनल की दुर्गति तय है. लेकिन जब मालिकान ही तिकडमबाजों के जाल में फंसे हों तो कोई क्या कर सकता है. विनाश काले, विपरीत बुद्धि.
(यदि इस रिपोर्ट में कोई तथ्यात्मक अशुद्धि हो तो टिप्पणी कर अवगत कराएँ.)
विनाश काले, विपरीत बुद्धि.
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