राणा यशवंत,प्रबंध संपादक,इंडिया न्यूज़
इस बात के पूरे आसार बन गए हैं कि आप की पॉलिटिकल अफेयर्स कमिटी से योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण का पत्ता साफ होगा। अरविंद केजरीवाल दिल्ली के अब मुख्यमंत्री हैं और आम आदमी पार्टी का कनवेनर पद अब भी उन्हीं के पास है। पार्टी के आंतरिक लोकपाल एडमिरल रामदास की चिट्ठी जो पिछले हफ्ते आई वो इस बात पर सवाल खड़ा करती है। एडमिरल रामदास अपनी चिट्ठी में कहते हैं कि ऐसा लगता है कि हम जिन दलों के खिलाफ लड़कर आए, हमारी स्थिति उनसे अलग नहीं है। पार्टी के बड़े नेताओं में आपसी संवाद और भरोसे की कमी है, महिलाओं के हक की बात करते हैं – ना तो सरकार में जगह दी ना ही पॉलिटिकल अफेयर्स कमिटी में और सबसे बड़ा सवाल ये कि एक ही आदमी मुख्यमंत्री और पार्टी का कनवेनर रहकर दोनों जिम्मेदारियां पूरी तरह कैसे निभा सकता है। यह चिट्ठी एडमिरल रामदास ने पॉलिटिकल अफेयर्स कमिटी को लिखी थी । इसके बाद गुरुवार और शुक्रवार को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई। इस बैठक में पहले दिन केजरीवाल नहीं गए और कनवेनर पद से अपना इस्तीफा यह कहकर भेज दिया कि अब मैं मुख्यमंत्री हूं, पार्टी के काम के लिये मेरे पास समय शायद कम रहे । इसके बाद कार्यकारिणी के ज्यादातर सदस्यों ने योगेंद्र यादव को घेर लिया । आरोप ये लगाया गया कि वो पार्टी और अरविंद केजरीवाल दोनों के खिलाफ काम कर रहे हैं । बहुमत से केजरीवाल का इस्तीफा नामंजूर किया गया और उन्हें ये अधिकार दे दिया गया कि पॉलिटिकल अफेयर्स कमिटी को वो नये सिरे से गठित करें ।
दरअसल योगेंद्र यादव तब से ही आप में थोड़े अलग थलग पड़ने लगे जब उन्होंने कुछ महीने पहले पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र को लेकर सवाल उठाया था। इस समय योगेंद्र यादव के साथ प्रशांत भूषण खड़े हैं जो योगेंद्र ही की तरह पॉलिटिकल अफेयर्स कमिटी के सदस्य हैं औऱ दिल्ली चुनावों से ही केजरीवाल के कामकाज से नाराज चल रहे हैं। कार्यकारिणी को प्रशांत ने जो चिठ्टी भेजी है उसमें उन्होंने चुनावों के दौरान उम्मीदवारों को तय करने और उसके बाद की कई भयानक गलतियों पर चुप रहने को सपाट तरीके से रखा है। प्रशांत ने दो टूक लिखा है कि पार्टी एक आदमी के आसपास सिमट गयी है और अरविंद राष्ट्रीय कार्यकारिणी के फैसलों को भी बदल देते हैं। प्रशांत भूषण खुद ये चाह रहे थे कि केजरीवाल की जगह योगेंद्र यादव को आप का कनवेनर बना दिया जाए लेकिन उनकी सुनी नहीं गयी। प्रशांत भूषण की चिट्ठी भी मीडिया में है और एडमिरल रामदास की चिट्ठी भी लीक हो चुकी है। सवाल ये हो सकता है कि पार्टी के भीतर की ऐसी गोपनीय जानाकारियां बाहर किसके जरिए आई लेकिन उससे बड़ा सवाल ये है कि आम आदमी पार्टी में योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण की हैसियत आनेवाले दिनों में क्या होगी ।
वैसे मुझे आशुतोष की नई किताब मुखैटे का राजधर्म के विमोचन पर उन्ही की कही बात याद आ रही है कि जब आदमी किसी राजनीतिक दल में आ जाता है तो वो एक सीमा से आगे सच नहीं बोल पाता । ये नहीं बोल पाना आशुतोष की फितरत में है ही नहीं लिहाजा ये बयान उनकी घुटन की तरफ इशारा कर रहा था। उसी रोज आशु ने ट्वीट भी किया था कि लेखन जीवन का विस्तार है, राजनीति एक पड़ाव । सबकुछ बड़ा साफ है अगर समझनेवाली नजर हो तो। आनेवाले दिनों में आप के यहां कुछ होनेवाला है जिसकी आहट सुनाई पड़ रही है।