विनीत कुमार
लेटलतीफ ही सही, हिन्दी प्रकाशकों को ये बात समझ आने लगी है कि सोशल मीडिया के जरिए वो अपनी किताबों,लेखकों और कार्यक्रमों का प्रचार कर सकते हैं. ये अलग बात है कि वक्त-वेवक्त उनके नामवर लेखक सलाहकार इससे बराबर दूरी बनाए रखने की सलाह देते रहे हैं.
लेकिन सोशल मीडिया पर आने की एक बड़ी शर्त है कि वो इनकी प्रकृति को समझें और तुरंता होने का अभ्यास डालें. ये नहीं कि बनारस किताब की लिस्ट भेजी है तो जा रहr है तो जा रहr है, लेखक किताब लिख रहा है तो लिख रहा है. अब देखिए राजकमल प्रकाशन को. शिवानी को शिवनी लिखे एक घंटे से ज्यादा हो गया, लोगों की टिप्पणियां जारी है कि इसे दुरुस्त करें लेकिन नहीं- लग गया तो लग गया.
वैसे तो वर्चुअल स्पेस पर वर्तनी की ऐसी गलतियां आम बात है,मामूली है लेकिन कोई प्रकाशक या मीडिया संस्थान लगातार टोके जाने पर भी ठीक नहीं करता तो इससे बिना उसकी ऑफिस में झांके काम करने के तरीके उघड़कर सामने आ जाते हैं और साथ में ये भी कि वो किसी चीज को कितना सीरियसली लेते हैं.
Pramod Kumar Tiwari दो लाइन में तीन गलतियां अगर प्रकाशक करे तो उसकी गंभीरता पर संदेह होता है। ‘शिवानी जी का लेखन’ होना चाहिए क्योंकि लेखन पुलिंग है। ‘इनमे’ नहीं इनमें होगा, बिंदी का अपना महत्व होता है। सुना है इंग्लैंड में प्रकाशन में प्रूफ की गलती करने पर जेल तक की हवा खानी पड़ती है, जरा अपने मीडिया शोधकर्ताओं से इसका पता लगवाइए और भारत में इसे लागू करवाने के लिए क्या करना होगा इसे भी बताइए।
(एफबी से साभार)