दिल्ली. हिंदी के मशहूर साहित्यकार राजेंद्र यादव नहीं रहे. सोमवार रात उनका निधन हो गया. वे 84 साल के थे और पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे. कल रात उन्हें सांस लेने में तकलीफ महसूस हो रही थी जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया.लेकिन रास्ते में ही उन्होंने दम तोड़ दिया. उनके पार्थिव शरीर को मयूर विहार स्थित उनके घर पर रखा गया है. दोपहर तीन बजे उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा.
1986 से राजेन्द्र यादव हंस पत्रिका का संपादन कर रहे थे.इस पत्रिका को 1930 में हिन्दी के मशहूर उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद ने शुरू किया था, लेकिन 1953 में यह बंद हो गई, जिसे राजेन्द्र यादव ने 1986 में लॉन्च किया. तब से इसके माध्यम से वे हमेशा चर्चा और विवादों में रहे.हाल ही में एक युवा लेखिका ने उनपर कुछ आरोप लगाए थे.
राजेन्द्र यादव का पहला उपन्यास ’प्रेत बोलते हैं’ 1951 में प्रकाशित हुआ। इसके बाद उनका बहुचर्चित उपन्यास ’सारा आकाश’ 1960 में प्रकाशित हुआ. इस उपन्यास पर 1969 में बासु भट्टाचार्य ने ‘सारा आकाश’ फिल्म बनाई.
इसके अलावा उन्होंने ‘उखड़े हुए लोग’, ‘कुल्टा’, ‘शह और मात’ नाम का मशहूर उपन्यास लिखा। इसके अलावा उन्होंने कई कहानी संग्रहों का संपादन भी किया. इन्होंने चेखव तुर्ग नेव समेत कई रूसी साहित्यकारों की कहानियों का हिन्दी में अनुवाद किया.
राजेंद्र यादव को हिन्दी साहित्य की कई प्रतिभाओं को सामने लाने का श्रेय जाता है.