महिलाओं के लिए बने कानून का दुरूपयोग विव्देश भुनाने तलवार न बने : न्यायाधीश
जगदलपुर। बलात्कार के एक मामले में आरोपी पत्रकार रजत बाजपेयी को निर्दोष करार देते हुए फास्ट ट्रैक कोर्ट बस्तर के अपर सत्र न्यायाधीश पंकज जैन ने अपने फैसले में लिखा है कि साक्ष्य और गवाहों के बगैर तथा चिकित्सकीय परीक्षण से भी बलात्कार की पुष्टि नहीं होने पर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि प्रार्थिया का कथन एवं आचरण इस प्रकरण में रिपोर्ट दर्ज करवाने से लेकर न्यायालय में साक्ष्य के स्तर तक इतने अधिक संदिग्ध हैं कि अभिलिखित किया जा सकता है कि भारतीय आपराधिक न्याय प्रशासन में किसी महिला को उसके स्त्री होने की प्रकृति के नाते जो संरक्षण रूपी ढाल दी गई है, कहीं प्रार्थिया ने उस ढाल का उपयोग आरोपी के विरुध्द तलवार बनाकर उसे नौकरी से निकाले जाने के आधार पर तथा अन्य बिंदुओं की विद्वेषिता की अतिरंजिता के तहत् उपयोग तो नहीं किया है।
आरोपी को भी होती है पीड़ा
अपने फैसले में न्यायाधीश श्री जैन ने लिखा है कि बलात्कार के मामले में इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जा सकती कि इससे पीडि़ता को सबसे अधिक कष्ट और अपमान झेलना पड़ता है, किंतु यदि प्रार्थिया विद्वेषवश किसी को फंसाने के लिए झूठा और मनगढ़ंत षडय़ंत्र रचती है तो इतनी ही पीड़ा आरोपी को भी होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
प्रार्थिया ने स्वयं बनवाई अश्लील सीडियां
विद्वान न्यायाधीश ने लिखा है कि बलात्कार के इस फर्जी, मनगढ़ंत एवं बेबुनियाद प्रकरण में प्रार्थिया का कथन तथा आचरण सारभूत दुर्बलता से ग्रसित होने के कारण स्वयं संदेह के घेरे में आ गया और उसने नौकरी से निकाले जाने के कारण आरोपी के विरुध्द विद्वेषिता के आधार पर मिथ्या तरीके से 10 साल पूर्व की अश्लील सीडी का उपयोग किया है। न्यायाधीश ने फैसले में लिखा है कि प्रार्थिया ने अपनी उम्र छिपाने की नीयत से भी कई झूठ बोले और झूठा हलफनामा भी दिया। इस प्रकरण में आरोपी से न ही कोई सीडी जब्त हुई और न ही सीडी बनाने का उपकरण। बल्कि सबूतों ने इस बात का संकेत दिया कि प्रार्थिया ने स्वयं सीडी निर्मित करवाकर उसकी कई प्रतियां पुलिस से लेकर अनेक न्यायालयों में उपलब्ध करवाई।
झूठ और झूठ ने रास्ता आसान किया न्यायालय का
इस प्रकरण में प्रार्थिया ने आरोपी की दोषसिध्दि हेतु अपने मुख्य परीक्षण के माध्यम से साक्ष्य स्वरूप जिस मार्ग को बनाने का प्रयास किया, वह बचाव पक्ष के प्रतिपरीक्षणीय रूपी आरोपों के आक्षेप से नहीं, बल्कि स्वयं प्रार्थिया के विरोधाभाषी, बढ़ा-चढ़ा कर किए गए आधारहीन कथन से समूचे प्रकरण की स्थिति इस प्रकार हो गई कि उसमें कोई भी आधार या सामग्री नहीं बची, जिसकी बुनियाद पर न्यायालय आरोपी को दोषी करार दे सके।
सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं – झा
इधर बचाव पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता विक्रमादित्य झा ने कहा कि न्यायालय ने अपने नीर-क्षीर विश्लेषण में दूध का दूध, पानी का पानी करते हुए यह सिद्ध कर दिया कि सत्य परेशान अवश्य हो सकता है, किंतु पराजित नहीं। उन्होंने कहा कि महिला ने पुलिस में की गई शिकायत से हटकर नित नई झूटी कहानियां गढक़र स्वयं को संदिग्ध बना लिया। मेडिकल रिपोर्ट में बलात्कार के आरोप भी निराधार साबित हुए। अश्लील सीडी किसने, कब और कहां बनाई, यह प्रार्थिया सिद्ध नहीं कर पाई, बल्कि सीडी की कई प्रतियां बांटकर उसने स्वयं मामले की दशा और दिशा बदल दी।