-शुभांकर शुभम
राहुल देव जी जरा राजेंद्र यादव को भी हिंदी का पाठ पढ़ा दीजिए
वरिष्ठ पत्रकार ‘राहुल देव’ हिंदी भाषा को लेकर बेहद चिंतित रहते हैं. हिंदी भाषा के विकास और विस्तार के लिए सतत प्रत्यनशील रहते हैं. सभा – संगोष्ठियों में भी हिंदी भाषा के प्रयोग पर बल देते हैं और कभी – कभी ऐसा न होते देख कर विरोध में भी उतर जाते हैं. जैसा कि मीडिया मंथन कार्यक्रम में उन्होंने किया. उस कार्यक्रम में संचालक अंग्रेजी का इस्तेमाल हद से ज्यादा कर रहे थे तो राहुल देव ने आयोजकों से सवाल पूछ लिया कि हिंदी का कार्यक्रम और अंग्रेजी की जय – जय ?
राहुल देव का यह हिंदी प्रेम कई लोगों को चुभता भी है कि चौबीसों घंटे वे हिंदी – हिंदी क्यों करते हैं? बहरहाल राहुल देव को इससे फर्क नहीं पड़ता और वे हिंदी की प्रगति के काम में नित्य लगे रहते हैं. अब एक काम उनके जिम्मे और आ गया है. काम थोड़ा मुश्किल लेकिन बेहद जरूरी है. इस बार उन्हें हिंदी से ही नाम और शोहरत हासिल करने वाले महारथी को ‘हिंदी’ का पाठ पढ़ाना है. हिंदी का पाठ पढाने से मतलब है कि हिंदी भाषा में ही पत्राचार आदि करने की कला सिखानी है. ये महारथी कोई और नहीं बल्कि हिंदी के सबसे विवादास्पद साहित्यकार और हंस के संपादक ‘राजेंद्र यादव’ हैं.
आप सोंच रहे होंगे कि हिंदी के इतने बड़े साहित्यकार को हिंदी सिखाने के लिए क्यों कहा जा रहा है? कहीं कोई बतकही तो नहीं हो रही. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं. किस्सा कुछ यूँ है –
प्रेमचंद जी के जयंती पर हरेक साल ‘हंस’ पत्रिका की तरफ से एक वार्षिक गोष्ठी का आयोजन किया जाता है जिसमें अपने क्षेत्र के बड़े – बड़े विद्वानों को वक्ता के रूप में बुलाया जाता है. इस बार गोविन्दाचार्य और अशोक वाजपेयी के साथ -साथ वरवर राव और अरुंधती राय को भी बुलाया गया था. लेकिन गोविन्दाचार्य के होने की वजह से वरवर राव और अरुंधती नहीं आए. इससे काफी विवाद हुआ.
वरवर राव ने पत्र जारी कर अपने ऐतराज को जाहिर किया. बात दूसरे वक्ताओं के बारे में उन्हें अँधेरे में रखा गया. बहरहाल इसी कथन की पुष्टि में उन्होंने हंस द्वारा भेजी गयी वह चिठ्ठी जारी की जिसके जरिए उन्हें आमंत्रण भेजा गया था. उस पत्र में वाकई में दूसरे वक्ताओं का जिक्र नहीं है.
बहरहाल हम इस मुद्दे को छोड़कर दूसरे मुद्दे पर आते हैं. हिंदी साहित्यिक पत्रिका हंस के संपादक ‘राजेंद्र यादव’ द्वारा हस्ताक्षर किया गया यह पूरा पत्र अंग्रेजी में है. हिंदी के नाम पर राजेंद्र यादव का हस्ताक्षर है. अब जब हिंदी के ऐसे विद्वान और प्रेमचंद की परंपरा का निर्वाहन करने वाले ऐसा करेंगे तो फिर दूसरे को हिंदी भाषा के बारे में ज्ञान देने का क्या फायदा? राहुल देव जी गौर फरमाएं और हिंदी के ऐसे मठाधीशों के अहिन्दी व्यवहार पर विरोध जताएं? क्या राहुल देव राजेंद्र यादव को हिंदी का पाठ पढाएंगे ?
(पवन पाण्डेय की एक प्रतिक्रिया : इस सारी बहस से परे, यह देखकर विश्वास नहीं हो रहा कि हिंदी की इतनी प्रतिष्ठित पत्रिका निमंत्रण देते समय अपनी भाषा ही भूल जाती है और ‘अपनी भाषा’ और ‘सरोकार’ आदि मात्र ध्वनियाँ बनकर रह जाती हैं।)