वेद विलास उनियाल
कुछ चुनाव प्रचार बहुत अराजक और वहियाद किस्म के हैं। रेडियो पर एक प्रचार आ रहा है। एक लड़की की आवाज में। वह कहती हैे कि मैं किरण बेदी की बहुत बड़ी प्रशंसक थी। लेकिन वो गुंडो की पार्टी में शामिल हो गई हैं। मैं बहुत दुखी हूं। यह चुनाव प्रचार और चुनाव शब्द किस पतन को पहुंच चुका है। इस विज्ञापन से समझा जा सकता है। जिसने भी इस विज्ञापन को रेडियो पर देने की कल्पना की, और मंजूरी दी उससे उसकी एकदम बीमार मानसिकता ही उजागर होती है। और चुनाव की हड़बड़ाहट और बौखलाहट भी। कोई सभ्य समाज ऐसे चुनाव प्रचार को सहन नहीं कर सकता। इससे पता लगता है कि इस तरह प्रचार करने वाले नेता नहीं ये आतुर प्रसाद हैं जिन्हें किसी भी तरह सत्ता चाहिए। प्लीज चुनाव को चुनाव रहने दें। उसे विकृत नहीं बनाए। एक दूसरे को सरे आम रेडियो में गुंडा कहना घोर असभ्यता है। ऐसे विज्ञापन देकर चुनाव मैैदान में आने वाले समाज का कोई भला नहीं कर सकते। इस तरह के प्रचार सामग्री को रोका जाना चाहिए। @FB