संदर्भ : पत्रकारिता अवार्ड के नाम पर एक्सचेंज फॉर मीडिया की फ्रॉडगिरी : पुण्य प्रसून बाजेपयी
पुण्य प्रसून बाजपेयी ने मीडिया महारथी कार्यक्रम पर कटाक्ष करते हुए अपने ब्लॉग पर एक लेख लिखा है जिसमें कार्यक्रम कराने वाली पीआर वेबसाईट की आलोचना करते हुए लिखा है कि, ‘20 जुलाई को देश के 50 हिन्दी के संपादकों/ पत्रकारों को लेकर एक्सचेंज फॉर मीडिया की पहल ने इस तथ्य को पुख्ता कर दिया कि पत्रकार मौजूदा वक्त में बेचने की चीज भी है और पत्रकारिता के नाम का घोल कहीं भी घोलकर धंधेबाजों को मान्यता दिलायी जा सकती है और समाज के मान्यता प्राप्त या कहें अपने अपने क्षेत्र के पहचान पाये लोगों को ही धंधे का औजार बनाकर धंधे को ही पत्रकारीय मिशन में बदला जा सकता है.’ इसी लेख पर युवा पत्रकार और प्रखर आलोचक अभिषेक श्रीवास्तव की एक टिप्पणी :
अभिषेक श्रीवास्तव : इस टिप्पणी से तो मैं सहमत ही हूं। कौन असहमत होगा। लेकिन मसला ज़रा और व्यापक है। प्रसून जी ने मामले को धंधे और पत्रकारिता के घालमेल पर संकुचित कर दिया है। असल सवाल यहां किसी के पत्रकार होने या न होने, काबिलियत रखने या न रखने का नहीं है।
आपको याद होगा कि प्रसून जी को 2007 में रामनाथ गोयनका अवॉर्ड मिला था। इस बार रवीश कुमार आदि को मिला है। यह अवॉर्ड कौन प्रायोजित करता है, ज़रा पता करिए। जिस साल प्रसून जी को मिला, उस साल सिटि ग्रुप और वीडियोकॉन आदि इसके प्रायोजक थे।
प्रसून जी की नैतिकता बाल-बाल बच गई कि 2008 से इसे बदनाम जेपी समूह प्रायोजित करने लगा। अब मैं चाहूं तो मामले को खींच कर सिटि ग्रुप के कॉरपोरेट अपराधों तक भी ले जा सकता हूं।
बहरहाल। बड़ा सवाल यह नहीं है कि एक्सरचेंज फॉर मीडिया ग्रुप ने धंधेबाज़ों को पत्रकार के तौर पर मान्याता दे दी और अन्ना की हाजिरी में शराब बांटी। सवाल यह है कि चाहे जैसा हो और जिस लिए हो, ये पुरस्कार आखिर दे कौन रहा है। ज़ाहिर है, सब कॉरपोरेट पूंजी से हो रहा है।
एक्सचेंज फॉर मीडिया इस मामले में जेपी और सिटिग्रुप या वीडियोकॉन से तो बहुत छोटा खिलाड़ी है। जितना छोटा दुकानदार, उतनी ही ज्याइदा उसकी चोरी पकड़ी जाएगी। बाकी, पूंजीवाद की भी अपनी काम भर की नैतिकता होती ही है, इसीलिए प्रसून जी या अतुल चौरसिया जैसे कुछेक पत्रकारों की जानदार रिपोर्टों को सम्मानित भी किया जाता है।
मेरी राय तो भाई लूट के पैसे से मिलने वाले तमाम पुरस्कारों के खिलाफ ही है। एक्संचेंज फॉर मीडिया तो एक छोटा सा उदाहरण भर है। प्रसून जी को वास्तव में बोलना है तो वे गोयनका पुरस्काकर के खिलाफ बोलकर दिखाएं। जिन पत्रकारों की नैतिकता इस मीडिया महारथी के खेल से आहत हुई है, उन्हें ऐसे तमाम छोटे-बड़े पुरस्कारों का बहिष्कार करना चाहिए।
पहले से मिला हो तो लौटा देना चाहिए। गुड़ खाकर गुलगुले से परहेज़ करने से शरीर में चीनी कम नहीं हो जाता। शुगर ठीक करना है तो मीठा खाना छोडि़ए।