कुमार कृष्णन
बिहार के भागलपुर जिले के चंपानगर में 14 सितम्बर 1958 में जन्मे श्री प्रसून लतांत वरिष्ठ पत्रकार हैं लेकिन पिछले 30 सालों से देश के विभिन्न हिस्सों में रचनात्मक कार्यों के जरिये ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के लोगों के बीच करते रहे हैं और इनके लिए आज भी पत्रकारिता मिशन है। अपने रचनात्मक कार्यों के जरिये साक्षरता प्रसार, असहायों की मदद, स्थानीय नेतृत्व का निर्माण कर सामूहिक प्रवृतियों को बढ़ावा देने के कार्यों में लगे हुए हैं। वे 1974 के छात्र आंदोलन से जुड़े और आपातकाल में भी हिम्मत के साथ युवाओं को संगठित करते रहे। बाद में गंगा मुक्ति आंदोलन से भी जुड़े और इस आंदोलन की कामयावी के लिये भी लिखते रहे और आंदोलन में भी भाग लेते रहे।
गांधी विचार में भागलपुर विश्वविघालय से एम.ए करने के बाद जनसत्ता राष्ट्रीय दैनिक में रहकर प्रसून लतांत गांधीजी के विचारों, आंदोलनों और उनसे जुड़े स्थलों पर हजारों लेख और खबरें लिख चुके हैं, जिनके लिये विभिन्न गांधीवादी संस्थाओं से विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किए गये हैं। उन्हें गांधी शांति प्रतिष्ठान द्वारा रचनात्मक कार्यों के लिये स्वामी प्रणवानंद शांति पुरस्कार आगामी 10 मार्च को प्रदान किया जाएगा। यह पुरस्कार पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार प्रदान करेंगी। इन्हें पत्रकारिता और समाज सेवा दोनों क्षेत्र में दर्जनों पुरस्कार मिला है I इन्हें चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा इन्हें सामाजिक सरोकार से जुड़े रिपोर्टिंग के लिए पुरस्कृत किया गया था, हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा विकास पत्रकारिता एवार्ड से सम्मानित, धर्मशाला में हिमाचल केसरी एवार्ड से सम्मानित, उद्यन शर्मा पत्रकारिता एवार्ड, मायाकोणि अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारिता एवार्ड, अखिल भारतीय पंचायत परिषद, नई दिल्ली द्वारा सम्मानित, गांधीयन पत्रकारिता के लिये येलो अम्ब्रेला कंपनी, मुम्बई द्वारा सम्मानित आविद हुसैन रचनात्मक लेखन और पत्रकारिता सम्मान किया गया है।
प्रसून लतांत जमनालाल बजाज जन्मशताव्दी पर वर्धा में स्थापित गांधी विचार परिषद के पहले बैच के विद्यार्थी रहे हैं। श्री लतांत परिषद से गांधी विचारों से समृद्ध होकर निकले तो उन्होंने परिषद के दीक्षांत समारोह में तय किया कि वे खुद को गांधीवादी पत्रकार के रूप में विकसित करेंगे। परिषद से निकलकर श्री प्रसून लतांत को नई दिल्ली स्थितगांधी शांति प्रतिष्ठान में ‘गांधी मार्ग’ पत्रिका में संपादन सहयोग करने का मौका मिला। ‘ गांधी मार्ग’ में एक साल तक काम करने के बाद राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक जनसत्ता में 1990 में पत्रकार बने और अबतक पूरे पत्रकारिता के कार्यकाल में महात्मा गांधी के विचारों के साथ भूमिहीन मजदूरों, स्थानांतरित मजदूरों, झुग्गीवासी, दलित,आदिवासी पर खूब लिखते रहे हैं।
बिहार के भागलपुर में 1989 में हुए सांप्रदायिक दंगा के कारण सामाजिक जीवन छिन्न—भिन्न हो गया था। हिन्दू— मुस्लिम रोजाना के रोजाना की जिन्दगी में इतनी दूरी आ गयी थी कि वे अपने आजीविका के लिये भी दहशत के कारण करीब नहीं आ पा रहे थे तब श्री प्रसून लतांत स्थानीय युवकों के साथ आम लोगों को एकजूट कर कर्णगढ़ के मैदान में सद्भभावना मेला की संरचना की। श्री प्रसून लतांत के नेतृत्व में शुरू किया गया यह मेला आज भी हर साल लगता है और इस मेला में पांच सौ गांवों के लोग शरीक होते हैं, जिसमें हिन्दू और मुस्लिम दोनों की भागीदारी होती है। इस मेले के कारण लोग हिन्दू — मुस्लिम दंगे का दर्द् भूल पाए, अब तो माहौल में काफी सुधार आया है लेकिन श्री प्रसून लतांत ने जिस दौर में मेले की शुरूआत की, वह बहुत खतरनाक था। उनमें ऐसे प्रयास श्री प्रसून लतांत इसलिये कर पाए कि उनकी पहुंच दोनों कौमों के साथ थीं और उनके बीच रचनात्मक कार्य और राहत के कार्य करते रहे।
श्री प्रसून लतांत हिमाचल प्रदेश् के धर्मशाला में गए तो वहां हिन्दी के प्रख्यात लेखक चंद्रधर शर्मा गुलेरी के गांव गुलेर और आसपास के दर्जनों पंचायतों की लड़कियों की शिक्षा के लिए लोगों को एकजूट किया, फिर संघर्ष और सहयोग का माहौल रचकर एक कॉलेज के निर्माण का रास्ता प्रशस्त किया। इस अभियान से ग्रामीण लड़कियों में नेतृत्व का विकास हुआ और वे समाज और सरकार को लड़कियों की शिक्षा के लिए संवेदनशील बना सके।
इसके बाद श्री प्रसून लतांत जब हरियाणा के हिसार गए तो यहां उन्होंने दहेज के कारण जला दी गयी लडकियों को जिलाने के लिये अथक प्रयास किया। श्री प्रसून लतांत के प्रयास से स्थानीय युवक संगठित हुए और पूरे समाज को इस काम में सहभागी बनाने में कामयावी मिली। जला दी गयी महिलाओं और सैनिक विधवाओं की मदद के लिए श्री प्रसून ने हिसार नगर और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों से करीब छह लाख रुपये इकठ्ठे किए और इसे सार्वजनिक निधि के रूप में रखा गया, जिससे बाद में भी अनेक लोगों को मदद दी जाती रही है।
अपने दिल्ली प्रवास में श्री प्रसून लतांत दिल्ली स्थित गांधीवादी संस्थाओं से जुड़कर काम कर रहे हैं। यहां उन्होंने निदान फाउंडेशन नाम की संस्था का गठन किया, जिसके जरिए महिला सुरक्षा के साथ—साथ पर्यावरण और वाल कल्याण के लिए संगोष्ठियां आयोजित करते रहते हैं। इसके अलावा काका कालेलकर द्वारा स्थापित गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा और विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान के जरिए हर माह युवाओं की संगोष्ठी पिछले तीन साल से लगातार करते आ रहे हैं। इन संगोष्ठियों के जरिए राजधानी दिल्ली के साथ देशभर के रचनाधर्मी युवाओं को प्रोत्साहित करने का काम कर रहे हैं। इन संगोष्ठियों में सैकड़ो वरिष्ठ लेखकों— नवलेखकों के साथ हजारों श्रोता जुड चुके हैं। इन संगोष्ठियों में प्रसून लंतात ने जहां साहित्य की विभिन्न विधाओं पर चर्चा— परिचर्चा और प्रशिक्षण देने के साथ गांधी जी और काकासाहेव कालेलकर के विचारों को भी प्रवाहित करते रहते हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि श्री प्रसून लतांत के साथ राजधानी दिल्ली में पांच सौ से अधिक युवा हमेशा किसी न किसी रचनात्मक कार्यक्रम में बढ़—चढ़कर हिस्सा लेने आते हैं।
श्री प्रसून लतांत बहुत ही कम उम्र में ही सार्वजनिक जीवन में आ गए थे। जब दसवीं के छात्र थे तब 1974 के छात्र आंदोलन में कूद गए। इस दौरान उन्होंने एक ऐसी लड़की से विवाह किया, जिसकी दहेज के कारण बारात लौट गयी थी। तब प्रसून लतांत ने दहेज विरोध का संदेश देने के लिए यह शादी की। शादी के बाद वे लगातार सार्वजनिक जीवन में रहे। भागलपुर स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान से जुड़कर शांति स्थापित करने का काम करते रहे। श्री प्रसून लतांत ने छात्र आंदोलन से निवृत होकर धीरेन्द्र मजूमदार द्वारा जोधपुर में स्थापित सुचेता कृपलानी शिक्षा निकेतन में एक साल तक चलनेवाले ग्रामीण रचनात्मक कार्यकर्ता प्रशिक्षण सत्र में शामिल होकर रचनात्मक कार्यों को समझा और एक नए प्रयोग के तौर पर अपने रचनात्मक कार्यों को गांवो के अलावा शहरी क्षेत्र के गरीब लोगों तक बढ़ाया, जहां गांवों से पलायन कर ग्रामीण आते हैं। चंडीगढ़ में ऐसे ग्रामीण मजदूरों की वस्तियों में श्री प्रसून लतांत सक्रिय हुए। इन वस्तियों के लोगों के पुनर्वास के लिये न केवल आंदोलन के लिये मजदूरों को संगठित किया बल्कि उनके बारे में तबतक लिखते रहे जब तक उन्हें सरकार की ओर से रहने के लिये घर नहीं मिला।
श्री प्रसून लतांत न केवल सर्व सेवा संघ के कार्यक्रमों में सक्रिय रहे, विभिन्न सर्वोदय समाज के सम्मेलनों में भाग लेते रहे हैं और उन पर रिर्पोटिंग भी की है। इसके अलावा गांधी के विभिन्न स्थलों, संस्थानों और आंदोलनों की गतिविधियों में लगातार सक्रिय रहते हैं। वे बिहार के भागलपुर में भी मदद फांउडेशन की स्थापना कर वहां के साथियों के साथ महिला और वाल विकास, पर्यावरण और साहित्य को लेकर आयोजन करते रहते हैं। श्री प्रसून लतांत ने जहां बहुत से नौजवानों को समाजसेवा के लियेे प्रेरित किया, वहीं वे विभिन्न जगहों पर युवाओं का जागरूक पत्रकार के रूप में आगे बढ़ाने का काम करते रहते हैं।
“श्री प्रसून लतांत के प्रयासों से बिहार के भागलपुर में 1989 में हुए सांप्रदायिक दंगा के कारण सामाजिक जीवन छिन्न—भिन्न हो गया था।”????
चौथे पैरा में ये क्या लिख दिया.
शब्द संरचना की गडबड़ी से अर्थ का अनर्थ हो गया था. आपने ध्यान दिलाया. शुक्रिया. अब संशोधन कर दिया गया है.