आदर्श तिवारी
दशहरा के अवसर पर पटना के एतिहासिक गाँधी मैदान में रावण दहन के बाद जिसप्रकार से भगदड़ मची और 33 निर्दोष लोगो की जान गई तथा तमाम लोग घायल हुए, वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. देश ख़ुशी से झूम रहा था, लोग प्रसन्न थे, तभी अचानक इस ह्रदय विदारक घटना ने सभी को स्तब्ध कर दिया.रावण दहन का पारम्परिक कार्यक्रम समाप्त होने के बाद सभी लोग वहां से निकलने लगे. वहांमौजूद लगभग 5 लाख की भीड़ गांधी मैदान के अलग-अलग रास्तों से निकल रही थी.मैदान के दक्षिणी छोर से सटे राम गुलाम चौराहे पर पहले से ही भीड़ मौजूद थी. इसी दौरान भीड़ में छिपे असामाजिक तत्वों ने अफवाह फैला दी कि बिजली का हाईवोल्टेज तार टूट कर गिर गया है.फिर क्या था! लोग भागने लगे अपने जान को बचाने के लिए इसके बाद जो भगदड़ मची तो सड़क लाशों और खून से लथपथ लोगो से पूरी तरह से भर गई थी.मरने वाले लोगो में अधिकांश महिलाएं व बच्चे शामिल हैं.
पटना में रावण दहन के इस कार्यक्रम में बिहार के मुख्यमंत्री जीतन मांझी और कुछ दूसरे मंत्री भी मौजूद थे. मुख्यमंत्री पारंपरिक तौर पर हर साल इस कार्यक्रम में शामिल होते हैं. हादसे से थोड़े देर पहले ही मुख्यमंत्री और मंत्रियों का काफिला वहां से गुजरा था.कहीं न कहीं पुलिस प्रशासन भी नेताओं के अमले को ही विदा करने में मशगूलथा, जिसकी वजह से भीड़ को नियंत्रित नहीं किया जा सका. प्रशासन की नींद जब तक खुली लोग बुरी तरह से घायल थे,एक दुसरे पर गिरे पड़े थे.मृत और घायल लोगों कोसरकारी और प्राइवेट गाड़िय़ों से पटना के पीएमसीएच अस्पताल पहुंचाया गया.दूसरी ओर लोग बदहवास देर तक अपनों को तलाशते रहे.ढूढ़ते रहें,वही प्रशासन की लचर सफाई है कि भीड़ जरूरत से ज्यादा थी जिसके चलते हादसा टाला नहीं जा सका .यहाँ सवाल उठता हैं कि जब प्रशासन को मालूम था कि भीड़ लाखो की संख्या में हैं तो इस हिसाब से पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किए इसका जबाब न तो प्रशासन के पास हैं और न ही बिहार के मुख्यमंत्री व अन्य मंत्रीगण के पास? ये कोई पहली घटना नहीं हैं इससे पहले2012 में छठ के मौके पर पटना के ही अदालत घाट पर भगदड़ की ऐसी ही घटना हुई थी.उस हादसे में डेढ़ दर्जन से ज्यादा लोगों को जान गंवानी पड़ी थी. हादसा गंगा नदी पर बने अस्थायी पुल के टूटने के बाद हुआ था. सवाल है कि क्या पटना के प्रशासन ने पुरानी घटनाओं से सबक नहीं लिया? इतनी बड़ी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं थे? क्या वीआईपी इंतजाम में लगी पटना पुलिस को आम लोगों की फिक्र नहीं थी?लोकतंत्र में जनता ही मालिक होती हैं और मालिक के साथ ये रवैया प्रशासन का .सोच कर मन खिन्न हो जाता हैं इस समूचे व्यवस्था पर.आखिर कब तक ये वीआईपी लोगो के चक्कर में आम आदमी हताहत होता रहेगा. सभी प्रकार से देखा जाए तो प्रशासन पूरी तरह से विफल रहा है.लोगो को अपनों की तलाश है, अपनों का खोने का दुःख है. और इसीबीच राजनीति भी पूरी तरह से हावी हो रही हैं.अब जहाँ विपक्षी इस दुर्घटना पर सत्तापक्ष पर निशाना सांधने में मशगूल हैं, वहीँ सत्तापक्ष अपना बचाव करते हुए विपक्षियों को उनके शासन की याद दिला रहा है. कहने का मतलब है कि यहाँ लाशों पर भी भरपूर राजनीति हो रही जो कि न सिर्फ दुखद है बल्कि भारतीय सियासत का शर्मनाक चेहरा भी है. विपक्षी दलों की मांग है कि मुख्यमंत्री माझी इस्तीफा दें, वही केंद्र सरकार ने जल्दीबाजी दिखाते हुए मृतकों के परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए दो –दो लाख रूपये व घायलों को पचास –पचास हजार रूपये देने की घोषणा कर दी.बाद में बिहार सरकार ने भी मृतकों को तीन –तीन लाख व घायलों को 50 -50 हजार रूपये मुआवजे का एलान किया . सरकार के इस घटना के लिए उच्चस्तरीय जाचं कमेटी बनाई हैं. पर हर बार की भाँती इस बार भी ये जांच महज फाइलों और आदेशो तक ही सिमट कर न रह जाएतथा सभी राजनीतिक दल ऐसे दर्दनाक घटनाओं पर अपनी राजनीति बंद करनी चाहिए. लोगों को न्याय मिलें और दोषियों पर कड़ी कार्यवाही हो जिससे कम से कम आने वाले दिनों में इस तरह की घटना देखने व सुनने को न मिलें.इसके लिए सभी एक साथ आना चाहिए.लोगो के जख्म पर महरम के नाम पर राजनीति बंद होनी चाहिए.;