सुशांत झा
कुछ रिपोर्टों के आधार पर ऐसा लग रहा है कि पटना फिर से IIT फैक्ट्री बनने की राह पर अग्रसर है. सन् 90 के दशक में भी पटना, जमशेदपुर, बोकारो इत्यादि जगहों से IIT के लिए खूब चयन होता था लेकिन बिहार की बिगड़ती कानून व्यवस्था ने वो संभावना लील ली. मैं उस जमाने में पटना में था जब प्रो. एस लाल को पटना साईंस कॉलेज के सामने गोली मार दी गई और के.सी सिन्हा सुरक्षा गार्ड रखने लगे थे. एक बनते कोचिंग हब के रूप में पटना का पतन हो रहा था और कोटा का उदय हो रहा था.
कोटा में जेके सिंथेटिक्स में काम करनेवाले वी. के बंसल ने अपनी बीमारी के बाद कोचिंग शुरू कर दी. कुछ बेरोजगार इंजीनियर भी उसमें शामिल हो गए. एक गर्म इलाके में एक उंघता-उनींदा सा शहर कोटा परवान चढ़ता गया. क्योंकि राजस्थान में कानून-व्यवस्था अच्छी थी और शहर को ठीकठाक बिजली मिल जाती थी. लेकिन हमारे पटना में ऐसा होना बंद होने लगा था. बाद में पटना के कई शिक्षकों ने कोटा में जाकर नौकरी कर ली. बिहार के गांव-गांव से बच्चे कोटा में जाकर किरायेदार बन गए. ऐसा पिछले 20 साल में हुआ. लेकिन बिहार की वो ऊर्जा, वो जीजिविषा खत्म नहीं हुई हैं. जमीन के अंदर उसकी जड़े गहरे तक फैली हैं.
नीतीश कुमार दस साल राज के बाद लगता है वो कोपलें फिर से फूटने लगी हैं. कुछ वेबसाइटों की रिपोर्ट देखें तो लगता है पटना में फिर से IIT बनाने वाली फैक्ट्री अपना काम शुरू कर चुकी हैं. अगर राज्य की कानून-व्यवस्था ठीक रही तो कोई ताज्जुब नहीं कि हम एक दिन कोटा को पछाड़ देंगे-क्योंकि पटना बहुत सस्ता है और कोटा में पढ़ने वाले छात्रों में एक ठीक-ठाक तादाद बिहार-पूर्वी यूपी वालों की है.
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