बलात्कार की घटना के विरोध में हुए ”आंदोलन” के पक्ष में चीख-चीख कर लिखने-बोलने से अचानक कुछ लोगों का कुकुरजनम छूट गया है और वे बैठे-बैठाए पैनल गेस्ट बन कर हज़ारों काटने में लग गए हैं।
इकतरफ़ा इश्कबाज़ी में अपना घर उजाड़ चुके कुछ लोगों ने महिलावाद के नाम पर प्रमोशन का इंतज़ाम कर लिया है। कुछ लोगों ने शहर रीक्लेम करने के नाम पर कल रात दारूबाज़ी की व्यापक योजनाएं बना ली हैं।
कुछ ऐसे अभागे भी हैं जो गए थे महिलावाद के नाम पर बिछड़ी प्रेमिकाओं को इंडिया गेट पर इम्प्रेस करने, लेकिन उसकी नज़र पड़ने से पहले ही लाठी खाकर लौट आए। देखिए, सच्ची लड़ाइयों में भी कैसे लोग अपने काम की बात खोज लेते हैं।
अब मैं क्या करूं कि मुझे पता चल जाता है। मेरे दोस्त अगर समझ रहे हों, तो खुद को इनमें ना मानें। मान ही लें, तो लगे हाथ माफ कर दें। (युवा पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव के एफबी वॉल से)