(संजय तिवारी,पत्रकार)-
इसी साल की बात है। पाकिस्तान के एक टीवी चैनल पर बहस हो रही थी। बहस का मुद्दा था तीन तलाक। वह महिला जो तीन तलाक का शिकार हुई थी वह फोन लाइन पर थी और एक मौलवी साहब भी फोन लाइन पर ही थे। मुद्दा यह था कि तीन तलाक के बाद पति पत्नी दोबारा से साथ रहना चाहते थे लेकिन स्थानीय काजी इसकी इजाजत नहीं दे रहा था। वह कह रहा था कि बिना हलाला के अब दोनों साथ नहीं रह सकते। जबकि पति पत्नी का तर्क था कि पति को अपनी गलती का अहसास हो गया है और अब वह अपनी पत्नी के साथ रहना चाहता है।
मुद्दा टीवी तक पहुंचा तो कई विशेषज्ञ बैठकर सुलझाने लगे। सब काजी के हलाला वाले फैसले को गलत बता रहे थे। अगर पति पत्नी दोबारा साथ रहना चाहते हैं तो उनका आपस का मसला है, वे रहें। लेकिन फोन लाइन पर मौजूद मौलवी साहब इसे गैर इस्लामिक करार दे रहे थे। जब स्टूडियो में बैठे एंकर ने कहा कि मौलवी साहब यह बेचारी उस काजी के साथ हलाला नहीं कराना चाहती तो क्या कोई रास्ता नहीं है? मौलवी ने कहा कि नहीं, बिना हलाला के दोबारा साथ रहने का कोई रास्ता नहीं है। अगर उन्हें काजी से कोई दिक्कत है तो मैं जैसे ही पाकिस्तान आऊंगा ये मोहतरमा मुझसे मिल सकती हैं।
मौलवी के इतना कहते ही सारे स्टूडियो में ठहाका लगा। सबने मौलवी का खूब मजाक उड़ाया। असल में तीन तलाक के पीछे असली कहानी यहीं छिपी है हलाला में। मुल्ला मौलवी काजी तीन तलाक को किसी भी सूरत में खत्म नहीं होने देना चाहते क्योंकि इसके पीछे हलाला का बड़ा खेल चलता है। अक्सर गुस्से में अगर किसी पति ने पत्नी को तलाक दे दिया और बाद में गुस्सा शांत होने पर उसे अपनी गलती का अहसास हुआ तो दोनों के बीच में शरीया आकर खड़ा हो जाता है। अब अगर दोनों साथ रहना चाहते हैं तो पहले उस महिला का दूसरा निकाह हो, वह किसी दूसरे मर्द के साथ कम से कम एक रात गुजारे, फिर वह मर्द उसे तलाक दे तो फिर दोबारा वह अपने पहले पति के साथ रह सकती है।
इस अमानवीय और जाहिलाना व्यवस्था में वैकल्पिक मर्द की भूमिका अक्सर मौलवी या काजी ही निभाते हैं और एक रात के शौहर बनकर अगले दिन तलाक दे देते हैं। लिहाजा वे अपनी हलाला में कोई खलल नहीं चाहते इसलिए इस्लाम के नाम पर विरोध करते हैं। @fb