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मुंबई के रिपोर्टर की बारिश, जीतेन्द्र दीक्षित की कविता

jitendra dixit abp
jitendra dixit abp

जीतेन्द्र दीक्षित,टीवी पत्रकार, एबीपी न्यूज़

मुम्बई के रिपोर्टर की बारिश
( मुम्बई में पड़ी बारिश की बौछारों के मद्देनज़र कई साल पहले लिखी ये कविता आज फिर एक बार पोस्ट कर रहा हूँ।
इस कविता में मुंबई की बारिश पर व्यंग भी है और रिपोर्टरों का दर्द भी।)
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आई आई आई जमकर बरसात,

छाता, रेनकोट अब ले लो साथ,

बूम माईक को टोपी पहनाओ

पाकिट, मोबाइल पर प्लास्टिक चढवाओ

पानी भरने कि खबर जो आये,

ट्रेन, सडक जब बंद हो जाये

निकल कर औफिस से सरपट भागो

हिंदमाता, परेल पर ओबी मांगो

कुर्ला, सायन भी छूट न जाये

मिलन सबवे को भी दिखलायें

भीग भीग कर करो रिपोर्टिंग

काले बादलों से हो गई है सेटिंग

बाकी ख़बरों का टेंशन नहीं आये

जब बादल रिमझिम कृपा बरसाये

खाओ गर्मागरम वडापाव, भजिया प्लेट

संभल कर रहना गडबड न हो पेट

भीगने में आता है खूब मजा

तबियत को मिल जाती है खराब होने की वजह

जब सर्दी, खांसी, सिरदर्द सताये

विक्स, बाम और ब्रांडी काम आये

यहां गिरी बिजली, वहां उखडा पेड

लगातार चेक करते रहो फायर ब्रिगेड

अगर बडी कोई बिल्डिंग गिर जाये

दिन और रात एक हो जाये

“मीठी नदी” बडी है कडवी

नजर रहे उसकी सरहद भी

लाईव चैट और वाक थ्रू गिरवाओ

वक्त मिले तो पैकेज कटवाओ

बीएमसी, सरकार को बचने न देना

2005 की जुलाई याद कर लेना

वीकेंड पर पिकनिक को जाना

झरनो में फिर खूब नहाना

भीगा भागा सा है न्यूज रूम

सभी रिपोर्टरों को हैप्पी मानसून

-महाकवि जीतेन्द्र दीक्षित।

सहारनपुर में ठाकुर को खोजते दिल्ली के टीवी रिपोर्टर !

abhishek srivastav
अभिषेक श्रीवास्तव

अभिषेक श्रीवास्तव,वरिष्ठ पत्रकार

गांव-देहात में दिल्ली के पत्रकारों की स्थिति देखने में बड़ी मनोरंजक होती है। हाथ में माइक लिए गांव की गली में टहल रहा टीवी रिपोर्टर सबसे ज़्यादा इस बात से परेशान रहता है कि कुछ कवर करने लायक क्यों नहीं दिख रहा। उसे यहां लेकर आया सरदार टैक्सीवाला गालियां दे रहा होता है जबकि हर आधे घंटे पर नोएडा से कॉल कर रहा बॉस एक ही सवाल दागे जाता है- कुछ मिला?

कल एक गांव में एक गाड़ी आकर रुकी। अपने ब्रांडेड कपड़ों से पहचाना जा रहा रिपोर्टर पूरी ठसक में बाहर आया। दाएँ देखा, बाएँ देखा, और पुलिस से आंख मिलाए बगैर सीधे चल दिया। दोनों तरफ टूटे-फूटे जले हुए मकान थे दलितों के। थोड़ा ठिठका, ‘कोई है?’ के अंदाज़ में भीतर झांका, फिर आगे बढ़ लिया। बहुत देर चहलकदमी करने के बाद भी जब माइक उठाने की नौबत नहीं आई और भीषण गर्मी में टमाटर की तरह पक चुके लाल गालों वाले कैमरामैन ने उसे खोदा, तो रिपोर्टर ने उजबक की तरह बैठे एक गांववाले से पूछा, ‘भाई साहब, ये ठाकुर का घर किधर है?’

उसके सवाल पर ग्रामीण सकपका कर तन गया। उसने कुछ आवाज़ लगाई। तीन-चार युवक इकट्ठा हो गए। रिपोर्टर से सवाल जवाब होने लगा। उसने माइक दिखाया। लोगों को शक था कि वह ठाकुरों का आदमी है। वह समझाने की असफल कोशिश कर रहा था कि उसे ठाकुरों की बाइट लेनी है, और कुछ नहीं। लेकिन उस वाल्मीकि बस्ती में इस मजबूरी को समझने वाला अभी तक पैदा नहीं हुआ था।

ख़ैर, किसी तरह उसे समझाया गया कि यह दलितों का टोला है, ठाकुर आगे रहते हैं। वह तेजी से आगे बढ़ा कार की तरफ, लेकिन ड्राइवर नदारद था। उसने फिर दाएँ देखा, बाएँ देखा और सीधे देखने से पहले फोन की घंटी घनघना उठी, ‘कुछ मिला?’ उसने जवाब दिया, ‘ठाकुर का पता मिल गया है!’ उधर से आवाज़ आई, ‘गुड। भाग के सहारनपुर कलेक्टरेट जाओ। वहां से एसएसपी का एक बाइट भेजो। क्विक!’ सरदार ने जो गाली रिपोर्टर को दी थी, वही गाली फ़ोन काटने के बाद रिपोर्टर ने अपने बॉस के लिए हवा में उछाल दी। सिर झुकाया और सामने देखा, तो सरदार ड्राइवर आम चूसते हुए मुस्कुराता खड़ा पूछ रहा था- ‘इब कित्थे चलना है पतरकार साहब?’

माँ के लिए आज भी हैं अजीत अंजुम ‘बुतरू’ !

ajit anjum with mother
Photo Credit - Ajit Anjum wall

दुनिया के लिए आप कितने ही बड़े क्यों न हो जाए, लेकिन माँ की नज़र में बच्चे-बच्चे ही होते हैं. माँ की यही ममता उसे तमाम रिश्तों से अलग और विशिष्ट बनाती है. इसी पर वरिष्ठ पत्रकार और इंडिया टीवी के मैनेजिंग एडिटर अजीत अंजुम ने माँ के साथ अपनी तस्वीर साझा करते हुए भावुक अंदाज़ में लिखा –

ajit anjum with mother 2

अजीत अंजुम-

माँ के लिए आज भी मैं बुतरू हूँ …बुतरू ठेंठ बिहारी शब्द है , जिसका मतलब होता है बच्चा …माएँ छोटे बच्चे को प्यार से बुतरू कहती हैं …आज किसी बात पर माँ ने कहा – हमर बुतरू खैलकै कि नय ? मतलब मेरा बच्चा खाया या नहीं ?

पचास पार कर चुका हूँ लेकिन माँ के लिए आज भी बच्चा ही हूँ ..बहुत दिनों बाद बेगूसराय से दिल्ली आई है ….जब भी घर में होता हूँ , उसका पूरा ध्यान मुझपर होता है ..खाया कि नहीं ..क्या खाया ? इतना कम क्यों खाया ? रात में दूध क्यों नहीं पीया ?

रात को दफ़्तर से घर लौटने पर सो चुकी होती है लेकिन कॉल बेल पर उठती है और ममता भरी नज़रों से देखती है कि बेटा इतना थककर दफ़्तर से आया है ..कभी ज़िद कर देती है कि माथा में तेल लगा देती हूँ ..कभी पैर की मालिश करने की ज़िद कर देती है ..कभी बैठा होता हूँ और चुपके से तेल लेकर सीधे मेरे माथे में डालकर मालिश करने लगती है …तों चुपचाप बैठें न ..करै दे मालिश ..माथा म तेल लगइला स आराम मिलतौ….भीतर से इच्छा होते हुए भी मैं मना करता हूँ लेकिन फिर हथियार डाल देता हूँ कि उसे ख़ुशी तभी मिलेगी , जब वो मेरे सिर में तेल लगा देगी ..

जो काम मुझे करना चाहिए , वो काम वो करने लगती है ..खाते समय उसकी नज़र मेरी प्लेट पर रहती है ..इतना कम क्यों खाते हो ? दूध -दही लो …एक रोटी और लो …ये सब्ज़ी और लो …एक दम ऐसे जैसे मैं छोटा बच्चा हूँ …
माँ आख़िर माँ होती है …

संकट में हैं रोहित सरदाना जैसे तमाम एंकर !

rohit sardana news anchor
rohit sardana news anchor

ये सिर्फ न्यूज एंकर रोहित सरदाना का संकट नहीं है

जी न्यूज के मीडियाकर्मी रोहित सरदाना ने सहारनपुर में मोबाईल नेटवर्क पर रोक लगा दिए जाने और जियो को तब भी बहाल रखने पर जो कुछ भी लिखा है, वो वही है जो कि एक मीडियाकर्मी को लिखना चाहिए. लेकिन

rohit sardana tweetएकतरफा कवरेज, पत्रकारिता और चारण लेखन-वाचन में फर्क कर देने से लोगों के बीच उनकी साख इस कदर मिट्टी में मिल चुकी है कि लोगों को उनका लिखा स्वाभाविक नहीं लग रहा. किसी को लग रहा है, जी न्यूज में उनके दिन लदनेवाले हैं. कोई अश्लील भाषा का इस्तेमाल करते हुए मालिक से जोडते हुए गरिया रहा है. अफसोसनाक ये है कि कल तक जिनके पक्ष में एकतरफा होते रहे, वो कहीं ज्यादा आक्रामक भाषा में कमेंट कर रहे हैं.

एक मीडियाकर्मी के लिए इससे ज्यादा दयनीक स्थिति क्या हो सकती है कि समर्थक गाली-गलौच पर उतर आए, कल तक अहमत रहनेवाला अपने मुताबिक बोले जाने पर शक करने लगे और लिखे को कहीं से पत्रकारीय कर्म न माने.

रोहित सरदाना ने इसी तरह दो-चार ट्वीट कर दिए तो वोलोग ज्यादा अभद्रता पर उतर आ सकते हैं जिन्होंने अब तक पलकों पर बिठाकर रखा है. ऐसा इसलिए कि एकपक्षीय पत्रकारिता करते-करते उन्होंने अपना पक्ष छोड दिया है. वो पक्ष जो एक मीडियाकर्मी के पास हर-हाल में सुरक्षित रहना चाहिए. सरदाना इसकी कोशिश करते हैं तो आगे देश विरोधी उपमा से नवाजे जाएंगे.

बिडंबना देखिए कि एक ही दिन वो अपने को नंबर वन बनाने के लिए लोगों का शुक्रिया अदा करते हैं और घंटे भर के अन्तराल में लोग उन पर शक करने लग जाते हैं. आपने दरअसल टेलिविजन के जरिए लोगों को दर्शक के बजाय मनोरोगी में, मॉब में बदल दिया है. अब वो आपके लिए भी उतने ही घातक हैं.

वेब पत्रकार श्रवण शुक्ला ने न्यूज18 इंडिया को कहा बाय-बाय, अमर उजाला डिजिटल से जुड़े

shrwan shukla, web journaist
श्रवण शुक्ला, वेब जर्नलिस्ट

हिंदी वेब पत्रकारिता में तेजी से अपनी पहचान स्थापित कर रहे युवा पत्रकार श्रवण शुक्ला ने न्यूज18इंडिया को बाय बाय बोल दिया है। वो पिछले ढ़ाई सालों से यहां खबरों के साथ ही न्यूज18इंडिया चैनल के प्रोमोशन का भी काम देख रहे थे। उन्होंने अमर उजाला डिजिटल के साथ नई पारी की शुरूआत की है।

श्रवण शुक्ला वेब जर्नलिस्म की नस को समझने वाले तेज-तर्रार युवा पत्रकारों में से माने जाते हैं। उनमें सोशल मीडिया की भी अच्छी समझ है। श्रवण शुक्ला के बारे में कहा जाता है कि वो आने वाली चुनौतियों को पहले ही पहचान लेते हैं। शायद यही वजह रही हो कि उन्होंने न्यूज18 इंडिया को छोड़ना उचित समझा।

बातचीत में श्रवण शुक्ला ने बताया, ‘हां, ये सच है। मैं अब न्यूज18इंडिया के साथ नहीं हूं। अमर उजाला में काम करने की आजादी मुझे यहां खींच ले आई’।

श्रवण शुक्ला न्यूज18 इंडिया में लगभग ढाई साल काम कर चुके थे। न्यूज18इंडिया में रहते हुए उन्होंने जमकर प्रयोग किए। फील्ड रिपोर्टिंग के साथ ही ढेर सारे सेलेब्रिटियों के इंटरव्यू किए, तो फिल्मों की समीक्षा भी लिखी। इस दौरान न्यूज18इंडिया की टीवी टीम की सोशल मीडिया रीच को बढ़ाने की जिम्मेदारी मिली, साथ ही सभी ब्यूरो प्रमुखों से स्पेशल खबरों पर काम करने को लेकर अच्छा काम किया। साथ ही तमाम आर्टिकल्स भी लिखे। श्रवण शुक्ला के नाम न्यूज18इंडिया डिजिटल में 300 से अधिक बायलाइन स्टोरीज हैं, जिसमें कई एक्सक्लूसिव रिपोर्ट भी शामिल हैं।

श्रवण शुक्ला अपने काम के दौरान पिछले कई माह से न्यूज18 इंडिया टीवी के न्यूजरूम में बैठते रहे। यहां रहकर उन्होंने शाम 5 बजे से रात 11 बजे तक के टीवी के स्पेशल शो की सोशल मीडिया रीच बढ़ाई। इस दौरान ‘आज का दंगल’, ‘भैयाजी कहिन-प्रतीक त्रिवेदी’, ‘आर पार-अमिश देवगन’, ‘हम तो पूछेंगे-सुमित अवस्थी’, ‘सौ बात की एक बात-किशोर अजवानी’, ‘कच्चा चिट्ठा-प्रीति रघुनंदन’, क्राइम शो-हादसा जैसे स्पेशल शो का सोशल मीडिया पर जमकर प्रमोशन किया, जिसमें फेसबुक लाइव, लाइव ट्वीट्स, स्नैपी टीवी जैसे टूल्स का बेहतरीन उपयोग किया। सोशल मीडिया पर न्यूज18इंडिया के शो के प्रमोशन का असर टीआरपी पर भी देखा जा सकता है। मौजूदा समय में न्यूज18इंडिया लगातार चौथे-पांचवे पायदान पर बना हुआ है। जबकि कुछ माह पहले तक ये चैनल नीचे के 3 चैनलों में आता था।

श्रवण शुक्ला न्यूज18इंडिया डिजिटल से पहले इंडिया न्यूज(टीवी चैनल-ऑउटपुट). श्रीन्यूज(टीवी-ऑउटपुट), वेबदुनिया(वेब-रिपोर्टिंग), महुआ न्यूज डिटिजल के प्रमुख के तौर पर भी काम संभाल चुके हैं। श्रवण शुक्ला ने अपने करियर की शुरुआत आईएएनएस न्यूज एजेंसी के साथ की थी, और मौजूदा समय में एजेंसी, प्रिंट(अखबार/मैगजीन), टेलीविजन के साथ ही डिजिटल का लंबा अनुभव रखते हैं।

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