न्यूज़24 को बीजेपी की तरफ से एक लीगल नोटिस भेज जाना तो बनता ही है.
न्यूज़24 को बीजेपी की तरफ से एक लीगल नोटिस भेज जाना तो बनता ही है.टीवी स्क्रीन पर ये धुआं जीत के जश्न में बीजेपी कार्यकर्ताओं के फोड़े जानेवाले पटाखों से हुये हैं..दीवाली के धुयें से हमारी सांस रुकने लगे और फिर सरकार की ओर से सुरक्षित और बिना पठाखे की दिवाली मनाने की अपील को लेकर करोड़ों रुपये विज्ञापन पर झोंके जायें, खुद बीजेपी के लोगों ने इसकी धज्जियाँ अभी से उड़ानी शुरू कर दी है.
मैं बस इतना समझ पा रहा हूँ कि बीजेपी के कार्यकर्ता सिर्फ पटाखे में आग नहीं लगा रहे बल्कि प्रधान स्वयं सेवक के स्वच्छ भारत अभियान के इरादे पर भी पलीते लगाकर तिल्ली मार रहे हैं.
इधर न्यूज़ 24 ने अमित शाह मार्का राकेट और नरेन्द्र मोदी मार्का चटाई बम पेश करके ये साबित कर दिया है कि जीत की जश्न में अगर पर्यावरण के लिहाज से इन दोनों का बंटाधार किये भी जायें तो बुरा नहीं मानेंगे..नहीं तो स्वच्छ भारत के इन प्रतीक पुरुष के नाम पर पटाखे लांच करने पर न्यूज़ 24 को बीजेपी की तरफ से एक लीगल नोटिस भेज जाना तो बनता ही है.
चैनल की चम्पूगिरी के चक्कर में प्रायोजकों को भी क्या-क्या करना पड़ता है
Aquaguard पेश करता है- अमित शाह राकेट, मोदी छाप चटाई बम
चैनल की चम्पूगिरी के चक्कर में प्रायोजकों को भी क्या-क्या नज़ारे देखने पड़ जाते हैं..जो पानी शुद्ध करने का दावा और अपनी ब्रांड पोजिशनिंग के लिये करोड़ों रूपए विज्ञापन पर खर्च करता है उसे वायु प्रदूषण का प्रायोजक भी बना दिया..
अब तो बीजेपी सुप्रिमो अमित शाह भी कह रहे हैं- अभी तो पटाखे जलाने का समय है..
चैनल की चम्पूगिरी के चक्कर में प्रायोजकों को भी क्या-क्या करना पड़ता है
बोलना एक कला है, यह तो सभी जानते हैं, लेकिन इसके साथ कई विशेषताएं , विडंबनाएं और विरोधाभास भी जुड़े हैं। जिसकी ओर लोगों का ध्यान कम ही जाता है। मसलन ज्यादातर अच्छे – भले कर्मयोगी अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप अच्छा बोल नहीं पाते। कभी एेसी नौबत आती भी है तो वह कांपते हुए बस जैसे – तैसे मौका देने वालों के प्रति आभार व धन्यवाद ज्ञापन कर बैठ जाते हैं। वहीं कई फांदेबाज टाइप के लोग इतना अच्छा बोलते हैॆं कि समां ही बांध देते हैं। ये कुछ बोलने के मौके ढूंढते रहते हैं। यह और बात है कि इनकी कथनी और करनी का फर्क जल्द ही सामने आ जाता है।
भारतीय राजनीति में न जाने कितने अच्छा बोलने वाले जल्दी ही मुंह के बल गिरे । वहीं एक चुप हजार चुप के अंदाज वाले कुछ राजनेता न सिर्फ अपनी बल्कि पार्टी और सरकार की गाड़ी भी सालों – खींच ले गए। नए दौर में दिल्ली वाले केजरीवाल चैनलों पर इतना अच्छा बोलते थे कि मन करता था कि वह बस बोलते रहें, और हम उन्हें सुनते रहे। मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में भी न वे सिर्फ देर तक बोले बल्कि गाना भी गाया, लेकिन यह क्या चंद हफ्तों में ही उनकी बोलती बंद हो गई। इससे हमें घोर निराशा हुई। एेसे में हमें अनायास ही पूर्व प्रधानमंत्री स्व. पी. वी. नरसिंह राव याद आ गए जो जहां एक शब्द बोलने से काम चल जाए , वहां वे दो शब्द भी नहीं बोलते थे। लेकिन विकट परिस्थितयों के बावजूद अपने प्रधानमंत्रीत्व काल का पांच साल पूरा कर लिया।उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ मंत्री जब बोलने को माइक हाथ में पकड़ते हैं तो डर लगने लगता है कि पता नहीं आज यह कौन सा बम फोड़ बैठे।
बचपन में हम धक्के खाते हुए भी बड़े राजनेताओं की जनसभाओं में जाते थे।जबकि उस दौर में देश – समाज की हमें न्यूनतम समझ भी नहीं थी। लेकिन उस भीड़ का हिस्सा बन कर हमें अपार खुशी मिलती थी, जो बड़े राजनेता को साक्षात बोलते सुन – देख कर अपने को धन्य समझती थी। बोलना व्यवसाय और पेशा भी है तो वंश परंपरा का संवाहक भी। कुछ लोगों का काम ही बोलना होता है। वे जहां भी जाएं या जहां भी रहें, उनसे कुछ न कुछ बोलने की अपेक्षा ही की जाती है। यह और बात है कि कभी – कभी यह बोल बच्चन उनके गले की फांस भी बन जाता है। पता नहीं यह बोलने की कला सिर्फ विकासशील देशों में ही क्यो ज्यादा है।यूरोपीय देशों में सत्ता से हटने के बाद किसी भूतपूर्व माननीय को बहुत कम बोलते सु ना जाता है। बोलने की समृद्ध परंपरा सिर्फ अपने देश में ही है, एेसी बात नहीं। पड़ोसी देशों में भी यह कला खूब प्रचलित है। अब पाकिस्तान के पूर्व हुक्मरान जनरल परवेज मुशर्रफ को ही लीजिए। जनाब के ग्रह – दशा आजकल अच्छे नहीं चल रहे। लेकिन बोलना कैसे रुक सकता है। लिहाजा एक चैनल को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने बोलना शुरू किया… हम भी एेसे वैसे नहीं…. न्यूक्लियर पावर है, हमें कोई कम न समझे…। हम भी 30 करोड़ हैं…। अब एेसे बोलों से जनरल साहब की ग्रह – दशा सुधरती है या नहीं , यह देखने की बात होगी। अलबत्ता अपनी ओर से वे कोशिश तो पूरी कर ही रहे हैं। वंश परंपरा के उदीयमान नक्षत्रों के लिए बोलना एक मजबूरी है। भले ही एेसा करके वे पप्पू का तमगा पाते हों। पाकिस्तान में ही एक कोई बिलावल हैं, जिन्हें अपने पूवर्जों की तरह राजनीति में अपना कैरियर बनाना है, तो आजकल वे भी खूब बोल रहे हैं। अब पाकिस्तान में रह कर बोलने के लिए कश्मीर से अच्छा मुद्दा और क्या हो सकता है। लिहाजा इसके जरिए अपने भविष्य की वे खूब नेट प्रेक्टिस कर रहे हैं। क्योंकि अपना लक्ष्य पाने के लिए उन्हें तो बस बोलना है। एेसे में हम तो बस यही कहेंगे, बोल भाई बोल…।
वेब मीडिया की बढ़ती स्वीकार्यता’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी
प्रेस विज्ञप्ति
वेब मीडिया की बढ़ती स्वीकार्यता’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री प्रकाश जावडेकर ने कहा कि वेब मीडिया की यह खासियत है कि परंपरागत मीडिया में जिनकी आवाज नहीं सुनी जाती, यहां उनकी भी आवाज सुनने का मौका सबको मिलता है।
श्री जावडेकर ने उक्त विचार ‘वेब मीडिया की बढ़ती स्वीकार्यता’ विषय पर आयोजित एक संगोष्ठी में अपने विडियो संदेश में व्यक्त किए। संगोष्ठी का आयोजन प्रवक्ता डाॅट काॅम और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग) द्वारा संचालित कबीर संचार अध्ययन शोधपीठ के संयुक्त तत्वावधान में 16 अक्टूबर 2014 को नई दिल्ली स्थित स्पीकर हाॅल, कांस्टिट्यूशन क्लब में संपन्न हुआ।
उन्होंने कहा कि विचार केवल बुद्धिजीवियों के पास होता है और बाकियों के पास नहीं, इस बात को वेब मीडिया ने गलत साबित कर दिखाया है। वेब मीडिया पर लोग अधिक मौलिक विचार देते हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी सोशल मीडिया पर विश्वास करते हैं और उन्होंने जब फर्ग्युसन काॅलेज, पूणे में भाषण दिया तो उन्होंने अपनी वेबसाइट पर शिक्षा के मुद्दे पर सुझाव मंगाए और सोलह सौ से ज्यादा सुझाव आए। उनमें से जो 25-30 अच्छे सुझाव थे, उसको उन्होंने लोगों के सामने विचार के लिए रखा।
श्री जावडेकर ने कहा कि वेबसाइट के संचालन में यह ध्यान देने वाली बात है कि गुणवत्ता बनाकर रखना चाहिए। कभी-कभी स्तरीय लेख नहीं होते हैं तो लोग उस साइट को देखना बंद कर देते हैं, यूजर्स को लगना चाहिए कि मैं प्रवक्ता डाॅट काॅम पर जा रहा हूं तो मुझे कुछ न कुछ अच्छा पढ़ने को मिलेगा। उन्होंने प्रवक्ता डाॅट काॅम को समाज का प्रवक्ता बताते हुए कहा कि इसने इंटरनेट पर एक खुला मंच उपलब्ध कराया। ‘प्रवक्ता’ जैसे मंच का महत्व है। लोग लिखते गए और अब 6 साल हो गए। अब यह एक संस्था बन गई। यह उसकी बड़ी सफलता है।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि वेब मीडिया लोकतांत्रिक परंपरा का प्रतीक है, इसमें किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति के विचारों पर कोई भी आम आदमी टिप्पणी कर सकता है, अपनी असहमति जाहिर कर सकता है। उन्होंने कहा कि वेब मीडिया के माध्यम से लोग सशक्त ढंग से अपनी आवाज उठा रहे हैं।
इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रवक्ता डाॅट काॅम के संरक्षक इंजी. श्री अरुण कुमार जैन थे। कबीर संचार अध्ययन शोधपीठ के निदेशक डाॅ. आर. बालशंकर ने बीज वक्तव्य दिया। साहित्यशिल्पी डाॅट काॅम के संपादक श्री राजीव रंजन प्रसाद ने वेब मीडिया के महत्व पर प्रकाश डाला। वरिष्ठ लेखक एवं स्तंभकार श्री ए. सूर्यप्रकाश ने तथ्यों के साथ अपनी बात रखी। आईआईएमसी के प्राध्यापक श्री शिवाजी सरकार ने वेब मीडिया की विशेषताओं एवं चुनौतियों को रेखांकित।
कार्यक्रम में स्वागत भाषण प्रवक्ता डाॅट काॅम के प्रबंध संपादक श्री भारत भूषण ने दिया। प्रवक्ता सम्मान सत्र का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रवक्ता डाॅट काॅम के संपादक श्री संजीव कुमार सिन्हा ने किया। इस अवसर पर 11 लेखकों को ‘प्रवक्ता सम्मान’ से सम्मानित किया गया, जिसमें पंडित सुरेश नीरव, श्री अशोक गौतम, श्रीमती बीनू भटनागर, श्री विजय कुमार, श्री अविनाश वाचस्पति, श्री गौतम चौधरी, श्री शादाब जाफर ‘शादाब’, डाॅ. सौरभ मालवीय, सुश्री शारदा बनर्जी, श्री हिमांशु शेखर एवं श्री शिवानंद द्विवेदी ‘सहर’ के नाम उल्लेखनीय हैं। इसके साथ प्रवक्ता डाॅट काॅम द्वारा ‘वेब मीडिया की बढ़ती स्वीकार्यता’ विषय पर तृतीय लेख प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था, जिसमें श्री मुकेश कुमार को प्रथम, श्री पीयूष द्विवेदी को द्वितीय और श्री शिवेंदु राय को तृतीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
इस कार्यक्रम में हिंदुस्थान समाचार के मार्गदर्शक श्री लक्ष्मीनारायण भाला, भाजपा साहित्य एवं प्रकाशन प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक श्री अम्बाचरण वशिष्ठ, सहसंयोजक डाॅ. अनुपम आलोक, जनसत्ता के पूर्व संपादक श्री शंभूनाथ शुक्ल, स्तंभकार श्री अवधेश कुमार सहित बड़ी संख्या प्रिंट, इलेक्ट्राॅनिक एवं वेब मीडिया से जुड़े पत्रकार, ब्लाॅगर्स एवं मीडिया के छात्र उपस्थित रहे।
अपने ही चैनल पर भाजपा का प्रचार करते ज़ी न्यूज़ के मालिक सुभाष चंद्रा
अपने ही चैनल पर भाजपा का प्रचार करते ज़ी न्यूज़ के मालिक सुभाष चंद्रा
कौन सा न्यूज़ चैनल किस पार्टी से संबंधित है इसका पता लगाना दर्शकों के लिए कोई मुश्किल काम नहीं. अब कुछ भी छुपा नहीं रहा. सबकुछ खुल्लमखुल्ला हो रहा है. चैनल के मालिक डंके की चोट पर खुलेआम अपनी पसंदीदा पार्टी का समर्थन कर रहे हैं. ताजा उदाहरण ज़ी न्यूज़ के मालिक सुभाष चंद्रा का है. वे भाजपा के समर्थक है. पार्टी के समर्थन में प्रचार कार्य तक भी करते हैं. लेकिन उनका यह प्रचार कार्य अब खुद उनके चैनल के जरिए हो रहा है और ये सब खुल्लमखुल्ला. दर्शक भी इसपर गौर कर रहे हैं.
फेसबुक पर आयी एक टिप्पणी :
Priyabhanshu Ranjan
Owner of #ZeeNews and now a BJP leader Mr. Subhash Chandra speaking for his party on his own channel. Great USE of News channel (?) !!!