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मुकद्दर हो तो मनोहरलाल जैसा,न्यूज़ 24 पर रात 9.57 बजे

नवीन कुमार

मूछें हों तो नत्थूलाल के जैसी और मुकद्दर हो तो मनोहर लाल के जैसा। वर्ना ना हों। 20 अक्टूबर 2014 से पहले आपने कभी सुना था कि मनोहर लाल खट्टर जैसे अवतारी लोग बीजेपी में मौजूद हैं? अजी मनोहरलाल जी को नहीं पता था बीजेपी को कहां पता होता? अभी-अभी वरिष्ठ नागरिक हुए मनोहर लाल जी ने तो विधायकी को आसमानी आशीर्वाद समझकर ग्रहण कर लिया था। उन्हें तो पता ही नहीं था कि वो देवता होने जा रहे हैं। …

…जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में नौजवानों का हुजूम संपूर्ण क्रांति के लिए इंदिरा गांधी के खिलाफ सड़कों पर उतरा हुआ था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस आंदोलन को समर्थन दिया था। तो लोहिया के शिष्यों की सभाओं में भारत माता की जय के नारे भी लग रहे थे। ये नारे नौजवानों को अपनी ओर खींच रहे थे। संघ इस खिंचाव में स्वयंसेवकों की खोज कर रहा था। इसी खोज का खज़ाना हैं मनोहर लाल खट्टर। …

1996 में हरियाणा से शुरू हुआ मोदी के साथ मनोहर लाल का रिश्ता 2002 में गुजरात से होता हुआ मुख्यमंत्री की शपथ के शुक्राने तक पहुंचा है। डॉक्टर बनने के इरादे से 1974 में रोहतक से दिल्ली की खटारा बस में बैठा परिवार का पहला दसवीं पास छात्र 40 साल बाद अचानक सामने आया है। सत्ता के स्कूल का प्रिंसपल बनकर। इस सूचना पर बड़े-बड़े तर्कवादियों का भाग्य में यकीन करने को जी करेगा। क्योंकि जो सच है वो सच है। ..

.. खट्टर के ही दम पर बीजेपी ने पहली बार हरियाणा में दस में से सात सीटें हासिल की। खट्टर को मुख्यमंत्री बनाकर मोदी ने सिर्फ पुराने दिनों की दोस्ती का फर्ज़ और देश की प्रधानी में मदद का कर्ज अदा किया है। …

(रिपोर्टों के हिस्से)

(स्रोत-एफबी)

बाला साहेब के बेटे न होते तो उद्धव ठाकरे को ठेलावाला भी न पूछता

उद्धव जी मुख्‍यमंत्री बनना तो बहुत दूर की बात, अगर आप बाला साहेब के बेटे न होते तो कोई पान ठेला वाला आपको पान पराग के साथ फ्री का तंबाकू भी न देता और सिगरेट जलाने के लिए दिये माचिस की तीली के अलग से पैसे भी लेता

ऑस्ट्रेलिया में पहली बार दीपावली पर ओपेरा हाउस प्रकाशित

ऑस्ट्रेलिया में भारतीय समुदाय के लिए एक ऐतिहासिक क्षण तब आया जब न्यू साउथ वेल्स के प्रीमियर श्री माइक बियर्ड ने घोषणा की कि इस साल दीपावली पर ओपेरा हाउस को प्रकाशित किया जाएगा। २१ अक्टूबर की शाम आठ बजे भारतीय समुदाय और सरकार के गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में दीप जलाकर कार्यक्रम की शुरूआत की गई। साउथ ईस्ट एशियन समुदाय के लिए गर्व का अवसर रिमोट के बटन में एक कोड दबाया और ही ओपेरा हाउस प्रकाशमान हो गया। ताली बजकर उपस्थित लोगों ने इसका स्वागत किया, ऑस्ट्रेलियन सरकार ने इस मौके पर सबका मुंह मीठा कराया। ये भी घोषणा की गई कि न्यू साउथ वेल्स की संसद भी पांच नवम्बर तक बिजली के बल्बों से प्रकाशित रहेगी। इसके अतिरिक्त दीवाली ऑस्ट्रेलिया, कैनबेरा की संसद में भी मनाई जाएगी। इससे पहले सिडनी में तीन संस्थाओं ने दीवाली मेलों आयोजन किया, बैंकों ने भी भारतीय समुदाय को प्रसन्न करने के लिए रात्रिभोज आयोजित किये। प्रधानमंत्री के आने की तैयारी तो चल ही रही है, तो ज़ाहिर है आजकल भारतीय समुदाय ने ऑस्ट्रेलिया के पन्नों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है।

रेखा राजवंशी,सिडनी, ऑस्ट्रेलिया

बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ.श्रीकृष्ण सिंह की जयंती पर जातिगत राजनीति

कुमुद सिंह,पत्रकार




डॉ. श्रीकृष्ण सिंह
डॉ. श्रीकृष्ण सिंह

आज बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह की जयंती मनायी गयी। किसी भी नेता के लिए किसी राज्‍य का तीन दशकों तक नेत्तृत्व करना एक सपना ही हो सकता है। एक प्रकार की व्यवस्था में भी यह मुश्किल है, जबकि श्री बाबू दो प्रकार की व्यवस्था में ऐसा करनेवाले महान नेता थे।

1936 से 1947 तक के ब्रिटिश सरकार में बिहार के मुख्यमंत्री थे। 1947 से जब तक सांस चली श्रीबाबू बिहार को नेत्तृत्व देते रहे। इतने लंबे समय में उन्‍होंने बिहार को जो आधारभूत संरचना दी या दिलायी, वैसा फिर कभी बिहार को नहीं मिला।

आज बिहार के हक की बात करने के लिए भी जातिगत मंच की तलाश हो रही है। श्रीबाबू कभी भी बिहार को जातिगत सांचे में नहीं बांटा, ये अलग बात है कि उनकी जाति के लोग आज उन्‍हें अपनी जाति में कैद रखने में सफल होते दिख रहे हैं। शेखपुरा से ज्यादा बेगूसराय को जब श्रीबाबू की याद आयेगी, बिहार खुद ब खुद विकसित हो जायेगी।

(स्रोत-एफबी)




युवा इंटरप्रेन्योर ही बना सकते है कल का ‘मेक इन इंडिया’

मेक इन इंडिया
मेक इन इंडिया

सुजीत ठमके

मेक इन इंडिया
मेक इन इंडिया

कल मेरे ऑफिस में देश के जाने माने वैज्ञानिक डॉक्टर रघुनाथ माशेलकर साहब आये थे। नारी के निदेशक डॉक्टर अनिल राजवंशी साहब लिखित ” “रोमांस ऑफ़ इनोवेशन” नामक किताब का विमोचन था। यूएस से लौटे थे। सीधे कार्यक्रम में पहुंचे। किन्तु चेहरे पर थकान नहीं। उत्साह भरपूर। समूचा भाषण आशावादी कोई निराशा नहीं। सफल बिजिनेस वेंचर बनाने के तीन मूल मंत्र दिए स्किल, स्केल और सस्टेनेबल। बड़ी सोच रखो। उतार चढाव आते है। उम्मीद मत हारो। जो खुद निराशा के गर्क में है। उत्साह नहीं। बड़ी सोच नहीं है। रिस्क लेने का जज्बा नहीं है। मार्केट और पब्लिक की जरूरते जानता नहीं वो कभी भी सफल इंटरप्रेन्योर नहीं हो सकता। इंटरप्रेन्योर का मतलब आप और आपका परिवार नहीं है। आप से हजारो, लाखो जिंदगी, परिवार जुड़े होते है। इनोवेशन को इंटरप्रेन्योरशिप के बिजनेस मॉडल में तब्दील करना और रोजगार निर्माण करना एक सफल उद्यमीयो की पहचान है। मै मूल रूप से तो मीडिया कर्मी हु। किन्तु कई विषयो में मेरी रूचि है। उन्ही विषयो में से एक विषय है इंटरप्रेन्योरशिप। कुछ वर्ष नौकरी करके मेरी भी बड़ी योजना है। नौकरी में ज्यादा अवसर नहीं है। कुछ नया करने की कोई गुंजाइश नहीं है। खुद का ब्रांड मार्केट में स्थापित करने का कोई रास्ता नहीं।

यह धारणा ही गलत है की सफल बनने के लिए इंटरप्रेन्योर आईआईटी, आईआईएम से उच्च शिक्षित होना चाहिए। विशेष समुदाय से होना चाहिए। इतना जरूर है परफेक्ट बिज़नेस मॉडल रहना जरुरी है। क्या आम क्या ख़ास लोगो की जरुरितो को ध्यान में रखकर बिजिनेस मॉडल तैयार करना जरुरी है। बिल गेस्ट्स की माइक्रोसॉफ्ट हो, मार्क जुकरबर्ग का फेसबुक हो। बंसल बंधू का फ्लिपकार्ड हो, स्नैपडील हो, अमेजॉन हो, जेबौंग,ट्विटर, राघव बहल, प्रणव राय आदि आदि देश के जाने माने बिजनेस आइकॉन सभी का बिजनेस मॉडल परफेक्ट था। इसीलिए यह सफल उद्यमी बने। जब खुद पर यकींन होता है दुनिया मुट्ठी में होती है। सपने केवल देखने के लिए नहीं होते पुरे करने के लिए भी होते है।

देश दुनिया के सभी बिजनेस टायकून के पास आइडिया इनोवेटिव थी। पच्छिमी देश भारत को बड़े बाजार के रूप में देखते है। क्योकि वर्ष २००८ से विश्व पर ग्लोबल स्लोडाउन का साया है। पच्छिमी देशो की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। लेकिन भारत के अर्थव्यवस्था डगमगा जरूर गई किन्तु तहस नहस नहीं हुई। पच्छिमी देश फायन्सियल क्राइसिस से अभी तक उभरे नहीं है। फेसबुक के को- फाउंडर कुछ दिन पहले भारत के दौरे पर आये । ज़ुकरबर्ग का पूरा फोकस भारत में बिजनेस बढ़ने पर था। मतलब संकेत साफ़ है भारत में पच्छिमी देशो से ज्यादा अवसर है। जुकरबर्ग का फोकस अपने प्रोडक्ट्स की बेहतर पैकेजिंग के जरिये भारत में बेचने पर था। व्यापार और इंटरप्रेन्योरशिप दोनों अलग विषय है। व्यापार अड़ोस पड़ोस, इर्द गिर्द में देखकर कर सकते है किन्तु इंटरप्रेन्योरशिप का सीधा ताल्लुक इनोवेशन है। ग्रामीण हो, शहरी हो, बेरोजगार हो, युवा हो, महिला हो या फिर कोई समुदाय। कल का बेहतर भारत सभी चाहते है। देश के बड़े १०-२० उद्यमी पुरे देश की तस्वीर बदल सकते है ऐसी उम्मीद रखना मूर्खता है। युवा इंटरप्रेन्योर ही बना सकते है कल का ” मेक इन इंडिया। सभी संभव है।

सुजीत ठमके
पुणे – ४११००२

( लेखक भारत सरकार के अधीन देश के नामचीन संस्था में मीडिया एंड पीआर देखते है। कई मीडिया संस्थानों में रह चुके है। युवा मीडिया विश्लेषक है। राजनीति, करेंट अफेयर्स, विदेशनीति, इकोनॉमी, सोशल इशू इंटरप्रेन्योरशिप जैसे विषयो पर अच्छी पकड़ रखते है )

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