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मनीष अवस्थी का न्यूज इंडिया के एडिटोरियल डायरेक्टर पद से इस्तीफा!

news india promo

न्यूज इंडिया में इस्तीफों का सिलसिला थमता नजर नहीं आ रहा है। इसी क्रम में नया नाम है मनीष अवस्थी का। उन्होंने न्यूज इंडिया के एडिटोरियल डायरेक्टर पद से इस्तीफा दे दिया है। इसके पहले इनपुट एडिटर,आउटपुट एडिटर और चैनल के मैनेजिंग एडिटर भी इस्तीफा दे चुके हैं।

खबरों की माने तो न्यूज़ इंडिया का मैनेजमेंट एडिटोरियल में लगातार दखलअंदाजी कर रहा है जिससे एडिटोरियल और वहाँ काम करने वाले पत्रकार लगातार असहज महसूस कर रहे हैं। यही वजह है कि मौका मिलते ही यहाँ से जाने वालों का सिलसिला सा चल पड़ा है।

गौरतलब है कि लगभग 7-8 महीने पहले न्यूज़ इंडिया राष्ट्रीय स्तर पर लांच हुआ था और बड़े-बड़े दावे किये गए थे। शुरुआत अच्छी भी हुई। चैनल रिकॉर्ड समय में लॉन्च भी हो गया। कई नामी पत्रकार भी चैनल से जुड़े, लेकिन बाद के महीनों में ताश के पत्ते की तरह बिखरने लगा। उससे पहले यह चैनल जयपुर से चलता था और फिलहाल इस चैनल की हालत जयपुर जैसी हो गई है।

सुप्रिय प्रसाद को बेस्ट न्यूज डायरेक्टर का ENBA अवॉर्ड

supriya prasad best news director

वर्ष 2022 के ENBA अवॉर्ड की घोषणा कर दी गयी है और हर साल की तरह इस बार भी समाचार चैनल ‘आजतक’ को ढेरों अवॉर्ड मिले हैं। इस बार के बेस्ट न्यूज डायरेक्टर का ENBA अवॉर्ड आजतक के चैनल हेड सुप्रिय प्रसाद को मिला है।

सुप्रिय प्रसाद पिछले कई वर्षों से आजतक चैनल की बागडोर सफलतापूर्वक संभाले हुए हैं। इस दौरान टीआरपी के साथ-साथ चैनल की ब्रांडिंग के मामले में भी वे प्रतिद्वंदी चैनलों से आजतक को आगे बनाए रखने में सफल हुए। उनके नेतृत्व में आजतक ने पिछले कुछ सालों में कई बड़ी ख़बरें ब्रेक की। कोरोना के कठिन समय में भी उन्होंने चैनल को समयानुकूल नयी दिशा दी।

सुप्रिय प्रसाद के अलावा आजतक की एंकर श्वेता सिंह – बेस्ट एंकर हिंदी (गोल्ड), सईद अंसारी – बेस्ट एंकर हिंदी (सिल्वर), अंजना ओम कश्यप को भी अलग-अलग श्रेणियों में पुरस्कार प्राप्त हुए। इस मौके पर आजतक के पूर्व एंकर स्वर्गीय रोहित सरदाना को भी याद किया गया और उनके सम्मान में ENBA अवॉर्ड दिया गया।

ENBA अवॉर्ड में कुछ समय पहले ही लॉन्च हुए चैनल TIMES NOW नवभारत की नाविका कुमार को बेस्ट एडिटर इन चीफ हिंदी का अवॉर्ड मिला।

टेलीग्राफ अखबार नहीं, हत्यारों का मुखपत्र है !

Telegraph newspaper mouthpiece of the killers

टेलीग्राफ अखबार नहीं, हत्यारों का मुखपत्र है। एक समुदाय विशेष द्वारा किये गये हत्याकांड को देखिए कम्युनिस्टों का यह अखबार न्यायसंगत ठहरा रहा है।

बता रहा है कि तृणमूल नेता की हत्या की प्रतिक्रिया में आठ लोगों को जला दिया। इसके बाद ये भी समझा रहा है कि जलानेवाले गुस्से में थे।

इस अखबार को पढनेवाला मन में यही सोचेगा, चलो जो किया सही किया। आखिर अगर आप किसी मुस्लिम की हत्या करेंगे तो बदले में आपका सामूहिक नरसंहार हो जाए तो गलत क्या है?

अगर कम्युनिस्ट प्रतिक्रिया में हुई हत्याओं को जस्टिस मानते हैं तो इसी लॉजिक को आज तक गुजरात पर क्यों लागू नहीं कर पाये? क्या वो किसी समुदाय विशेष द्वारा की गयी हिंसा को हिंसा नहीं मानते? क्या उनके लिए मोमिनी हिंसा हिंसा नहीं होती, नेचुरल जस्टिस होती है?

(वरिष्ठ पत्रकार संजय तिवारी मणिभद्र के सोशल मीडिया वॉल से साभार)

भारत विरोधी फर्जी खबरें फैलाने वाले 35 यूट्यूब चैनल और 2 वेबसाइट ब्लॉक

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने 35 यूट्यूब आधारित समाचार चैनल और 2 वेबसाइट को ब्ल़ॉक करने का आदेश जारी किया है, जो डिजिटल मीडिया पर समन्वित रूप से भारत विरोधी फर्जी खबरें फैलाने में लिप्त थे। मंत्रालय द्वारा ब्लॉक किए गए यूट्यूब खातों के कुल सब्सक्राइबरों की संख्या 1 करोड़ 20 लाख से ज्यादा थी और उनके वीडियोज के व्यूज 130 करोड़ थे। इसके अलावा, सरकार ने इंटरनेट पर भारत विरोधी दुष्प्रचार करने में शामिल होने पर दो इंस्टाग्राम अकाउंट और एक फेसबुक अकाउंट को ब्लॉक कर दिया है।

सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के नियम 16 के अंतर्गत पांच अलग-अलग आदेश जारी करके, मंत्रालय ने इन सोशल मीडिया खातों और वेबसाइट्स को ब्लॉक करने का आदेश दिया है। भारत की खुफिया एजेंसियां इन सोशल मीडिया खातों और वेबसाइटों की लगातार निगरानी कर रही थीं और उन्होंने उन पर तत्काल कार्रवाई के लिए मंत्रालय को सूचना दी।

मंत्रालय द्वारा ब्लॉक किए गए 35 खाते पाकिस्तान से परिचालित हो रहे थे और इनकी चार समन्वित दुष्प्रचार नेटवर्क के रूप में पहचान की गई थी। इनमें 14 यूट्यूब चैनल चलाने वाला अपनी दुनिया नेटवर्क और 13 यूट्यूब चैनल चलाने वाला ताल्हा फिल्म्स नेटवर्क शामिल थे। चार चैनलों का एक सेट और दो अन्य चैनलों का सेट भी एक दूसरे के मिलकर काम कर रहे थे।

इन सभी नेटवर्क का एक मात्र लक्ष्य भारतीय दर्शकों के बीच फर्जी खबरों का प्रसार था। एक नेटवर्क के हिस्से के रूप में काम करने वाले चैनल समान हैशटैग और एक जैसी सम्पादन शैली का इस्तेमाल करते थे। साथ ही ये समान लोगों द्वारा संचालित थे और एक दूसरे को प्रोत्साहन देते थे। कुछ यूट्यूब चैनलों का संचालन पाकिस्तानी टीवी न्यूज चैनलों के एंकरों द्वारा किया जा रहा था।

कमाल खान पत्रकारिता के कबीर थे – राजेश बादल

kamal khan ndtv journalist

कमाल ख़ान के नहीं होने का अर्थ

मैं पूछता हूँ तुझसे , बोल माँ वसुंधरे ,
तू अनमोल रत्न लीलती है किसलिए ?

कमाल ख़ान अब नहीं है। भरोसा नहीं होता। दुनिया से जाने का भी एक तरीक़ा होता है। यह तो बिल्कुल भी नहीं। जब से ख़बर मिली है ,तब से उसका शालीन ,मुस्कुराता और पारदर्शी चेहरा आँखों के सामने से नहीं हट रहा। कैसे स्वीकार करूँ कि पैंतीस बरस पुराना रिश्ता टूट चुका है। रूचि ने इस हादसे को कैसे बर्दाश्त किया होगा ,जब हम लोग ही सदमे से उबर नहीं पा रहे हैं।यह सोच कर ही दिल बैठा जा रहा है।मुझसे तीन बरस छोटे थे ,लेकिन सरोकारों के नज़रिए से बहुत ऊँचे ।

पहली मुलाक़ात कमाल के नाम से हुई थी,जब रूचि ने जयपुर नवभारत टाइम्स में मेरे मातहत बतौर प्रशिक्षु पत्रकार ज्वाइन किया था। शायद १९८८ का साल था । मैं वहाँ मुख्य उप संपादक था। अँगरेज़ी की कोई भी ख़बर दो,रूचि की कलम से फटाफट अनुवाद की हुई साफ़ सुथरी कॉपी मिलती थी। मगर,कभी कभी वह बेहद परेशान दिखती थी। टीम का कोई सदस्य तनाव में हो तो यह टीम लीडर की नज़र से छुप नहीं सकता। कुछ दिन तक वह बेहद व्यथित दिखाई देती रही । एक दिन मुझसे नहीं रहा गया। मैने पूछा,उसने टाल दिया। मैं पूछता रहा, वह टालती रही।एक दिन लंच के दरम्यान मैंने उससे तनिक क्षुब्ध होकर कहा ,” रूचि ! मेरी टीम का कोई सदस्य लगातार किसी उलझन में रहे ,यह ठीक नहीं।उससे काम पर उल्टा असर पड़ता है।उस दिन उसने पहली बार कमाल का नाम लिया।कमाल नवभारत टाइम्स लखनऊ में थे।दोनों विवाह करना चाहते थे। कुछ बाधाएँ थीं । उनके चलते भविष्य की आशंकाएँ रूचि को मथती रही होंगीं । एक और उलझन थी । मैनें अपनी ओर से उस समस्या के हल में थोड़ी सहायता भी की । वक़्त गुज़रता रहा। रूचि भी कमाल की थी।कभी अचानक बेहद खुश तो कभी गुमसुम। मेरे लिए वह छोटी बहन जैसी थी।पहली बार उसी ने कमाल से मिलवाया।मैं उसकी पसंद की तारीफ़ किए बिना नहीं रह सका।मैने कहा, तुम दोनों के साथ हूँ।अकेला मत समझना।फिर मेरा जयपुर छूट गया। कुछ समय बाद दोनों ने ब्याह रचा लिया।अक्सर रूचि और कमाल से फ़ोन पर बात हो जाती थी। दोनों बहुत ख़ुश थे।

इसी बीच विनोद दुआ का दूरदर्शन के साथ साप्ताहिक न्यूज़ पत्रिका परख प्रारंभ करने का अनुबंध हुआ।यह देश की पहली टीवी समाचार पत्रिका थी। हम लोग टीम बना रहे थे।कुछ समय वरिष्ठ पत्रकार दीपक गिडवानी ने परख के लिए उत्तरप्रदेश से काम किया।अयोध्या में बाबरी प्रसंग के समय दीपक ही वहाँ थे। कुछ एपिसोड प्रसारित हुए थे कि दीपक का कोई दूसरा स्थाई अनुबंध हो गया और हम लोग उत्तर प्रदेश से नए संवाददाता को खोजने लगे। विनोद दुआ ने यह ज़िम्मेदारी मुझे सौंपी । मुझे रूचि की याद आई। मैनें उसे फ़ोन किया।उसने कमाल से बात की और कमाल ने मुझसे।संभवतया तब तक कमाल ने एनडीटीवी के संग रिश्ता बना लिया था।चूँकि परख साप्ताहिक कार्यक्रम था इसलिए रूचि गृहस्थी संभालते हुए भी रिपोर्टिंग कर सकती थी।कमाल ने भी उसे भरपूर सहयोग दिया।यह अदभुत युगल था ।दोनों के बीच केमिस्ट्री भी कमाल की थी।बाद में जब उसने इंडिया टीवी ज्वाइन किया तो कभी कभी फ़ोन पर दोनों से दिलचस्प वार्तालाप हुआ करता था।एक ही ख़बर के लिए दोनों संग संग जा रहे हैं।टीवी पत्रकारिता में शायद यह पहली जोड़ी थी जो साथ साथ रिपोर्टिंग करती थी।जब भी लखनऊ जाना हुआ,कमाल के घर से बिना भोजन किए नहीं लौटा।दोनों ने अपने घर की सजावट बेहद सुरुचिपूर्ण ढंग से की थी। दोनों की रुचियाँ भी कमाल की थीं.एक जैसी पसंद वाली ऐसी कोई दूसरी जोड़ी मैंने नहीं देखी।जब मैं आज तक चैनल का सेन्ट्रल इंडिया का संपादक था,तो अक्सर उत्तर प्रदेश या अन्य प्रदेशों में चुनाव की रिपोर्टिंग के दौरान उनसे मुलाक़ात हो जाती थी।कमाल की तरह विनम्र,शालीन और पढ़ने लिखने वाला पत्रकार आजकल देखने को नहीं मिलता।कमाल की भाषा भी कमाल की थी। वाणी से शब्द फूल की तरह झरते थे।इसका अर्थ यह नहीं था कि वह राजनीतिक रिपोर्टिंग में नरमी बरतता था। उसकी शैली में उसके नाम का असर था। वह मुलायम लफ़्ज़ों की सख़्ती को अपने विशिष्ट अंदाज़ में परोसता था। सुनने देखने वाले के सीधे दिल में उतर जाती थी।आज़ादी से पहले पद्य पत्रकारिता हमारे देशभक्तों ने की थी ।लेकिन,आज़ादी के बाद पद्य पत्रकारिता के इतिहास पर जब भी लिखा जाएगा तो उसमें कमाल भी एक नाम होगा। किसी भी गंभीर मसले का निचोड़ एक शेर या कविता में कह देना उसके बाएं हाथ का काम था । कभी कभी आधी रात को उसका फ़ोन किसी शेर, शायर या कविता के बारे में कुछ जानने के लिए आ जाता ।फिर अदबी चर्चा शुरू हो जाती। यह कमाल की बात थी कि कि रूचि ने मुझे कमाल से मिलवाया ,लेकिन बाद में रूचि से कम,कमाल से अधिक संवाद होने लगा था।

कमाल के व्यक्तित्व में एक ख़ास बात और थी। जब परदे पर प्रकट होता तो सौ फ़ीसदी ईमानदारी और पवित्रता के साथ। हमारे पेशे से सूफ़ी परंपरा का कोई रिश्ता नहीं है ,लेकिन कमाल पत्रकारिता में सूफ़ी संत होने का सुबूत था। वह राम की बात करे या रहीम की ,अयोध्या की बात करे या मक्क़ा की ,कभी किसी को ऐतराज़ नहीं हुआ।वह हमारे सम्प्रदाय का कबीर था।

सच कमाल ! तुम बहुत याद आओगे। आजकल पत्रकारिता में जिस तरह के कठोर दबाव आ रहे हैं ,उनको तुम्हारा मासूम रुई के फ़ाहे जैसा नरम दिल शायद नहीं सह पाया।पेशे के ये दबाव तीस बरस से हम देखते आ रहे हैं। दिनों दिन यह बड़ी क्रूरता के साथ विकराल होते जा रहे हैं । छप्पन साल की उमर में सदी के संपादक राजेंद्र माथुर चले गए। उनचास की उमर में टीवी पत्रकारिता के महानायक सुरेंद्र प्रताप सिंह याने एस पी चले गए। असमय अप्पन को जाते देखा,अजय चौधरी को जाते देखा ।दोनों उम्र में मुझसे कम थे । साठ पार करते करते कमाल ने भी विदाई ले ली।अब हम लोग भी कतार में हैं।क्या करें ? मनहूस घड़ियों में अपनों का जाना देख रहे हैं । याद रखना दोस्त। जब ऊपर आएँ तो पहचान लेना। कुछ उम्दा शेर लेकर आऊंगा । कुछ सुनूंगा ,कुछ सुनाऊंगा । महफ़िल जमेगी ।
अलविदा कमाल !

हम सबकी ओर से श्रद्धांजलि।
राजेश बादल

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