Home Blog Page 310

पूर्व पत्रकार एस बालाकृष्णन को छोटा शकील की धमकी

मीडिया खबर
मीडिया खबर

भाषा: अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहीम की नीलाम की जा रही सात संपत्तियों में से एक के लिए बोली लगाने जा रहे पूर्व पत्रकार एस बालाकृष्णन को छोटा शकील ने धमकी दी है ।

बालाकृष्णन ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘मुझे छोटा शकील से एसएमएस मिला । उसने कहा कि तुम नीलामी में भाग ले रहे हो । तुम्हें क्या हुआ ? मुझे उम्मीद है कि तुम ठीक हो ।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह उनकी यह कहने की शैली है : दूर रहो ।’’ बालाकृष्णन ने कहा, ‘‘मैं अपने एनजीओ देश सेवा समिति की ओर से बोली लगा रहा हूं जो बाल कल्याण और महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए काम करता है । हम उस जगह पर इंग्लिश स्पीकिंग और कंप्यूटर प्रशिक्षण संस्थान चलाएंगे । इसका नाम महान देशभक्त अशफाक उल्ला खां के नाम पर रखा जाएगा । बच्चों के लिए वह आदर्श होने चाहिए, न कि दाउद ।’’ उन्होंने कहा, ‘‘पाकिस्तान में बैठा कोई व्यक्ति देश के लिए फरमान जारी नहीं कर सकता ।’’ यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने एसएमएस से मिली धमकी के बारे में पुलिस को सूचना दी है, बालाकृष्णन ने कहा कि अभी तक उन्होंने ऐसा नहीं किया है ।

उन्होंने कहा, ‘‘संपत्ति का आरक्षित मूल्य 1.18 करोड़ रूपये है । हमारे पास कुछ धन है, हम शेष रकम जुटाने की कोशिश कर रहे हैं ।’’ संपत्ति दक्षिणी मुंबई में पाकमोडिया मार्ग पर स्थित है । इसकी नीलामी कोलाबा स्थित होटल डिप्लोमैट में नौ दिसंबर को होगी ।

बालाकृष्णन ने कहा, ‘‘दाउद इब्राहीम की सात सूचीबद्ध संपत्ति सक्षम प्राधिकरण के पास हैं । प्राधिकरण मादक पदार्थ एवं तस्करी और विदेशी मुद्रा विनिमय हेराफेरी :संपत्ति जब्ती: कानून 1976 के तहत मामलों में आरोपी की संपत्ति जब्त करता है । इन संपत्तियों को फिर नीलामी के लिए रखा जाता है ।’’ बृहस्पतिवार को पूर्व पत्रकार संपत्ति को देखने पाकमोडिया मार्ग गए थे ।

उन्होंने कहा, ‘‘यह ग्राउंड प्लस वन फ्लोर ढांचा है ।’’

सेंसरशिप के साये में पाकिस्तानी मीडिया

साज़िद इक़बाल

पाकिस्तान में मीडिया पर सेंसरशिप का पुराना इतिहास है लेकिन हाल के समय में देश के सबसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों पर हथियारबंद हमले दिखाते हैं कि धौंस दे कर-धमकाकर सेंसर थोपने की कोशिश हो रही है.

बीते 27 नवम्बर को डॉन मीडिया समूह की एक डिज़िटल सैटेलाइट न्यूज गैदरिंग (डीएसएनजी) वैन पर हथियारबंद हमला हुआ. इसके एक दिन पहले डॉन अख़बार ने अफ़ग़ान प्रांत खोस्त में एक पाकिस्तानी चरमपंथी के मारे जाने की ख़बर प्रकाशित की थी.

इस साल तीन डीएसएनजी वैनों पर हमले हो चुके हैं. यह हमले इसलिए अहम हैं क्योंकि हिंसक हमलों के बावजूद डॉन मीडिया ग्रुप ने अभी तक ‘सेल्फ़ सेंसरशिप’ को लागू नहीं किया है.

इन हमलों का सबसे अधिक शिकार जियो टीवी और जंग ग्रुप हुए हैं. 19 अप्रैल 2014 को इसके प्रमुख टीवी एंकर हामिद मीर को गोली मारी गई थी.

उनके भाई आमिर मीर खुद जंग/जियो मीडिया ग्रुप के पत्रकार हैं. उन्होंने खुलेआम आरोप लगाया कि पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई उनके भाई की हत्या की साजिश रच रही थी.

हालांकि इस हत्या के लिए किसी ने आरोप नहीं लगाए लेकिन पत्रकार यूनियनों ने विरोध प्रदर्शन कर इस मामले की जांच और मीडिया पर हमले बंद करने की मांग की.

वैसे केंद्रीय सूचना मंत्री परवेज रशीद निंदा करने में ज़्यादा मुखर दिखे और उन्होंने इस हमले को ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला’ कहा.

डॉन ने खोस्त में अफ़ग़ान तालिबान से जुड़े ग्रुप अल बद्र के ट्रेनिंग कैंप पर अमरीकी ड्रोन हमले में पाकिस्तानी चरमपंथी की मौत की ख़बर छापी थी.

परोक्ष रूप से यह ख़बर उस आरोप का समर्थन करती है जिसके अनुसार पाकिस्तानी चरमपंथी अफ़ग़ानिस्तान में सरकारी बलों और नाटों सैनिकों से लड़ रहे हैं.

जिस दिन कराची में इस मीडिया समूह की वैन पर हमला हुआ उस दिन अख़बार के मुख्य सम्पादकीय में कहा गया था, “लेकिन खोस्त में ड्रोन हमले ने कुछ असहज कर देने वाली यादों और सवालों को खड़ा कर दिया है.”

इस हमले के बाद दो स्तंभकारों को हटाया गया और ‘डेली टाइम्स’ अख़बार के सम्पादक का इस्तीफ़ा लिया गया.

मीर मोहम्मद अली तालपुर बलूचिस्तान मामले पर कॉलम लिखते थे जबकि फ्लोरिडा में रहने वाले पाकिस्तानी डॉक्टर मोहम्मद ताक़ी पाकिस्तानी सेना के धुर आलोचक हैं.

तालपुर ने अपने फ़ेसबुक पोस्ट में लिखा, “आज मुझे जानकारी दी गई कि उन्हें मेरे लेख की अब ज़रूरत नहीं रही क्योंकि इनकी पड़ताल हो रही है….दूसरे शब्दों में ये प्रशासन को मंजूर नहीं है.”

मोहम्मद ताकी ने ट्वीट किया, “सेना के दबाव में डेली टाइम्स के साथ छह सालों का जुड़ाव ख़त्म हुआ.”

लेकिन राशिद हरमान के इस्तीफ़े की कोई चर्चा नहीं हुई. पाकिस्तानी मीडिया की ख़बरें देने वाली वेबसाइट ‘जर्नलिज़्म पाकिस्तान’ में इस बारे में एक लाइन दी गई थी.

हालांकि नई दिल्ली में इंडियन एक्स्प्रेस ने इस पर एक विस्तृत लेख प्रकाशित किया.

अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तानी चरमपंथियों की मौजूदगी ही वो विषय था जिसकी वजह से मोहम्मद ताकी का लिखना बंद हुआ.

26 नवंबर को लिखे अपने लेख में ताकी ने अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तानी जिहादियों को घुसाने के पीछे पाकिस्तानी सेना का हाथ होने की ओर इशारा किया था.

पाकिस्तान में मीडिया पर सेना का परोक्ष रूप से सेंसरशिप थोपना एक पुरानी सच्चाई है.

11 साल का जनरल जिया-उल-हक़ का शासन अप्रिय ख़बरों को दबाने के लिए दिशा निर्देश जारी किया करता था और जिन लोगों ने उनकी बातें नहीं मानी उनके ख़िलाफ़ दंडात्मक कार्रवाई भी हुई.

हालांकि मौजूदा ‘सेंसरशिप’ का एक अहम पहलू ये है कि यह एक लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई ऐसी सरकार के राज में हो रहा है, जो इसे रोकने में असहाय दिखती है.

दूसरी बात ये है कि जिया-उल-हक़ के शासन में जहां मीडिया संस्थाएं प्रतिरोध के लिए तैयार रहती थीं, आज के समय में मीडिया समूहों और पत्रकारों में वो रुचि नहीं दिखाई देती.

(बीबीसी से साभार)

तो दूरदर्शन पर प्रसारित रामायण भी रहा है बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए जिम्मेदार ?

तो दूरदर्शन पर प्रसारित रामायण भी रहा है बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए जिम्मेदार ?

साल 2001 में जब अरविंद राजगोपाल की किताब इंडिया आफ्टर टेलीविजन आई तो पढ़ने-लिखनेवाले लोगों के बीच हंगामा मच गया. राजगोपाल ने बहुत ही बारीक विश्लेषण करते हुए ये तर्क स्थापित किए थे कि इस देश में दक्षिणपंथ का मुख्यधारा की राजनीति में जो उभारा हुआ है, बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौरान साम्प्रदायिक ताकतों का निरंतर विस्तार हुआ, उसके लिए कहीं न कहीं दूरदर्शन पर प्रसारित रामायण जैसे टीवी सीरियल भी जिम्मेदार रहे हैं. ऐसे सीरियलों ने दक्षिणपंथी राजनीति के लिए माहौल बनाने का काम किया और टीवी में स्थायी रूप से भारतीय संस्कृति के नाम पर इनकी पकड़ मजबूत होती चली गई.

दिलचस्प है कि इस किताब की जबरदस्त चर्चा हुई लेकिन तथाकथित प्रगतिशील लोगों ने भी इस किताब को बहुत अधिक सराहा नहीं. राजनीतिक स्तर पर तो वो राजगोपाल की बात से फिर भी सहमत हुए कि दक्षिणपंथ राजनीति का निरंतर विस्तार हो रहा है लेकिन इसके लिए टीवी जिम्मेदार है, ऐसा मानने के लिए तैयार नहीं हुए. इसकी बड़ी वजह ये भी रही है कि वो टीवी को इतना गंभीर माध्यम मानने को तैयार नहीं थे, उसे ये क्रेडिट देना नहीं चाहते थे कि वो समाज और राजनीति की दिशा तय होने लग जाए. नतीजा ये किताब कम से उन लोगों के बीच से बिसरती चली गई जो टीवी को उथला या सतही माध्यम मानते रहे हैं.

लेकिन साल 2012 में कृष्णा झा और धीरेन्द्र के. झा की लिखी किताब “अयोध्या दि डार्क नाइटः दि सिक्रेट हिस्ट्री ऑफ रामाज एपीयरेंस इन बाबरी मस्जिद” से गुजरें और खासकर इसमे जो उद्धरण शामिल किए गए हैं, वो राजगोपाल के तर्क को मजबूत करते हैं. इस किताब में बाबरी मस्जिद विध्वंस के संदर्भ में अलग से टीवी के कार्यक्रम की चर्चा नहीं है लेकिन सरकार की उन नीतियों और तर्क पर जरूर चर्चा शामिल है, जिन पर गौर करें तो उनमे प्रसारण नीति अपने आप शामिल हो जाते हैं. इस दौर की प्रसारण नीति, राजनीति और सरकार के रवैये को समझने के लिए भास्कर घोष की लिखी किताब दूरदर्शन डेज कम महत्वपूर्ण नहीं है.( राजीव गांधी को भक्ति भाव से याद किए जाने के बावजूद).

खैर,साल 2012-13 में शुरु हुए टीवी कार्यक्रमों को एक बार दोबारा से राजगोपाल के तर्क के साथ रखकर समझने की कोशिश करें तो ये समझना और भी आसान हो जाता है कि इस देश में दक्षिणपंथी पार्टी की जो सरकार 2014 में सत्ता में आई, टीवी पर ये दो साल पहले ही आ गई थी. महाराणा प्रताप, रानी लक्ष्मीबाई, पृथ्वीराज चौहान, देवों के देव महादेव, जीटीवी का रामायण ऐसे दर्जनभर टीवी सीरियल हैं जो कि वहीं काम दो-ढाई साल पहले से करते आए हैं जो काम दक्षिणपंथी पार्टी एक्सेल शीट पर कर रही थी और जो काम इकॉनमिक टाइम्स जैसा अखबार सेन्सेक्स की खबरें छापकर कर रहा था.

कुल मिलाकर कहानी ये है कि मनोरंजन की दुनिया को हम जिस हल्के अंदाज में निबटा देते हैं, इस देश की राजनीति का बड़ा सुर वही से साधने का काम होता आया है. राजनीति में इसका इस्तेमाल माल राजनीति के लिए किया जाए तो वो देशभक्ति हो जाती है और इसी इन्‍डस्ट्री के लोग सही अर्थों में राजनीति करने लगें तो वो असहिष्णु करार दे दिए जाते हैं.

( जाहिर है, इस असहिष्णुता की शुरूआत कांग्रेस से ही हुई है. झा की किताब का पन्ना लगाया है, आप चाहें तो बड़ा करके नेहरू का वो उद्धरण पढ़ सकते हैं जिसे कि उन्होंने मई 1950 में राज्य के मुख्यमंत्रियों से बेहद ही खिन्न भाव से कहा था-
ये बड़े अफसोस की बात है कि जो कांग्रेस धर्मनिपेक्षता के लिए जानी जाती है, वो इतनी जल्दी इसका अर्थ भूल जाएगी..बिडंबना ही है कि जो जिन चीजों पर जितना अधिक बात करता है, वो उतना ही कम उसका अर्थ समझता है, उसे उतना ही कम व्यवहार में लाता है..

(स्रोत-एफबी)

न्यूज़ चैनलों पर भूत-प्रेत की वापसी – अजीत अंजुम

sweta singh anchor aajtak
न्यूज़ चैनलों पर भूत का साया

अजीत अंजुम,प्रबंध संपादक,इंडिया टीवी

न्यूज़ चैनलों पर भूत का साया
न्यूज़ चैनलों पर भूत का साया

mk-navटीवी न्यूज़ चैनल्स पर भूत /प्रेत /रहस्य /रोमांच/ डायन/ चुड़ैल और परियों की वापसी हो गई है ..कोई भूतों की खोज पर निकल पड़ा है तो कोई अद्भुत .. अकल्पनीय और अविश्वसनीय किस्से खोज रहा है … कोई आधी रात को किले में प्रेत की की तलाश कर रहा है तो कोई रहस्यलोक की सैर कर रहा है …खोह/खंडहर/किला/मंदिर/पाताल/कुआं/धुआं/बाग/बगीचा..हर जगह होगी अब तलाश …

अजीत अंजुम,प्रबंध संपादक,इंडिया टीवी
अजीत अंजुम,प्रबंध संपादक,इंडिया टीवी

जबरदस्त कॉम्पिटिशन है …जिस दौर से निकले थे ,उसी दौर में लौट रहे हैं …कई सालों बाद प्रेत मुक्ति मिली थी ..फिर प्रेत बाधा के शिकार हो रहे हैं …

सब रेटिंग की माया है …एक चैनल को रहस्य से रेटिंग क्या मिली, सब रहस्य कथाओं की तलाश में जुट गए हैं …

देखिए कहाँ तक जाते हैं …

दस साल पहले जो Reporter cum Anchor न्यूज़ चैनल्स के ऐसे कंटेंट को गलियां देते थे / सभी संपादकों को कोसते थे , वो अब संपादक बनकर अपने चैनल पर भूत गाथा और परी लोक दिखा रहे हैं..चार महीने तक पाधे माँ को अपनी पत्रकारिता का मूलमंत्र बनाकर बगुले लड़ाते रहे ,जब उससे रेटिंग का मीटर घूमना बंद हो गया तो रहस्य रोमांच और भूतखेली में रेटिंग तलाश रहे हैं …
बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का
जो चीरा तो कतरा ए खून न निकला

बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का
जो चीरा तो कतरा ए खून न निकला
‘ वो ‘ जब रिपोर्टर थे तब ‘प्रेत पत्रकारिता’ के लिए संपादकों को गालियां देते थे और जब खुद संपादक बने तो रसातल में जाने के सारे रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं… जय हो

(स्रोत-एफबी)

क्या मायावती संघ के ऐजेण्डे को आगे बढा रही हैं?

 डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

राज्यसभा में 30 अगस्त, 2015 को मायावती ने सवर्ण गरीबों को आर्थिक आधार पर आरक्षण प्रदान करने की मांग करके, अवसरवादी राजनीति के घृणित चेहरे को आगे बढाया है। गरीब सवर्णों को आरक्षण की मांग करके मायावती वोट की राजनीति तो कर सकती हैं, लेकिन अनार्यों के संवैधानिक हकों की रक्षा करने का दावा नहीं कर सकती। अब मायावती को दलित, आदिवासी, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हितों की माला जपने का कोई नैतिक अधिकार शेष नहीं रह गया है। हजारों सालों से आर्यों के शोषण, विभेद, अन्याय, अत्याचार और मनमानी के शिकार वंचित—अनार्यों को सत्ता और प्रशासन में आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रदान करने के मकसद से संविधान निर्माताओं में ने सामाजिक न्याय की व्यवस्था की हुई है। जिसका मायावती मजाक उड़ा रही हैं। मायावती का बयान इस बात का जीता जागता प्रमाण है कि मायावती को संविधान और सामाजिक न्याय का प्राथमिक स्तर तक का ज्ञान नहीं है। उन्हें कांशीराम की शिष्या और उत्तराधिकारी कहलाने का कोई नैतिक हक नहीं है! कहीं ऐसा तो नहीं कि आगे चलकर मायावती भी भाजपा की नाव पर सवार होने की तैयारी कर रही हैं?

​सवर्ण गरीब भी इस देश के नागरिक हैं और उनके विकास एवं उनकी उन्नति की चिन्ता करना भी देश का फर्ज है, लेकिन आरक्षण कोई गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है। अत: सवर्ण—गरीबों को आरक्षण नहीं, बल्कि आर्थिक संरक्षण की जरूरत को तो जायज ठहराया जा सकता है, लेकिन संविधान निर्माताओं ने यह कल्पना भी नहीं की थी किे गरीबी आरक्षण का आधार हो सकती है?

मायावती के असंवैधानिक बयान के बाद सबसे महत्वपूर्ण विचारणीय सवाल तो यह है कि सत्ता और प्रशासन में सवर्णों का प्रतिनिधित्व तो पहले से ही उनकी जनसंख्या से कई गुना अधिक है। ऐसे में गरीब सवर्णों को आरक्षण प्रदान करने की मांग के जरिये जाने-अनजाने मायावती आर्थिक आधार पर आरक्षण प्रदान करने के, संघ के संविधान विरोधी मनुवादी ऐजेण्डे को ही आगे बढा रही हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि अन्दरखाने संघ और मायावती का समझौता हो चुका हो? क्योंकि-

1. मायावती का यह अदूरदर्शी बयान ज्योतिराव फूले, डॉ. अम्बेड़कर, जयपाल सिंह मुण्डा और कांशीराम के सामाजिक न्याय के आन्दोलन को समाप्त करने की दिशा में आत्मघाती सिद्ध होगा।

2. मायावती का यह विचार सामाजिक न्याय की संवैधानिक अवधारणा की बेरहमी से हत्या करने के समान है।

3. मायावती के इस बयान के कारण यदि गरीब सवर्णों को आरक्षण की बात आगे बढती है तो आज नहीं तो कल आर्थिक आधार पर आरक्षण प्रदान करने की अवधारणा को बल मिलेगा। जिसका हाल भी वही होगा, जो बीपीएल योजना का हो रहा है।

4. मायावती की बात मानी ली तो आरक्षण प्राप्ति हेतु जाति—प्रमाण—पत्र नहीं, गरीबी के प्रमाण—पत्र बनेंगे, जो अन्य वस्तुओं की ही तरह बाजार में खरीदे और बेचे जाने लगेंगे।

5. मायावती के इस बयान के कारण अनार्यों के साथ हजारों सालों से जारी जन्तजातीय विभेद का समाधान हुए बिना आरक्षण आर्थिक ताकतों के कुचक्र में फंस जायेगा।

6. क्या मायावती नहीं जानती कि अभी तक मीडिया, उद्योग आदि सभी कुछ आर्थिक ताकतों के शिकंजे है, आगे आरक्षण भी आर्थिक ताकतों के हत्थे चढ जायेगा।

7. मायावती के इस बयान के कारण अन्तत: देश पर आर्यों का शिकंजा मजबूत हो जायेगा। आरक्षण व्यवस्था आर्थिक शक्तियों के हाथ का खिलोना बन कर रह जायेगी।

क्या देश की 90 फीसदी अनार्य आबादी ऐसी भयावह प्रशासनिक, सामाजिक और संवैधानिक स्थित का सामना करने को तैयार है, जिसमें सब कुछ आर्थिक शक्तियों के हवाले कर दिया जायेगा। यह बताने की जरूरत नहीं होनी चाहिये कि आर्थिक संसाधनों पर केवल आर्यों का कब्जा है। अनार्य में आर्यों के आर्थिक साम्राज्य के हिस्सेदार बनने का लालायित हैं। इस कारण अनार्यों का सम्पन्न, सुविधा प्राप्त और उच्च पदों पर आसीन तबका मायावती के बयान का समर्थन करे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये!

-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’, राष्ट्रीय प्रमुख, हक रक्षक दल

सोशल मीडिया पर मीडिया खबर

665,311FansLike
4,058FollowersFollow
3,000SubscribersSubscribe

नयी ख़बरें