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News24 से ABP News पहुंचे अखिलेश आनंद

अखिलेश आनंद,एंकर,एबीपी न्यूज़
अखिलेश आनंद
अखिलेश आनंद

हिंदी समाचार चैनल न्यूज़24 के प्रमुख एंकर अखिलेश आनंद अब एबीपी न्यूज़ में एंकरिंग करते नज़र आयेंगे. वे लंबे समय से न्यूज़24 के साथ जुड़े हुए थे. इसके पहले उन्होंने ज़ी न्यूज़ के साथ भी काम किया था. इस बाबत अखिलेश आनंद ने फेसबुक पर अपनी बात साझा करते हुए लिखा  –

करीब एक दशक गुजारने के बाद किसी संस्था को अलविदा कहना वाकई बहुत भावनात्मक पल होता है. साल भर ‪#‎ZeeNews‬ में रहा बाकी वक्त ‪#‎News24‬ में ही गुज़रा. अब ‪#‎ABPNews‬ जा रहा हूं. बेहद ही प्रतिष्ठित संस्थान ‪#‎ABP‬ में नए साथियों और सीनियर्स से मुलाकात होगी लेकिन पुराने साथी बहुत याद आएंगे. अब तक के सफर के लिए Anurradha Prasad Ma’am और Ajit Anjum सर को खास तौर पर धन्यवाद. ‪#‎Farewell‬ की कुछ तस्वीरें.

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प्रधानमंत्री मोदी ने ज़ी न्यूज़ के लाखों रुपये बचा लिए !

प्रधानमंत्री मोदी ज़ी नेटवर्क के मालिक सुभाष चंद्रा की किताब का विमोचन करते
प्रधानमंत्री मोदी ज़ी नेटवर्क के मालिक सुभाष चंद्रा की किताब का विमोचन करते

प्रधानमंत्री मोदी ज़ी नेटवर्क के मालिक सुभाष चंद्रा की किताब का विमोचन करते
प्रधानमंत्री मोदी ज़ी नेटवर्क के मालिक सुभाष चंद्रा की किताब का विमोचन करते
पीएम की इस दरियादिली का हम स्वागत करते हैं

जी नेटवर्क के मुख्तियार और एस्सेल ग्रुप के चेयरमैन सुभाष चंद्रा के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो कुछ भी किया, यही सेवा किसी पीआर एजेंसी से ली जाए तो इसके लिए लाखों रूपये खर्च करने पड़ेंगे. इसके बावजूद ये संभव नहीं है कि पीएमओ ट्विवटर हैंडल से हर तीसरे-चौथे मिनट में सुभाष चंद्रा की किताब से लेकर उनके कुल-खानदान की तारीफ में कसीदे पढ़ने का काम हो.

शायद ये भी संभव नहीं है कि इस बुक लांच कार्यक्रम में वो सारे चेहरे भी मौजूद हों जो धंधे की वजह से जी न्यूज को पानी पी-पीकर कोसते हैं.

सबसे पहले तो हम प्रधानमंत्री की इस दरियादिली का स्वागत करते हैं कि उन्होंने जी नेटवर्क के लाखों रूपये बचा दिए जिसे कि यह राष्ट्र निर्माण( जाहिर है सरकार के अच्छे दिनों, असहमत होनेवाले को देशद्रोही और दागदार संपादक को दूसरे की भरपूर डीएनए करने पर ) में लगाएंगे. इसके साथ ही देश की तमाम पीआर एजेंसी को इस बात का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि स्वयं प्रधानमंत्री ने पीआर का एक नया फॉर्मूला इजाद किया है.

ये संभव है कि जी न्यूज की तरह बाकी के नेटवर्क प्रधानमंत्री से ये काम लेने की क्षमता नहीं रखते लेकिन इस फार्मूले के तहत इतना तो जरूर कर सकते हैं कि राज्य स्तर पर जहां के जो भी मुख्यमंत्री हों, उनसे मीडिया मालिक बुक लांच कराए, खर्चा बचाए. इससे मुख्यमंत्री ट्विटर हैंडल से जितनी पब्लिसिटी मिलेगी, उतनी किसी अखबार या चैनल से भी नहीं. बाकी धंधे का विरोधी तक अपने आप तो चला आएगा ही. वाकई मीडिया का ये दिलचस्प दौर है जहां क्रेडिबिलिटी सत्ता के साथ होने से तय होती है, उससे असहमत होने पर राष्ट्र विरोधी कहलाने का खतरा बना रहता है.

(स्रोत-एफबी)

ख़बरों को सूँघने वालों का नाक जाम है, क्या भाई ?

रमेश यादव

nawaj modiरात-दिन रूस यात्रा का नगाड़ा बजाने वाले मीडिया चैनल्स लगता है, काबुल यात्रा के वक्त थक चुके थे।

जैसे ही उन्हें पता चला कि पीएम लाहौर जायेंगे। एक बार फिर सभी चैनल्स जल्दी-जल्दी इधर-उधर से खर-पतवार बटोरे। उसे जलाये। नगाड़े को सेके अौर फिर लगे ज़ोर-ज़ोर से बजाने।

भारतीय मीडिया, खासकर चैनल्स का चाल,चेहरा अौर चरित्र ‘नगाड़ा अौर उसे बजाने’ वालों की तरह ही लगता है।

एेसा नहीं है कि पीएम, काबुल पहुँचने के बाद,दिल्ली वापसी के ठीक पहले, लाहौर जाने का कार्यक्रम बनाये हों अौर सारी सुरक्षा एजेंसियाँ पलक झपकते जादू की छड़ी से सारा इंतज़ाम कर ली हों। एेसे कभी नहीं होता। इस बार भी नहीं हुआ होगा।

इसका अर्थ यह हुआ कि यह कार्यक्रम पहले से बनाया गया था। सुरक्षा कारणों से अंतिम समय में सार्वजनिक किया गया।

पहली नजर में यह सफल कुटनीतिक प्रबंधन लगता है। मगर आश्चर्य होता है कि भारत- पाकिस्तान के बीच, जिस तरह के आपसी रिश्ते हैं,उस लिहाज़ से यह फ़ैसला न एक पल में लिया गया लगता है अौर न ही एक दिन में।

मीडिया वालों को तो यहीं नहीं पता है कि पीएम, पाकिस्तान जा क्यों रहे हैं ? जैसे ही इस दौरे की जानकारी चैनल्स को हुई। चैनल्स अपना एक कैमरा काबुल से पीएम की विदाई अौर दूसरा कैमरा लाहौर के एयरपोर्ट पर लगा दिये अौर लगे भारत-पाकिस्तान के रिश्तों का ‘मठठा मथने’।

प्रथम दृष्ट्या यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान के पीएम, भारतीय पीएम को निमंत्रण भेजे होंगे। निमंत्रण स्वीकार किया गया होगा। सुरक्षा के दृष्टिकोण के हिसाब से इसकी डिज़ाइन की गयी होगी।

जितने चैनल्स, उतनी खबरें। एक सच, सौ तर्क। भारतीय मीडिया क़ुबूल करो कि अभी बच्चे हो !

नोट:
यदि यहीं निर्णय गैर- भाजपायी प्रधानमंत्री का होता तो आज भाजपाई,आरएसएस,बजरंगदल अौर शिव सेना वाले देश में शांति दिवस मना रहे होते।
# भारतीय मीडिया : नौटंकी अौर रहस्य में जंग #

भारतीय समाज का यथार्थ : ‘भूतों का इलाज’

bhuto ka ilaz

समीक्षक : अरिफा एविस

‘भूतों का इलाज’ देवेन्द्र कुमार मिश्रा द्वारा लिखा गया एक रोचक एवं पठनीय कहानी संग्रह है. इस कहानी संग्रह में समाज के छुए-अनछुए पहलुओं पर बड़ी ही गहनता और मार्मिक रूप से लिखा गया है. संवाद शैली ऐसी है कि कहानी को एक बार पढना शुरू किया जाए तो पूरी पढ़े बिना नहीं रहा जाता. समाज के विभिन्न पहलुओं पर लिखी गयी कहानियां दिल को छू जाती हैं और यह सोचने को मजबूर कर देती हैं कि इतने समृद्ध कहे जाने वाले समाज में कुछ चीजें आज भी ज्यों की त्यों हैं.

मुनाफे और शोषण पर आधारित पूंजीवादी समाज में मजदूर और मालिक के बीच कभी दोस्ताना व्यवहार नहीं हो सकता. समाज में इन दो वर्गों के बीच हमेशा लड़ाई रही है और लड़ाई रहना लाज़मी है. व्यवस्था के पोषक “धर्म के लिए हजारों व्यर्थ उड़ा देंगे. खून-पसीने की कमाई खाने वालों का हक मरेंगे. भिखारियों को मुफ्त पैसा बाँटना धर्म है और मेहनत करने वाले को वाजिब दाम देना बेवकूफी समझते हैं. हमसे अच्छे तो ये भिखारी हैं. इनके लिए पेट्रोल-डीजल की कीमत है. खून-पसीने की कमाई की कोई कीमत नहीं.”

आज के वैज्ञानिक युग में लोग अवैज्ञानिक तत्वों पर ज्यादा यकीन रखते हैं. किसी भी बीमारी और समस्या का समाधान वे अंधविश्वास के रूप में खोजते है. पांडो-पुरोहित, मुल्ला-मौलवियों द्वारा तन्त्र-मन्त्र, भूत प्रेत जैसी चीजों का इलाज करवाते हैं. बजाय इसके वे समस्या के भौतिक कारणों को जाने, उल्टा वे इन आडम्बरों, अंधविश्वासों के चंगुल में जा फंसते हैं-

“पूर्णिमा, अमावस्या को मेरी बीवी अचानक जोर जोर से साँसे भरने लगती है. …वह थर-थर कांपने लगती है. वह जोर जोर से चीखने लगती है बचाओ-बचाओ. वो मुझे अपने साथ ले जायेगा. …जब तक माइके रहती है ठीक ही रहती है. ससुराल आते ही फिर वही सब शुरू हो जाता है.

“किसी मनोचिकित्सक को दिखाया.”
“भूत प्रेत का साया है और क्या? मैं डॉक्टर हूँ तो क्या मानता नहीं हूँ इन सब बातों को.”

देवेन्द्र कुमार मिश्रा ने महिलाओं या लड़कियों के प्रति समाज के रवैये को बहुत ही मार्मिक ढंग से पेश किया है जो यह दर्शाता है कि आज भी औरत को एक वस्तु के अलावा और कुछ नही समझा जाता है. लड़की की खूबसूरती! उसे तो अभिशाप समझा जाता है. इस खूबसूरती के कारण परिवार व समाज में उसका जीना मुश्किल कर दिया जाता है. समाज के पिछड़ी मानसिकता के लोग हर खूबसूरत चीज को पा लेने की चाह में इस हद तक गिरते हैं कि सामने वाले का जीना दूभर हो जाये. नतीजन घर वाले भी लड़की को तरह-तरह की हिदायतें देने लगते हैं कि घर जल्दी आये, ज्यादा से ज्यादा घर पर ही रहे. कोई बाहर का इंसान बैठने आये तो घर के अंदर चली जाये और ना जाने क्या-क्या…. और तो और कभी उसे अपनी पढाई घर रहकर करनी पड़ती है. इस घटिया सोच का खामियाजा एक बेकसूर, मासूम लडकी को भुगतना पड़ता है. “ज्यादा इतराओ मत. हम में से किसी एक को चुन लो. नहीं तो बदनाम कर देंगे. …कुछ ऐसा कर गुजरेंगे कि किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगी. …अगर हमारे खिलाफ आवाज उठाई तो एसिड से चेहरा बिगाड़ देंगे.”

“एक रोज कॉलेज जाते समय उस गुंडे ने उस पर एसिड भरा बल्ब फेंक दिया.”
देवेन्द्र ने ‘फांसी’ कहानी का गठन बहुत ही बेजोड़ ढंग से प्रस्तुत किया है. भारतीय न्यायव्यवस्था राजनीति पर आधारित जान पडती है. गरीब को न्याय नहीं, मीडिया पहले ही व्यक्ति को मुजरिम करार देती है. “देखो भाई! राजनीति, मीडिया के दबाव के चलते तो न जाने कितने केस बनाए होंगे. कितने बेगुनाहों को थर्ड डिग्री दी होगी. हां, कुछ मुठभेड़ जरूर हुई जो बिलकुल फर्जी थी, लेकिन हमें तो ऊपर वालों के आदेश का पालन करना था.”

प्रस्तुत कहानी संग्रह में देवेन्द्र कुमार मिश्रा की ‘सेवा संगठन’, ‘जीत या हार’, ‘प्रश्न’, ‘गुमनाम शिकायतें’, ‘खुदाई’, ‘आभिजात्य’ एवं ‘ईमानदार लाश’ भारतीय समाज के यथार्थवादी जीवन का सटीक वर्णन है.

भूतों का इलाज : देवेन्द्र कुमार मिश्रा | बोधि प्रकाशन | कीमत :100

माइक्रोसॉफ्ट में भारतीय भाषाओं का काम देखेंगे पत्रकार बालेन्दु दाधीच

बालेन्दु शर्मा दाधीच

बालेन्दु शर्मा दाधीच
बालेन्दु शर्मा दाधीच
बालेन्दु शर्मा दाधीच, जिन्हें हम एक वरिष्ठ पत्रकार के साथ-साथ अऩुभवी तकनीकविद के रूप में भी जानते हैं, अब माइक्रोसॉफ़्ट के उत्पादों में भारतीय भाषाओं के विकास और अनुकूलन का दायित्व संभालेंगे। उन्होंने माइक्रोसॉफ़्ट के गुड़गाँव दफ़्तर में वरिष्ठ उत्पाद विपणन प्रबंधक (लोकलाइजेशन) के रूप में नए पद का चार्ज ले लिया है।

श्री दाधीच ने पिछले हफ़्ते लोकप्रिय हिंदी पोर्टल प्रभासाक्षी.कॉम के समूह संपादक के रूप में इस्तीफा दिया था। वे मोरारका समूह में वरिष्ठ महाप्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) का काम भी देख रहे थे। इससे पहले वे जनसत्ता, हिंदुस्तान टाइम्स समूह (होम टीवी), सहारा समय, राजस्थान पत्रिका आदि संस्थानों में विभिन्न संपादकीय पदों पर काम कर चुके हैं। अपने नए दायित्व में भी वे हिंदी जगत और मीडिया के करीबी संपर्क में बने रहेंगे।

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