Home Blog Page 302

बिहार में शिक्षा में सुधार के लिए एक आंदोलन की जरूरत – अभयानंद

बिहार में शिक्षा में सुधार के लिए एक आंदोलन की जरूरत - अभयानंद

प्रेस विज्ञप्ति

मन करता है गोवा के राज्यपाल का पद छोड़ मुजफ्फरपुर की सेवा में लग जाऊं…मृदुला सिन्हा

बिहार में शिक्षा में सुधार के लिए एक आंदोलन की जरूरत - अभयानंद
बिहार में शिक्षा में सुधार के लिए एक आंदोलन की जरूरत – अभयानंद
आज बिहार को लेकर चिंता और चिंतन की आवश्यकता है. हालाँकि बिहार के युवाओं में वहां की शिक्षा को लेकर जो चिंता देख रही हूँ, वह उत्साह बढ़ाने वाला है. हम सब को बिहार के लिए कुछ करना है. बिहार के हॉवर्ड माने जाने वाले प्रतिष्ठित लंगट सिंह महाविद्यालय के संस्थापक बाबू लंगट सिह के स्मृति में बिहार की वर्तमान शैक्षणिक व्यवस्था की संभावनाएं और चुनौतियां विषय पर रविवार 1 मई को दिल्ली के कंसटीटयूशनल क्लब में आयोजित कार्यक्रम में यह बात गोवा की राज्यपाल और मुजफ्फरपुर की बेटी मृदुला सिन्हा ने कहा।

मृदुला सिन्हा ने कहा कार्यक्रम का निमंत्रण मिलने पर मैं विशेषतौर पर गोवा से चलकर आयी हूँ। 1977से दिल्ली में मेरा रहना रहा है लेकिन हर तीन माह बाद मुजफ्फरपुर जाती हूँ। आज भी राज्यपाल होने के बावजूद एक बुलाहट पर घर मुहे बैल की तरह गोवा से मुजफ्फरपुर चली जाती हूँ। जब बिहार बहुत बदनाम था तब भी मैं कहती थी कि ये मेरा बिहार है। ये अच्छी बात है कि लोग अब समाधान की बात कर रहे हैं लेकिन बदलाव व्यक्तिगत प्रयासों से ही संभव है.समाज के निर्माण में सरकार की भूमिका दाल में नमक की तरह है। हर काम सरकार नहीं कर सकती। सब कुछ सरकार पर नहीं रखा जा सकता। कई बार मन करता है कि गोवा के राज्यपाल का पद छोड़ बिहार के युवाओं के साथ शिक्षा के आन्दोलन में लग जाऊं.

बिहार के पूर्व डीजीपी और सुपर 30 से प्रसिद्ध अभयानंद ने कहा कि बिहार में शिक्षा में सुधार के लिए एक आंदोलन की जरूरत है। हम सब को उसके लिए आगे आना होगा। शिक्षा में लंगट बाबू के योगदान को याद करते हुए सभी वक्ताओं को राज्य की शिक्षा में सुधार के लिए प्रण लेना होगा. इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर संगीत रागी ने कहा कि आज दिल्ली या दूसरी जगहों पर शिक्षा की बदौलत जिन लोगों ने सफलता पाई है उनका प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से लंगट सिंह कॉलेज से सम्बन्ध रहा है लेकिन आज लंगट सिंह कॉलेज की स्थिति जर्जर है और खोयी प्रतिष्ठा को प्राप्त करने के लिए एक बड़े आंदोलन की जरुरत है.

langat singh 2016कार्यक्रम की अध्यक्षता लंगट बाबू स्मृति समारोह के अध्यक्ष ब्रजेश कुमार व मंच का संचालन अमरेश शुक्ला और धन्यवाद ज्ञापन पुष्कर पुष्प ने किया। कार्यक्रम में सभी अतिथियो का स्वागत लंगट बाबू के स्मृति चिन्ह से किया गया ! इस अवसर पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री रामकृपाल सिन्हा भी उपस्थित थे. गौरतलब है कि रामकृपाल सिन्हा और मृदला सिन्हा दोनो लंगट सिंह कालेज से छात्र रह चुके हैं. इसके अलावा इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर चंद्रकांत प्रसाद सिंह, राज्य सभा में उप निदेशक सौरव शेखर, लोक सभा चैनल के कार्यकारी निदेशक सुमित सिंह, वरिष्ठ पत्रकार मनीष ठाकुर,फजल इमाम,समाजसेवक मौलाना मुस्तफा कासमी, और प्रोफ़ेसर तारण राय भी लंगट बाबू स्मृति समारोह में मौजूद थे. इस मौके पर उन्हें भारत रत्न देने की मांग भी की गई. कार्यक्रम में लंगट बाबू के परिवार से उनके प्रपोत्र कुणाल सिन्हा और अन्य परिजन भी मौजूद थे। कार्यक्रम में प्रियेश राय, अंकेश रंजन, अजित कुमार, अनिश कंठ ,अमित किशोर, अलोक राय, कन्हैया चन्द्र मधुकर, संदीप सिंह, संदीप कुमार, गौरव कुमार, आतिश कुमार सहित बड़ी संख्या में दिल्ली में रहने वाले बिहारनिवासी शामिल हुए.

ग्रामोदय से भारत उदयः कितना संकल्प, कितनी राजनीति

संजय द्विवेदी

 

सजाय द्विवेदी
सजाय द्विवेदी

क्या नरेंद्र मोदी ने भारत के विकास महामार्ग को पहचान लिया है या वे उन्हीं राजनीतिक नारों में उलझ रहे हैं, जिनमें भारत की राजनीति अरसे से उलझी हुयी है। गांव, गरीब, किसान इस देश के राजनीतिक विमर्श का मुख्य एजेंडा रहे हैं। इन समूहों को राहत देने के प्रयासों से सात दशकों का राजनीतिक इतिहास भरा पड़ा है। कर्ज माफी से लेकर अनेक उपाय किए गए, किंतु हालात यह हैं कि किसानों की आत्महत्याएं एक कड़वे सच की तरह सामने हैं। नीतियों की असफलता और बीमारी की पहचान करने में हमारी विफलता, यहां साफ दिखती है। ऐसे में नरेंद्र मोदी सरकार का नया अभियान ‘ग्रामोदय से भारत उदय’ किन अर्थों में अलग है और उसकी संभावनाएं कितनी उजली हैं, इस पर विचार होना ही चाहिए।

एक तो शब्द चयन में सरकार का साहस साफ झलकता है। आपको याद होगा वह ‘भारत उदय’ शब्द ही था, जिसको भारतीय समाज ने स्वीकार नहीं किया और अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार केंद्र से विदा हो गयी। इस अर्थ में मोदी भारत उदय का पुर्नपाठ कर रहे हैं और उसे ग्रामोदय की नई पैकेजिंग के साथ पेश कर रहे हैं। यह साहसिक ही है और अपने अतीत से निरंतरता बनाने की कोशिश भी है। इस नवीन अभियान की पैकेजिंग. टाइमिंग और प्रस्तुति सब कुछ प्रथम दृष्टया बहुत मनोहारी है। यह साधारण नहीं है कि 14 अप्रैल को बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती से इसकी शुरूआत होती है और इसे एक सप्ताह चलना है। इसके लिए प्रधानमंत्री उनकी जन्मभूमि महू जाते हैं, यह संयोग ही है कि मप्र में भाजपा की सरकार है और यहां का आयोजन एक बड़े आयोजन में बदल जाता है। आयोजन का संदेश इतना गहरा की मायावती से लेकर मोदी के सभी राजनीतिक विरोधियों का ध्यान इस आयोजन ने खींचा। बाबा साहेब के राजनीतिक उत्तराधिकार की एक जंग भी यहां दिखी, जहां कांग्रेस पर काफी हमले भी हुए। बाबा साहेब की स्मृति से जुड़े पांच स्थलों को पंच तीर्थ की संज्ञा देकर मोदी ने कांग्रेस को बैकफुट पर ला दिया। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का इस आयोजन में पूरा भाषण भी कांग्रेस द्वारा बाबा साहेब से जुड़े स्थानों की उपेक्षा पर केंद्रित था। इस आयोजन का सिर्फ प्रतीकात्मक महत्व ही नहीं है बल्कि इसके गहरे राजनीतिक अर्थ भी हैं।
इस अभियान के तहत सरकार ने गांवों के लिए पिटारा खोलने जैसे छवि प्रक्षेपित की है। केंद्रीय बजट में भी लगभग यही ध्वनि देने की कोशिश हो चुकी है। 14 अप्रैल को महू में प्रधानमंत्री की मौजूदगी में सामाजिक समरसता कार्यक्रम हो या पांचवीं अनूसूची के क्षेत्रों की आदिवासी महिला ग्राम पंचायत सरपंचों का राष्ट्रीय सम्मेलन(19 अप्रैल,2016 –विजयवाड़ा) हो या पंचायत प्रतिनिधियों का सम्मेलन (24 अप्रैल,2016 जमशेदपुर) हो- ये आयोजन और इनकी रचना साफ बताती है कि मामला सिर्फ ग्रामोदय का नहीं उससे बड़ा है। इसमें समरसता, सामाजिक न्याय, दलित और आदिवासी समुदायों की भागीदारी महत्व की है। सरकार की एजेंडा साफ दिखता है कि उसने ग्रामीण भारत और उपेक्षित भारत को अपने लक्ष्य में लिया है। इसीलिए देश की 2.5 लाख ग्राम पंचायतों को 14 वें वित्त आयोग की अनुशंसा के अनुसार 2,00,292 करोड़ रूपए, 5 वर्षों के लिए अनुदान के रूप दिए गए हैं। ग्राम पंचायतें इस राशि के साथ-साथ अन्य राशि जैसे मनरेगा का अनुदान मिलाकर ग्राम पंचायत विकास योजना बनाएंगीं जिसमें गांव के सभी व्यक्ति जैसे महिलाएं , वृद्ध और दिव्यांग भाग लेगें। सरकार के तीन मंत्रालयों पंचायती राज मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय और पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के प्रयासों से ये काम जमीन पर उतरने हैं। इसी क्रम में पंचायत स्तर के कार्यक्रम भी तय हो चुके हैं जिनमें सामाजिक समरसता कार्यक्रम 14 से 16 अप्रैल, ग्राम किसान सभा 17 से 20 अप्रैल तथा प्रधानमंत्री का सभी ग्राम सभाओं को संबोधन 24 अप्रैल को होना है। यह रचना बताती है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने इस अभियान को एक आंदोलन की तरह लिया है।
इस अभियान के प्रशासनिक संकल्प और इसके ईमानदार क्रियान्वयन पर ही इसकी सफलता टिकी है। वरना तमाम अभियानों की तरह इसका भी कुछ परिणाम नहीं आएगा। प्रधानमंत्री मोदी इस पूरे आयोजन में स्वयं जिस तरह रूचि का प्रदर्शन कर रहे हैं और सरकारी तंत्र को इसके प्रचार-प्रसार में झोंक रखा है उससे इस सरकार की प्राथमिकताओं का पता चलता है। नरेंद्र मोदी बहुत साफ जानते हैं एक खास परिस्थितियों में उनकी पार्टी को बहुमत मिला है और उनसे अपेक्षाएं बहुत ज्यादा हैं। इस समर्थन को स्थायी बनाने का तंत्र वे अभी भी विकसित नहीं कर सके हैं। राज्यों की स्थानीय राजनीतिक जरूरतों का तोड़ अभी भी उनकी पार्टी के पास नहीं है। साथ ही भाजपा के सीमित भौगोलिक और सामाजिक आधार को बढ़ाने की चुनौती सामने है। केंद्रीय सत्ता में होने के बाद भी आज भी एक बड़े भारत में भाजपा अनुपस्थित है। इसलिए सामाजिक न्याय और ग्रामीण-कृषि विकास के दोनों मंत्रों को साथ-साथ साधा जा रहा है। आज भी भारतीय राजनीतिक में कांग्रेस की सिकुड़न के बावजूद क्षेत्रीय दलों की चुनौती प्रखर है। भाजपा दक्षिण और पूर्वोत्तर में अपनी प्रभावी उपस्थिति के लिए बेचैन है तो लोकसभा चुनावों में बड़ी सफलताओं के बाद भी उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भाजपा अपने बेहतर प्रदर्शन के प्रति आश्वस्त नहीं है। जाहिर तौर पर लोकसभा चुनावों में मिले परिणामों ने जहां भाजपा के मनोबल को बहुत बढ़ा दिया था, वहीं दिल्ली और बिहार के परिणामों ने बता दिया कि भाजपा को जमीनी राजनीति में अभी बहुत कुछ करना शेष है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह इस अभियान में जुटे हैं। असम, बंगाल जैसे कठिन परीक्षाएं भाजपा के सामने हैं। यह बातें बताती हैं कि भाजपा ने आरंभ में जिस चमक-दमक के साथ अपनी केंद्र सरकार की शुरूआत की आज उसके तेवर बदल गए हैं। मोदी खुद कहने लगे हैं कि कुछ शहरों की चमक-दमक और विकास से कुछ नहीं होगा। हमें अपने गांवों का विकास करना होगा। भूमि अधिग्रहण बिल से अपनी छवि को लगे झटके से उबरने में भाजपा को समय लगा किंतु नए केंद्रीय बजट में ग्रामीण क्षेत्रों को एक नया संदेश देने में वह सफल रही है। इस नए रूप में मोदी सरकार अब सामाजिक समरसता, ग्रामीण-कृषि विकास, हर गांव तक बिजली, हर व्यक्ति को 2022 तक मकान जैसे नारों के साथ मैदान में उतरी है।

 

इससे भाजपा अपनी शहरी विकास और कारपोरेट समर्थक छवि को बदलना चाहती है। इस बहाने वह अपने सामाजिक और भौगोलिक आधार को विस्तृत भी करना चाहती है। नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को कारपोरेट समर्थक बताने और रेखांकित करने के प्रयास भी जारी हैं किंतु मोदी की भाषण कला के सामने उनके विरोधी फीके पड़ जाते हैं। कृषि और ग्रामीण विकास के सवालों पर वे जिस तरह संवाद कर रहे हैं, वह अप्रतिम है। इससे जमीनी जीवन के उनके अनुभव भी झांकते हैं और विकास के सपने भी। नरेंद्र मोदी की सरकार ने यह अभियान जिन भी कारणों से प्रारंभ किया हो, इसके शुभ फल देश को मिले तो किसानों की आत्महत्या के कलंक से इस राष्ट्र को मुक्ति मिलेगी। जिस देश में अन्नदाता आत्महत्या करने को विवश हो, उस क्षण में हमारी सरकार अगर खेती और ग्रामीण विकास को अपना मुख्य एजेंडा बनाकर कुछ सपने पाल रही है तो हमें उसके सपनों को सच करने के लिए योगदान देना ही चाहिए। सरकार और उसके तंत्र को भी चाहिए कि वह अपेक्षित संवेदनशीलता के साथ इन योजनाओं का क्रियान्वयन करे तथा इसे भ्रष्टाचार की भेंट न चढ़ने दे। ताकि हम अपने ग्रामीण भारत से भी अच्छी खबरों का इंतजार कर सकें।

(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष हैं)

लोकसभा टीवी के संपादक श्याम किशोर सहाय के बारे में जानिए

लोकसभा टीवी के संपादक श्याम किशोर सहाय
लोकसभा टीवी के संपादक श्याम किशोर सहाय

लोकसभा टीवी के संपादक श्याम किशोर सहाय
लोकसभा टीवी के संपादक श्याम किशोर सहाय
लोकसभा टीवी के एडिटर पद के लिए चयनित श्याम किशोर सहाय भले ही टीवी पत्रकारिता का चर्चित चेहरा न रहे हों लेकिन पत्रकारिता में लगभग 18 वर्ष का अनुभव रखने वाले संजीदा, सौम्य और सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़े सृजनशील पत्रकार रहे हैं. स्वभाव से वो लो प्रोफाइल रहना पसंद करते हैं.

उन्होंने 1993-96 में दिल्ली विवि से इतिहास में स्नातक की डिग्री प्राप्त की. पढाई के दौरान जॉकिर हुसैन कॉलेज की हिन्दी पत्रिका के संपादक रहे और साहित्य अकादमी, दिल्ली ने पत्रिका को सम्मानित भी किया. अपने दौर में दिल्ली विवि के बेस्ट डिबेटर रहे. उनके नाम डिबेट, डिक्लामेशन औऱ एक्सटेंपोर प्रतियोगिताओं के तीन दर्जन से अधिक पुरस्कार हैं. दिल्ली विवि से ही उन्होंने अनुवाद में पीजी डिप्लोमा किया और विवि की एनवॉयरनमेंटल स्टडीज के भी सदस्य रहे. उन्होंने 1996-98 में दिल्ली विवि के दक्षिणी परिसर से पत्रकारिता में पीजी डिल्पोमा प्राप्त किया. मृणाल पांडे और आलोक मेहता के समय हिन्दुस्तान अखबार दिल्ली से इटर्नशिप की औऱ व्यवहारिक पत्रिकारिता से पहला परिचय प्राप्त किया.

दिल्ली के बाद उनका कैरियर कई शहरों से होकर गुजरा. पटना में दैनिक जागरण से अखबार की शुरूआत के समय जुड़े. संपादक शैलेन्द्र दीक्षित, वरिष्ठ पत्रकार सुकांत नागार्जुन, सुभाष पांडे, रजनीश उपाध्याय आदि के साथ काम करने का अवसर मिला. पटना से उन्होंने लखनऊ का रुख किया और हिन्दुस्तान अखबार की रिलांचिंग के समय जुड़े. लखनऊ में संपादक सुनील दुबे, वरिष्ठ पत्रकार उदय कुमार, हेमंत शर्मा, नवीन जोशी, नागेन्द्र कुमार के साथ काम करने का अवसर मिला. ईटीवी के हिन्दी चैनलों की लांचिंग के समय वो हैदराबाद चले गए. ईटीवी बिहार-झारखंड चैनल के आउटपुट की जिम्मेदारी निभाने के बाद ईटीवी नेटवर्क के करंट अफेयर्स डेस्क (सुर्खियों से आगे) के कॉर्डिनेटर रहे. ईटीवी के दौरान वरिष्ठ पत्रकार गुंजन सिन्हा, एन के सिंह, संजय सिंह, राजेश रैना, हिमांशु शेखऱ, अभिजित दास जैसे लोगों के साथ काम करने का मौका मिला.

ईटीवी के बाद उन्होंने सहारा टीवी का रूख किया. सहारा समय उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड, सहारा समय बिहार-झारखंड, औऱ सहारा समय चैनल में इनपुट और आउटपुट में अलग-अलग जिम्मेदारियों पर रहे. एसआईटीवी के सेंट्रलाइज्ड असाइनमेंट डेस्क के कार्डिनेटर के रूप में काम करने का अवसर भी मिला. इस दौरान बीबीसी से आए संजीव श्रीवास्तव, स्पोर्टस जर्नलिज्म के प्रतिष्ठित नाम संजय बनर्जी, संजय बरागटा, प्रबुद्धराज, राव विरेंद्र सिंह, उदयन शंकर, मनोज मलयानिल के साथ काम करने का मौका मिला. बिहार में आयी भयानक बाढ की त्रासदी के समय उन्होंने लोगों की सहायता के लिए कई कार्यक्रम बनाए जिसकी बड़ी सराहना हुई. छठ पर्व को राष्ट्रीय टीवी पर पहली बार लाने का श्रेय़ भी उन्हें जाता है.

सामाजिक सांस्कृतिक रूप से सक्रिय श्याम किशोर कई गतिविधियों से जुड़े हैं. आर्ट ऑफ लिविंग और गायत्री शक्ति पीठ जैसी संस्थाओं से उनका गहरा जुड़ाव हैं. राष्ट्रकवि दिनकर की जन्मस्थली बिहार के सिमरिया से शुरू हुए द्वादश कुंभ पुनर्जागरण अभियान में स्वामी चिदात्मन जी महाराज के साथ सक्रिय हैं. वेदों के ऊपर शोध करने वाली संस्था वेद विज्ञान अनुसंधान संस्थान, सिमरिया के संरक्षक हैं. पोएट्री फिल्म फेस्टिवल से चर्चा में आयी साहित्यिक संस्था साधो से जुड़े हैं. साहित्यिक क्षेत्र में उत्कृष्ट काम करने वाली संस्था राष्ट्रकवि दिनकर स्मृति न्यास के सदस्य है. विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्याल से जुड़े हैं और योग-ध्यान के प्रशिक्षक भी हैं. संस्कृत पर उनकी अच्छी पकड़ है और संस्कृत के लिए काम करने वाली संस्था संस्कृत भारती से भी जुड़े हैं. ज्योतिष विज्ञान में उनकी खास रूचि है और इंडियन काऊंसिल ऑफ एस्ट्रॉलाजिकल साइंसेज, नोएडा के आजीवन सदस्य भी है. राजस्थान में मुस्लिम युवाओं के रोजगार, उनमें उद्यमिता विकास, व्यक्तित्व विकास और उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के लिए काम करने वाली संस्था सूफी मुस्लिम यूथ असोसिएशन (एसयूएमवाईए) में सलाहकार की भूमिका में है. संस्था के अध्यक्ष श्रीमान् अनीक़ अहमद उस्मानी का मीडिया से संबंधित विषयों में सतत सहयोग करते हैं. दुनिया के अलग-अलग देशों में प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान पर हो रहे कार्य पर शोध-अध्ययन में लगे हैं.

वर्तमान में आईबीएन7 न्यूज चैनल में सह प्रबंध संपादक सुमित अवस्थी, वरिष्ठ टीवी पत्रकार मृत्युंजय के झा, अमिताभ सिन्हा, प्रतीक त्रिवेदी, आकाश सोनी, औऱ हरीष बर्णवाल आदि के साथ अस्टिटेंट एडिटर के रूप में कार्यरत हैं.

सहारा में अपने ही साथियों का स्टिंग करने वाले पत्रकार खालिद रज़ा खान की ईटीवी में एंट्री

अज्ञात कुमार

सहारा न्यूज़ नेटवर्क में अपने वरिष्ठ तथा अन्य सहयोगियों का स्टिंग करके उन्हें ब्लैकमेल करने वाले पत्रकार खालिद रज़ा खान के बारे में सूचना है की अब उसने इ -टी वी (उर्दू ) का दामन थाम लिया है।

खालिद रज़ा खान सहारा न्यूज़ नेटवर्क के उर्दू चैनल “आलमी समय” में आउटपुट -हेड के तौर पर काम कर रहा था । हालांकि बतौर पत्रकार तो उनकी सेवा कुछ ख़ास नहीं रही, लेकिन सहारा में अपने वरिष्ठ अधिकारी एवं कुछ अन्य सहयोगियों का स्टिंग करके उसने खासी चर्चा बटोर ली ।

बताया जाता है की पिछले दिनों खालिद रज़ा खान ने एक एंकर का स्टिंग किया था, जिसके बाद उसे कई सहयोगियों का ग़ुस्सा झेलना पड़ा था, की अचानक उसने फिर से सहारा के ही एक वरिष्ठ अधिकारी का स्टिंग कर लिया, जिसके बाद खालिद को लेकर सहारा कर्मियों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया, और सभी उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग करने लगे, जिसके बाद उसे “आलमी समय” के आउट पुट -हेड की ज़िम्मेदारी से हटा कर एक वरिष्ठ आदिल ज़ैदी को आउटपुट हेड की ज़िम्मेदारी दे दी गयी।

ये मामला सहाराश्री तक भी ले जाया गया जिसपर उनकी सख्त प्रतिकिर्या देखने को मिली और उन्होंने तुरंत खालिद को संस्था से अलग करने का निर्देश जारी किया, जिसके बाद से ही अनुमान लगाया जा रहा था की सहारा में खालिद के दिन गिनती के रह गए हैं। सहाराश्री एवं सभी वरिष्ठ अधिकारीयों का मांनना था की ऐसा कर्मचारी जो खुद अपने वरिष्ठ एवं अपने साथ काम करने वालों का स्टिंग करके उन्हें ब्लैकमेल करता है, उससे तुरंत इस्तीफा लेना चाहिए।

खालिद ने इसके बाद अपनी नौकरी के लिए दिल्ली में कई मीडिया हाउस के चक्कर लगाए, परन्तु दिल्ली में हर जगह उसके लिए जब दरवाज़े बंद दिखे तो आखिरकार, उसने हैदराबाद स्थित इ टी वी-उर्दू में अपने एक मित्र के जरिया अपने लिए नया रास्ता बनाने के लिए उसके हाथ पैर जोड़े, और फिर खालिद को दिल्ली छोड़ना पड़ा और उसने किसी तरह पिछले सप्ताह इ टी वी-उर्दू के हेड ऑफिस हैदराबाद में ज्वाइन कर लिया। देखने वाली बात यह होगी की अपने सहयोगियों का स्टिंग करके उन्हें ब्लैकमेल करने वाले माहिर पत्रकार की पत्रकारिता अब नयी जगह पर कौन सा गुल खिलाएगी।
(सहारा में कार्यरत, एक पत्रकार)

समाचार प्लस के एडिटर इन चीफ उमेश कुमार को दादा साहब फाल्के फिल्म फाउंडेशन अवार्ड

उमेश कुमार,एडिटर-इन-चीफ,समाचार प्लस

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का स्टिंग कर सुर्ख़ियों में आए समाचार प्लस के एडिटर-इन-चीफ और सीईओ उमेश कुमार को दादा साहब फाल्के फिल्म फाउंडेशन अवार्ड मिला है. उन्हें ये अवार्ड पत्रकारिता के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए दिया गया है. ये अवार्ड मुंबई में कल हुए एक समारोह में दिया गया.

उमेश कुमार के अलावा उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और अभिनेता मनोज वाजपेयी सहित कई और जानी-मानी हस्तियों को भी यह पुरस्कार मिला.
umesh kumar

सोशल मीडिया पर मीडिया खबर

665,311FansLike
4,058FollowersFollow
3,000SubscribersSubscribe

नयी ख़बरें