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आमसूत्र में कैटरीना कैफ है किसान नहीं -विनीत कुमार,मीडिया विश्लेषक

विनीत कुमार,मीडिया विश्लेषक
विनीत कुमार,मीडिया विश्लेषक

#LitchiUtsav2016 टीवी स्क्रीन पर फल और फसल गायब नहीं हुए है।।हर दूसरे एफएमसीजी प्रोडक्ट के विज्ञापन में फल-फसल का जिक्र सुन सकते हैं।।असल सवाल ये है कि इसमें किसान कहाँ है।। (लीची उत्सव में टीवी स्क्रीन पर किसान की मौजूदगी पर अपनी बात रखते मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार)

मोदी सरकारः कितना इंतजार ?

संजय द्विवेदी

modi two yearsसत्ता के शिखर पर दो साल पूरे करने के बाद अब शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके साथियों को भी अहसास हो गया होगा कि दिल्ली का सिंहासन किसी भी शासक के लिए अवसर से ज्यादा चुनौती ही होता है।

देश में यथास्थितिवादी ताकतें इतनी सबल हैं, कि वे किसी भी परिवर्तन को न तो समर्थन दे सकती हैं न ही शांत होकर बैठ सकती हैं। इनकी पूरी ताकत किसी भी बदलाव को टालने और विफल बना देने में लगती है। इसमें सबसे अग्रणी है, हमारी नौकरशाही। भारतीय सेवा के अफसरों को राज करने का अभ्यास इतना लंबा है कि वे अस्थायी सरकारों ( राजनीतिक तंत्र) को विफल बनाने की अनेक जुगतें जानते हैं। बावजूद इसके इन दो सालों में नरेंद्र मोदी की सरकार अगर बदलाव और परिवर्तन के कुछ संकेत दे पा रही है, तो यह मानिए कि ये बहुत बड़ी बात है। खासकर मोदी सरकार के कुछ मंत्रियों नितिन गडकरी, श्रीमती सुषमा स्वराज, मनोहर पारिकर, सुरेश प्रभु, राजनाथ सिंह, पीयूष गोयल की गति तो सराही जा रही है। दिल्ली की सत्ता पर परिर्वतन के नारे के साथ आई मोदी सरकार की जिम्मेदारियां जाहिर तौर पर बहुत बड़ी हैं।

समूचे राजनीतिक और प्रशासनिक तंत्र में परिर्वतन करने का वादा करके यह सरकार आयी है और देश की जनता ने पूर्ण बहुमत देकर इसे शक्ति भी दी है। लेकिन देखा जा रहा है कि परिर्वतनों की गति उतनी तेज नहीं है और लोगों में सरकार से निराशा आ रही है। खासकर आर्थिक क्षेत्र में सरकार उन्हीं समाजवादी और जनता पर कृपा करने वाली नीतियों की शिकार है जिसके चलते देश का कबाड़ा हुआ है। गरीबी को संरक्षित करने और गरीबों को गरीब बनाए रखनी वाली नीतियों के चलते देश का पिछले साठ सालों में यह हाल हुआ है। जिस तेजी से आर्थिक बदलाव के संकल्प प्रकट होने थे, वह होने से रहे। ईपीएफ और पीएफ पर नजरें गड़ाए वित्त मंत्रालय ने जरूर नौकरीपेशा लोगों को नाराज कर दिया है। फैसले लेना और रोलबैक करना सरकार के अस्थिर चित्त को ही दिखाता है। लोग बदलावों के इंतजार में हैं लेकिन बदलावों की गति से संतुष्ठ नहीं हैं। कोई भी सरकार अपने नायक के सपनों को ही साकार करती हुयी दिखनी चाहिए। लगता है कि मोदी सरकार दिल्ली आकर कई तरह के दबावों के चलते रास्ते से भटकती हुयी दिख रही है। संसद के अंदर- बाहर विकास विरोधी दबाव समूहों के नारों और प्रायोजित विमर्शों ने भी उनकी राह रोक रखी है। नरेंद्र मोदी जिस तेजी और त्वरा के साथ अपने सपनों को गुजरात में अंजाम दे पाए, दिल्ली में उन्हें उन्हीं चीजों के लिए सहमति बना पाना कठिन हो रहा है।

दूसरा संकट यह है कि दिल्ली के बौद्धिक, राजनीति, सामाजिक और मीडिया तबकों के एक वर्ग ने आज भी मोदी को स्वीकार नहीं किया है। मोदी का दिल्ली प्रवेश आज भी इन तबकों के लिए एक ‘अवैध उपस्थिति’ है। देश की जनता ने भले ही नरेंद्र मोदी को अपार बहुमत से संयुक्त करके दिल्ली भेजा है, किंतु ‘अभारतीय सोच’ के बुद्धिजीवी वर्गों के लिए आज भी एक मोदी एक अस्वीकार्य नाम हैं। इस कारण से मीडिया के एक वर्ग में उनके हर काम का विरोध तो होता ही है, साथ ही एक खास छवि के साथ जोड़ने के प्रयास होते हैं। मोदी के खिलाफ षडयंत्र आज भी रूके नहीं हैं और प्रायोजित विचारों और खबरों का संसार उनके आसपास मंडराता रहता है। षडयंत्रों में उलझने और उनका जबाव देने में केंद्र सरकार और भाजपा संगठन की बहुत सारी शक्ति नष्ट हो रही है। पहले दिन से मोदी सरकार को प्रायोजित मुद्दों पर घेरने और बदनाम करने की कोशिशें जारी हैं। बावजूद इसके नरेंद्र मोदी और उनके साथियों को यह सोचना होगा कि नाहक मुद्दों में समय जाया कराने में सरकार के संकट कम नहीं होगें बल्कि बढ़ते जाएंगें। पांच साल का समय बहुत कम होता है, इसमें भी दो साल बीत चुके हैं।

अनेक योजनाओं के माध्यम से सरकार ने एक सही शुरूआत की है, किंतु अब सारा जोर डिलेवरी पर देना होगा। जनता का भरोसा बचाए और बनाए रखना ही, मोदी सरकार और भाजपा संगठन के भविष्य के लिए उचित होगा। दिल्ली और बिहार के चुनावों में मिली पराजय से शायद मोदी और उनके सलाहकारों का आत्मविश्वास हिल गया है और लोकप्रियतावादी कदमों की ओर बढ़े हैं, किंतु हमें देखना होगा कि सरकारों को लाभ सिर्फ सुशासन और छवि के कारण के मिलता है। अन्यथा लोकप्रियतावादी कदमों की मनमोहन सरकार में क्या कमी थी। जनता को कई तरह के अधिकार दिलाने के बाद भी मनमोहन सरकार सत्ता से चली गयी। ऐसे में केंद्र सरकार के लिए यह सोचने का समय है कि वह बचे हुए समय का कैसा इस्तेमाल करती है। कैसे वह जनता के मनों वह भरोसा बनाए रखती है जिसके नाते वह सत्ता के शिखर पर पहुंची है। यह एक अलग बात है कि कांग्रेस एक कमजोर प्रतिपक्ष है, जिसके नाते भाजपा राहत में दिखती है। किंतु यह मानना होगा कि सिर्फ 45 सांसदों के साथ कांग्रेस ने जिस तरह का वातावरण बना रखा है और सरकार की गति लगभग संसदीय मामलों में रोक दी है, उस पर विचार करने की जरूरत है। दोनों सदनों में कांग्रेस ने जैसा रवैया अपना रखा है, उस व्यवहार में परिवर्तन की उम्मीद कम ही है। ऐसे में नरेंद्र मोदी सरकार को यह सोचना होगा कि कैसे वह संसद से लेकर सड़क तक कांग्रेस की घेरेबंदियों से निकलकर जनता के लिए राहत और बदलाव के अवसर उपलब्ध करा सके।

कारण कुछ भी हों मोदी सरकार के प्रति एक साल पहले तक जो उत्साह था, वह आज कम होता दिखता है। यह बहुत स्वाभाविक भी है, किंतु नरेंद्र मोदी जैसे नेता जो निरंतर लोगों से संवाद करते हुए दिखते हैं के संदर्भ में इसे सामान्य नहीं माना जा सकता। देश के आर्थिक क्षेत्र में पसरी मंदी, पाकिस्तान के साथ संबंधों में कड़वाहट, रोजगार का इंतजार करते युवा, कश्मीर में उभर रही नई चुनौतियों के साथ अनेक विषय दिखते हैं जिससे मोदी सरकार को टकराना होगा। अपने समय की चुनौतियों से टकराकर उनके ठोस और वाजिब हल निकालना किसी भी सरकार की जिम्मेदारी है। इतिहास ने नरेंद्र मोदी को यह अवसर दिया है कि वे इस वृहत्तर भूगोल(भारत) के सामने खड़े संकटों और उसके समाधानों के लिए काम करें। मोदी और उनकी सरकार के दो साल पूरे होने पर उनकी नीति-नीयत और संकल्पों पर संदेह न करते हुए भी यह कहना होगा कि कामों की गति तेज करनी होगी, विपक्षी षडयंत्रों से बचते हुए सही अपने मार्ग की पहचान करते हुए, मध्यवर्ग को चिढाने वाले फैसलों से बचना होगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि जनता के बीच नरेंद्र मोदी आज भी सबसे लोकप्रिय नेता हैं और उनसे लोगों की आज भी भारी उम्मीदें हैं, देखना है कि वे आशाओं को पूरा करने के लिए क्या जतन करते हैं।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)

पत्रकार उमेश चतुर्वेदी की कार चोरी

car stolenवरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार उमेश चतुर्वेदी की सिल्वर रंग की कार दक्षिण दिल्ली के कटवारिया सराय इलाके से चोरी हो गई है। इस कार का नंबर DL 3CAY4578 है। इसकी शिकायत दिल्ली के वसंत विहार थाने में की जा चुकी है। इस कार पर जी न्यूज और प्रेस क्लब ऑफ इंडिया का स्टिकर लगा हुआ है। अगर आपको कहीं दिखे तो इसकी सूचना पुलिस को दें।

DOORDARSHAN TO RAMP UP CONTENT & MARKETING BY ROLL OUT OF ROBUST POLICY OF SLOT SALE

Doordarshan has unveiled a policy to attract high quality content on its National & Regional Channels through an offer of sale of slots. The policy encourages private entrepreneurs to Make for India’s National Public Service Broadcaster, cutting edge programming with a commitment for providing wholesome family entertainment.
The key features of this outsourcing is to attract bids in the genre of ‘General Entertainment’ from eligible Producers as pertechnical & financial criteria to be notified separately.
Highlights of the Slot Sale Policy:

• The Slot Policy invites eligible offerers to create and market fresh content on the channel for a fixed tenure extendingupto 3 years.
• Sale of slots to be auctioned through e-auction mode.
• The roll out of the Slot Sale Policy to commence with DD’s flagship channel – ‘DD National’ on its prime time slots and to be progressively extended to other slots and channels.
• The Base price for DD National Prime Time is designed, keeping in view the content environment and market economics, to attract bidders.
• The inventory for sale in a 30mins slot will be 4 minutes.
• Slot price increase is to be based on half yearly reviews through a transparent mechanism linked to the ratings achieved in the slot.
• Slots available for bidding would be for a sequence of slots for daily strips on weekdays/weekends.
• Those interested can visit our website www.ddindia.gov.in for detailed information.

आशुतोष को मिला बेस्ट रिपोर्टर अवार्ड

आशुतोष को मिला बेस्ट रिपोर्टर अवार्ड

आशुतोष को मिला बेस्ट रिपोर्टर अवार्ड
आशुतोष को मिला बेस्ट रिपोर्टर अवार्ड
बिहार के छपरा के कशिश न्यूज़ संवाददाता ‘आशुतोष श्रीवास्तव’ को बेहतर रिपोर्टिंग के लिए बेस्ट रिपोर्टर का अवार्ड मिला. दिल्ली में इंडियन मीडिया वेल्फेयर एसोसिएशन(इम्वा) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भारत की अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री नजमा हेपतुल्लाह ने ये अवार्ड उन्हें दिया. उन्हें ये अवार्ड छपरा में हुए 2013 में मिड-डे मिल में हुई गडबड़ी के खुलासे पर मिला.गौरतलब है कि इस हादसे में 23 बच्चों की मौत हुई थी.

आशुतोष के अलावा कई और पत्रकारों को भी ‘इम्वा’ द्वारा सम्मानित किया गया.यह प्रोग्राम दिल्ली के मावलंकर ऑडिटोरियम में कराया गया. कार्यक्रम में भारत की अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री नजमा हेपतुल्लाह मुख्य अतिथि के रुप में आई थी.उन्होंने पत्रकारों के लिए संसद में आवाज़ उठाने की भी बात की. साथ ही कहा कि पत्रकार ही देश की ताकत हैं, पत्रकारों को पूरा हक मिलना चाहिए.

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