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भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी ने रवीश को दिया करार जवाब !

रवीश कुमार,संपादक,एनडीटीवी इंडिया
रवीश कुमार,संपादक,एनडीटीवी इंडिया

हाल ही में एनडीटीवी इंडिया के प्रख्यात पत्रकार रवीश कुमार ने भारतीय पुलिस सेवा के नाम एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने आई पी एस अधिकारी मुकुल द्विवेदी की मौत के बारे में लिखते हुए भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों पर तंज कसा था. उसी पत्र के प्रतिक्रियास्वरूप भारतीय पुलिस सेवा के एक अधिकारी ने रवीश कुमार के नाम एक खत लिखा है जो इस प्रकार है –

रवीश जी के ख़त का उत्तर..

प्रिय रवीश जी,

आपका ख़त पढ़ा । उसमें सहमत होने की भी जगह है और संशोधनों की भी ।यह आपके पत्र का जबावी हमला कतई नहीं है । उसके समानांतर हमारे मनो-जगत का एक प्रस्तुतीकरण है । मैं यह जवाबी खत किसी प्रतिस्पर्धा के भाव से नहीं लिख रहा हूँ । चूँकि आपने भारतीय पुलिस सेवा और उसमें भी खासकर (उत्तर प्रदेश) को संबोधित किया है, इसलिए एक विनम्रतापूर्ण उत्तर तो बनता है । यूँ भी खतों का सौंदर्य उनके प्रेषण में नहीं उत्तर की प्रतीक्षा में निहित रहता है। जिस तरह मुकुल का ,मुस्कराता’ चेहरा आपको व्यथित किये हुए है (और जायज़ भी है कि करे),वह हमें भी सोने नहीं दे रहा..जो आप ‘सोच’ रहे हैं, हम भी वही सोच रहे हैं। आप खुल कर कह दे रहे हैं । हम ‘खुलकर’ कह नहीं सकते । हमारी ‘आचरण नियमावली’ बदलवा दीजिये, फिर हमारे भी तर्क सुन लीजिये। आपको हर सवाल का हम उत्तर नहीं दे सकते । माफ़ कीजियेगा । हर सवाल का जवाब है,पर हमारा बोलना ‘जनहित’ में अनुमन्य नहीं है। कभी इस वर्दी का दर्द सिरहाने रखकर सोइये, सुबह उठेंगे तो पलकें भरी होंगीं । क्या खूब सेवा है जिसकी शुरुआत ‘अधिकारों के निर्बंधन अधिनियम’ से शुरू होती है !क्या खूब सेवा है जिसे न हड़ताल का हक़ है न सार्वजनिक विरोध का . . .

हमारा मौन भी एक उत्तर है ।अज्ञेय ने भी तो कहा था . .
“मौन भी अभिव्यंजना है
जितना तुम्हारा सच है,उतना ही कहो ”

हमारा सच जटिल है । वह नकारात्मक भी है । इस बात से इनकार नहीं। आप ने सही कहा कि अपने जमीर का इशारा भी समझों। क्या करें ?खोटे सिक्के अकेले इसी महकमे की टकसाल में नहीं ढलते । कुछ आपके पेशे में भी होंगे । आपने भी एक ईमानदार और निर्भीक पत्रकार के तौर पर उसे कई बार खुलकर स्वीकारा भी है। चंद खोटे सिक्कों के लिए जिस तरह आपकी पूरी टकसाल जिम्मेदार नहीं, उसी तर्क से हमारी टकसाल जिम्मेदार कैसे हुई?

हम अपने मातहतों की मौत पर कभी चुप नहीं रहे । हाँ सब एक साथ एक ही तरीके से नहीं बोले । कभी फोरम पर कभी बाहर , आवाजें आती रही हैं । बदायूं में काट डाले गए सिपाहियों पर भी बोला गया, और शक्तिमान की मौत पर भी । पर क्या करें, जिस तरह हमें अपनी वेदना व्यक्त करने के लिए कहा गया है, उस तरह कोई सुनता नहीं । अन्य तरीका ‘जनहित’ में अलाउड नहीं । मुक्तिबोध ने कहीं लिखा है कि

“पिस गया वह भीतरी और बाहरी दो कठिन पाठों के बीच
ऐसी ट्रेजेडी है नीच”

मुकुल और संतोष की इस ‘ट्रेजेडी’ को समझिये सर । यही इसी घटना में अगर मुकुल और संतोष ने 24 आदमी ‘कुशलतापूर्वक’ढेर कर दिए होते,तो आज उन पर 156 (3) में एफ आई आर होती । मानवाधिकार आयोग की एक टीम ‘ओन स्पॉट’ इन्क्वायरी के लिए मौके पर रवाना हो चुकी होती। मजिस्ट्रेट की जाँच के आदेश होते। बहस का केंद्र हमारी ‘क्रूरता’ होती । तब निबंध और लेख कुछ और होते ।

आपने इशारा किया है कि’ झूठे फंसाए गये नौजवानों के किस्से’ बताते हैं कि भारतीय पुलिस सेवा के खंडहर ढहने लगे हैं। यदि कभी कोई डॉक्टर आपको आपकी बीमारी का इलाज करने के दौरान गलत सुई (इंजेक्शन) लगा दे(जानबूझकर या अज्ञानतावश) ,तो क्या आप समूचे चिकित्सा जगत को जिम्मेदार मान लेगें? गुजरात का एक खास अधिकारी मेरे निजी मूल्य-जगत से कैसे जुड़ जाता है,यह समझना मुश्किल है ।

हमने कब कहा कि हम बदलना नहीं चाहते । एक ख़त इस देश की जनता के भी नाम लिखें कि वो तय करें,उन्हें कैसी पुलिस चाहिए ।हम चिल्ला चिल्लाकर कह रहे हैं कि बदल दो हमें। बदल दो 1861 के एक्ट की वह प्राथमिकता जो कहती है की ‘गुप्त सूचनाओं’ का संग्रह हमारी पहली ड्यूटी है और जन-सेवा सबसे आखिरी। क्यों नहीं जनता अपने जन-प्रतिनिधियों पर पुलिस सुधारों का दवाब बनाती ?आपको जानकार हैरानी होगी कि अपने इलाकों के थानेदार तय करने में हम पहले वहां के जाति-समीकरण भी देखते हैं! इसलिए नहीं कि हम अनिवार्यतः जाति-प्रियता में श्रद्धा रखते हैं। इस से उस इलाके की पुलिसिंग आसान हो जाती है । कैसे हो जाती है यह कभी उस इलाके के थानेदार से एक पत्रकार के तौर पर नहीं आम आदमी बनकर पूछियेगा । वह खुलकर बताएगा। भारतीय पुलिस सेवा का ‘खंडहर’ यहीं हमारी आपकी आँखों के सामने बना है । कुछ स्तम्भ हमने खुद ढहा लिए, कुछ दूसरों ने मरम्मत नहीं होने दिए।

जिसे खंडहर कहा गया है,उसी खंडहर की ईंटें इस देश की कई भव्य और व्यबस्थित इमारतों की नींव में डाल कर उन्हें खड़ा किया गया है ।मुकुल और संतोष की शहादत ने हमें झकझोर दिया है । हम सन्न हैं । मनोबल न हिला हो, ऐसी भी बात नहीं है । पर हम टूटे नहीं हैं। हमें अपनी चुप्पी को शब्द बनाना आता है हमारा एक मूल्य-जगत है । फूको जैसे चिंतक भले ही इसे ‘सत्ता’ के साथ ‘देह’ और ‘दिमाग’ का अनुकूलन कहते हों,पर प्रतिरोध की संस्कृति इधर भी है । हाँ उसमें ‘आवाज’ की लिमिट है और यह भी कथित व्यबस्था बनाये रखने के लिए किया गया बताया जाता है ।

यह सही है कि हम में भी वो कमजोरियां घर कर गयी हैं जो जमीर को पंगु बना देती हैं । ‘One who serves his body,serves what is his,not what he is'(Plato) जैसी बातों में आस्था बनायेे रखने वाले लोग कम हो गए हैं । पर सच मानिए हम लड़ रहे हैं । जीत में आप लोगों की भी मदद आवश्यक है । पुलिस को सिर्फ मसाला मुहैया कराने वाली एजेंसी की नजर से न देखा जाए।

जो निंदा योग्य है उसे खूब गरियाया जाये,पर उसे हमारी ‘सर्विस’ के प्रतिनिधि के तौर पर न माना जाये । हमारी सेवा का प्रतिनिधित्व करने लायक अभी भी बहुत अज्ञात और अल्प-ज्ञात लोग हमारे बीच मौजूद हैं जो न सुधारों के दुकानदार हैं और न आत्म-सम्मान के कारोबारी ।

मथुरा में एकाध दिन में कोई नया एस पी सिटी आ जायेगा । फरह थाने को भी नया थानेदार मिल जायेगा । धीरे धीरे लोग सब भूल जाएंगे ।धीरे धीरे जवाहर बाग फिर पुरानी रंगत पा लेगा । धीरे धीरे नए पेड़ लगा दिए जायेंगे जो बिना किसी जल्दबाजी के धीरे धीरे उगेंगे । सब कुछ धीरे धीरे होगा ।धीरे धीरे न्याय होगा ।धीरे धीरे सजा होगी । हमारी समस्या किसी राज्य का कोई एक इंडिविजुअल नहीं है । हमारी समस्या रामवृक्ष भी नहीं है । हमारी समस्या सब कुछ का धीरे धीरे होना है ।धीरे धीरे सब कुछ उसी तरह हो जायेगा जो मुकुल और संतोष की मौत से पहले था ।

सर्वेशर दयाल सक्सेना ने भी क्या खूब लिखा था-

“…धीरे-धीरे ही घुन लगता है, अनाज मर जाता है।
धीरे-धीरे ही दीमकें सब कुछ चाट जाती हैं।
धीरे-धीरे ही विश्वास खो जाता है, साहस डर जाता है,
संकल्प सो जाता है ।

मेरे दोस्तों मैं इस देश का क्या करूँ
जो धीरे-धीरे खाली होता जा रहा है?
भरी बोतलों के पास खाली गिलास-सा पड़ा हुआ है।
मेरे दोस्तों !
धीरे-धीरे कुछ नहीं होता, सिर्फ मौत होती है।
धीरे धीरे कुछ नहीं आता,सिर्फ मौत आती है
सुनो ढोल की लय धीमी होती जा रही है।
धीरे-धीरे एक क्रान्ति यात्रा, शव-यात्रा में बदलती जा रही है ।”

इस ‘धीरे-धीरे’की गति का उत्तरदायी कौन है । शायद अकेली कोई एक इकाई तो नहीं ही होगी । विश्लेषण आप करें । हमें इसका ‘अधिकार’ नहीं है । जो लिख दिया वह भी जोखिम भरा है । पर मुकुल और संतोष के जोखिम के आगे तो नगण्य ही है । जाते जाते आदत से मजबूर,केदारनाथ अग्रवाल की यह पंक्तियाँ भी कह दूँ जो हमारी पीड़ा पर अक्सर सटीक चिपकती हैं …

‘सबसे आगे हम हैं
पांव दुखाने में
सबसे पीछे हम हैं
पांव पुजाने में
सबसे ऊपर हम हैं
व्योम झुकाने में
सबसे नीचे हम हैं
नींव उठाने में’

मजदूरों के लिखी गयी यह रचना कुछ हमारा भी दर्द कह जाती है । हाँ,मजदूरों को जो बगावत का हक़ लोकतंत्र कहलाता है उसे हमारे यहाँ कुछ और कहा जाता है । इसी अन्तर्संघर्ष में मुकुल और संतोष कब जवाहर बाग में घिर गए,उन्हें पता ही नहीं चला होगा । उन्हें प्रणाम ।

उम्मीद है आपको पत्र मिल जायेगा ।

धर्मेन्द्र ।
भारतीय पुलिस सेवा (उत्तर प्रदेश)

(लेखक भारतीय पुलिस सेवा (उत्तर प्रदेश) के अधिकारी हैं। रवीश कुमार के ब्लॉग कस्बा से साभार)

हरीश रावत ने खुद ही दिया था समाचार प्लस को स्टिंग करने का न्योता!

समाचार प्लस क स्टिंग में मुख्यमंत्री बेपर्द
समाचार प्लस क स्टिंग में मुख्यमंत्री बेपर्द

उत्तराखंड के राजनीतिक उथल-पुथल वाले माहौल में ‘समाचार प्लस’ चैनल के स्टिंग ने पिछले दिनों भूचाल खड़ा कर दिया. पहली बार लोगों ने टीवी पर एक मुख्यमंत्री को विधायकों की खरीद-फरोख्त की योजना बनाते हुए देखा. हालाँकि हरीश रावत ने स्टिंग को पहले नकारने की कोशिश की और फिर सीबीआई के फेरे में पड़ने पर स्टिंग में अपनी उपस्थिति को मान लिया.इस स्टिंग को समाचार प्लस के सीईओ और एडिटर-इन-चीफ ‘उमेश कुमार’ ने किया.

कई महीने बीत जाने के बावजूद स्टिंग की गूँज अब तक बरक़रार है. स्टिंग के असर से मुख्यमंत्री हरीश रावत को सीबीआई जांच का सामना कर पड़ रहा है तो समाचार प्लस को उत्तराखंड में आए दिन ब्लैकआउट का. पूरे मुद्दे पर समाचार प्लस के एडिटर-इन-चीफ उमेश कुमार ने बेबाकी से मीडिया खबर के संपादक पुष्कर पुष्प से बात की.बातचीत में उन्होंने स्टिंग कैसे हुए,इसका भी खुलासा किया है. लेकिन पूरा इंटरव्यू पढ़ने के लिए आपको करना होगा थोड़ा इंतजार. मीडिया खबर पर बहुत जल्द पूरा इंटरव्यू. तब तक देखिए समाचार प्लस का चर्चित स्टिंग :

अखिलेश के डीएम को हिंदुओं का पलायन नहीं दिखता

संजय तिवारी

up kkarainaहिन्दुओं के साथ समस्या यह है कि वे पलायन कर जाते हैं। कश्मीर हो कि कैराना। वे इसके अलावा कुछ कर भी नहीं पाते। फिर भी इनके बारे में बोलने की जरूरत इसलिए नहीं है क्योंकि वे “अल्पसंख्यकों” के शिकार बनते हैं। बीते दो तीन सालों में जब मुजफ्फरनगर के दंगों को लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश काफी चर्चित रहा है तब मेरठ मंडल के कैराना कस्बे से अब तक करीब साढ़े तीन सौ हिन्दू परिवारों का पलायन हो चुका है। ज्यादातर व्यापारी वर्ग के लोग हैं जिनको आयेदिन निशाना बनाया जाता है। कभी वसूली की धमकी तो कभी गोली मारकर हत्या।

ऊपर से देखने पर भले ही यह लॉ एण्ड आर्डर की समस्या नजर आती है लेकिन हकीकत में कहानी कुछ और है। एक स्थानीय निवासी बता रहे हैं कि “आये दिन छेड़छाड़ की घटनाएं, घरों से लड़कियों का निकलना दूभर हो गया है। आप बताइये किसी की जान माल पर बन आयेगा तो वह क्या करेगा?” हालात वैसे ही हैं जैसे सूदूर कश्मीर में थे। इसकी तस्दीक जागरण की यह रिपोर्ट भी कर रही है जो बता रही है कि जिन लोगों के पलायन का दावा किया गया था सचमुच उनके घरों पर ताले लगे हैं लेकिन प्रशासन की जिम्मेदारी का आलम यह है कि अखिलेश के डीएम अभी भी सबूत तलाश रहे हैं।

बिहार में पत्रकारिता का वीभत्स चेहरा !

पत्रकार पुलिस की नजदीकियों का फायदा उठाते हैं और पुलिस के हाथोंराजनीतिक कार्यकर्ताऔर नेता को डंडा खिलवाने और फर्जी आरोप में जेल भिजवाने का ठेका लेते हैं

श्रीकृष्ण प्रसाद, अधिवक्ता व पत्रकार

पटना।बिहार।, 18 मई । इंडिया में बिहार में विगत दशकों में पत्रकारिता के क्षेत्र में अनेक चेहरे देखनेको मिल रहेहैं । सीवान के राजदेव रंजन जैसे पत्रकार देश, समाज और अपने मीडिया हाउस के हित और सुरक्षा में अपनी कीमती जिन्दगी की कुर्बानी दे रहे हैं । दूसरी ओर , बिहार के ही मुंगेर जिले केदैनिक ‘प्रभात खबर‘ के पत्रकार बिजय शंकर सिंह अपने आपराधिक कारनामों से पत्रकारिता के पेशेकोकलंकित कर रहे हैं । पुलिस अनुसंधान में इस पत्रकार के षड़यंत्र मेंनाम आनेके बाद भी दैनिक प्रभात खबर, दैनिक हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण और दैनिक भाष्कर का प्रबंधन और संपादकीय विभाग मामलेको उजागर नहीं कर रहा है । उल्टे, इन अखबारों के मुंगेर प्रमंडलीय कार्यालयोंके प्रमुख दोषी पत्रकार, पुलिस पदाधिकारी और एन0जी0ओ0 के सचिव को कानून की गिरफ्त से बचाने के लिए ऐढ़ी-चोंटी एक कर रहा है । प्रमाण यह है कि पत्रकार बिजय शंकर सिंह के आपराधिक कुकृत्योंकोव्यूरोप्रमुख अपने संपादकोंऔर प्रबंधन के इसारे पर अपने-अपने अखबारों मेंप्रकाशित नहीं कर रहे हैं ।

मामला क्या है ? जनता दल यू के मुंगेर जिला के पूर्व जिला सचिव नरेन्द्र कुमार सिंह कुशवाहा एक गीतकार हैं।एन0जी0ओ0 ‘ हक‘ ने नरेन्द्र कु0 सिंह कुशवाहा सहित तीन कलाकारों को ‘नुक्कड़ – नाटक‘ केमंचन के लिए अनुबंध किया । परन्तु, जब हक संस्था के सचिव पंकज कुमार सिंह ने नाटक मंचन के एवज में 22 हजार रूपया मजदूरी के रूप में नहीं दीं,तो श्री कुशवहा ने मुंगेर के डी0एम0 से इसकी लिखित शिकायत कीं,। डी0एम0 केआदेश पर मुंगेर कोतवाली नेसूचक जनता दल यू नेता नरेन्द्र कुमार सिंह कुशवाहा के आवेदन पर हक के सचिव पंकज कुमार सिंह केविरूद्ध प्राथमिकी ,जिसका कांड संख्या- 78 ।2013, धारा 406। 34 भारतीय दंड संहिता है, दर्ज की ।जांचोपरांत, कोतवाली पुलिस ने पर्याप्त साक्ष्य के आधार पर हक संस्था के सचिव पंकज कुमार सिंह के विरूद्ध ‘आरोप-पत्र‘ ,आरोप -पत्र संख्या- 105। 2013, दिनांक – 30 अप्रैल 2013 है, को मुंगेर न्यायालय मेंसुपुर्द कर दिया । अभी भी मामला न्यायालय में लंवित है ।

जान मारने की कोशिश की गईं : आरोप-पत्र समर्पित होने के डेढ़ माह बाद मुंगेर की कासिम बाजार पुलिस ने जनता दल यू के तात्कालीक जिला सचिव नरेन्द्र कुमार सिंह कुशवाहा को 15 जून, 2013 की शाम धोखा में बुलाकर गिरफ्तार किया, उसे कासिम बाजार थाना उठा ले गई पुलिस । और पुलिस पदाधिकारियों और होमगार्ड्स के जवानों ने श्री कुशवाहा को थाना के गाछ में रस्सी से बांधकर तबतक पिटाईकी जबतक वह बेहोश नहीं हो गया । जब होश आईं,तो वह भागलपुर मेडिकल कालेज अस्पताल में बेड में अपने को पाया। उसने अपने साथ घटी घटना को भागलपुर से मुंगेर के डी0एम0 , एस0पी0, आयुक्त, डी0आई0जी0 और अन्य को दिया । किसी ने उसके आवेदन पर सुनवाई नहीं कीं।

पहले जान से मारने की कोशिश हुई, बाद में भेजे गए जेलः भागलपुर में ईलाज के दौरान हीं मुंगेर के कासिम बाजार थाना की पुलिस पहुंचीं ।और पुलिस ने चार जिन्दा कारतूस पाकेट में रखने के आरोप में ईलाजरत श्रीक ुशवाहा को मुंगेर जेल न्यायिक हिरासत में भेज दिया ।

लगभग तीन महीनों तक जेल में रहे कुशवाहा : पहले थाना में गाछ से बांध कर पिटाई और फिर जीवित कारतूस रखने के जुर्म में जेल जाने के बाद भी कुशवाहा ने हिम्मत नहीं हारी। उसने न्याय के लिए मुंगेर मंडल कारा में आमरण-अनशन शुरू कर दिया । पटना उच्च न्यायालय से जमानत मिलने तक कुशवाहा मुंगेर जेल में महीनों आमरण-अनशन पर रहे। परन्तु, बिहार केमीडिया हाउस दैनिक प्रभात खबर, दैनिक हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण और दैनिक भाष्कर ने उनके आमरण अनशन की खबर को केवल दबाने का काम किया । एक राजनीतिक के जीवन को समाप्त कर देने की अनोखी मुहिम मुंगेर के मीडिया हाउस के लोगों ने चलाईं।

मुख्यमंत्री निरीह बने रहे : पुलिस जुल्म की फरियाद लेकर जब जद यू नेता की भतीजी मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के जनता दरबार में अकेले तीन बार पहुंची, परन्तु मुख्यमंत्री भी निरीह प्रमाणित हुए । अंत में मुंगेर जेल से ही श्री कुशवाहा ने राष्ट्र्ीय मानवाधिकार आयोग को लिखित आवेदन भेजा । उसकी भतीजी मुक्ता कुमारी अकेले नई दिल्ली स्थित राष्ट्र्ीय मानवाधिकार आयोग के कार्यालय में पहुंचीं और अपने चाचा पर हो रहे बिहार पुलिस के जुल्म की दास्तान कह सुनाईं । राष्ट्र्ीय मानवाधिकार आयोग नेलिया संज्ञान और बिहार सरकार को पूरे मामले में जांच का आदेश दिया ।और बिहार सरकार ने मामलेको अपराध अनुसंधान विभाग के पुलिस अधीक्षक।डी0। एस0पी0शुक्ला को सुपुर्द कर दिया । और एस0पी0।डी0। एस0पी0शुक्ला ने जो जांच रिपोर्ट राष्ट्र्ीय मानवाधिकार आयोग। नई दिल्ली । और मुंगेर पुलिस अधीक्षक को सुपुर्द कीं, उस रिपोर्ट ने कलम, खाकी और सफदेपोश अपराधियों के संगठित षड़यंत्र कोपूरी तरह बेनकाव बेनकाव कर दिया । मुंगेर पुलिस ने कुशवाहा को गोली रखने के आरोप से अनुसंधान में मुक्त कर दिया है । अब कुशवाहा अपने कंधे के थैला में अबतक की सभी पुलिस रिपोर्ट लेकर मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के जनता दरबार की दौड़ लगा रहे हैं और भीख मांग रहे हैं कि -‘ हुजूर । पिटाई और गोली के आरोप में निर्दोष होकर जेल जाने से बचा नहीं सके । अब तो दोषी पत्रकार, पुलिस पदाधिकारी और एन0जी0ओ0 के सचिव के विरूद्ध कानूनी काररवाई कीजिए । हुजूर , अपने हक के लिए आवाज उठाने के जुर्म में पुलिस ने गाछ में बांध कर पिटाई कींऔर महीनों जेल की सजा काट लीं । अब तो हुजूर, दोषी को जेल भेजने का काम कीजिए।‘

मुख्यमंत्री नीतिश कुमार हो गए गंभीरः पटना के जनता दरबार में जब श्री कुशवाहा ने पूरे दस्तावेजी साक्ष्य के साथ मुख्यमंत्री को सारी बातें बताईं,तो मुख्यमंत्री गंभीर हो गए । उन्होंने भागलपुर के आरक्षी महानिरीक्षक सुशील खोपडेको इस मामले में कानूनी पक्षोंके अध्ययन कर दोषी पत्रकार, पुलिस पदाधिकारी और एन0जी0ओ0 के सचिव के विरूद्ध कानूनी काररवाई करने का निर्देश दिया है । आरक्षी महानिरीक्षक सुशील खोपडे ने श्री कुशवाहा कोइस सप्ताह भागलपुर स्थित कार्यालय में बुलाया और एक घंटा तक पूरी घटना की जानकारी लीं और पुलिस अनुसंधान में आए दस्तावेजी साक्ष्यों का गंभीरता से अध्ययन किया । श्री कुशवाहा ने आई0जी0 को स्पष्ट कर दिया है कि मुंगेर के डी0आई0जी0 वरूण कुमार सिन्हा दोषी पत्रकार, पुलिस पदाधिकारी और एन0जी0ओ0 के सचिव के विरूद्ध कानूनी काररवाई में रोड़ा बने हुए हैं ।

इस बीच, मुंगेर पुलिस अधीक्षक के पुलिस प्रतिवेदन-04 में पुलिस अधीक्षक ने मंतवय दिय है कि -‘‘ एन0जी0ओ0 हक के सचिव पंकज कुमार सिंह और प्रभात खबर के पत्रकार बिजय शंकर सिंह ने षड़यंत्र कर पुलिस पदाधिकारियों की मदद से गोली नरेन्द्र कु0 सिंह कुशवाहा के थैला में रखवा दिया था और उसकी गिरफ्तारी कराई गईं ।‘‘

‘‘ इस प्रकार यह प्रमाणित हो जाता है कि पत्रकार पुलिस की नजदीकियों का फायदा उठाते हैं और पुलिस के हाथोंराजनीतिक कार्यकर्ता और नेता को डंडा खिलवाने और फर्जी आरोप में जेल भिजवाने का ठेका लेने का भी काम कर रहे हैं जो काम समाज के नामी-गिरामी अपराधी कर रहे हैं । ‘‘
पुलिस अधीक्षक ने अपने पुलिस प्रतिवेदन संख्या-04 में आगे लिखा है कि ‘‘ पुलिस अनुसंधानकर्ता साक्ष्यानुसार एन0जी0ओ0 ‘‘हक‘‘ के सचिव पंकज कुमार सिंह और दैनिक प्रभात खबर के पत्रकार बिजय शंकर सिंह की गिरफ्तारी की काररवाई करेंगें ।‘‘

इस बीच, मुंगेर के पूर्व के पुलिस अधीक्षक ने इस प्रकरण में कासिम बाजार थाना के पूर्व थाना ध्यक्ष दीपक कुमार और पुलिस अवर निरीक्षक सफदर अली के विरूद्ध विभागीय काररवाई के तहत उनकी सेवा पुस्तिकाओं में एक‘‘कलांक‘‘ की सजा दी है और छः माह के वेतन वृद्धि पर रोक लगाई है । दोनों पुलिस पदाधिकारियों की सेवा पुस्तिकाओं में कलांक की सजा को अंकित कर दिया गया है ।

नीतिश भैया और लालू भैया से गुहारः जनता दल यू नेता नरेन्द्र कु0 सिंह कुशवाहा ने मुख्यमंत्री नीतिश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद से प्रार्थनाकी है कि – ‘‘यदि दोषी पुलिस पदाधिकारी दीपक कुमार और सफदर अली, पत्रकार बिजय शंकर सिंह और एन0जी0ओ0 सचिव पंकज कुमार सिंह के विरूद्ध कठोर कानूनी काररवाई सरकार नहीं करती है,तो पुलिस ,पत्रकार और एन0जी0ओ0 का गठजोड़ उसकी हत्या कर देगा । फिर आपलोग जांच पर जांच कराते रह जाऐंगें ।‘‘

इस बीच, दैनिक प्रभात खबर ,दैनिक हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण और दैनिक भाष्कर के मुंगेर कार्यालयों के ब्यूरो प्रमुख ने ऐलान किया है कि -‘‘ जो व्यक्ति नरेन्द्र कुमार सिंह कुशवाहा पर हुए पुलिस जुल्म की खबर को प्रकाशित ।प्रसारित करेगा, उसे और उसके परिवार के सभी सदस्यों को स्वर्ग लोक भेज दिया जायेगा और उसकी खबर को किसी भी हिन्दी अखबर या चैनल में नहीं चलने दिया जायेगा । नरेन्द्र कुमार सिंह कुशवाहा के साथ हुए पुलिस उत्पीड़न की खबर को जिस तरह तीन वर्षों तक हिन्दी अखबारों और न्यूज चैनलों ने दबा कर रखा ,ऐसी ही चट्टानी ऐकता बरकरार रहेगी । मुख्यमंत्री नीतिश कुमार और राजद प्रमुख लालू प्रसाद तक घटना की खबर भी नहीं पहुंच पाऐगी ।‘‘

(मुंगेर से श्रीकृष्ण प्रसाद की रिपोर्ट)

पत्रकार मनीष शर्मा का इंग्लिश उपन्यास- आय वॉन्ट टू बी तेंदुलकर !

tendulkarपिछले करीब 13 साल से पत्रकारिता में सक्रिय मनीष शर्मा के इंग्लिश-फिक्शन उपन्यास का कवर पेज हाल ही में सोशल मीडिया पर लॉन्च हो गया। कवर पेज को पाठकों द्वारा बड़ी संख्या में पसंद किया जा रहा है। उपन्यास अगले करीब एक से डेढ़ महीने के भीतर देश के अग्रणी बुक स्टोर और बेवसाइट-अमेजन, फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध रहेगा। भारत के बाहर भी कई देशों में उपन्यास को अमेजन इंटरनेशनल बेवसाइट के जरिए खरीदा जा सकेगा।

मनीष शर्मा का यह दूसरा उपन्यास है। उनका पहला इंग्लिश उपन्यास-लव-ऑल- साल 2013 में आया था, जो काफी पसंद किया गया था। बहरहाल, मैं तेंदुलकर बनना चाहता हूं वास्तविक और काल्पनिक घटनाओं का मिश्रण है, जो उपन्यास को बहुत खास बनाता है। कहानी मैं संदेश, मनोरंजन सहित अहम बातों का पूरा ध्यान रखा गया है। वहीं, प्रकाशक ज्ञान बुक पब्लिशर और लेखर ने कवर पेज की लॉन्चिंग के साथ ही 12-15 साल के लड़कों को कवर पेज पर छपने का सुनहरा मौका दिया है। इसके लिए सोशल मीडिया पर करीब 25 दिन एक कम्पटीशन चलाया जाएगा। इस अवसर को भुनाने के लिए-आय वान्ट टू बी तेंदुलकर के फेसबुक पेज से तमाम जानकारी जुटायी जा सकती है।

मनीष शर्मा ने बातचीत में कहा कि यह बहुत ही खास कहानी है और इस नजरिए से शायद ही पहले कभी लिखा गया है। उन्हें पूरा भरोसा है कि कहानी हर आयु वर्ग को बहुत ही ज्यादा पसंद आएगी।

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