Home Blog Page 288

समाचार टुडे को चाहिए सेल्स-मार्केटिंग हैड

यूपी के मुजफ्फरनगर से संचालित समाचार टुडे इंफोटेनमेंट वेब चैनल को सेल्स-मार्केटिंग हैड की आवश्यकता है। इसके अलावा समाचार टुडे को दिल्ली-एनसीआर समेत यूपी और उत्तराखंड में भी सेल्स और मार्केटिंग के लिए अनुभवी और फ्रेसर लड़के-लड़कियों की आवश्यकता है।

उत्तराखंड के निम्न जिलों/स्थानों पर स्ट्रींगर/रिपोर्टर और विज्ञापन प्रतिनिधि की आवश्यकता है।

अल्मोड़ा एक

बागेश्वर एक

चम्पावत एक

नैनीताल एक

पिथौरागढ़ एक

चमोली एक

देहरादून चार

हरिद्वार एक

पौड़ी गढ़वाल एक

रुद्रप्रयाग एक

टिहरी गढ़वाल दो

उत्तरकाशी दो

ऋषिकेश एक !

इनके अलावा समाचार टुडे को ट्रेनी फीमेल/मेल एंकर, ट्रेनी/Ass/प्रोड्यूसर और Insta Playout /CG पर काम करने वाले एक अनुभवी की भी आवश्यकता है। इच्छुक अभ्यर्थी अपना बायोडाटा दिए गए ईमेल पते पर सेंड कर सकता है अथवा दिए गए मोबाइल पर संपर्क कर सकता है अथवा मुजफ्फरनगर स्थित आॅफिस में व्यक्तिगत रूप से मिला जा सकता है।

CONTACT US-

‘समाचार Today’

Arti Media Infotainment Pvt. Ltd.

2nd FLOOR , BHAGWATI MARKET, SADAR BAZAR, OLD MEERAPUR BUS STAND , MUZAFFARNAGAR, U.P.-251001

CELL: +91- 7248202020, PHONE: +91-131-2437181

इंडिलिंक्स को चाहिए कॉपी एडिटर्स और वीडियो एडिटर्स

प्रेस विज्ञप्ति

इंडिलिंक्स तेजी से उभरता हुआ राष्ट्रीय हिंदी न्यूज पोर्टल है । Indilinks Newslab कंपनी द्वारा संचालित इस हिंदी पोर्टल में पत्रकारों की आवश्यकता है । इच्छुक पत्रकार जो वेब पत्रकारिता के लिए डेस्क पर काम करने के इच्छुक अप्लाई कर सकते हैं । कंपनी में फिलहाल दो डिपार्टमेंट के लिए रिक्तियां हैं कॉपी एडिंटिंग और वीडियो एडिटिंग सेक्शन । इच्छुक आवेदक कंपनी को info@indilinks.com पर अपना अपडेट रिज्यूम मेल कर सकते हैं या अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए फिर 07893037780 पर कॉल कर सकते हैं । कंपनी का हैड ऑफिस फिलहाल हैदराबाद में है । अत: कॉपी एडिटर/वीडियो एडिटर को हैदराबाद में रहकर काम करना होगा । फ्रेशर कॉपी एडिटर्स, फ्रिलांसर और इंटर्नशिप करने वाले युवक भी आवेदन कर सकते हैं । अपना मेल आईडी यथाशिघ्र info@indilinks.com पर मेल करें ।

फिल्म प्रोमोशन के बहाने भाषा का मजाक

तरुण वत्स

भाषा का मज़ाक तो न उडाओ कपिल साहब!

grand masti promotionटीवी और कॉमेडी का चर्चित चेहरा कपिल शर्मा और एक ऐसा नाम जिसे आजकल शायद हर घर में जाना पहचाना जा रहा है। कुछ समय पहले ही साहब एक मोबाइल कंपनी के एड में हिंदी के प्रचार प्रसार के बहाने इसकी ब्रांडिंग करते नज़र आये थे जिसका काफी हो हल्ला हुआ था लेकिन 16 जुलाई को अपने कार्यक्रम ‘द कपिल शर्मा शो’ में ग्रेट ग्रैंड मस्ती के अभिनेताओं के साथ खुद ही हिंदी का मज़ाक उड़ाते नज़र आये।

दरअसल, ग्रेट ग्रैंड मस्ती फिल्म का प्रमोशन करने के लिये उसके कलाकार रितेश देशमुख, विवेक ओबराॅय और आफताब शिवदसानी कपिल शर्मा के कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे। कार्यक्रम की शुरुआत में एक गाने के बोल के बाद क, ख, ग सुनाने की बात आई तो पहले तो सबने ऐसे मुंह बनाया कि जैसे विदेशी नागरिकों से हिंदी शब्दों के अर्थ पूछ लिये गये हों या क्या कुछ सुनाने को कह दिया गया। फिर उसके बाद एक कलाकार ने कहा, “क, ख, ग, A, B, C”।

इसके बाद आडियंस के बीच से एक महाश्य खड़े हुये और उन्होंने भी हिंदी की खूब टांग तोड़ी। खूब हंसी मज़ाक होने के बाद एक महिला ने क, ख, ग सुनाये। जब महिला ऐसा कर रही थीं, तो उस समय कपिल खुद अभिनेताओं के साथ नाचने लगे। माहाैल इस तरह का बना दिया गया जैसे भाषा का मज़ाक नहीं, बल्कि मखौल उड़ाया जा रहा हो। महिला ने बताया कि वह कानपुर की रहने वाली हैं।

रितेश देशमुख महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के बेटे हैं तो विवेक सुरेश ओबरॉय के पुत्र हैं। दोनों को ही हिंदी सिनेमा ने पहचान दिलाई है। हालांकि रितेश मराठी फिल्मों में भी अभिनय करते हैं।

मेरी बस एक गुज़ारिश है कि फिल्म प्रमोशन ठीक है, लेकिन इस बहाने भाषा का मज़ाक उड़ाना उचित नहीं है और वो भी उस भाषा का जिसके सिनेमा ने आपको इस मुक़ाम पर पहुंचाया हो। हिंदी दर्शकों के पैसे से ही सिनेमा हॉल में ग्रेट ग्रैंड मस्ती जैसी फिल्में भी हिट हो जा रही हैं और ऐसे में भाषा का सीधा मज़ाक उड़ाना मुझे तो गलत लगा, बाकी प्रमोशन, पैसे और सिनेमा में शायद सब चलता हो।

तरुण वत्स (युवा पत्रकार)

जनमत को तैयार कर बदलाव लाना ही पत्रकारिता का ध्येय – के.जी. सुरेश

kg sureshभोपाल। जनमत को तैयार कर बदलाव लाना ही पत्रकारिता का ध्येय है। आज नागरिक पत्रकारिता बड़े स्तर पर पहुँच गई है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में आस्था बनाये रखने का काम मीडिया को करना है। आप खबर को किस दृष्टिकोण से देख रहे हैं यह आपके व्यक्तित्व को दिखाता है। समाज में विश्वासहीनता बढ़ रही है। एक पत्रकार को अपनी लक्ष्मण रेखा खुद तय करनी चाहिए। यह विचार आज माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित सत्रारंभ कार्यक्रम के द्वितीय दिवस में ‘एक पत्रकार का जीवन’ विषय पर बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार एवं भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक श्री के.जी.सुरेश ने व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि आज मीडिया दो युगों में बंट गया है। पहला युग बिफोर गूगल और बाद का युग आफ्टर गूगल का बन गया है। एक अच्छे पत्रकार के लिए देश का साहित्य का अध्ययन बहुत जरूरी है और पत्रकार को निरंतर अध्ययन को जारी रखना चाहिए। श्री के.जी.सुरेश ने कहा कि जो स्वतंत्रता के दिग्गज रहे हैं वही मीडिया के रोल माडल हैं। उन्होंने पत्रकारिता के विद्यार्थियों से कहा कि मिशन के तहत कलम की ताकत समझें। उन्होंने कहा कि जो बे-आवाज हैं उनकी आवाज बनना ही आधुनिक पत्रकारिता का उद्देश्य है। महापुरूषों ने संघर्ष, बदलाव के लिए अखबार को माध्यम बनाया। हमें भी ऐसे ही पत्रकारिता करनी चाहिए। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि पत्रकार बनना है तो मिशन तय करें।

पेसिफिक विश्वविद्यालय, उदयपुर के अध्यक्ष प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा ने मीडिया प्रबंधन की शिक्षा के महत्व पर वक्तव्य देते हुए कहा कि आज सामाजिक मूल्यों और जीवन के बोध आवश्यक है। उन्होंने कहा कि अस्मिता, आत्मविश्वास और अडिग रहना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। प्रो. शर्मा ने प्रगतिशील लेखन और आदर्शवादी लेखन में अंतर करते हुए अनुपातिकता के साथ लेखन करने की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों के द्वारा विरासत में मिले समाज को आगे ले जाने की जिम्मेदारी हमारी है, हम अपने आपको ग्लोबल पर्सन बनाएं एवं शारीरिक मजदूरी करने से बचें। आज का समय नालेज पावर का है। उन्होंने विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं को कई उदाहरणों के साथ प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने कहा कि आज का समय मीडिया प्रबंधन की शिक्षा का है। यह आपको तय करना है कि सत्या नाडेला बनना है या फिर गुजरात के खेड़ा जिले के 126 किसानों की तरह एक अमूल ब्राण्ड के जैसा बनने का सपना देखना है। विज्ञापन एवं मार्केटिंग के क्षेत्र में कॅरियर स्थापित करने के लिए क्रिएटिव एवं व्यवहारिक ज्ञान का होना आवश्यक है।

‘नया मीडिया और युवा’विषयक द्वितीय सत्र में श्री जयदीप कार्णिक, वेब दुनिया डाटकाम के सम्पादक ने विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि आज का युवा पोकिमोन और स्वामी विवेकानंद दोनों ही प्रवृत्ति वाला है। आज का युवा मीडिया में आना चाहता है और उसमें दुनिया के सामने कुछ कर दिखाने की ललक है। हमारे यहाँ मीडिया को स्वतंत्रता के बाद भी एक हथियार की तरह उपयोग किया जाता रहा है। मीडिया का अस्तित्व उतना ही पुराना है, जितना समाज का अस्तित्व। इंटरनेट मीडिया की बैकबोन बनकर उभरा है।

श्री कार्णिक ने कहा कि नवीन मीडिया और सोशल मीडिया दोनों में बहुत अंतर है। सोशल मीडिया वरदान के साथ-साथ अभिशाप का रूप भी धारण कर चुका है। एक मीडिया के विद्यार्थी को जवाबदेह पत्रकार बनना चाहिए। सोशल मीडिया पर कुछ भी लिखने से पहले उसकी जवाबदेही तय होनी चहिए। प्रत्येक विद्यार्थी को वाट्सएप और फेसबुक के अतिरिक्त ट्विटर और ब्लाग पर भी अपनी आई.डी. बनाना चाहिए। विद्यार्थियों को समझना चाहिए कि ताकत विचारों में है तकनीक में नहीं। उन्होंने कहा कि पत्रकारों को समाज के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। आने वाले दिनों में संचार के क्षेत्र में बहुत उन्नति होने वाली है। ‘सूचना का अधिकार और मीडिया’विषयक सत्र में डा. हीरालाल त्रिवेदी ने एवं गोपाल दण्डोतिया ने सूचना का अधिकार अधिनियम में उल्लेखित विभिन्न प्रावधानों की जानकारी एवं पत्रकारिता में उसके उपयोग से अवगत कराया।

‘टेलीविजन न्यूज का भविष्य’ विषयक सत्र में श्री शरद द्विवेदी, चैनल हैड, बंसल न्यूज ने कहा कि हर अच्छी चीज तीन चीजों से मिलकर बनती है- उपहास, विरोध एवं स्वीकृति। उन्होंने कहा कि दस साल बाद पत्रकारिता संस्थान मल्टीमीडिया संस्थान के नाम से जाने जाएंगे। भाषा में बहुत बड़ा परिवर्तन आया है। टेलीविजन और वेब भाषा में अंतर समझना होगा। अखबार पर पाठक का रूकने का समय निरंतर कम होता जा रहा है। टेलीविजन और वेब के बीच एक मजबूत रिश्ता कायम हुआ है। न्यूज एजेंसी के फ्लैश की जगह ब्रेकिंग न्यूज ने ली है और अब यह जगह धीरे-धीरे सोशल मीडिया ले रहा है। दीप्ति चैरसिया, ब्यूरो चीफ इंडिया न्यूज ने टी.वी. की पत्रकारिता को आम आदमी की पत्रकारिता बताया और कहा कि वर्सेटाइल के साथ विश्वसनीयता इसके लिए सबसे बड़ी चुनौती है।

कश्मीर में कुछ तो करिए !

sanjay dwivedi
संजय द्विवेदी,राजनीतिक विश्लेषक

स्पष्ट संदेश दीजिए कि ‘नहीं मिलेगी आजादी’

संजय द्विवेदी

सजाय द्विवेदी
सजाय द्विवेदी

गनीमत है कि कश्मीर के हालात जिस वक्त बहुत बुरे दौर से गुजर रहे हैं, उस समय भारतीय जनता पार्टी विपक्ष में नहीं है। कल्पना कीजिए कि इस समय केंद्र और राज्य की सत्ता में कोई अन्य दल होता और भाजपा विपक्ष में होती तो कश्मीर के मुद्दे पर भाजपा और उसके समविचारी संगठन आज क्या कर रहे होते। इस मामले में कांग्रेस नेतृत्व की समझ और संयम दोनों की सराहना करनी पड़ेगी कि एक जिम्मेदार विपक्ष के नाते उन्होंने अभी तक कश्मीर के सवाल पर अपनी राष्ट्रीय और रचनात्मक भूमिका का ही निर्वाह किया है।

ऐसे कठिन समय में जब कश्मीर की मुख्यमंत्री को एक आतंकी को मारे जाने पर अफसोस और उसकी मौत को शहादत बताने की राजनैतिक नासमझी दिख रही हो, तब यह मानना ही पड़ेगा कि कश्मीर में सब कुछ सामान्य नहीं है। जिले के जिले कर्फ्यू और अराजकता की गिरफ्त में हैं। वहां के अतिवादियों के निशाने पर सेना और पुलिस के जवान हैं, जिन पर पत्थर बरस रहे हैं। पूरी संसद कश्मीरियों की कश्मीरियत और इंसानियत पर फिदा है, जबकि वे अपनी ही सेना पर पत्थर बरसा रहे हैं, अपने हम वतन पुलिस वालों को पीट रहे हैं। ऐसे कठिन समय में जबकि सेना और पुलिस के 2228 लोग पत्थरों के हमलों में घायल हैं, तब हम उनका विचार न कर उन 317 लोगों के बारे में विलाप कर रहे हैं, जो पेलेट गन से जख्मी हुए हैं। पत्थरों को बरसाने के जिहादी तेवरों का मुकाबला आप कैसे करेगें इस पर सोचने की जरूरत है। लेकिन लगता है कि भारतीय मीडिया और राजनीति का एजेंडा तय करने वाले नान इश्यु को इश्यु बनाने में महारत हासिल कर चुके हैं। इसी हीला-हवाली और ना-नानुर वाली स्थितियों ने कश्मीर को इस अँधेरी सुरंग में भेज दिया है। हमारी सारी सहानुभूति पत्थर फेंकने वाले समूहों के साथ है। जबकि सेना और पुलिसवाले भी हमारे ही हैं। कश्मीर में पेलेट गन से घायल लोगों के अपराध क्या कम हैं? स्कूल-कालेजों से लौटते और मस्जिदों से निकलते समय खासकर जुमे की नमाज के बाद देशविरोधी नारे बाजियां, पाकिस्तान और आईएस के झंडे लहराना तथा सेना व पुलिस की चौकियों पर पथराव एक सामान्य बात है। क्या इस तरह से हम कश्मीर को संभाल पाएंगें? आतंकियों के जनाजे में हजारों की भीड़ एकत्र हो रही है और हम उस आवाम को देशभक्त और इंसानियत पसंद बताकर क्या मजाक बना रहे हैं। अब समय आ गया है कि भारत सरकार इन तथाकथित ‘आजादी के दीवानों’ को साफ संदेश दे दे। उन्हें साफ बताना होगा कि कश्मीरियों को उतनी ही आजादी मिलेगी जितनी देश के किसी भी नागरिक को है। वह नागरिक उप्र का हो या महाराष्ट्र का या कश्मीर का। उन्हें हर हालत में हिंदुस्तान के साथ रहने का मन बनाना होगा। पाकिस्तानी टुकड़ों पर पलने वालों को यह साफ बताना होगा कि उन्हें ऐसी आजादी किसी कीमत पर नहीं मिल सकती, जिसके वे सपने देख रहे हैं, कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा। इन पत्थरों और नारों से भारत की सरकार को दबाने और ब्लैकमेल करने की कोशिशें बंद होनी चाहिए। दूसरी बात कहनी चाहिए कि जब तक पूर्ण शांति नहीं होगी, कश्मीरी पंडित अपने घरों या नई कालोनियों में नहीं लौटते तब तक न तो सेना हटेगी, ना ही सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम को हटाया जाएगा। सरकारों की लीपापोती करने की आदतों और साफ भाषा में संवाद न करने से कश्मीर संकट और गहरा ही हो रहा है।

भारत सरकार की सारी विकास योजनाएं और सारी धनराशि खर्च करने के बाद भी वहां शांति नहीं आ सकती, क्योंकि वहां के कुछ लोगों के मन में एक पापी सपना पल रहा है और उस सपने को तोड़ना जरूरी है। कश्मीर के अतिवादियों की ताकत दरअसल पाकिस्तान है। भारत की सरकार पाकिस्तान से हर तरह का संवाद बनाए रखकर संकट को और गहरा कर रही है। पाकिस्तान को आइसोलेट किए बिना कश्मीर में शांति नहीं आ सकती यह सब जानते हैं। कश्मीर के अतिवादी नेताओं के दुष्प्रचार के विरूद्ध हमें भी उनका सच सामने लाना चाहिए कि वे किस तरह कश्मीर के नाम पर पैसे बना रहे हैं और आम कश्मीरी युवकों का इस्तेमाल कर अपनी राजनीति चमका रहे हैं। इन्हीं अतिवादियों के बेटे-बेटियां और संबंधी विदेशों और भारत के बड़े शहरों में आला जिंदगी बसर कर रहे हैं और आम कश्मीरी अपना धंधा खराब कर पत्थर फेंकने और आतंकियों के जनाजों में शामिल होकर खुद को धन्य मान रहा है। ये अतिवादी अपनी लंबी हड़तालों से किस तरह कश्मीर की अर्थव्यवस्था को नष्ट करके वहां के सामान्य नागरिक के जीवन को नरक बना रहे हैं यह किसी से छिपा नहीं है। वहां के युवाओं को अच्छी राह दिखाने, पढकर अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने के बजाए एक ऐसी सुरंग में धकेल रहे हैं जहां से लौटना मुश्किल है।

भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को बेहतर बनाने का यह समय नहीं हैं जबकि पूरा पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान आतंकियों और अतिवादियों की गोद में जा बैठा है। पाकिस्तान से अपने रिश्तों पर हमें पुर्नविचार करना होगा। यह ठीक बात है कि हम अपने पड़ोसी नहीं बदल सकते पर पड़ोसी से रिश्ते रखने या न रखने की आजादी तो हमें मिलनी चाहिए। तमाम राजनीति-कूटनीतिक पहलकदमियां करके भारत देख चुका है कि पाकिस्तान फिर लौटकर वहीं आ जाता है। भारतद्वेष और भारत से घृणा उसके डीएनए में है। जाहिर तौर पर पाकिस्तान से दोस्ती का राग अलापने वाले इस पाकिस्तान को नहीं पहचानते। भारत के प्रति घृणा ही पाकिस्तान को एक किए हुए है। भारत के प्रति विद्वेष खत्म होते ही पाकिस्तान टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा। इसलिए भारत घृणा वह विचार बीज है, जिसने अंतर्विरोधों से घिरे पाकिस्तान को जोड़ रखा है। कश्मीर उसका दूसरा दर्द है। इसके साथ ही विश्व स्तर पर चल रहा इस्लामी आतंकवाद और जेहाद ने इसमें जगह बना ली है। कश्मीर आज उसकी प्रयोगशाला है। कश्मीर में हम हारे तो हारते ही जाएंगें। इसलिए कश्मीर में चल रहे इस अघोषित युद्ध को हमें जीतना है, किसी भी कीमत पर। लेकिन हम देखते हैं कि चीजें लौटकर वहीं आ जाती हैं। कभी पाकिस्तान से रिश्तों को लेकर तत्कालीन कांग्रेस सरकार को वर्तमान प्रधानमंत्री पाकिस्तान को लव लेटर लिखने की झिड़कियां दिया करते थे। आज की विदेश मंत्री एक सर के बदले दस सिर की बात करती थीं। सारा कुछ वही मंजर है, देश चिंतित है क्या इस बार आप कश्मीर पर देशवासियों से मन की बात करेंगें। एक साफ संदेश देशवासियों और कश्मीर को देंगें कि यह देश अब और सहने को तैयार नहीं हैं। न तो पत्थर, न गोलियां और ना ही आजादी के नारे।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)

सोशल मीडिया पर मीडिया खबर

665,311FansLike
4,058FollowersFollow
3,000SubscribersSubscribe

नयी ख़बरें