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एनडीटीवी के टॉक से वापस आकर लग रहा है कि लाश मांझी नहीं,मेरे कंधे पर है

एनडीटीवी के टॉक से आपस आकर लग रहा है कि लाश मांझी नहीं,मेरे कंधे पर है
एनडीटीवी के टॉक से आपस आकर लग रहा है कि लाश मांझी नहीं,मेरे कंधे पर है

एनडीटीवी के टॉक से आपस आकर लग रहा है कि लाश मांझी नहीं,मेरे कंधे पर है
एनडीटीवी के टॉक से आपस आकर लग रहा है कि लाश मांझी नहीं,मेरे कंधे पर है
लग रहा है अब लाश दाना मांझी नहीं, मेरे कंधे पर है

बातचीत से लौटने के बाद दोपहर के बचे-खुचे खाने को डिनर की शक्ल देने लगा..लेकिन ब्रेड का टुकड़ा अभी ठीक से मुंह में जाता कि उबकाई आने लग गई. पेट की भूख बदहजमी में जाकर विलीन हो गई. लगा दानी मांझी की पत्नी की लाश उसके सिर से उतरकर मेरे सिर पर आ गई है.

दस किलोमीटर तक दाना मांझी अपनी अपनी बिलखती बेटी के साथ पत्नी की जिस लाश को लेकर चलते रहे वो हमारे समाज, हमारे भीतर के काफी कुछ मर जाने का संकेत बनकर हमें धिक्कारते रहेंगे. हम सब सांकेतिक हत्यारे हैं. मैं कई बार अपनी आलोचना सुन-पढ़कर हताश होने लग जाता हूं. मेरी नजर के सामने एक वायनरी बनकर चीजें होती हैं लेकिन दूसरा हिस्सा कई बार गायब हो जाता है. वो हिस्सा जिसमे मैं अपने को दोषी नहीं पाता.


लेकिन ऐसे दहला देनेवाले नजारे से जब-जब गुजरता हूं, मुझे अपनी शक्ल किसी हत्यारे सी नजर आती है. लगता है हम उसी शहर-कस्बे के कोजी जोन में तमाम सुविधाओं से लैस चैन की नींद सो रहे होते हैं जहां कई-कई दाना मांझी पैसे के अभाव में अपनी पत्नी के लिए दवाई तक नहीं खरीद सकते.

आज रात मुझे अपना चेहरा बेहद क्रूर, घिनौना नजर आ रहा है. हमारी सुविधा और तरक्की के बीच कई स्तर की सांकेतिक हत्याएं शामिल है. मुझे नहीं पता कि जो अच्छे दिनों की खबरें दिखाते हैं, वो अपने भीतर कुछ भी मरा हुआ महसूस कर पाते हैं कि नहीं..लेकिन ऐसे मौके पर हम किस्तों की मौत के एक हिस्से गुजर रहे होते हैं. ये रात मुझे बहुत भारी कर दे रही है. @FB (एनडीटीवी की बहस से वापस लौटकर फेसबुक पर मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार की टिप्पणी)

माफ करना दाना मांझी,जर्नलिस्ट के नाते मैंने कोशिश की,लेकिन…

मुझे माफ करना दाना मांझी, चौला मांझी…कालाहांडी के डिप्टी कलेक्टर से लेकर कलेक्टर, एसपी..और फिर उड़ीसा के सीएम से लेकर चीफ सेकेट्ररी तक, सबको फोन किया, लेकिन ये सिस्टम सड़ चुका है।

हिन्दुस्थान के उड़ीसा राज्य के कालाहांडी जिले के भवानीपटना प्रखंड के एक गांव के मेरे आदिवासी दोस्त दाना मांझी, मुझे माफ करना। तुम्हारे और तुम्हारी 12 साल की बिटिया के साथ जो हुआ, उसके लिए कहीं ना कहीं हम भी गुनाहगार है।

मंगलवार, 23 अगस्त, 2016 के दिन तुम अपनी पत्नी को लेकर स्थानीय सरकारी अस्पताल में गए। और मंगलवार की रात ही तुम्हारी पत्नी की टीबी से मौत हो गई। तुम्हारे पास अस्पताल की एंबुलेंस के किराए के पैसे नहीं थे। कोशिशों के बाद भी तुम इतने पैसे नहीं जुटा पाए कि अपनी पत्नी के पॉर्थिव शरीर को ससम्मान घर ले जा पाते।….एक मजबूर पति जो कर सकता था, तुमने किया…दाना मांझी, तुमने उससे शादी के समय जो सात फेरे लिए थे ना, शायद उस अग्नि को साक्षी मानकर लिए सात वचनों को निभाया, और अपनी पत्नी के शव को कपड़े में लपेटकर पैदल ही वापस घर लौट चले…12 किलोमीटर का वो सफर कैसा होगा, ये सोचकर मेरे रोंगटें खड़े हो रहे हैं, और आंखों में आंसू है…मुझे चिंता नहीं कि मेरे ऑफिस में सब क्या सोच रहे हैं…मैं इन तस्वीरों को देख रहा हूं और व्यथित हूं।

लेकिन मैने अपने जर्नलिस्ट होने की ड्यूटी निभाने की पूरी कोशिश की है, और कर रहा हूं, और तब तक करता रहूंगा, जब तक तुम्हें इंसाफ नहीं मिल जाता और तुम्हारी पत्नी की मृत देह को वो सम्मान, जो हर मौत के बाद इंसान को मिलना चाहिए।

दाना मांझी, मैनें कालाहांडी की कलेक्टर ब्रूंधा डी के हर फोन को खटखटाया। कालाहांडी के एसपी ब्रजेश कुमार राय, अतरिक्त कलेक्टर चंद्रमनी बदनायक, प्रोजेक्ट डॉयरेक्टर विनीत कुमार और तुम्हारे एरिया एसडीएम सुकांता कुमार त्रिपाठी के फोन खटखटाए।

जब कोई नतीजा नहीं निकला, तो मैने उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से संपर्क की कोशिश की। फिर उड़ीसा के चीफ सेकेट्ररी से, फिर सीएम ऑफिस से।
सब नकारे निकले। बस इतना पता चला है कि जिला कलेक्टर को कल सुबह एक रिपोर्ट देने को कहा है।

दाना मांझी, भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत और देश के कई प्रधानमंत्रियों को कवर करते करते सरकारी तंत्र में रिपोर्ट -रिपोर्ट खेलने का मतलब मैं जान गया हूं।
और कालाहांडी में करीब दो दशक पहले आए अकाल और उसके बाद की मौतों ने तो पहले ही पूरी दुनिया के सामने भारत का मुंह काला कर दिया था। लेकिन अफसोस कि हमारा सिस्टम उसके बाद भी नहीं सीखा।

दाना मांधी, मुझे माफ करना कि आजाद भारत के 70 साल बाद भी हम तुम्हें, तुम्हारी बेटी और तु्म्हारी पत्नी की मृत देह को वो सम्मान नहीं दे सके, जिसके तुम अधिकारी हो, एक भारतीय होने के नाते, एक इंसान होने के नाते।
तुम्हारा एक जर्नलिस्ट दोस्त। @fb

स्टार उत्सव का नया शो ‘कृष्णोत्सव’

स्टार उत्सव का नया शो 'कृष्णोत्सव'
स्टार उत्सव का नया शो 'कृष्णोत्सव'

कृष्ण जन्माष्टमी स्टार उत्सव के संग

स्टार उत्सव का नया शो 'कृष्णोत्सव'
स्टार उत्सव का नया शो ‘कृष्णोत्सव’

हिन्दू माइथोलॉजी पर आधारित देवों के देव महादेव की कामयाबी के बाद स्टार उत्सव पूरी तरह तैयार है आपका एक और पसंदीदा किरदार कृष्ण की बाल लीलाएं दिखाने के लिए।

जहाँ एक ओर सभी कृष्ण जन्मोत्सव मनाने की तैयारी में लगे है वही स्टार उत्सव तैयारी कर रहा है आपके हर्षोल्लास में चार चाँद लगाने के लिए अपने नये शो कृष्णोत्सव के साथ, जो कि स्टार उत्सव पर जन्माष्टमी वाले दिन से प्रसारित किया जायेगा।

तो आइये साथ मिलकर मनाये कृष्ण जन्मोत्सव और रंग जाएँ कृष्ण के रंग में ।

जहाँ आप कृष्ण की बाल लीलाओं का लुफ्त उठाएंगे वही आपको कृष्ण से जिन्दगी के अहम् फैसले किस तरह लिए जाते है, जीवन जीने का उदेश्य, अच्छे दृ बुरे हर लम्हंे को जीना, और भी कई ज्ञानवधर््ाक बातें सीखने को मिलेगी, जो आपकी जिन्दगी को अैेर भी महत्वपूर्ण बनाएंगी।

इसी उदेश्य से स्टार उत्सव अपने दर्शको की जरूरत और पसंद को ध्यान में रखते हुए ला रहा है कृष्णोत्सव 25 अगस्त से हर दिन षाम 6 बजे से। (प्रेस विज्ञप्ति)

सब टीवी पर प्रियल गौर का नागिन अवतार

प्रियल गौर का नागिन अवतार
प्रियल गौर का नागिन अवतार
प्रियल गौर का नागिन अवतार
प्रियल गौर का नागिन अवतार

प्रियल गौर सब टीवी के आगामी शो ‘इच्छा प्यारी नागिन‘ में एक बेहद अलग लुक में नजर आयेंगी। यह युवा अभिनेत्री आकार बदलने वाले आधुनिक सांप की भूमिका निभायेगी। वह इच्छाधारी नाग एवं नागिनों की अवधारणा को बदलने के लिये पृथ्वी पर आई है। इच्छा (प्रियल गौर) नागिस्तान को छोड़ देगी और एक मिशन के साथ धरती पर आई है। उसके लोगों का मानना है कि इंसानों ने सापों की बुरी छवि बनाई है।

इच्छा का किरदार एसेसरीज और हेयर गियर के साथ व्यापक काॅस्ट्यूम में नजर आयेगा। वह गोल्डेन लहंगा, चोली और एक स्किर्ट पहनेगी, जिसमें साइड स्लिट होगा। काॅस्ट्यूम के साथ हैवी ऐसेसरीज भी होंगे। इनमें दोनों हाथों के लिये सांपों के आकार की चूड़ियां शामिल हैं। साथ ही प्रियल चोकेर भी पहनेंगी, जो एक सांप के आकार में होगा। इसके अलावा बैठे हुये कोबरा के आकार में एक ‘मांग टीका‘ उसे सिर की शोभा बढ़ायेगा।

प्रियल गौर, जोकि सब टीवी के ‘इच्छा प्यारी नागिन‘ में इच्छा का किरदार निभाती नजर आयेंगी, ने कहा, ‘‘इच्छा एक प्यारी नागिन है और पारंपरिक नागिनों से बिल्कुल अलग है। इसलिये शो में मेरा लुक बेहद साधारण और प्यार होगा। मैं बेहद अनूठा और अलग कपड़े पहन रही हूं, क्योंकि मेरे लुक को वास्तविक दिखाया जाना है। मैं हल्के रंग का लहंगा और उसके साथ ढेरों मैचिंग एसेसरीज पहनुंगी। मुझे उम्मीद है कि दर्शक शो में मेरे नये लुक को पसंद करेंगे, क्योंकि यह बेहद अलग है।‘‘ (प्रेस विज्ञप्ति)

अमर उजाला देहरादून रोजाना छाप रहा आधारहीन खबरें

अमर उजाला

अज्ञात कुमार

देहरादून। अमर उजाला देहरादून आजकल रोजाना ऐसी आधारहीन खबरें छाप रहा है जिनका उसे अगले दिन ही खंडन करना पड़ रहा है। कुछ समय पहले एक खबर छपी शीरा नीति को लेकर बाद में वह गलत निकली।फिर एक खबर छपी नीरज क्लीनिक को लेकर उसके मालिक पर लदे मुकदमे सरकार वापस करने वाली है। यह खबर भी झूठी निकली।

समाचार विश्लेषण भी ऐसे छप रहे हैं जैसे कि भाजपा के प्रवक्ता ने इमला लिखवाई हो। नतीजतन वे कोरी गप्प या झूठे साबित हो रहे हैं। संपादक हरीश सिंह अपना सर पीट रहे हैं। असल में यह सब हो रहा है उसके एक बाहरी सलाहकार संपादक की वजह से। जनाब पहले अमर उजाला में ही थे, रहने वाले पश्चिम यूपी के हैं लेकिन इस दौरान देहरादून के खड़े किए जाल बट्टे के कारोबार से ऐसा मोह पैदा हुआ कि तबादले से अच्छा नौकरी छोड़नी ही समझी। अब संघी पृष्ठभूमि के ये जनाब अमर उजाला के राज्य ब्यूरो के नए लोगों को अपने प्रभाव में लेकर अमर उजाला में गलत सलत और कभी सही खबरें छपवाकर देहरादून के सत्ता के गलियारों में यह संदेश पहुंचाने में कामयाब हो रहे हैं।

अमर उजाला में आज भी उनके इशारे पर ही खबरें छपती हैं ,अमर उजाला में अपने मन मुताबिक खबरें छपवानी हों तो उन्हें ही सुपारी दें। ये जनाब अमर उजाला में रहते हुए अपनी अपार बुद्धि का परिचय देते हुए यह हास्यास्पद खबर भी छाप चुके हैं कि उत्तराखंड को जीएसटी में छूट मिल गई है। यही नहीं हिंदुस्तान में रहते हुए जनाब ने एड्स की उत्पत्ति पर लिखा कि उसकी उत्पत्ति ग्रीन मंकी के अफ्रीकी औरतों का साथ बलात्कार करने से हुई। जिस पर तत्कालीन प्रधान संपादक मृणाल पांडे ने उन्हें बिसरपैर की बातों को खबर बना कर लिखने पर कड़ी फटकार लगाई थी।

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