अनुरंजन झा
नवभारत टाइम्स की वेबसाइट पर टिकर चल रहा है संदीप कुमार के बारे में — आगे लिखा है – मीडिया रिपोर्ट्स – तो यह वेबसाइट क्या चूरन बेचता है …
अनुरंजन झा
नवभारत टाइम्स की वेबसाइट पर टिकर चल रहा है संदीप कुमार के बारे में — आगे लिखा है – मीडिया रिपोर्ट्स – तो यह वेबसाइट क्या चूरन बेचता है …
वेद उनियाल,वरिष्ठ पत्रकार
अरविंद केजरीवाल जवाब न दें, संदीप जवाब न दे। इसका जवाब आशुतोष को देना होगा। पत्रकार से रातों रात राष्ट्रीय नेता बने आशुतोष कल कह रहे थे कि जो व्यक्तियों की आपसी सहमति से सेक्स होना गुनाह नहीं। वीडियों पर तूल नहीं देना चाहिए।
अब मफलर पहन कर आम आदमी की तरह दिखने की कोशिश करने वाले अरविंद केजरीवाल में थोड़ा भी लिहाज हो सबसे पहले आशुतोष और संजय सिह जैसे लोगों को पार्टी से निकालें। संदीप पर कानून अपना काम करेगा।
आशुतोष शर्मनाक ढंग से अपने कुर्तक में महात्मा गांधी , जार्ज फर्नाडीज लोहिया और वाजपेयी को भी घसीटने की कोशिश की ।
एक पत्रकार और फिर अाम आदमी की वाली पार्टी का नेता बनने वाले आशुतोष की अपनी पार्टी के व्य्कति को बचाने के लिए यह घृणित कोशिश थी। अब वह महिला सामने आई है और उसने कहा है कि मुझे वीडियों का पता नहीं , मेरे साथ खिलवाड़ हुआ। मेरा नाम नहीं आना चाहिए मेरे छोटे छोटे बच्चे हैं। मेरी जिंदगी के साथ खेल हुआ है। मुझे कुछ नशीला पदार्थ पिलाया गया। मै राशन कार्ड बनवाने गई थी।
आशुतोष के लिए यह शर्मशार है। वह पत्रकार भी रहे हैं। इसलिए आज उनके नाम पर पत्रकारिता भी लांछित हुई है। तुषार गांधी ने भी आशुतोष को फटकारा है। यह मंत्री का सीधे सीधे ब्लेकमेल का मामला है।
एवीपी न्यूज की पूरी स्टोरी सही साबित हुई है। आप पार्टी के कारनामें सामने आए हैं। डेढ़ साल में छह मंत्रियों के काले कारनामें। आगे न जाने क्या क्या दिखता है। महिला अपनी रिपोर्ट दर्ज कराना चाहती हैं। आशुतोष और संजय सिंह ने पंजाब और उत्तराखंड में भी अपने गुर्गों को थोपने की कोशिश की है। सब भद्दा आचरण हैं। उत्तराखंड के एक भ्रष्ट अधिकारी को बचाने के लिए इन्होंने वहां पार्टी अध्यक्ष अनूप नौटियाल को पद से हटाया क्योंकि उन्होंने वह मामला उठाया था। इन भ्रष्ट लोगों के हाथ में दिल्ली है। @fb
महाराष्ट्र में लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने जो गणपति बप्पा मेरया की आधारशिला रखी थी। वही आधार अब मीडिया जगत के ब्यूरोचीफ टाइप लोगों के लिए लक्ष्मी सुखासन बन कर आ गया है। ब्यूरोचीफ टाइप लोगों के मुख पर करारे (नोट) लक्ष्मी जी का भोग लगते ही उन्हें मोदक का भोग भी फीका नज़र आता है। इस विघ्नहर्ता के रसधार में जिन लोगों ने पहले डूबने से मना किया था, अब वही गोता लगाने के फिराक में डोल रहे हैं।
दरअसल मामले को कुछ विस्तार से समझाया जाये ताकि आप भी भोग या गोता लगाने के लिए थोड़ा सा दिमाग की नसों में जोर डाल सके। तो मामला कुछ यूं है कि मुंबई के सबसे प्रतिष्ठित लाला बाग के राजा के बारे में आप लोगों ने पहले से सुना होगा। नाम सुनते ही आपके दिल मे एक बार दर्शन करने की प्रबल इच्छा भी जागृत होगी। लेकिन जब कोई अनहोनी लगे तो फिर शायद आप भी कन्नी काटने लगे। तो अब मुद्दे की बात ये है कि लाल बाग के राजा मुंबई में चार साल पहले से मीडिया के लोगों पर तड़ातड़ हमले होते थे। कोई भी कैमरा मैन या पत्रकार कवरेज करने के लिए जाये तो मजाल क्या कि बिना प्रसाद (मार) खाये विदा किया जाये। जब आयोजकों की तरफ से कोई बचाव नहीं किया गया तो इसका ये कयास लगाया जाने लगा कि लाल बाग के राजा के आयोजक ही मीडिया को कवरेज करने के दौरान दौड़ा – दौड़ा के पिटवा रहे हैं। कई बार शिकायत भी की गई। लेकिन हर शिकायत का जो नतीजा निकलता है। वही इसका भी निकला और नतीजा ढाक के तीन पात।
तब इस इस विषम परिस्थित में टीवी जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने फैसला लिया कि लाल बाग के राजा को मण्डप में कवरेज नहीं करेंगे केवल विसर्जन के दिन मण्डप के बाहर कवरेज किया जायेगा। यह कवरेज करने की परंपरा विगत चार साल से चल रही है। इन चार सालों में लाल बाग के राजा के दर्शनार्थियों में भी कमी आ गई। भक्तों की कमी आने से सबसे पहले आयजकों के जेब में भारी कमी आई। इस कमी को पूरा करने के लिए आयोजकों ने सोचा कि मीडिया को लक्ष्मी का भोग लगाना जरूरी है। मोदक से काम नहीं चलेगा। लिहाजा सबसे पहले आयोजकों ने टीवी जर्नलिस्ट एसोसिएशन के खजांची साहब को पकड़ा। खजांची साहब तो हमेशा खज़ाने की तलाश में रहते ही हैं। जिस एसोसिएशन ने कवरेज न करने का फैसला किया था, उसी एसोसिएशन को लक्ष्मी का भोग लगते ही मीडिया के हमले को भूलकर फिर से पिटवाने की तलाश में घूम रहे हैं। हालांकि मीडिया के रिपोर्टर और कैमरा मैन कई बार कह चुके हैं कि कवरेज करने में कोई समस्या नहीं है किंतु आयोजकों को यह जिम्मेदारी लेना होगा कि मण्डप के अंदर या बाहर मीडिया के ऊपर हमला नहीं किया जायेगा, लेकिन आयोजक लिखित में आश्वासन देने से कतरा रहे हैं। एक तरफ आयोजक कवरेज के लिए परेशान हैं और दूसरी तरफ किसी भी अनहोनी की जिम्मेदारी लेने से भी कतरा रहे हैं। इस जिम्मेदारी से बचने के लिए मीडिया घराने के ब्यूरोचीफ टाइप के प्राणियों को पकड़ा गया है। अब टीवी जर्नलिस्ट एसोसिएशन के खजांची साहब बहुत तेज हैं । तेज के गेयर में हमेशा रहते हैं, लिहाजा खजांची साहब कवरेज करने के लिए पिल पड़े और साथ में मुंबई के मीडिया घराने के सभी ब्यूरोचीफ टाइप प्राणियों को भी अपने लपेटे में ले लिया है। अब ब्यूरोचीफ कोई छोटा-मोटा प्राणी तो है नहीं, उन्हें भी जब तक लक्ष्मी जी का अच्छे से भोग नहीं लगता तब तक वो कुपित रहते हैं। फिलहाल रिपोर्टर और कैमरामैनों तुम लोग लिखित मांगते रहोगे और आपके आका भोग लगा के आपको कवरेज के लिए ठेल देंगे। अब ये बात साफ हो गई है कि ब्यूरोचीफ भाई लोग भी अब गणपति बप्पा मोरया गाना गा रहे हैं। क्योंकि भोग तो अच्छा खासा लग चुका है। बचे रिपोर्टर कैमरामेन लोग तो आप लोग भी पिछली बार की तरह जो प्रसाद (मार) मिला था, उस प्रसाद से बच के रहना और बोलो गणपति बप्पा मोरया।।। (अज्ञात कुमार)
भोपाल। वैदिक काल से मनोरंजक का अस्तित्व रहा है। नाट्यशास्त्र की रचना इसका उदाहरण है। देवताओं के राजा इंद्र ने कहा था कि देवताओं को रंगमंच का भय रहता है। इसके लिए ज्ञानी लोगों की जरूरत है। अमृत मंथन को दुनिया की पहली नाट्य प्रस्तुति माना जाता है। इस नाटक को देखने के बाद प्रजापति ने कहा कि इसमें सौन्दर्य का अभाव है। इसके बाद उन्होंने इंद्र को 25 अप्सरायें दी। आज भी फिल्मों में अप्सराओं की जरूरत पड़ती है। सुप्रसिद्ध फिल्म निर्देशक व अभिनेता डा. चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने यह बात कही। श्री द्विवेदी शुक्रवार को मुंबई प्रेस क्लब में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता व जनसंचार विश्वविद्यालय, भोपाल के रजत जयंती वर्ष के मौके पर आयोजित संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे।
संगोष्ठी के पहले सत्र ‘मनोरंजन का संसार एवं बदलता सांस्कृतिक परिदृश्य’ विषय पर अपने विचार रखते हुए धारावाहित चाणक्य से प्रसिद्ध हुए डा. द्विवेदी ने कहा कि मनोरंजन सिर्फ फिल्में व टीवी नहीं हैं। क्रिकेट और फुटबाल भी मनोरंजन है। उन्होंने कहा की आजादी की लड़ाई लड़ रहे महात्मा गांधी से जब कहा गया है कि फिल्म एक प्रभावशाली माध्यम है। इसलिए फिल्मों को भी आजादी की लड़ाई से जोड़ा जाए तो बापू इसके लिए तैयार नहीं हुए। क्योंकि उनको फिल्म वालों के चरित्र पर विश्वास नहीं था। आज भी मध्यवर्गीय भारतीयों के मन में फिल्मों से जुड़ों लोगों को लेकर एक अविश्वास है। इसको लेकर ख्वाजा अहमद अब्बास ने बापू को लंबा पत्र भी लिखा था। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, दिल्ली के सदस्य सचिव डा सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि हम कलात्मक विलासिता की तरफ बढ़ रहे हैं। जिस तरह मनोरंजन का संसार बदल रहा है। उसको स्वीकार करने के लिए हमें खुद में भी बदलाव लाना होगा। डा. जोशी ने कहा कि व्यक्ति अपनी मनस्थिति के हिसाब से सुखी व दुखी रहता है। मनोरंजन के दुनिया के लोगों को यह बात समझनी होगी। वहीँ, कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने कहा कि मीडिया का 70 फीसदी हिस्सा मनोरंजन है, लेकिन किसी भी विश्वविद्यालय में इसकी पढ़ाई नहीं होती थी। तीन साल पहले माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि में एमबीए इन इंटरटेन कम्यूनिकेशन की पढ़ाई शुरू की गई। इस विषय की पढ़ाई शुरू करने से पहले इसको लेकर हमारे मन में काफी संकोच था। पर हमें लगा की मनोरंजन के क्षेत्र में प्रबंधन का महत्व बढ़ने वाला है। इस लिए यह पढ़ाई लोगों के काम की होगी। उन्होंने कहा कि भारत में मनोरंजन के क्षेत्र में हस्तक्षेप की जरूरत है। चर्चा सत्र का संचालन माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया।
फिल्मकारों का साहित्य से नहीं है नाता :
संगोष्ठी के दूसरे सत्र में ‘मनोरंजन व मर्यादा’ विषय पर चर्चा की शुरुआत करते हुए ‘वेलकम टू सज्जनपुर’ व ‘वेलडन अब्बा’ जैसी फिल्मों के लेखन अशोक मिश्र ने कहा कि आज मनोरंजन के लिए ज्ञानी होने की जरूरत नहीं है। अधिकांश फिल्मकारों का साहित्य से कोई सरोकार नहीं है। इसके बावजूद वे सफल हैं। आज एआईबी जैसे शो भी मनोरंजन का साधन हैं और इसकी आलोचना करने वालों को पिछड़ा समझा जाता है। उन्होंने कहा कि न्यूज चैनल भी मनोरंजन का साधन बन चुके हैं। मंत्री का सेक्स स्कैंडल लोगों के लिए सिर्फ खबर नहीं बल्कि मनोरंजन का साधन है। श्री मिश्र ने कहा सत्यजीत रे यथार्थवादी सिनेमा के लिए जाने जाते हैं। लेकिन उन्होंने रियलिटी दिखाने के लिए कभी गालियों का सहारा नहीं लिया। लेकिन आज के फिल्म निर्माता-निर्देशक अपनी फिल्मों में गालियों के इस्तेमाल के लिए सेंसर बोर्ड से लड़ रहे हैं। फिल्म ’वेलकम बैक’ के सह निर्देशक व आने वाली फिल्म एमएस धोनी के कार्यकारी निर्माता विनित जोशी ने कहा कि फिल्म वेलकम बैक में सेंसर बोर्ड ने दर्जनभर से अधिक कट लगाए थे। इस फिल्म को मर्यादा में लाने के लिए हमें चार दिन लगे। उन्होंने कहा कि मर्यादा में रहकर भी सुपरहिट फिल्में बनाई जा सकती हैं। फिल्मकार सुदीप्तो सेन ने कहा कि भारतीय सिनेमा में हिंदी सिनेमा का कोई खास योगदान नहीं है। सिनेमा के लिए अक्षय कुमार और सलमान खान की जरूरत नहीं। नमस्ते लंदन, वेलकम बैंक सहित दर्जनों फिल्मों के कलानिर्देशक जयंत देशमुख ने कहा कि फिल्म की कहानी अमर्यादित होने पर भी हम चाह कर वह फिल्म नहीं ठुकरा सकते क्योंकि हमारे पास विकल्प नहीं। उन्होंने कहा कि टीआरपी के लिए टीवी सीरियल की कहानी बदलती रहती है और बाद मे वह कहानी मर्यादा तोड़ने लगती है। विश्वविद्यालय के कुलाधिसचिव लाजपत आहूजा ने कहा कि दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्में भारत में बनती हैं। लेकिन हम ही सबसे बड़े नकलची भी हैं। प्रेमचंद जैसे लेखक का फिल्म इंडस्ट्री से बहुत जल्द मोहभंग हो गया था। संगोष्ठी के तीसरे सत्र में ‘मनोरंजन की संस्कृति और मीडिया दृष्टि’ विषय पर हुई परिचर्चा में वरिष्ठ पत्रकार विश्वनाथ सचदेव, हरि मृदुल व रूना गुप्ते ने अपने विचार व्यक्त किए। संचालन डा सौरभ मालवीय ने किया।
लेकिन प्रधानसेवक के आगे उसकी तारीफ में एक शब्द भी नहीं लिखा-बोला गया. लिखा-बोला क्या, ये जानने की कोशिश तक नहीं की जा रही कि उसके दिमाग में ये आइडिया आखिर किस तरह से आया और कैसे उसने इसे आगे पिच किया. यही काम अभी पेप्सी, कोक, क्रैकजैक के लिए किया जाता तो पीयूष पांडे, प्रहलाद कक्कड़ और प्रसून जोशी जैसे विज्ञापन गुरू के घर बधाई का तांता लग जाता है.
स्वाभाविक है कि ये सब एक दिन का कारनामा नहीं है. अदने हवाई चप्पल और शक्तिवर्धक चूरन के विज्ञापन तैयार करने में तेल निकल जाते हैं. यकीन न हो तो गजनी एक बार फिर से देखें. ऐसे में जिस मोबाईल से पूरे हिन्दुस्तान की तस्वीर बदलने जा रही हो और जिसका विज्ञापन हिन्दुस्तान की तस्वीर बदल देने में दिन-रात लगे प्रधानसेवक से विज्ञापन कराने की योजना बनी होगी, कितने स्तर पर मेहनत करनी पड़ी होगी. रंगों के चयन में ही दुनियाभर की माथापच्ची करनी पड़ी होगी और प्रधानसेवक को भाजपा का भगवा-हरा छोड़कर ब्लू-सफेद अपनाने में थोड़ा ही सही, वक्त लगा होगा. ( यदि ये सब पूर्व प्रायोजित है तो इसकी व्याख्या ऐसी ही होगी लेकिन यदि रिलांयस ने महज इनकी छवि का इस्तेमाल किया है तो पीएमओ ऑफिस की तरफ से प्रधानमंत्री की इस तरह से छवि इस्तेमाल करने संबंधी जरूर स्पष्टीकरण देने की जरूरत बनती है)
2 जी के संदर्भ में वैष्णवी कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन की डायरेक्टर नीरा राडिया का नाम हमारे बीच बेहद हिकारत से लिया जाता रहा है. लेकिन ऐसा करते वक्त हम शायद भूल जाते हैं कि ये वही शख्स है जो एक ही साथ रिलायंस इन्डस्ट्रीज और टाटा कंपनी के लिए पीआर स्ट्रैटजी तैयार करती रही हैं. ये वही शख्स है जो एक तरफ सरकारी महकमे के एक से एक दिग्गज चेहरे तो दूसरी तरफ मीडिया के आकाओं को साधती रही हैं. 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले से जुड़े टेप जब एक के बाद एक करके जारी होने शुरू हुए, उस वक्त भी हमने कहा था कि आप चाहे लाख इस बात पर सिर कूट रहे होंगे कि ऐसा होने से पत्रकारिता ध्वस्त हो गई लेकिन आगे यही पैटर्न होगा. इन टेप को मीडिया पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए और कम से कम विज्ञापन एवं जनसंपर्क के छात्रों को तो इसे अनिवार्य पाठ के तौर पर एक बार जरूर गुजरना चाहिए.
रिलांयस जियो में प्रधानसेवक के इस विज्ञापन से 2011-12 के दौरान जो धुंधलापन था, वो अब पूरी तरह छंट गया है. आप कह सकते हैं ये सरकार, पीआर-मीडिया और कॉर्पोरेट के गंठजोड़ का सबसे लेटेस्ट संस्करण है. कल तक जो जिम्मेदारी नीरा राडिया जैसे पीआर दिग्गज के हाथों में थी, वो जिम्मेदारी अब प्रधानसेवक ने खुद अपने उपर ले ली. कॉर्पोरेट और सरकार के बीच कोई तीसरी एजेंसी नहीं.
अब इससे होगा ये कि रिलांयस जियो का विरोध करने का मतलब प्रधानसेवक की छवि और उनकी साख पर सवाल खड़ा करना है. ये ठीक उसी तरह है जैसे साल 2012 के पहले तक जी न्यूज- इंडिया टीवी जैसे चैनलों की हरकतों की आलोचना करना, मीडिया आलोचना का हिस्सा था, उसके बाद वो राष्ट्रद्रोह का हिस्सा होता चला गया. आप जी न्यूज से असहमति में लिखते हैं तो उसका जवाब देने जी न्यूज के मीडियाकर्मी चाहें न आएं, बहुमत की सरकार चला रही राजनीतिक पार्टी के समर्थक जरूर विरोध में उतर आएंगे.
ऐसे में अब कॉर्पोरेट से असहमति, कॉर्पोरेट मीडिया से असहमति का मतलब है, सरकार का विरोध और सरकार का विरोध मतलब देशद्रोह. बेहद ही दिलचस्प दौर है ये कि साल 2011-12 में जिस 2जी मसले पर यूपीए की सरकार भरभराकर खत्म हो गई और एक से एक मीडिया दिग्गजों की साख मिट्टी में मिल गई, उसकी जड़ें मौजूदा सरकार में आकर इतनी गहरी हो गई कि अब इसकी शाखाओं पर भ्रष्टाचार के जहरीले फल नहीं, राष्ट्रभक्ति के फूल खिलने लगे हैं.