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बाबा कीनाराम महोत्सव में लगा पत्रकारों का जमावड़ा




प्रेस विज्ञप्ति

“बाबा कीनाराम अघोरपीठ”, रामशाला, रामगढ़, चन्दौली के तत्त्वाधान में अघोर-परम्परा के आधुनिक स्वरुप के जनक माने कहे जाने वाले विश्व-विख्यात महान संत, अघोराचार्य महाराजश्री बाबा कीनाराम का 3 दिवसीय 417 वां जन्म-समारोह, पूजा-पाठ, विचार-गोष्ठी, सांस्कृतिक कार्यक्रम के ज़रिये, लाखों लोगों की मौज़ूदगी में, विशाल पैमाने पर मनाया गया ! बाबा कीनाराम जी के जन्मस्थान, रामगढ़, चन्दौली में 31 अगस्त से 2 सितंबर तक मनाये गये इस समारोह में, देश-दुनिया के, कई गणमान्य व्यक्तियों और नामी-कलाकारों ने हिस्सा लिया !

31 अगस्त को, “बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड” वाराणसी व “बाबा कीनाराम अघोरपीठ”, रामशाला, रामगढ़, चन्दौली के पीठाधीश्वर अघोराचार्य महाराजश्री बाबा सिद्धार्थ गौतम राम द्वारा आरती-पूजन के पश्चात 3 दिवसीय कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ ! तीनों दिन, सुंदर-काण्ड पाठ व भजन-गायन के बाद दोपहर पश्चात विचार-गोष्ठी व तदुपरांत सांस्कृतिक कार्यक्रम चला ! इस महोत्सव के अंतिम दिन (2 सितंबर को) , पीठाधीश्वर अघोराचार्य बाबा सिद्धार्थ गौतम राम के आशीर्वचन के बाद इस महोत्सव का समापन हुआ ! सभी देवी-देवताओं को नमन करते हुए अपने आशीर्वचन में बाबा ने कहा … ” बंधुओं ! जिस विषम-परिस्थितियों में यह देश चल रहा है, जिसमें बहुत तरह की बुराइयां-बहुत तरह की अच्छाइयां सब हैं ! इस बदलते परिप्रेक्ष्य में आप को भी अपने अन्दर बदलाव लाना होगा, तभी, अच्छे समाज, एक अच्छा-राष्ट्र, एक अच्छा गाँव बन सकता है ! अगर,आप, अपने अन्दर बदलाव नहीं लायेंगें, तो फिर, न आप का कुछ कल्याण होगा, न इस देश का होगा, न समाज का होगा ! सब बहती गंगा की तरह बह जायेंगें ! आप में मलिन संस्कार आ जायेंगे ! तो, बंधुओं ! इस घड़ी में, आपको, अपने अन्दर बदलाव लाके, एक अच्छे समाज-एक अच्छे राष्ट्र की परिकल्पना करनी ही होगी ” ! “बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड” वाराणसी व “बाबा कीनाराम अघोरपीठ” रामशाला, रामगढ़, चन्दौली के पीठाधीश्वर के तौर पर उपस्थित आम जन-मानस को अपना आशीर्वाद व कार्यक्रम को सफल बनाने में सहयोग देने के लिए सभी का आभार मानते हुए बाबा गौतम राम ने उम्मीद जतलाई….. ” आने वाले कुछ वर्षों में , इस पीठ के तहत, संकल्पित सुन्दर व्यवस्था के ज़रिये परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त होगा और एक नयी चेतना का संचार होगा ” !

इससे पहले “बाबा कीनाराम जी व अघोर परम्परा तथा इसका सामाजिक एवं आध्यात्मिक सरोक़ार” के विषय पर चली विचार-गोष्ठी में, तीनों दिन, देश के प्रख्यात विद्तजनों-गणमान्य नागरिकों ने बाबा कीनाराम की अदभुत-औलौकिक, आध्यात्मिक-सामाजिक चेतना का बखान किया ! साथ ही कई शोध-कर्ताओं ने अपने शोध के ज़रिये निचोड़ का ज़िक्र करते हुए ये ख़ुलासा किया,कि, वर्तमान पीठाधीश्वर अघोराचार्य महाराजश्री बाबा सिद्धार्थ गौतम राम के रूप में बाबा कीनाराम जी का स्वयं दुबारा आगमन हुआ है !

वाराणसी के जाने-माने अघोर-शोधकर्ता डा. गया सिंह ने कहा कि…. “बाबा कीनाराम जी का प्राकट्य कोई एक आध्यात्मिक घटना-मात्र नहीं, बल्कि, बल्कि भगवान शिव का मानव-तन में आगमन था ! बाबा कीनाराम की आध्यात्मिक चेतना जितनी प्रबल थी , उससे कहीं ज़्यादा उनमें मानव-मात्र की सेवा का भाव था ! 1771 में, अपनी समाधि के वक़्त, बाबा कीनाराम जी ने बाल-रूप में पुनः “बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड” के 11वें पीठाधीश्वर के तौर पर आने की आकाशवाणी की थी ” ! गौरतलब है, कि , वर्तमान में, अघोर-परम्परा के विश्व-विख्यात केन्द्र-बिन्दु (“बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड”) के मुखिया, 11वें (वर्तमान ) पीठाधीश्वर बाबा सिद्धार्थ गौतम राम , बाल-रूप (मात्र नौ वर्ष की अवस्था) में अघोर-परम्परा की सर्वोच्च गद्दी पर आसीन हुए ! “बिलासपुर (छत्तीसगढ़) हाई-कोर्ट” के जस्टिस माननीय श्री चन्द्र-भूषण वाजपेई ने अघोर परम्परा को आध्यात्मिक व्यवस्था की सर्वोच्च इकाई क़रार देते हुए आव्हान किया….. “आज हमें बाबा कीनाराम जी के आदर्शों पर चलने की ज़रुरत है और उनके पुनर्गामित शिव-स्वरुप बाबा सिद्धार्थ गौतम जी के मार्ग-निर्देशन में, समाज व राष्ट्र हेतु , यथासंभव अपना योगदान देने की आवश्यकता है ! आध्यात्म में मंत्र और सेवा का जाप ही प्रमुख है ” ! “राजस्थान-पत्रिका” के सम्पादक राजेश गहरवार ने अघोर-परम्परा को सेवा से सीधा जोड़ते हुए कहा, कि, “आध्यात्म और समाज एक दुसरे के पूरक हैं और इन्हें अलग कर नहीं देखा जा सकता” ! अघोर-परम्परा को आध्यात्म और समाज की एक शानदार विरासत बतलाते हुए श्री राजेश ने कहा “संत-महात्माओं के बताये रास्ते पर चल-सीख कर ही मानवता की सेवा की जा सकती है “!

“देशबंधु” न्यूज़-पेपर (नई-दिल्ली) के सम्पादक श्री जयशंकर गुप्ता ने कहा कि ….. “ये देश अध्यात्म और सेवा का देश था, है और रहेगा ! ये देश आध्यात्म के नाम पर ठगी करने वालों का नहीं, बल्कि, सेवा और अदभुत आध्यात्मिक विभूति संजोये बाबा कीनाराम और बाबा सिद्धार्थ गौतम राम का है” ! गोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए राष्ट्रीय समाचार न्यूज़-चैनल “APN News” (नोएडा) के प्रबंध-सम्पादकश्री विनय राय ने बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी से आग्रह किया कि ” आप दुर्लभ संत-महात्मा की अगुवाई में ही राष्ट्र व समाज हित को गति दी जा सकती है” ! अपनी बात को आगे बढाते हुए विनय राय ने इस बात पर ख़ासा जोर दिया कि…” आज अघोर की आध्यात्मिक व मानवीय उपलब्धियों को विभिन्न संचार तंत्रों के ज़रिये प्रकाशित-प्रसारित करने की ज़रुरत है ” ! “आउटलुक” (नई-दिल्ली) पत्रिका के विशेष संवाददाता श्री कुमार पंकज ने अघोर परम्परा का उल्लेख करते हुए कहा कि …”ये परम्परा आध्यात्म की सर्वोच्च अवस्था है जिसका आध्यात्मिक सरोक़ार अगर शीर्ष पर है तो नैतिक व सामाजिक समाजिक कर्तव्य भी अनुकरणीय है” !”काशी-हिन्दू विश्व-विघालय” के वाइस-चांसलर गिरीश चन्द्र त्रिपाठी ने कथनी-करनी में समानता की बात पर बल देते हुए कहा, कि, ….” आज शहरों को गाँव में लाने की बजाय, गांवों के नैतिक मूल्यों को शहर में ले जाने की ज़रुरत है” ! गाँवों के नवयुवकों को ऊर्जा से भरपूर क़रार देते हुए श्री त्रिपाठी ने आव्हान किया….”गाँव के युवकों को अगर हम सही दिशा और शिक्षा दे सकें तो इसका लाभ पूरे देश को मिल सकता है ” !

चर्चा को आगे बढ़ाते हुए “दैनिक जागरण” (नई दिल्ली) के डिप्टी ब्यूरो चीफ़ श्री एस.पी.सिंह ने कहा,कि, ….. “आज राष्ट्र व समाज में कई विसंगतियां-समस्याएँ है, जिसे सुलझाने में राजनीतिक-प्रशासनिक तंत्र काफ़ी हद तक असफल रहा है ! ऐसे में बाबा कीनाराम जी व बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी के आदर्शों-सिद्धांतों के पर चलने की ज़रुरत है ” ! “दैनिक भास्कर” व “नई दुनिया” सहित कई अखबारों के पूर्व सम्पादक मुंबई के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार श्री ओमप्रकाश सिंह ने अघोर परम्परा की शानदार विरासत का उल्लेख करते हुए कहा कि …. “आज बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी का रूप धर कर बाबा कीनाराम जी , स्वयं, अपनी मात्रभूमि रामगढ़ में पधारे हैं ! ये जन्म-महोत्सव न सिर्फ रामगढ़ के लिए अपितु पूरी मानव-जाति के लिए प्रेरणा-स्त्रोत बनेगा ” ! “सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्व-विघालय”, वाराणसी के वाइस-चांसलर श्री यदुनाथ दुबे ने बाबा कीनाराम व अघोर परम्परा पर प्रकाश डालते हुए बहुत गूढ़ जानकारी देते हुए कहा, कि, …. “बाबा कीनाराम जी की सिद्धांत और आदर्श आज लोगों के लिए प्रेरणा का काम कर सकते है, बशर्ते, लोग इस परम्परा के विशाल आध्यात्मिक तथा मानवीय पहलुओं को समझने की कोशिश करें ! मानव-जाति के उत्थान में ये बहुत मददगार साबित होगा” ! गोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए “गुरू घासीदास विश्व-विघालय” (छत्तीसगढ़) के पूर्व-कुलपति व “योजना आयोग”के पूर्व-सदस्य डा. दीनानाथ तिवारी ने कहा कि …. “प्रकृति हो या समाज , आज सबके संरक्षण की ज़रुरत है ! आज अपनी पुरानी थातियों को खंगालने से हमें बहुत कुछ हासिल हो सकता है !” गोष्ठी में कई जाने-माने लोगों ने बाबा कीनाराम और अघोर परम्परा व वर्तमान में बाबा सिद्धार्थ गौतम राम की अगुवाई में समाज-राष्ट्र व सम्पूर्ण संसार में सकारात्मक बदलाव की उम्मीद जतलाई !

उधर कार्यक्रम में लाखों लोगों की मौज़ूदगी व संध्याकालीन सांस्कृतिक कार्यक्रम के तहत भारत के जाने-माने कलाकारों की उपस्थिति ने पुलिस-प्रशासन को बेहद चौकन्ना कर रखा था ! आयोजन समिती के अध्यक्ष, अजित कुमार सिंह, की अगुवाई और वरिष्ठ अधिकारियों की लगातार विज़िट से स्वयं-सेवक तथा पुलिस-कर्मी काफ़ी मुस्तैद दिखे ! हर जगह प्रशासन ने बेहतर तरीके से अपने काम को अंजाम दिया ! कार्यक्रम का शानदार संचालन धनंजय सिंह, सूर्यनाथ सिंह और राजेन्द्र पाण्डेय ने किया !

(नीरज वर्मा की रिपोर्ट)

सृजनगाथा अंतर्राष्ट्रीय साहित्य सम्मानों के लिए प्रविष्टियाँ आमंत्रित

रायपुर । अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी और हिंदी-संस्कृति को प्रतिष्ठित करने के लिए साहित्यिक वेब पत्रिका ‘सृजनगाथा डॉट कॉम’ द्वारा प्रतिवर्ष दिए जाने वाले सम्मानों व पुरस्कारों के लिए रचनाकारों, प्रशंसकों व संस्थाओं और प्रकाशकों से प्रविष्टियाँ 30 नवंबर 2016 तक आमंत्रित हैं। इन सम्मानों का निर्णय वरिष्ठ साहित्यकारों के निर्णायक मंडल द्वारा किया जाएगा। ये सम्मान 13 वें अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन, बाली/इंडोनेशिया (2 फरवरी से 9 फरवरी, 2017) में प्रदान किए जाएँगे । अपरिहार्य कारणों से सम्मेलन में सहभागिता नहीं कर पाने वाले चयनित रचनाकार को रायपुर में आयोजित समारोह में यह सम्मान प्रदान किया जा सकेगा । सभी प्रविष्टियाँ जयप्रकाश मानस, संयोजक, अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन, एफ-3, छगमाशिम, आवासीय परिसर, पेंशनवाड़ा, रायपुर, छत्तीसगढ़-492001, मो.-9424182664 के पते पर भेजी जा सकती हैं।

सृजनगाथा डॉट कॉम सम्मान-2016 :
सम्मान स्वरूप वरिष्ठ प्रतिभागी रचनाकार को साहित्यिक वेब पत्रिका सृजनगाथा डॉट कॉम द्वारा 21,000 रुपये नकद, शॉल, श्रीफल, प्रशस्तिपत्र प्रदान किया जाएगा। प्रतिभागी रचनाकार की उम्र 45 वर्ष से अधिक होनी चाहिए। इस सम्मान के लिए रचनाकार को अपनी प्रतिनिधि विधा या प्रकाशित किताब (केवल कथा या कविता केंद्रित) की 2-2 प्रतियाँ जो विगत 3 वर्षो के भीतर प्रकाशित हुई हो, प्रविष्टि के रूप में बायोडेटा और फोटो के साथ रजिस्ट्री डाक से भेजना अनिवार्य होगा।

विन्ध्य सृजन सम्मान-2016 :
देश के प्रख्यात भाषाविद् और हिन्दी-संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान डॉ. मूल शंकर शर्मा की स्मृति में भाषा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले भाषाविद्/रचनाकार को ‘विन्ध्य सृजन सम्मान’ से विभूषित किया जाएगा। सम्मान में 11,000 रुपये, स्वर्ण सम्मान पत्र व अंगवस्त्रम प्रदान किया जाएगा। इस सम्मान के लिए सम्मेलन के प्रतिभागी रचनाकार को भाषा, भाषाविज्ञान, ध्वनिविज्ञान या भाषा के क्षेत्र में नवाचार को प्रमाणित करने वाली साहित्यिक कृतियों आदि से संबंधित कृतियों की 2-2 प्रतियाँ जो विगत 3 वर्षो के भीतर प्रकाशित हुई हो, बायोडेटा और फोटो के साथ श्री विजय शंकर चतुर्वेदी, संयोजक ‘विन्ध्य सृजन सम्मान’, सोनभद्र, उत्तरप्रदेश, मो. नं. 09415233578 ईमेल के पते पर रजिस्ट्री डाक से भेजना अनिवार्य होगा।

पं.गिरिजा कुमार पांडेय सम्मान-2016 :
ख्यात छायावादी कवि पद्मश्री डॉ. मुकुटधर पांडेय के प्रपौत्र, सुपरिचित लेखक, संस्कृतिकर्मी स्व. श्री गिरिजा कुमार पांडेय (रायगढ़, छत्तीसगढ़) की स्मृति में रचनात्मक लेखन को प्रोत्साहित करने हेतु ‘गिरिजा कुमार पांडेय स्मृति सम्मान-2016 प्रदान किया जायेगा । सम्मान में 21,000 रुपये, सम्मान-पत्र आदि प्रदान किया जाएगा । यह सम्मान सम्मेलन के प्रतिभागी रचनाकार को उसकी उस प्रकाशित उत्कृष्ट उर्दू कविता संग्रह (सांगीतिक ग़ज़ल एलबम भी) पर दिया जायेगा जो भारतीय जीवन मूल्यों के साथ जीवन की प्रगतिशीलता को नयी संभावनाओं के साथ स्थापित करती हो । अतः विगत 3 वर्षो के भीतर कृति, बायोडेटा और फोटो के साथ जयप्रकाश मानस, संयोजक, अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन, एफ-3, छगमाशिम, आवासीय परिसर, पेंशनवाड़ा, रायपुर, छत्तीसगढ़-492001, मो.-9424182664 के पते पर बायोडेटा और फोटो के साथ रजिस्ट्री डाक से भेजना अनिवार्य होगा ।

सिन्धु रथ स्मृति सम्मान-2016 :
ओड़िया, हिन्दी और छत्तीसगढ़ी की कवयित्री-कथाकार सिन्धु रथ स्मृति सम्मान केवल महिला रचनाकार (किसी भी विधा में मौलिक और उल्लेखनीय योगदान) के नाम होगा। सम्मान स्वरूप महिला रचनाकार को 11 ,000 की नगद राशि, मानपत्र, प्रतीकचिह्न् से अलंकृत किया जाएगा। इस सम्मान के लिए प्रतिभागी रचनाकार को कृतियों की 2-2 प्रतियाँ जो विगत 3 वर्षो के भीतर प्रकाशित हुई हो, जयप्रकाश मानस, संयोजक, अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन, एफ-3, छगमाशिम, आवासीय परिसर, पेंशनवाड़ा, रायपुर, छत्तीसगढ़-492001, मो.-9424182664 के पते पर बायोडेटा और फोटो के साथ रजिस्ट्री डाक से भेजना अनिवार्य होगा ।

प्रो. सहदेव सिंह स्मृति सम्मान 2016 :
हिंदी के वरिष्ठ विचारक, लेखक, संपादक और उत्तरप्रदेश में प्रथम विधानसभा के समाजवादी विधायक प्रो. सहदेव सिंह स्मृत सम्मान स्वरूप प्रतिभागी रचनाकार को 11 ,000 की नगद राशि, मानपत्र, प्रतीकचिह्न् से अलंकृत किया जाएगा। इस सम्मान के लिए प्रतिभागी रचनाकार को समाजशास्त्रीय/समाजवादी विचारधारा की किसी भी विधा कृतियों की 2-2 प्रतियाँ, जो विगत 3 वर्षो के भीतर प्रकाशित हुई हो, बायोडेटा और फोटो के साथ रजिस्ट्री डाक से भेजना अनिवार्य होगा ।

सलेकचंद जैन स्मृति सम्मान 2016 :
दिल्ली के समाजसेवा, चिंतक स्व. सलेकचंद जैन स्मृति सम्मान स्वरूप प्रतिभागी रचनाकार को 11,000 की नगद राशि, मानपत्र, प्रतीक चिह्न् से अलंकृत किया जाएगा। इस सम्मान के लिए प्रतिभागी रचनाकार को साहित्य की किसी भी विधा की उत्कृष्ट कृतियों की 2-2 प्रतियाँ, जो विगत 3 वर्षो के भीतर प्रकाशित हुई हो, बायोडेटा और फोटो के साथ रजिस्ट्री डाक से भेजना अनिवार्य होगा ।

सत्या कुंद्रा स्मृति पुरस्कार-2015 :
हिंदी के मूर्धन्य व्यंग्यकार डॉ. प्रेम जनमेजय जी की माताजी की स्मृति में प्रारंभ इस पुरस्कार के तहत सृजन गाथा डॉट कॉम द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में भाग लेने वाले प्रतिभागियों को ही 5,100 रुपये की नकद राशि, स्मृतिचिह्न् अंग वस्त्रम् एवं शाल प्रदान किया जाएगा। इस सम्मान के लिए सम्मेलन के प्रतिभागी रचनाकार को गद्यात्मक कृति अर्थात् कथा, उपन्यास, निबंध, डायरी, आलोचना आदि कृतियों आदि से संबंधित कृतियों की 2-2 प्रतियाँ जो विगत 3 वर्षो के भीतर प्रकाशित हुई हो, बायोडेटा और फोटो के साथ रजिस्ट्री डाक से भेजना अनिवार्य होगा ।

बाबू मावली प्रसाद श्रीवास्तव स्मृति सम्मान 2016 :
द्विवेदी युग के ख्यात निबंधकार, विचारक, लेखक बाबू मावली प्रसाद श्रीवास्तव स्मृति सम्मान स्वरूप प्रतिभागी रचनाकार को 5 ,000 की नगद राशि, मानपत्र, प्रतीक चिह्न् से अलंकृत किया जाएगा। इस सम्मान के लिए प्रतिभागी रचनाकार को निबंध/ललित निबंध की कृतियों की 2-2 प्रतियाँ, जो विगत 3 वर्षो के भीतर प्रकाशित हुई हो, बायोडेटा और फोटो के साथ रजिस्ट्री डाक से भेजना अनिवार्य होगा ।

मिनीमाता स्मृति सम्मान 2016 :
ख्यात शिक्षाविद्, समाजसुधारक, प्रथम लोकसभा की सदस्या मिनीमाता स्मृति सम्मान स्वरूप प्रतिभागी रचनाकार को 51,000 की नगद राशि, मानपत्र, प्रतीक चिह्न् से अलंकृत किया जाएगा। इस सम्मान के लिए प्रतिभागी रचनाकार को सामाजिक उत्थान, दलित चिंतन, सर्वजन हिताय को प्रोत्साहित करने वाली किसी भी विधा की उत्कृष्ट कृतियों की 2-2 प्रतियाँ, जो विगत 3 वर्षो के भीतर प्रकाशित हुई हो, बायोडेटा और फोटो के साथ रजिस्ट्री डाक से भेजना अनिवार्य होगा ।

बोधनलाल यादव स्मृति सम्मान 2016 :
छत्तीसगढ़ के लोक मर्मज्ञ, संस्कृतिकर्मी स्व. बोधनलाल यादव स्मृति सम्मान स्वरूप प्रतिभागी रचनाकार को 5100 की नगद राशि, मानपत्र, प्रतीक चिह्न् से अलंकृत किया जाएगा। इस सम्मान के लिए प्रतिभागी रचनाकार को लोक साहित्य, लोककर्म, लोकरंग, लोकधर्म, आध्यात्मिकता को प्रोत्साहित करने वाली उत्कृष्ट कृतियों की 2-2 प्रतियाँ, जो विगत 3 वर्षो के भीतर प्रकाशित हुई हो, बायोडेटा और फोटो के साथ रजिस्ट्री डाक से भेजना अनिवार्य होगा ।

नये पाठक सम्मान 2016 :
हिंदी की महत्वपूर्ण त्रैमासिकी नये पाठक सम्मान स्वरूप प्रतिभागी रचनाकार को 5100 की नगद राशि, मानपत्र, प्रतीक चिह्न् से अलंकृत किया जाएगा। इस सम्मान के लिए प्रतिभागी रचनाकार को छांदस विधा यथा – गीत, नवगीत, ग़ज़ल आदि की कृतियों की 2-2 प्रतियाँ, जो विगत 3 वर्षो के भीतर प्रकाशित हुई हो, बायोडेटा और फोटो के साथ रजिस्ट्री डाक से भेजना अनिवार्य होगा ।

आशुतोष ने घोर पाप किया है – संजय पुगलिया

आशुतोष ने घोर पाप किया है - संजय पुगलिया
आशुतोष ने घोर पाप किया है - संजय पुगलिया

राजनीति में ओछेपन की कोई सीमा नहीं होती. पत्रकार से राजनीतिज्ञ बने आशुतोष इसका ताजा उदाहरण हैं. राजनीतिक स्वार्थ साधने के लिए अब वे कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं. यहाँ तक कि उन्होंने टेलीवजन के अपने गुरु एसपी सिंह (सुरेन्द्र प्रताप सिंह) को भी नहीं छोड़ा. एसपी सिंह को भारत में टेलीविजन पत्रकारिता का जनक माना जाता है. उन्होंने ही पहली बार टेलीविजन माध्यम में आशुतोष को दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले ‘आजतक’ कार्यक्रम में काम करने का मौका दिया.लेकिन अब वे एसपी को भी भुनाने से नहीं चूक रहे.

गौरतलब है कि आम आदमी पार्टी के पूर्व मंत्री संदीप कुमार का वे लगातार समर्थन कर रहे हैं और उसी क्रम में न्यूज़ चैनलों की आलोचना भी कर रहे हैं.आशुतोष ने कल एक ट्वीट करके न्यूज़ चैनलों के संपादकों को आड़े हाथों लिया और लिखा –

काश एसपी सिंह आज जिंदा होते. अपने कुछ शिष्यों की वजह से जरूर शर्मिंदा होते.

एबीपी न्यूज़ ने आशुतोष के इस ट्वीट पर एसपी सिंह के साथ काम कर चुके और उनके बेहद करीबी संजय पुगलिया (वरिष्ठ पत्रकार) से प्रतिक्रिया ली तो उन्होंने बिफरते हुए कहा कि आशुतोष ने अपनी ओछी राजनीति के लिए एसपी सिंह का नाम लेकर घोर पाप किया है. दिल्ली की गन्दी राजनीति में अपना हित साधने के लिए एसपी का नाम लेने का उनको कोई हक नहीं.उसको ऐसा करना नहीं चाहिए था. देखें पूरा वीडियो –

एबीपी न्यूज़ को नया भारतवर्ष बनाने की जरूरत क्यों पड़ी?

एबीपी न्यूज़ पर भारतवर्ष
एबीपी न्यूज़ पर भारतवर्ष

एबीपी टीवी चैनल में टीवी इतिहास के सबसे बड़े सीरिज के रूप में जिस भारतवर्ष सीरियल को दिखाया जा रहा है, उसकी श्रखंला में कल सम्राट अशोक पर केंद्रित थी। इसमें दिखाया गया कि किस तरह अशोक ने अपने पिता बिंदुसार के न चाहने पर भी अपने हाथ में सत्ता ली। जिस सम्राट को दुनिया देवप्रिय, अंहिसा का पालन करने वाला , दुनिया में शांति की लौ जगाने वाला मानती है वह अपने शुरुआती शासन काल में राजसी सुख सुविधाओं में मगन था और किसी हद तक क्रूर था।

सवाल यही कि ये बातें तो इतिहास की किताबों में बार बार दोहराई गई और टीवी सीरियलों में भी आई फिर नया भारतवर्ष सीरियल बनाने की जरूरत क्यों।




1- गौर करेंगे तो सीरियल में कुछ चीजें सीरियल में अलग दिखी है। जैसे बिंदुसार का अशोक से इस कारण नफरत करना कि वह सुंदर नहीं था। हो सकता है कि बिंदुसार के अशोक को न चाहने का कोई और वजह भी हो। क्योकि जिस राजा की सौ रानियां हो वह एक रानी के बच्चे से इस कदर क्यों नफरत करें कि वह सुंदर नहीं। भारतवर्ष की इस कड़ी में थोड़ा चूक यह हुई कि एक तरफ तो अशोक को बदसूरत बताया गया लेकिन जब वही अशोक युवा दिखता है तो वह पर्दे पर सुंदर युवा की तरह है। क्या यह पर्दे पर कलाकार को सुंदर दिखाने की मजबूरी है। इतिहास में तेमूर राणासांगा नेपोलियन जैसे चर्चित व्यक्तित्व कुरूप कहे जाते हैं , उन्हें उसी तरह दिखाया जाता है।

2- सीरियल में अशोक पर इतिहासकार चर्चा भी करते हैं। लेकिन एक सवाल नहीं उठा तो उठ सकता था । जिस तरह चंद्रगुप्त को बनाने में चाणक्य का हाथ है उसी तरह अशोक को बनाने में राधागुप्त अमात्य का हाथ है। फिर अमात्य को भारतीय इतिहास में वो जगह क्यों नहीं मिली जो चाणक्य को। क्या इसकी वजह यह हो सकती है कि चाणक्य ने एक दूसरे वंश का नाश करवाया। जबकि राधागुप्त ने एक पिता की अनिच्छा के बावजूद बेटे को शासन दिलाया।

3- भारत के इतिहास में कलिंग का युद्ध प्रसिद्ध है। और नया मोड़ लाया है। लेकिन इस धारावाहिक में जिस तरह युद्ध को दिखाया वह प्रतीक लगा। केवल चार सैनिक लड़ते दिखाए गए। जबकि अशोक का मन तभी बदला जब वह विजय के बाद रणक्षेत्र को देखने गए। उन्होंने हजारों सैनिकों के शवों को क्षत विक्षप्त देखा।

4- सीरियल का महत्वपूर्ण पक्ष यह था कि अशोक के बहाने बोद्ध और धम्म का संदर्भ उठाना। किसी इतिहासकार ने ही सवाल उठाया कि अशोक के गुणगान से ही तो कहीं बौद्ध की अंहिसा का प्रचार ज्यादा हुआ। और उसे इस धर्म के रूप में माना गया कि हिंसा छोड़कर एक शासक किस तरह बौद्ध धर्म का अनुयायी हो गया।

5- भारत वर्ष में अशोक के चरित्र को दिखाते हुए यह दिखाया कि अंत में वे एक कमजोर शासक हो गए। किस तरह, क्या परिस्थिति बनी कि उनके पास बौद्ध भिशुओं को बांटने के लिए केवल आधा बेर था। इसी स्पष्ट करना चाहिए था।

वैसे सीरियल इतिहास की कई चीजें खोल रहा है। सीरियल में यह बताने की कोशिश हुई कि अशोक का मन केवल कलिंग युद्ध से नहीं बदला बल्कि वे इस युद्ध के काफी पहले से उनमें बदलाव आने लगा था। कलिंग युद्ध ने उन्हें पूरी तरह बदल दिया। भारतवर्ष धारावाहिक रोचक है। इसमें इतिहास के कई प्रसंग के बहाने नए पहलू सामने आते हैं। लेकिन ध्यान यही रखना होगा कि इतिहास ेके जानकार केवल दिल्ली विश्वविद्यालय में ही नहीं होते हैं। थोड़ा फैलाव देना चाहिए।

ख़बरों के चीख चिल्लाहट के बीच एबीपी न्यूज़ का भारतवर्ष

एबीपी न्यूज़ पर भारतवर्ष
एबीपी न्यूज़ पर भारतवर्ष
एबीपी न्यूज़ पर भारतवर्ष
एबीपी न्यूज़ पर भारतवर्ष

टीवी पर एवीपी नए कार्यक्रम के साथ है। इसे भारतवर्ष नाम दिया गया है। जिस तरह कभी नेहरूजी की किताब डिस्कवरी आफ इंडिया के आधार पर भारत एक खोज कार्यक्रम श्रंखलाबद्ध दिखाया गया कुछ उस तर्ज पर लेकिन अपनी मौलिक चीजों के साथ इसे प्रस्तुत किया जा रहा है।

भारत एक खोज की तुलना में इसमें फर्क यह है कि इसमें इतिहास के विभिन्न महत्चवपूर्ण चरित्रों को इस तरह सामने लाया गया है कि एक कडी में एक नायक की कथा सामने आए। इस तरह एवीपी के इस कार्यक्रम में अब तक बुद्ध . चाणक्य की ऐतिहासिक संदर्भों को दिखाया गया है। साथ ही यह उस नायक के प्रसंग और घटना संदर्भो पर विशेषज्ञों से संवाद भी कराता है।

यह कार्यक्रम शनिवार को रात दस बजे और रविवार को आठ बजे प्रसारित होता है। एवीपी की यह पहल इसलिए भी अच्छी है कि उसने कहीं न कहीं केवल न्यूज और विश्लेषण आधारित चैनल होने के अपनी प्रकृति को तोडा है। आशा है चैनलों में विविधता के स्वरूप नजर आए।

इतिहास को और उसके घटनाक्रम को समझने महसूस करने के लिए यह अच्छा धारावाहिक है। आज की कड़ी सम्राट अशोक के जीवन पर केंद्रित हैं। यह जरूरी है कि तमाम मनोरंजन, फिल्मी गपशप, सास बहु के झगड़ो. बहस और चीखते चिल्लाते कार्यक्रमों के बीच कोई कार्यक्रम ऐसा भी हो जिसमें हमें अपने इतिहास को जानने समझने का अवसर मिले। खासकर उस युवा पीढ़ी को जो सब कुछ शीघ्रता से समझना चाहती है। जो एक नायक के जीवन को समझने के लिए सात आठ कडि़यों को देखने का इंतजार नहीं कर सकती। यह कार्यक्रम इस मायने में अलग है कि विभिन्न संदर्भों में इसमें विशेषज्ञ अपनी टिप्पणी भी देते हैं। लेकिन इसमें कुछ चीजों पर पड़ताल जरूरी है।




1- क्या इसमें ऐतिहासिक चरित्र केवल राजनीति सत्ता शासन से संबिधत व्यक्ति होंगे या समाज के दूसरे क्षेत्रों से भी। मसलन क्या कबीर , शंकराचार्य , रवीद्र नाथ टेगोर, ध्यानचंद, कृष्णदेव राय, खजुराहो मंदिर सूर्य मंदिर बनाने वाले राजवंशो पर भी वर्णन होगा।

2- भारत एक खोज को प्रस्तुत करने का ढंग बहुत सरस और प्रभावी था। अनुपम खेर को वह लय पकडनी होगी। कड़ी दर कडी कार्यक्रम में तथ्यों का आधार भी देना होगा।

3- च्ंद्रगुप्त और कोटिल्य का पहला परिचय इतिहास में दो तरह से मिलता है। कोटिल्य ने देखा कि बच्चों के बीच एक राजा बना है बाकी प्रजा। और उसके हाव भाव में राजसीपन है। वह राजाओं का आचरण कर रहा है। दूसरी कथा यह है कि एक बच्चा कुश के पौधे में मट्ठा डाल रहा था। चाणक्य ने पूछा तो उसने कहा कि यह मेरे पैर में चुभ गया था। इसे जड से खत्म करना चाहता हूं।चाणक्य को नंद वंश का खात्मा करने वाला शख्स मिल गया था। लेकिन एबीपी के धारावाहिक भारतवर्ष में दिखाया गया कि चाणक्य को एक ऐसा युवा दिखा तो घनानंद के दरबारियों के अत्याचार से लोगों को बचा रहा था। एवीपी को थोड़ा स्पष्ट करना होगा कि उसके घटनाओं को जोडने के अपने आधार क्या है।

4- बुद्ध भगवान के प्रसंग में आम्रपाली की कथा अपना अलग महत्व रखती है। उस काल परिस्थिति का आभास कराती है। अजातशत्रु के जीवन को भी रेखांकित करती है। भारतवर्ष में इस घटना को संदर्भ को हल्के में नही लिया जा सकता। संभव है कि भारतवर्ष सीरियल में आगे कुछ ऐसे प्रसंग उभर कर आए जिससे नई बहस चले।

इतिहास के अवलोकन, रोचकता और प्रसंगों के अवलोकन के लिहाज से यह सीरियल अपनी उत्सुक्ता बनाए रखेगा। इसके पीछे खास तैयारी दिखती है। लेकिन घटनाओं पर टीका समीक्षा जरूरी है। इसलिए जिस जिस तरह से यह सीरियल आगे बढता जाएगा , अच्छा हो इसकी समीक्षा भी हो। क्योंकि भारत वर्ष को अवलोकन करने का इस बहाने अच्छा अवसर है।

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