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किस हद तक गिरेंगे ‘आप’ ?

डॉ नीलम महेंद्र

डॉ नीलम महेंद्र
डॉ नीलम महेंद्र

एक बहुत ही खूबसूरत बगीचा था,माली की नज़र बचाकर कुछ बच्चे रोज फूल तोड़ लेते थे।एक दिन माली ने उन्हें रंगे हाथों पकड़ लिया। अब उनमें से सबसे बुद्धिमान एक बालक ने सोचा कि खुद को बचाना है तो आक्रमण करना चाहिए और वह चिल्लाने लगा कि अगर फूलों से खेलने ही नहीं देना तो बगीचे में लगाए ही क्यों हैं ? क्या सिर्फ हमें चिढ़ाने के लिये ? और वैसे भी हम फूल तोड़े न तोड़े वे तो मुरझाँएगे ही कम से कम हमने उनका उपयोग तो किया ! वे किसी के काम तो आए ! इन तर्कों को सुन कर माली सतब्ध रह गया !

आज देश में कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है। आप के पूर्व विधायक संदीप कुमार की सीडी के सामने आने के बाद जिस प्रकार अपने बचाव में उन्होंने स्वयं के दलित होने को कारण बताया है और जिस प्रकार आशुतोष उनके बचाव में आगे आए हैं वह पूरे देश के लिए बेहद शर्म और अफसोस का विषय है । शर्म इसलिए कि हमारे राजनेता अपनी गलतियों को मानकर पश्चाताप एवं सुधार करने के बजाय कुतर्कों द्वारा उन्हें सही ठहराने में लग जाते हैं। अफसोस इसलिए कि चुनाव विकास एवं भ्रष्टाचार के नाम पर लड़ते हैं और समय आने पर जाति को ढाल बनाकर पिछड़ेपन की राजनीति का सहारा लेते हैं। कितने शर्म की बात है कि अपने अनैतिक आचरण को आप भारत की राजनीति के उन नामों के पीछे छिपाने की असफल कोशिशों में लगे हैं जिन नामों को भारत ही नहीं बल्कि विश्व में पूजा जाता है। यह मानसिक दिवालियापन नहीं तो क्या है कि जिन गाँधी जी से आप तुलना कर रहे हैं उनके सम्पूर्ण जीवन से आपको सीखने योग्य कुछ नहीं मिला ? गाँधी जी ने 1925 में यंग इंडिया नामक पुस्तक में लिखा है कि –सिद्धांत विहीन राजनीति ,श्रमविहीन सम्पत्ति , विवेक विहीन भोग विलास चरित्र के पतन का कारण हैं । क्या गांधी जी द्वारा कही यह बातें आपको स्मरण नहीं थी या फिर आप वही देखते और दिखाते हैं जो आपके लिए अनुकूल हो ?

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी से आपने देश के हित में उनके द्वारा उठाए गए उनके साहसिक फैसले चाहे परमाणु परीक्षण हो या फिर कारगिल युद्ध में पाक को पीछे हटने के लिए मजबूर करना हो , हर प्रकार के अन्तराष्ट्रीय दबाव को दरकिनार करते हुए भारत के गौरव की रक्षा करना हो ,आपको सीखने लायक कुछ नहीं मिला सिवाय उनके ब्रह्मचारी होने पर प्रश्न चिह्न लगाने के ?

जी हाँ आप सही कह रहे हैं जिस प्रकार हम खाते हैं, पीते हैं,साँस लेते हैं उसी प्रकार कुछ अन्य शारीरिक क्रियाएँ भी होती हैं उनको इस प्रकार अजूबा बनाकर पेश नहीं किया जाना चाहिए । लेकिन आप शायद भूल रहे हैं कि पहली बात तो यहाँ बात मानव जाति की हो रही है और दूसरी बात एक सभ्य समाज की हो रही है जहाँ एक सभ्य मनुष्य से एक सभ्य एवं नैतिक आचरण की अपेक्षा की जाती है। कुछ सामाजिक नियमों के पालन की उम्मीद की जाती है। मानव की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर और उसे पशु से भिन्न मानने के कारण ही भारतीय संस्कृति में शादी नामक संस्था को स्वीकार किया गया है । पुरुष और महिला की गरिमा को बनाए रखना किसी भी सभ्य समाज का सबसे बड़ा दायित्व होता है।

आशुतोष जी का कहना है कि मियाँ बीवी राजी तो क्या करेगा काज़ी ? सबकुछ आपसी रजामंदी से हुआ लेकिन उनकी यह दलील भी खोखली सिद्ध हो गयी जब वह महिला थाने में संदीप के खिलाफ एफ आई आर दर्ज कराने पहूंची और संदीप गिरफ्तार कर लिए गए । इससे भी अधिक आश्चर्यजनक यह है कि संदीप की पत्नी ॠतु उनके समर्थन में आगे आई हैं और इस पूरे प्रकरण को एक राजनैतिक साजिश करार दिया है। जब व्यक्ति सत्ता सुख एवं भौतिकता की अंधी दौड़ का हिस्सा बना जाता है तो सही गलत स्वाभिमान अभिमान सत्य असत्य कहीं पीछे छूट जाते हैं ।

जब आप सार्वजनिक जीवन में होते हैं तो दुनिया की निगाहें आपकी तरफ होती हैं। जिन लोगों के कीमती वोटों के सहारे आप सत्ता के शिखर तक पहुचते हैं उनकी निगाहें आपकी ओर उम्मीद एवं आशा से देख रही होती हैं। यह अत्यंत ही खेद का विषय है कि जिस कुर्सी पर बैठकर हमारे नेताओं को उससे उत्पन्न होने वाली जिम्मेदारी एवं कर्तव्य का बोध होना चाहिए आज वह कुर्सी की ताकत और उसके नशे में चूर हो जाते हैं। जो नेता आम आदमी से उसकी नैय्या का खेवनहार बनने का सपना दिखाकर वोट माँगते हैं वही नेता कुर्सी तक पहुंचने के बाद उस आम आदमी की जरूरत पर उसका शोषण करते हैं। एक राशन कार्ड बनवाने जैसी मामूली बात भी एक महिला के शोषण का कारण बन सकती है ! धिक्कार है ऐसे समाज पर जहां ऐसा होता है और उससे भी अधिक धिक्कार है उन लोगो पर जो ऐसे घृणित आचरण को उचित ठहराते हैं।
बात केवल अनैतिक आचरण की नहीं है बात उस आचरण को सही ठहराने की है बात उन कुतर्कों की है जो भारतीय समाज में आशुतोष जैसे लोगों द्वारा दिए जा रहे हैं। बात यह है कि हमारी आने वाली पीढ़ी के सामने हम कैसे उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। ।अब समय है आम आदमी को अपनी ताकत पहचानने की , समय है ऐसे लोगों को पहचान कर उनका सामाजिक एवं राजनैतिक बहिष्कार करने की , .समय है कि यदि ऐसे नेता चुनाव में खड़े होने की हिम्मत करें तो इनकी जमानत जब्त करवाने की, अब समय है भारत की राजनीति में स्वच्छता लाने की . काम आसान नहीं है लेकिन नामुमकिन भी नहीं है।

सभ्यता से बर्बरता की तरफ बढ़ने के आंसू

ललित गर्ग
ललित गर्ग

हाल ही में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट में चैंकानेवाले तथ्य सामने आये हैं, जो नैतिक एवं चारित्रिक मूल्यों के घोर पतन को बयां करते हैं। इस रिपोर्ट में यह कहा जाना कि दिल्ली में दुष्कर्म के 90 फीसद से अधिक मामलों में आरोपी पीड़ित के परिचित या पारिवारिकजन ही होते हैैं, नये बनते समाज की बुनावट पर सवालिया निशान है। चारित्रिक धंुधलको ने ही मनुष्य के विवेक पर पर्दा डाल दिया है। इसी का परिणाम है कि आज चरित्र हनन एवं दुष्कर्म की घटनाएं चैंकाती नहीं है। धूप और छांव की तरह चरित्र की रोशनी भी कभी तेज और कभी मंद होती रही है, लेकिन लगातार मनुष्य की हवस का बढ़ना और उसका हिंसक होना-समाज का सभ्यता से बर्बरता की तरफ बढ़ने को ही दर्शाता है, जो गहन चिन्तनीय विषय है।

एनसीआरबी की रिपोर्ट में यह कहा जाना कि दिल्ली में दुष्कर्म के 90 फीसद से अधिक मामलों में आरोपी पीड़ित के परिचित या पारिवारिकजन ही होते हैैं। इससे यह साबित होता है कि यहां अपने ही इज्जत तार-तार करने में लगे रहते हैैं। यह इस बात का सुबूत है कि दिल्लीवालों में नैतिकता का घोर पतन हो चुका है। यही वजह है कि गोविंदपुरी में तीन साल की बच्ची को उसका फूफा और भारत नगर में एक 10 साल की बच्ची को भी उसका रिश्तेदार ही हवस का शिकार बनाता है। समयपुर बादली में एक कमरे में अपनी दो मासूम बेटियों को बंद करने और दूधमुंहे बेटे को जिन्दा मूनक नहर में फंेकने वाले पिता बंटी की क्रूर एवं बर्बर सोच तो सभी मानवीय सीमाएं लांघ गयी है। ये और ऐसी अनेक भयानक एवं त्रासद घटनाओं का हर दिन सुर्खियां बनने का सिलसिला-सा सामने आना समाज की व्यवस्था और उसकी बुनावट के बारे में सोचने को विवश करता है। व्यक्ति अगर बीमार होता है तो उसका इलाज करने के लिए चिकित्सा सुविधाएं, दवाइयां हैं, डॉक्टर उपलब्ध हैं, मगर परिवार और समाज ही बीमार हो जाए तो उसके इलाज के क्या उपाय हैं? समस्या जब बहुत गंभीर और चिन्तनीय बन जाती है तो उसे मोड़ देना और उसका समाधान तलाशना बहुत जरूरी हो जाता है।

दिल्ली देश की राजधानी है और न केवल पूरे राष्ट्र को बल्कि दुनिया को यहीं से देश की बुनावट का सन्देश जाता है। जो तथ्य एनसीआरबी ने प्रस्तुत किये हैं, वे एक चेतावनी है। उसे राजधानी दिल्ली के लिए तो कतई भी अच्छा नहीं कहा जा सकता। सोचने वाली बात यह है कि जब खुद के रिश्तेदार ही इस तरह की वारदात कर बच्चों की पूरी जिंदगी को जख्म दे रहे हैं, उसे लील रहे हैं, और अपराध की जमीं को हराभरा कर रहे हो तो औरों से क्या उम्मीद की जा सकती है। जिन लोगों को बच्चों का सहारा बनकर अच्छी शिक्षा और संस्कार देना चाहिए वे इस तरह की घिनौनी हरकत कर इंसानियत को भी कलंकित कर रहे हैं और समाज व्यवस्था को भी जख्मी बना रहे हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए ताकि फिर कोई ऐसी हिम्मत न जुटा सके।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अपहरण, चोरी, लूट से लेकर धोखाधड़ी में राजधानी में अन्य मेट्रो सिटी की अपेक्षा सबसे ज्यादा मुकदमे दर्ज किए गए हैैं। यह स्थिति यहां की बिगड़ती कानून व्यवस्था का परिचायक है। यह दिल्ली पुलिस की साख पर भी बट्टा लगाती है। यह सच भी है कि राजधानी में हर छोटी-मोटी बात पर हत्या की घटनाएं रोजाना ही होती रहती हैैं। पुलिस के कामकाज का आलम यह है कि थाने से महज 500 मीटर पर भी वारदात होती है तो उसे पहुंचने में कभी-कभी एक घंटे तक का समय लग जाता है। यह हाल तब है जब दिल्ली पुलिस को हर तरह की हाईटेक सुविधा उपलब्ध है। इससे साफ पता चलता है कि पुलिसकर्मियों की लापरवाही के कारण ही अपराध बढ़ रहे हैैं। बात केवल पुलिस की ही नहीं है, जिन्दगी की सोच का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि नैतिकता एवं चरित्र जितना ऊंचा उठना चाहिए, उतना क्यों नहीं चारित्रिक विकास होता? दिल्ली पुलिस के आला अधिकारियों के साथ-साथ समाज को दिशा देने वाले लोगों को भी इस रिपोर्ट का विश्लेषण करना चाहिए क्योंकि सामाजिक संबंध, परस्पर संवाद और मानवीय संवेदना की समाप्ति की ये घटनाएं समाज के मृत होते जाने की चिन्तनीय स्थिति को दर्शाते है। घरों एवं परिवारों में अपने की बच्चों को हवश का शिकार बनाना, उन पर अत्याचार करना, उनकी जीवन लीला को ही समाप्त कर देना-जैसी बर्बर एवं क्रूर चुनौतियों का क्या अंत होगा? बहुत कठिन है उफनती नदी में नौका को सही दिशा में ले चलना और मुकाम तक पहुंचाना।

तेजी से बढ़ता नैतिक एवं चारित्रिक अवमूल्यन का दौर किसी एक प्रान्त का दर्द नहीं रहा। इसने हर भारतीय दिल को जख्मी बनाया है। अब इसे रोकने के लिये प्रतीक्षा नहीं, प्रक्रिया आवश्यक है। शायद हम प्रौद्योगिकी और संसाधनों की दृष्टि से तो विकसित हुए हैं, लेकिन मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं की दृष्टि से हमने पशु जगत को भी पीछे छोड़ दिया है। नैतिकता एवं चरित्र के सवाल भी आज हाशिये पर हैं। आए दिन होने वाली इन घटनाओं में बढ़ोतरी ने राज्य, समाज और व्यवस्था की भूमिका को और यहां तक कि सामूहिकता की अवधारणा को भी संदेहास्पद बना दिया है। विकास के नाम पर सूचनाओं के सम्प्रेषण की अत्याधुनिक तकनीक तो हमने विकसित कर ली, लेकिन पारिवारिक एवं सामाजिक संबंधों में संवादहीनता और संवेदनहीनता की स्थिति को कैसे मोड़ दिया जाये? इसके लिये ठंडा खून और ठंडा विचार नहीं, क्रांतिकारी बदलाव के आग की तपन चाहिए।

आज देश की समृद्धि से भी ज्यादा देश की चारित्रिक उज्ज्वलता जरूरी है। विश्व के मानचित्र मंे भारत गरीब होते हुए भी अपनी साख सुरक्षित रख पाया है तो सिर्फ इसलिए कि उसके पास विरासत से प्राप्त ऊंचा चरित्र है, ठोस उद्देश्य हैं, सृजनशील निर्माण के नये सपने हैं और कभी न थकने वाले क्रियाशील आदर्श हैं। लेकिन जब कोई मंत्री, राजनेता या धर्मगुरु, यहां तक कि एक पिता भी चरित्र हनन का आरोपी बनता है तो इस तरह साख होने पर सीख कितनी ही दी जाए, संस्कृति नहीं बचती।

आज हमारे कंधे भी इसीलिए झुक गए कि बुराइयों का बोझ सहना हमारी आदत तो थी नहीं पर लक्ष्य चयन में हम भूल कर बैठे। नशीले अहसास में रास्ते गलत पकड़ लिए और इसीलिए बुराइयों की भीड़ में हमारे साथ गलत साथी, संस्कार, सलाह, सहयोग जुड़ते गए। जब सभी कुछ गलत हो तो भला उसकी जोड़, बाकी, गुणा या भाग का फल सही कैसे आएगा? नतीजतन, संबंधों में अविश्वास, धोखा, स्वार्थपरता, भावनाओं के व्यावसायिक और अमानवीय स्वरूप, प्रसिद्धि के जरिए खुद को स्थापित करने की कोशिश जैसे पक्ष महत्त्वपूर्ण और प्राथमिक हुए हैं। इसके लिए कौन जिम्मेदार है, आधुनिकीकरण या फिर बाजारवाद? नेताओं का नैतिक हनन या छोटे पर्दे की विभीषिका, नशे का बढ़ता प्रचलन या अशिक्षा, सामाजिक एवं आर्थिक असंतुलन-आज का समाज सूचनाओं का जंगल तो बनने की ओर अग्रसर है, लेकिन क्या संवादहीनता और विचारशून्यता के दंश समूची समाज एवं परिवार व्यवस्था को ही ध्वस्त नहीं कर रहे हैं? पूरे भारत में नशे की खुलेआम बिक्री क्या अपराध करने को मजबूर नहीं करती? क्या अश्लील एवं पोर्न फिल्में यौन अपराधों की ओर नहीं धकेल रही है? क्या आर्थिक एवं सामाजिक असमानता अपराध के बीजवपन का कारण नहीं है? अगर नहीं तो बिना देर किए इन पक्षों पर सोचने की जरूरत है, अन्यथा ‘व्यक्ति का अंत’ कब ‘समाज का अंत’ कर दे, कहा नहीं जा सकता।

देश आखिर ऊंचाइयां छूये भी कैसे? जब चारों ओर नैतिक एवं चारित्रिक गिरावट के परिदृश्य व्याप्त हो। इन स्थितियों में हमारे भीतर नीति और निष्ठा के साथ गहरी जागृति की जरूरत है। नीतियां सिर्फ शब्दों में हो और निष्ठा पर संदेह की पर्तें पड़ने लगें तो भला उपलब्धियों का आंकड़ा वजनदार कैसे होगा? बिना जागती आंखों के सुरक्षा की साक्षी भी कैसी! एक वफादार चैकीदार अच्छा सपना देखने पर भी इसलिए मालिक द्वारा तत्काल हटा दिया जाता है कि पहरेदारी में सपनों का खयाल चोर को खुला आमंत्रण है।कोई भी ऐसी समस्या नहीं है कि जिसका समाधान न खोजा जा सके। हर आफत इसलिए बंधन बन जाती है कि हमें न तो उसे सहना आता है और न उन्हें खोलना आता है। बचाव के लिए हर बार उसे आगे खिसकाते रहते हैं। यह टालने की मनोवृत्ति पलायन है। निर्णय के लिए अदालत में आगे-से-आगे सरकती तारीखें क्या कभी निर्दोष को सही फैसला दे सकी हैं? आज की समस्या का कल नहीं, आज और अभी समाधान ढूंढना है, तभी भविष्य सुरक्षित रह पाएगा और इसके लिये जन-जागृति जरूरी है।

मुजफ्फरनगर में हिंदुस्तान बना कंसल टाइम्स




अज्ञात कुमार

muzaffarnagar-hindustanदुनिया में हर किसी की हद मुकर्रर है, लेकिन मुजफ्फरनगर में हिंदुस्तान अखबार ने जो कारनामा कर दिखाया है, उसने इस चापलूसी की सारी हदों को पार कर दिया है। गुरूवार का हिंदुतान अंक जैसे कंसल टाइम्स बनकर रह गया है। दरअसल बुधवार को हिंदुस्तान अखबार ने दंगे की बरसी पर एकता की मुहिम नाम से एक कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमंे कई स्कूलों के बच्चों ने भाग दिया। कमाल की बात ये है कि गुरूवार को हिंदुस्तान अखबार ने इस कार्यक्रम की पेज नंबर दो पर बेहतरीन कवरेज दी। जिसमें कुल 9 फोटो तो बड़े प्रकाशित किए, जिनमें से 4 फोटो मुजफ्फरनगर के प्रमुख उद्योगपति भीमसेन कंसल के प्रकाशित कर दिए। इतना ही नहीं गणमान्य काॅलम में प्रकाशित किए गए 10 फोटोज में भी एक फोटो फिर से भीमसेन कंसल का प्रकाशित किया गया है।

गौर करने वाली बात ये है कि जो फोटो गणमान्य लोगों के प्रकाशित किए गए है, वो भी वे ही लोग हैं जिन्होंने शहर के मालवीय चैक पर खड़े होकर फोटो खिंचवाए और फिर वहीं से चंद कदमों की दूरी पर स्थित हिंदुस्तान के आॅफिस में भी इन्ही लोगों के फोटो खींचे गए। यानि गिने-चुने वो ही 8-10 लोगों को लेकर ये कार्येक्रम आयोजित कर पूरा पेज प्रकाशित कर दिया है।

जग जाहिर है कि हिंदुस्तान अखबार के मुजफ्फरनगर जिला प्रभारी अरविंद भारद्वाज के उद्योगपति भीमसेन से खास ताल्लुकात है और इन्ही खास संबंधों को लेकर अक्सर दोनों काफी चर्चाओं में भी रहते है। यानि गौर करने वाली बात है कि गुरूवार को हिंदुस्तान अखबार पूर्ण रूप से भीमसेन जी के चरणों में समर्पित हो गया। इतना ही नहीं… इन गणमान्यों में एक वो उद्योगपति सतीश गोयल भी शामिल है, जिस पर करोड़ों की टैक्स चोरी का आरोप लगा था और जब अधिकारियों ने उनके संस्थानों और आवास पर छापा मारा था तो अधिकारियों के पीछे इन महाशय ने कुत्ते छोड़ दिए थे। कुल मिलाकर हिंदुस्तान अखबार का गुरूवार का अंक मुजफ्फरनगर में इस मुद्दे को लेकर खासा चर्चाओं में रहा।

http://epaper.livehindustan.com//epaper/null/Muzaffarnagar/2016-9-08/50/Page-2.html

अभिसार शर्मा के निशाने पर एबीपी न्यूज़ !

abhisar sharma news anchor
अभिसार शर्मा, एंकर

आम आदमी पार्टी के संदीप कुमार सेक्स सीडी मामले में हिंदी समाचार चैनल ‘एबीपी न्यूज़’ ने लीड ली. लेकिन अब चैनल का एंकर ही न्यूज़ चैनलों के बहाने एबीपी न्यूज़ पर सवालिया निशान खड़े कर रहा है. हाल ही में एबीपी के प्रमुख एंकर अभिसार शर्मा ने ब्लॉग लिखकर संदीप कुमार सेक्स सीडी मामले में न्यूज़ चैनलों को घेरा और सवालिया लहजे में लेख लिखा. पढ़िए उनका पूरा लेख –

अभिसार शर्मा,एंकर,एबीपी न्यूज़

हमारा कर्त्तव्य है सवाल पूछना। है न? मगर इस पूरे संदीप कुमार SEX CD प्रकरण में कितने सवाल किये हैं हमने? क्या हमने पुछा के…

1. ये विडियो कितना पुराना है? क्योंकि इस वक़्त तीन किस्म की चर्चाएँ हैं। सीटी उद्घोषक यानी whistleblower ओमप्रकाश की मानें तो 2 महीने पुराना है।

पीड़ित महिला इसे एक साल पुराना वाक्या बताती हैं। टाइम्स ऑफ़ इंडिया में राज शेखर झा की रिपोर्ट में इस वीडियों में पुलिस को 2010 का एक कैलेन्डर दिख रहा है। क्या किसी चैनल ने गंभीरता से ये सवाल किए? ये बात अलग है कि किसी ने भी संदीप कुमार को बलात्कारी, ब्लैकमेलर और बेवफा जैसे जुमलों से नवाज़ने में थोड़ा भी वक़्त नहीं लगाया? और वो तब तब पीड़ित महिला सामने भी नहीं आई थी?

2. क्या ये सामान्य सवाल पुछा गया कि संदीप कुमार, जो आजकल सत्ता सुख भोगने के बाद, इतने “हृष्ट पुष्ट” हो गए हैं, इस वीडियों में इतने दुबले क्यों दिख रहे हैं। ये सवाल तो पूछा जाना चाहिए था न?

3. क्या किसी ने सवाल पूछे के ये वीडियों किसने जारी किया? इसकी टाइमिंग की क्या एहमियत है? सेक्स विडियो का प्रसार कानूनन अपराध है और साफ़ है की इसके प्रसार में उस शक्स का हाथ है जिसने ये वीडियों शूट करके सार्वजनिक वितरण के लिए जारी किया। उस शख्स को लेकर खुद पुलिस में असमंजस है .क्या ये सवाल पूछ रहा है कोई?

4. सवाल ये भी उठ सकता है के पीड़ित महिला इस वीडियों के सार्वजनिक होने के बाद सामने क्यों आई? मगर ये सवाल बेमानी है, क्योंकि आप और हम अपने comfort zone से किसी “बलात्कार पीड़ित” की मनोदशा पर टिपण्णी नहीं कर सकते। बशर्ते वो बलात्कार पीड़ित है।

5. मैं नहीं जानता खुद का सेक्स विडियो बनाने पर कानून क्या कहता है, (वो किसी दिन और) अलबत्ता किसी की सहमति के बगैर, उसे सार्वजनिक तौर पर दिखाना गुनाह ज़रूर है। तो ये सार्वजनिक किया किसने ? ये सवाल पुछा किसी ने?

6. पूर्व पत्रकार आशुतोष, संदीप कुमार की तुलना अगर गाँधी से करते हैं, तो उससे ज्यादा वाहियात कोई चीज़ नहीं हो सकती, मगर राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा उन्हें ब्लॉग के आधार पर समन भेजना कहाँ तक जायज़ है? क्या ये सवाल भी ज़रूरी नहीं है। हाँ, ये बात अलग है की कुछ राष्ट्रवादियों ने उन पत्रकारों को नहीं बख्शा जिन्होंने ये सवाल उठाने की हिम्मत की।

मैं जानता हूँ इस वक़्त आपके ज़हन में दो सवाल हैं। पहला, ये जांच करना मीडिया का काम थोड़े ही है। बिलकुल सही कहा आपने। ये काम जांच एजेंसीज का है। मगर मीडिया ये तर्क देने का अधिकार पहले ही खो चुका है। पूछिए आरुषी के माता पिता से। जब प्रतिभाशाली पत्रकारों ने टीवी चैनल्स के परदे पर, और आरुषी के पडौसी के घर में घूम घूम कर इस मामले की पड़ताल की थी। हाल में हुए शीना बोरा हत्याकांड में जारी हुए मोबाइल फ़ोन कॉल्स के आधार पर, एक चैनल का स्टूडियो, इस मामले की सबसे विश्वसनीय पड़ताल का अखाड़ा बन गया था। तब आपने ज़रूर देखी होगी वो ऊर्जा, वो तेज, मेरी बिरादरी के होनहार के हावभाव में।

और दूसरा सवाल, मैं संदीप कुमार की पैरवी क्यों कर रहा हूँ ? दरअसल ये पैरवी नहीं, ये महज़ जिज्ञासा है। और आजकाल पत्रकार बंधुओं में जिज्ञासा कम होने लगी है। मेरी दिक्कत ये है के पुरानी आदतें जल्दी मरती नहीं। ( Old Habits Die Hard का तर्जुमा) अब इसमें आप आम आदमी पार्टी से पैसे लेकर लिखने का आरोप भी नहीं लगा सकते, क्यों संदीप कुमार को तो उन्होंने भी त्याग दिया है। उन्हें तो न खुदा ही मिला, न विसाले सनम!

और टाइम्स ऑफ़ इंडिया की खबर की मानें तो न सिर्फ संदीप कुमार को जल्द बेल मिल जाएगी,अलबत्ता कानूनी कार्रवाई को जारी रखना भी मुश्किल लग रहा है। ये सवाल पहले भी पूछे जा सकते थे।मगर ये ख़ामोशी असमंजस पैदा करती है।

ऐसा लगता है की कुछ सवाल पूछने मुश्किल होते जा रहे हैं। मसलन, कितने अखबारों, news चैनल्स ने रिलायंस के नए क्रांतिकारी अभियान में प्रधानमंत्री की तस्वीर इस्तेमाल किये जाने पर सवाल किया? क्या ये बहस का मुद्दा नहीं? क्या इसमें कोई conflict of interest नहीं? उसी हफ्ते देश के 18 करोड़ सरकारी मुलाजिम एक दिन की हड़ताल पर थे, ये मुद्दा भी न जाने क्यों ध्यान से भटक गया। एक हैडलाइन तक नहीं? मुझे याद है, जब मनमोहन प्रधानमन्त्री थे, तब ये मुद्दा ज़ोरों से उठाया जाता था। जगह जगह रिपोर्टर्स तैनात कर दिए जाते थे। मस्त भौकाल बनता था। वो भी क्या दिन थे।

ज़रूर कुछ मजबूरियां रही होंगी, वरना यूँहीं कोई बेवफा नहीं होता…

राहुल गांधी की सभा के बाद खाट पर बवाल मचा। वहां आये किसानों ने सभा के बाद, न खटिया छोड़ी, न उसका पाया।

मगर उसमे राहुल गांधी की खटिया कैसे खड़ी हो गयी? राहुल गांधी का मज़ाक उड़ाया जाना कितना वाजिब था?

मेरा ये मानना रहा है के पत्रकार को विपक्ष के तौर पर काम करना चाहिए। मगर कुछ महीनों से ऐसा लगने लगा है के बीजेपी, अब भी विपक्ष में है। उनके समर्थक अब भी हम जैसे देश द्रोही पत्रकारों को कांग्रेस, AAP और कुछ मामलों में नीतीश कुमार से भी पैसे लेकर काम करने का आरोप लगा चुके हैं। उनका ताना, “ ये सब केजरीवाल के 526 करोड़ रुपये का कमाल है”! वो ये भी कहते हैं, और वो क्या, ये बात तो खुद मोदीजी ने कही है ,” मैंने लोगों की कमाई, जो इतने सालों से चल रही थी ,वो बंद करवा दी, तकलीफ तो होगी ही!

मिसाल के तौर पर मोदीजी की विदेश यात्रा का हवाला दिया जाता है, कि किस तरह से उन्होंने आते ही पत्रकारों का PM के जहाज़ में जाना बंद करवा दिया। इसे मुफ्तखोर पत्रकारों के लिए बड़ा झटका माने जाने लगा। यहाँ तक की एक संघी वेबसाइट में उन पत्रकारों के नाम का खुलासा भी हुआ, जो PM के जहाज़ में “ऐश” करते थे। इस लिस्ट में शामिल होने का सौभाग्य मुझे भी हुआ है। इस खबर की सबसे हैरत में डाल देने वाली बात ये, की इस वेबसाइट के सलाहकार बोर्ड में कुछ ऐसे पत्रकार भी थे, जो अनगिनत बार पूर्व प्रधानमंत्रियों के साथ (कांग्रेसी कार्यकाल में) उनके हवाई जहाज़ में जाते रहे हैं। वो शायद गलती से ये बताना भूल गए के टिकेट के अलावा, एयर इंडिया ONE में जाने वाला पत्रकार, हर चीज़ का पैसा देता है। वो बताना भूल गए के आपने पत्रकारों को एयर इंडिया वन से नीचे उतार तो दिया, मगर अब उस हिस्से में कोई नहीं बैठता, अब वो खाली जाता है। पत्रकार साथ इसलिए भी जाते थे,क्योंकि हर यात्रा के अंत में, प्रधानमंत्री के साथ औपचारिक तौर पर रूबरू होने का मौका मिलता था। उनसे सवाल पूछने का मौका मिलता था। अब वो सवाल बंद हो गए हैं। क्या करें भाई। अब सारी बातें “मन की बात” में सामने आ जाती हैं। एक प्रजातंत्र में सवाल की आखिर क्या अहमियत है?

तो गज़ब समा है, न सवाल पूछने की मंशा है, न जवाब देने की इच्छा।
बीजेपी सत्ता में आसीन है और उसे सुख विपक्ष में बैठी पार्टी का हासिल है। इसे कहते हैं, दोनों हाथ में लड्डू। न कश्मीर पर सवाल, न पाकिस्तान नीति के असमंजस पर सवाल और न दलित संघर्ष पर बहस। दलित संघर्ष से याद आया, कितनी खूबसूरती से हमने गुजरात के दलित संघर्ष को छिपा दिया था। अब, ये भी कोई खबर हुई भला? कोई ऐसी खबर कैसे चला सकता है, जिसमे गुजरात मॉडल पे ज़रा भी आंच आये? सारा खेल ही बिगड़ जाएगा।

पिछले एक साल में कम से कम तीन ऐसे मौके आए, जब मेरी रिपोर्ट की वजह से मुझे निशाना बनाया गया है। न सिर्फ मुझे बल्कि मेरे परिवार को भी नहीं बख्शा गया है। और ये सिर्फ मेरी बात नहीं । रविश कुमार का लेख पढ़ा होगा आपने।आउटलुक की नेहा दीक्षित पर हमला वाकई सिहरन पैदा करने वाला था। राना अय्यूब, स्वाति चतुर्वेदी, सगोरिका घोष ये सब किसी न किसी वजह से निशाने पर रहे हैं। उन पर किये जाने वाले भद्दे हमले किसी भी सभ्य समाज का हिस्सा नहीं हो सकते।

पिछले हफ्ते की ही बात बताता हूँ आपको। अपने परिवार के साथ बैठ कर लंच कर रहा था। अचानक मोबाइल पर एक सूचना आई.मुझे “धर्मो रक्षति रक्षित” नाम के एक ग्रुप में शामिल कर लिया गया है, बगैर मेरी अनुमति के जिज्ञासावश, जब मैंने उसमे झांका , तो पहला सन्देश ही चौंका देने वाला था।

“ ये देश देश भक्तों का है, तालिबानियों का नहीं”
बजा फ़रमाया। अब आगे गौर कीजिये:
“ ये शर्मा वाकई ब्राह्मण है?”
“भाई पता करो ज़रा, कहीं मिलावट तो नहीं?”
मैंने बार बार इस ग्रुप से एग्जिट करने का प्रयास किया, मगर मुझे बार बार उसी ग्रुप में शामिल किया जाता रहा।
सदस्यगण लगातार आनंद की प्राप्ति कर रहे थे …गौर कीजिये:
“मेरे को शक है ये भगोड़ा ब्राह्मण हो नहीं सकता”
“ब्राह्मण जैसे काम है नहीं इसके”

NDTV के महिला पत्रकारों के बारे में क्या क्या कहा जा रहा था, उसे मैं यहाँ लिख भी नहीं सकता।
मुझे आखिरकार एक एडमिनिस्ट्रेटर को फ़ोन करके उसे चेताना पड़ा के अगर ये जारी रहा तो मुझे पुलिस में शिकायत करनी पड़ेगी। पूरा रविवार, खुद को उस ग्रुप से डिलीट करते हुए गुज़र गया। बला की बेशर्मी थी इन लोगों में।
और ये पहली बार नहीं है। बिहार चुनावों के दौरान जब मैंने “ऑपरेशन भूमिहार“ किया था, जिसमे दास्ताँ थी 10 गाँवों की, जिन्हें 67 साल से वोट नहीं देने दिया गया और 40 साल से स्थानीय नेता जगदीश शर्मा ( जिन्हें बीजेपी का समर्थन हासिल था ) उन्हें वोट नहीं देने दे रहे थे। मेरी रिपोर्ट का नतीजा ये हुआ के प्रशासन चुस्त हुई और अतिरिक्त बल भेजे गए।

नतीजा 80 साल के महतो ने ज़िन्दगी में पहली बार वोट दिया। मतदान के तुरंत बाद मेरे मोबाइल फ़ोन पर अश्लील भद्दे कॉल्स आने लगे। ऑडियो क्लिप्स भेजी गयी। मुझे, मेरी पत्नी, मेरी बाकी परिवार सबके लिए गंदे शब्दों का इस्तेमाल किया गया। पटना में स्थित मेरी दोस्त ज्योत्स्ना के मुताबिक, प्लान ये भी था के मेरे लाइव शो में मेरे सर पर गरम “टार” उढेला जायेगा। शुक्र है ज्योत्स्ना का जिन्होंने उन्हें समझाया के ऐसा करने से आप वो भी सही साबित करेंगे, जो अभिसार ने अपनी रिपोर्ट में नहीं भी कहा। मुझे ज़िन्दगी में पहली बार पुलिस सुरक्षा लेनी पड़ी।

कहने का अर्थ ये कि कुछ डरे हुए हैं, कुछ बेबस और जिनकी रीढ़ किसी तरह से तनी हुई है, उसे तोड़ने का प्रयास। सवाल पूछना इसलिए दुर्लभ हो गया है शायद।

मगर एक और श्रेणी भी है। ये हैं बरसाती पत्रकार। ये अचानक राष्ट्रवादी हो गए हैं ये अचानक मोदी समर्थकों को भाने लगे हैं। मेरे मशविरा है तमाम मोदी भक्तों को, कि इनसे बच के रहें। आज मोदीजी हैं। कल कोई और होगा। मगर ये लोग सलामत रहेंगे। क्योंकि इन्हें दूसरी तरफ झुकने में ज़रा सी भी तकलीफ नहीं होगी और वैसे भी सियासत तो चाटुकारिता पर ही चलती है। क्यों?

(अभिसार शर्मा के ब्लॉग से साभार)

इंडिया न्यूज़ से एबीपी न्यूज़ पहुंचे एंकर अनुराग मुस्कान

अनुराग मुस्कान,एंकर
अनुराग मुस्कान,एंकर
अनुराग मुस्कान,एंकर
अनुराग मुस्कान,एंकर

इंडिया न्यूज़ जबकि टीआरपी के मैदान में छलांग मार रहा है तो उसके प्रमुख एंकर अनुराग मुस्कान नौकरी के मैदान में छलांग मारकर एबीपी न्यूज़ पहुँच गए हैं. गौरतलब है कि वे इंडिया न्यूज़ में डिप्टी न्यूज़ एडिटर के तौर पर कार्यरत थे. ये एबीपी न्यूज़ में उनकी दूसरी पारी है. इसके पहले भी यहाँ काम कर चुके हैं जब एबीपी स्टार न्यूज़ के नाम से जाना जाता था. इसके अलावा उन्होंने सहारा समय,राज्यसभा टीवी, इंडिया टीवी, न्यूज़ नेशन आदि के साथ भी काम किया है.बीच में न्यूज़ नेशन में भी कुछ समय के लिए गए थे लेकिन मामला वहां जमा नहीं तो वापस फिर इंडिया न्यूज़ में आ गए. नई पारी के लिए उन्हें शुभकामनाएं.

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