पाकिस्तान को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिक्रिया का इंतजार विरोधी और समर्थकों के अलावा न्यूज़ चैनल के संपादक भी कर रहे थे. चैनल आस लगाए बैठे थे कि मोदी कुछ ललकार वाली भाषा में पाकिस्तान को कुछ कहे ताकि उसे आधार बनाकर न्यूज़ चैनलों का वॉर रूम अपनी पूरी ताकत पाकिस्तान को हवा-हवाई इस्टाइल में नेस्तनाबूद करने में झोंक दे. लेकिन हुआ इसके उलट. प्रधानमंत्री मोदी ने संतुलित भाषण देते हुए पाकिस्तान को आड़े हाथों लिया. इसके बाद सोशल मीडिया पर आलोचना के साथ – साथ नरेंद्र मोदी की तारीफ़ हुई. मगर न्यूज़ चैनलों की जमकर खिल्ली उड़ाई गयी. वरिष्ठ पत्रकारों ने भी तंज कसने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. पेश है चुनेंदा स्टेटस :
मोदी के स्पीच से युद्ध का पागलपन खत्म
नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान से युद्ध की जगह गरीबी से लड़ाई लड़ने की बात कही उससे पूरी तरह सहमत हूँ। उम्मीद है कि मोदी के स्पीच से युद्ध का पागलपन समाप्त हाोगा। मैं आज से दो साल पहले भी युद्ध,उन्माद और एक के बदले दस सर कलम करने की जुबानी युद्ध को जायज नहीं मानता था। न आज मान रहा हूं। न कल मानूंगा। मेरे विचार जो 2013 में थे वही 2015 में है वही 2017 में रहेंगे। और आगे भी।
आज कल कुछ “रेडीमेड” देशभक्तों की बाढ़ देश में आ गयी है.इनकी मानें तो भारत को पाकिस्तान पर तुरंत अटैक कर देना चाहए और एक घंटे में फ़तेह कर इस्लामाबाद में तिरंगा फ़हरा देना चाहये .उनके लिए युद्ध और छुट्टी के दिन मॉल जाना मानो एक जैसा ही काम हो.युद्ध की खौफनाक हकीकत से दूर।
युद्ध में जीत की भी कीमत क्या चुकानी पड़ती है इसके लिए इतिहास के पुराने पन्ने पलट सकते हैं. युद्ध जीत देती है. फ़क्र करने का मोमेंट भी देती है. लेकिन इसके बदले बहुत कुछ बहा कर जाती है .बड़े त्याग की मांग करती है. युद्ध एक ऐसा लम्हा है जिसमे चंद पल खता करती ,पीढ़िया सजा पाती है।
अगर आपको लगता है सिर्फ युद्ध उत्तर है तो आप गलत सवाल कर रहे हैं. अपने जवान को सम्मानपूर्वक कैसे बचाएं इसके लिए बात होनी चाहये न कि इसके बदले हजार और जवानों की जिदंगी को दांव पर लगा दें ऐसा भड़काना चाहए। इतिहास में युद्ध सी हुई तबाही की कहानी भी है, बिना युद्ध के हल हुए मसले के भी मिसाल।
आज नरेन्द्र मोदी ने कहा-भारत-पाकिस्तान दोनों साथ अाजाद हुआ और 70 साल भारत सॉफ्टवेयर एक्सपोर्ट करता है और पाकिस्तान आतंकवाद। यही फर्क है। आज पूरे विश्व में अगर पाकिस्तान के मुकाबले भारत की बात अधिक सुनी जाती है तो इसका कारण है कि भारत एक संयमित देश रहा है। जिम्मेदारी के साथ रहा है। उन्मादी नहीं रहा। वरना विश्व को भारत से कोई रिश्तेदारी नहीं है कि अगर वह भी पाकिस्तान की तरह बिहेव करे तो भी उतना ही सपोर्ट मिले। नार्थ कोरिया तो बहुत ताकतवर देश है। क्या उसकी तरह बनने की कोशिश करेंगे?
जिस देश में चंद रुपये की कीमत बढ़ने पर बवाल हो जाता है वहां युद्ध के बाद जब इकोनोमी जर्जर हो जाएग तब क्या करेंगे? वार स्टेट में विश्व का कोई देश पैसा नहीं लगाता है। देश का सारा पैसा जो डवलपमेंट पर लगनी चाहिए वह वार में खर्च होगा। और यह तब भी ठीक था जब हम बिना नुकसान का होता। बतौर सुब्रमण्यन स्वामी-पाकिस्तान के साथ युद्ध हुआ तो क्या होगा। हमारे 10 करोड़ मरेंगे। लेकिन पाकिस्तान तो तबाह हो जाएगा। नामोनिशान समाप्त हो जाएगा। अगर आप अपनों को इन 10करोड़ में देखना चाहते हैं तो फिर युद्ध के लिए सीटी बजाते रहें। देश में फर्जी जोशवाले युद्ध मार्ग से गुजरता है लेकिन जिम्मेदार तंत्र हमेशा बुद्ध मार्ग को चुनता है।
(नरेंद्र नाथ के फेसबुक वॉल से साभार)
मोदी के ऊपर उन्मादी मीडिया का दवाब
युद्ध का मतलब है राजनीतिक पराभव ! – जगदीश्वर चतुर्वेदी
कल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब कोझीकोड में बोल रहे थे तो उनके चेहरे पर चिन्ताएं साफ नजर आ रही थीं,उनकी स्वाभाविक मुस्कान गायब थी,उनके ऊपर मीडिया का उन्मादी दवाब है।यह उन्मादी दवाब और किसी ने नहीं उनकी ढोल पार्टी ने ही पैदा किया है।इसे स्वनिर्मित मीडिया कैद भी कह सकते हैं। यह सच है कि भारत ने आतंकियों के उडी में हुए हमले में अपने 18बेहतरीन सैनिकों को खोया है।ये सैनिक न मारे जाते तब भी मीडिया उन्माद रहता।क्योंकि मोदी सरकार के पास विकास की कोई योजना नहीं है,उनकी सरकार को ढाई साल होने को आए वे अभी तक आम जनता को यह विश्वास नहीं दिला पाए हैं कि वे अच्छे प्रशासक हैं।अच्छे प्रशासक का मतलब अपने मंत्रियों में आतंक पैदा करना नहीं है,उनके अधिकार छीनकर पंगु बनाना नहीं है।मोदी ने सत्ता संभालते ही सभी मंत्रियों को अधिकारहीन बनाकर सबसे घटिया प्रशासक का परिचय दिया और आरंभ में ही साफ कर दिया कि वे एक बदनाम प्रधानमंत्री के रूप में ही सत्ता के गलियारों में जाने जाएंगे।
मैंने आज तक एक भी ऐसा अफसर नहीं देखा जो उनकी कार्यशैली की प्रशंसा करता हो।उनकी कार्यशैली ने चमचाशाही पैदा की है।नौकरशाहों में वफादारों की भीड़ पैदा की है लेकिन ईमानदार नौकरशाह मोदीजी से दूर रहना ही पसंद करते हैं। बाबा नागार्जुन के शब्दों को उधार लेकर कहूँ तो मोदी जी की विशेषता है ´तानाशाही तामझाम है लोकतंत्र का नारा।´यही वह परिप्रेक्ष्य है जिसमें हमें कश्मीर समस्या और पाक तनाव को देखने की जरूरत है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जानते हैं कि युद्ध के बाद कोई प्रधानमंत्री भारतीय राजनीति में साबुत नहीं बचा है।सन् 1962 के बाद नेहरू की वह इमेज नहीं रही जो पहले थी,सन्1965 के युद्ध के बाद लाल बहादुर शास्त्रीजी टूट गए,कांग्रेस पूरी तरह कमजोर हो गयी,सन् 1971 में पाक को पराजित करके बंगलादेश बनाकर श्रीमती इंदिरा गांधी की आम जनता में सारी इमेज चंद सालों में ही भ्रष्टनेता की होकर रह गयी और बाबू जयप्रकाशनारायण,मोरारजी देसाई के हाथों उनको बिहार और गुजरात के साथ देश में मुँह की खानी पड़ी,स्थिति यहां तक बदतर हो गयी कि उनको अपनी रक्षा के लिए आपातकाल लगाना पड़ा।सन् 1971 की विजय के बाद इंदिरा गांधी और कांग्रेस वही नहीं रहे जो 1971 के पहले थे।कांग्रेस बुरी तरह टूटी ,देशभर में हारी।यही हाल कारगिल युद्ध में जीत के बाद भाजपा का हुआ,अटलजी को इस विजय के बाद हम देख नहीं पाए हैं।भाजपा के सारे ढोल-नगाड़े पराजय में बदल गए मनमोहन सिंह नए प्रधानमंत्री के रूप में सामने आए।कहने का अर्थ यह है कि युद्ध के बाद कोई भी पार्टी विजेता नहीं रही,सन् 1971 जैसी जीत किसी को नहीं मिली,लेकिन आपातकाल जैसा बदनाम कदम भी किसी और ने नहीं इंदिरा गांधी ने ही उठाया,आम जनता से सबसे ज्यादा कांग्रेस 1971 के बाद ही कटनी शुरू हुई है उसके बाद वह कभी टिकाऊ ढ़ंग से आम जनता में अपनी जड़ें नहीं बना पायी।
कहने का आशय यह कि युद्ध किसी का मित्र नहीं होता।युद्ध में कोई विजेता नहीं होता,युद्ध में कोई नायक नहीं होता।अमेरिका में देखें,इराक को तहस-नहस करने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश के बारे में सोचें उनकी पार्टी इराक युद्ध के बाद लौट नहीं पाई जबकि इराक को वे जीत लिए,अफगानिस्तान को रौंद दिए।इन दो युद्धों ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को पूरी तरह कंगाल कर दिया।इराक युद्ध के बाद अमेरिका में सबसे ज्यादा किसी से जनता यदि घृणा करती थी तो वे थे राष्ट्रपति जार्ज बुश।
चूंकि आरएसएस के लोगों का नायक हिटलर है तो देखें द्वितीय विश्वयुद्ध ने हिटलर की सारी दुनिया में किस तरह की इमेज बनायी ॽसबसे ज्यादा घृणा किए जाने वाले नेता के रूप में सारी दुनिया हिटलर को याद करती है ।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संभवतःयह सब जानते हैं कि सन् 1962,1965,1971 और अंत में कारगिल युद्ध ने तत्कालीन नेताओं को खैरात में जनाक्रोश दिया।कम से कम जनाक्रोश की कीमत पर पाक से युद्ध करना मोदीजी पसंद नहीं करेंगे।महत्वपूर्ण यह नहीं है कि युद्ध में कौन जीतेगा,महत्वपूर्ण यह है कि युद्ध के बाद नेता ,देश और भाजपा का क्या होगा ॽ युद्ध यदि होता है तो यह तय है भारत जीतेगा,लेकिन मोदी-भाजपा आम जनता में हार जाएंगे।
मैं हाल ही में कारगिल गया था वहां लोगों से मिला,बड़ी संख्या में कारगिल युद्ध के चश्मदीद गवाहों से भी मिला,कारगिल की गरीबी और बदहाल अवस्था से सब लोग परेशान हैं।कारगिल युद्ध जीतकर भी वहां की आम जनता के दिलों में हमारे नेता अपने लिए वह स्थान नहीं बना पाए जो होना चाहिए। कारगिल का इलाका बेहद गरीब है।विगत 76दिनों से कश्मीर में कर्फ्यू लगे होने के कारण वहां की अर्थव्यवस्था पूरी तरह चौपट हो गयी है। पर्यटन ही वहां रोटी-रोजी का एकमात्र सहारा है।जो लोग कश्मीर में कर्फ्यू लगाकर खुश हैं वे कश्मीर की जनता को तो कष्ट दे ही रहे हैं,कारगिल और लद्दाख की जनता को भी तकलीफ दे रहे हैं। आज की स्थिति में यदि युद्ध होता है तो कश्मीर-कारगिल-लेह-लद्दाख की जनता हमारी सेना के साथ खड़ी होगी इसमें संदेह है।हम सब जानते हैं कि हमने कारगिल युद्ध सिर्फ अपनी सेना के बल पर नहीं जीता,बल्कि कारगिल-लद्धाख की जनता की मदद से वह युद्ध जीता गया।
मीडिया में जो लोग युद्ध करो,पाक पर हमला करो,आतंकी ठिकानों पर हमले करो आदि सुझाव दे रहे हैं वे नहीं जानते या फिर जान-बूझकर सच्चाई को छिपा रहे हैं।कश्मीर का इलाका अशांत रखकर ,आम जनता को घरों में कैद करके भारतीय सेना के बलबूते पर कभी भी सफलता नहीं मिल सकती।हमें ध्यान रखना होगा कि कारगिल युद्ध के समय कारगिल की खास जनजातियों की मदद के बाद ही हम कारगिल युद्ध में विजय हासिल कर पाए थे।उस समय कारगिल में जनता हमारे साथ थी।आज स्थिति एकदम विपरीत है।विगत76दिनों से कश्मीर-कारगिल-लेह-लद्दाख की जनता बेहद परेशान है और उसके मन में केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के खिलाफ जबर्दस्त गुस्सा है।जनता को विरोध में करके कोई देश युद्ध नहीं जीत पाया है।
(प्रोफ़ेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी के फेसबुक वॉल से साभार)