Home Blog Page 253

राणा यशवंत के काव्य संग्रह का कल होगा विमोचन

राणा यशवंत,मैनजिंग एडिटर,इंडिया न्यूज़
राणा यशवंत,मैनजिंग एडिटर,इंडिया न्यूज़
राणा यशवंत,मैनजिंग एडिटर,इंडिया न्यूज़
राणा यशवंत,मैनजिंग एडिटर,इंडिया न्यूज़

इंडिया न्यूज़ के मैनेजिंग एडिटर और वरिष्ठ टीवी पत्रकार राणा यशवंत के कविता संग्रह ‘अंधेरी गली का चांद’ का कल गुरुवार, 29 सितंबर को विमोचन होगा. ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात कवि केदारनाथ सिंह काव्य संग्रह का विमोचन करेंगे. इस मौके पर केदारनाथ सिंह के साथ अरुण कमल, उदय प्रकाश, अशोक वाजपेयी, मंगलेश डबराल, पुरुषोत्तम अग्रवाल और दिनेश कुशवाहा जैसे साहित्यकार भी उपस्थित होंगे. राणा यशवंत टेलीविजन न्यूज़ इंडस्ट्री के दिग्गज और पुराने पत्रकारों में से एक हैं इसलिए उम्मीद है कि न्यूज़ इंडस्ट्री के लोग भी काफी तादाद में विमोचन समारोह में पहुंचेंगे. अभी हाल ही में उन्होंने जब ‘शब्दांकन’ के मंच से अपनी कविताओं का पाठ किया था तो उसे खूब पसंद किया गया. विमोचन समारोह कार्यक्रम 2 बजे से कन्स्टीच्यूशन क्लब(स्पीकर हॉल) में शुरू होगा. नीचे आमंत्रण पत्र संलग्न है –

राणा यशवंत के काव्य संग्रह का विमोचन
राणा यशवंत के काव्य संग्रह का विमोचन

प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर जवाब नहीं देते केजरीवाल !




केजरीवाल साहब की राजनीति!!

केजरीवाल साहब और उनके सहयोगी आरोप लगाकर भाग जाने के महारथी है। आप उनके हाल के किसी प्रेस कांफ्रेंस को देख लें। चाहे केजरीवाल हों, चाहे मनीष सिसोदिया हो, चाहे स्वाति मालीवाल हों। ये प्रेस कांफ्रेंस बुलाते हैं, लेकिन पत्रकारों के किसी सवाल का जवाब नहीं देते। इनके सभी नेताओं ने “वन वे ट्रैफिक” यानी एकतरफा संवाद का तरीका चला रखा है। पत्रकारों के सवाल करने पर वो उन्हें भाजपाई, कांग्रेसी, दलाल, चमचा और ना जाने क्या-क्या बोलते और लिखते हैं। पत्रकारों को भांति-भांति के उपमा-अलंकारों से सुशोभित करने वाले केजरीवाल साहब और उनके चारण-भाटों को ये खबर जरूर पढ़नी चाहिए।

(पत्रकार संजय कुमार के एफबी वॉल से)




प्रभात खबर की नज़र में जेपी मूवमेंट आजादी का सबसे बड़ा आंदोलन!

प्रभात खबर पटना में 28 सितम्बर को छपी खबर
प्रभात खबर पटना में 28 सितम्बर को छपी अशुद्ध खबर




डॉ.राजू रंजन प्रसाद

प्रभात खबर, पटना के पृष्ठ 10 पर मुख्यमंत्री द्वारा 16 पुस्तकों का विमोचन किये जाने की खबर छपी है। इस पूरी रिपोर्ट में जो अशुद्धि की भरमार है उसकी तो बात ही मत कीजिए। तथ्य भी ये तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं। इनको अपनी गलती का अहसास तक नहीं होता और अर्थ का अनर्थ कर डालते हैं। पुस्तक विमोचन के अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा था कि ‘जेपी मूवमेंट आजादी के बाद का सबसे बड़ा आंदोलन था।’ इस वाक्य को पत्रकार ने अपना शीर्षक बनाया और थोड़े सुधार के साथ लिखा, ‘जेपी मूवमेंट आजादी का सबसे बड़ा आंदोलन था।’ अब उस बेचारे पत्रकार को क्या मालूम कि उससे कितना बड़ा अनर्थ हो गया! ‘हो गया’ इसलिए कि उसे इस अर्थ-अनर्थ का ज्ञान कहाँ है! जान-बूझकर मुख्यमंत्री के साथ इतना भद्दा मजाक थोड़े करता!



प्रभात खबर पटना में 28 सितम्बर को छपी खबर
प्रभात खबर पटना में 28 सितम्बर को छपी अशुद्ध खबर

(डॉ.राजू रंजन प्रसाद के वॉल से)

एपिक चैनल के धारावाहिक ‘सियासत’ पर पत्रकार पुष्य मित्र की टिप्पणी

पुष्य मित्र, पत्रकार
पुष्य मित्र, पत्रकार

पुष्य मित्र, पत्रकार
पुष्य मित्र, पत्रकार
इन दिनों एपिक चैनल पर रात नौ बजे सियासत धारावाहिक का प्रसारण हो रहा है। यह धारावाहिक इंदु सुन्दरसेन की किताब ट्वेंटीएथ वाइफ पर आधारित है। कहानी नूरजहाँ के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है। अकबर के दरवार और परिवार की साजिशों के किस्से नजर आते हैं।

जाहिर सी बात है कि एपिक चैनल का प्रोडक्शन होने की वजह से यह धारावाहिक स्टार प्लस और कलर्स पर चलने वाले ऐतिहासिक धारावाहिक की तरह न लाऊड है न तथ्यों से छेड़छाड़ करता है। बल्कि हर मुमकिन कोशिश वास्तविकता के करीब जाने की नजर आती है। 42 एपिसोड वाले इस धारावाहिक का एक एक दृश्य गंभीरता की मांग करता है। अकबर, जहांगीर, पाशा बेगम, मेहरुन्निशा उर्फ़ नूरजहाँ, अली कुली, मुराद, मन सिंह, अब्दुल रहीम खान खाना आदि हर किरदार पर मेहनत की गयी है और इनसे गुजरते हुए आप समझने की कोशिश करते हैं कि उस दौर की सियासत कैसी होगी।

बहरहाल, इन दिनों जो नादिरा नाम की एक रक्काशा का प्रकरण चल रहा है। दिखाया गया है कि इस रक्काशा से बादशाह अकबर अपने आखिरी दिनों में मोहब्बत करने लगे थे। बादशाह की नाराजगी का शिकार शहजादा सलीम उर्फ़ जहांगीर ने बस बदला लेने की खातिर नादिरा को अपने प्रेम के जाल में फ़ांस लिया ताकि अपने अब्बू को हर्ट कर सकें। बादशाह अकबर को जब यह पता चला तो संयत स्वभाव के इस हुक्मरान का खुद से नियंत्रण खत्म हो गया। उन्होंने नादिरा को भरपूर अपमानित किया और दीवारों में चुनवा दिया।

तो यही थी वह कहानी जिसे हमने फ़िल्म मुग़ले आज़म में देखा है। यह धारावाहिक यही बताता है कि शहजादा सलीम सिर्फ और सिर्फ मेहरुन्निसा उर्फ़ नूरजहाँ से प्रेम करते थे। हालाँकि वे उनकी बीसवीं बेगम बनीं।

(पत्रकार पुष्य मित्र के एफबी वॉल से)

भाजपा के प्रवक्ता हो गए हैं टाइम्स नाऊ के अर्नब गोस्वामी !

अर्नब गोस्वामी न्यूज़आवर में बहस करते

ओम थानवी,वरिष्ठ पत्रकार

अर्णब को कल फिर भाजपा प्रवक्ता के साथ गठजोड़ कर अपनी ही बिरादरी के बंदों को राष्ट्रविरोधी पाले में धकेलते देखा। सबा नक़वी को बोलने नहीं दिया, भाजपा प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा (और सहयोगी बकताओं) को रोका नहीं गया। शर्मा एक मुसलिम समुदाय से आने वाली पत्रकार को सीमा पर (पार नहीं?) जाने को कह रहे थे। भाव कुछ यह था कि राष्ट्र-हित में सबका स्वर एक होना ज़रूरी है, जो साथ नहीं है वह ग़द्दार है। तो टीवी पर ये बहसें आयोजित क्यों हो रही हैं?

सबा ने (उचित ही) रोष में जब कहा कि शर्मा नुक्कड़ जैसा भाषण हमें न पिलाएँ, तो अर्णब सबा पर ही पिल पड़े – शर्मा हिंदी बोल रहे हैं इसलिए आपने उन्हें नुक्कड़ का कहा, यू लटियंस …

यही अपमानजनक सलूक अन्य ‘मेहमान’ सुधींद्र कुलकर्णी के साथ हुआ। उन्हें एक भी वाक्य ठीक से पूरा न करने दिया गया। जैसे ही कश्मीर समस्या का ज़िक्र उनके मुँह से निकला, एक पहले से लिखी इबारत हाथ में ले अर्णब कुलकर्णी पर पिल पड़े। एक अन्य विवेकी मेहमान (जो ऐंकर के साथ स्टूडियो में बैठे थे) को बोलने से रोकने के लिए शर्मा अनर्गल टीकाएँ करने लगे तो मेहमान ने अपने मेज़बान ऐंकर से कहा – “आइ नीड योर प्रोटेक्शन”। इसके बावजूद ऐंकर से न सहयोग मिला, न बोलने का अवसर। बुलाया किसलिए था, भाई?
यह कैसी पत्रकारिता है? सत्ताधारी विचारधारा से कैसा गठजोड़ है? खुला खेल फ़र्रुख़ाबादी!

सच कहूँ तो ये बहसें बरदाश्त के बाहर हो चली हैं। ऐंकर अपना शिकार पहले से चुनकर उसे बहस में बुलाता है। अमूमन कोई भला, न उलझने वाला शरीफ़ बंदा। उसके साथ कोई एक शिकार और होगा। फिर अपने ही चुने हुए तीन-चार हमलावर ‘मेहमानों’ के साथ मिलकर शिकार को पहले देश का दुश्मन क़रार दीजिए। शिकार चाहे लाख कहता रहे कि मैंने जो कहना चाहा वह कहने ही नहीं दिया गया है। दूसरे, गरियाते हुए शिकार के पाले में देश के तमाम उदारवादियों को भी धकेल दीजिए, वे चाहे कहीं भी हों।

असहिष्णुता हम संघ परिवार में ढूंढ़ते आए हैं। इस क़िस्म के टीवी ऐंकरों में भी आजकल वह कूट-कूट कर भरी है। मज़ा यह कि अब अपनी दलीलें भी ये ऐंकर पहले से लिखकर सामने रख लेते हैं; आपके मुँह से जब भी अपेक्षित ज़िक्र या शब्द (जैसे कल ‘कश्मीर’) निकलेगा, वे पूर्वनियोजित दलीलें – नज़रें झुकाकर पढ़ते हुए सही – प्रत्यक्ष दलील देने की कोशिश कर रहे किसी संभागी पर छर्रों की तरह दागे जाने के काम आएँगी। ज़ाहिर है, उस वक़्त सत्ताधारी दल का प्रवक्ता, अन्य चुनिंदा बकता भी साथ डटे होंगे – निरीह मेहमानों को अनवरत हड़काते हुए, सरेआम दादागीरी के दाँव आज़माते हुए।

आप कह सकते हैं – और कहना वाजिब होगा – कि मैं ऐसे चैनल की देहरी पर जाता ही क्यों हूँ, जब जानता हूँ कि वहाँ शोर और मार-काट के सिवा कुछ न मिलेगा? शायद हल्ला देखने (मुहल्ले से पड़ी आदत है), कुछ इस सबसे भी बाख़बर रहने। पर इस बीमारी से अंततः बचना होगा।

मेरा सवाल छर्रे खाने वाले उन ‘मेहमान’ संभागियों से भी है – कि हम तो चलिए चैनल फटकारते जा पहुँचते है, आख़िर आप वहाँ क्यों जा प्रकट होते हैं? बार-बार? मैं जानता हूँ सुधींद्रजी और सबा पैसे के लिए जाने वालों में नहीं, फिर भी इतना अपमान जो मुझ दर्शक से न बरदाश्त हुआ, वे क्यों सह आते हैं?

सोशल मीडिया पर मीडिया खबर

665,311FansLike
4,058FollowersFollow
3,000SubscribersSubscribe

नयी ख़बरें