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मीडिया खबर का प्रशंसक हूँ , दुराग्रही ओम थानवी का नहीं

ओम थानवी,वरिष्ठ पत्रकार
ओम थानवी,वरिष्ठ पत्रकार

वरिष्ठ पत्रकार और जनसत्ता के पूर्व संपादक ओम थानवी सोशल मीडिया पर खासे लोकप्रिय हो गए हैं. जैसा कि आप जानते ही हैं कि सोशल मीडिया की लोकप्रियता में समर्थक और विरोधी दोनों की गिनती की जाती है.समर्थक एक ओर जहाँ लाइक्स और शेयर की बारिश करते हैं तो आलोचक विरोध में टिप्पणियों की बौछार कर देते हैं. यही कशमकश दरअसल लोकप्रियता का पैमाना भी है.

ओम थानवी की आम आदमी पार्टी से नजदीकी किसी से छुपी नहीं है. एक तरफ वे खुलकर ‘आप’ के फैसलों का समर्थन करते हैं तो दूसरी तरफ भाजपा और मोदी सरकार के किसी भी निर्णय का सर्जिकल स्ट्राइक करने से नहीं चूकते. इसी कारण बतौर पत्रकार उनकी निष्पक्षता को लेकर सवाल खड़े होते हैं.

बहरहाल सोशल मीडिया में उनके लिखे वक्तव्य को जब हमने मीडिया खबर डॉट कॉम पर प्रकाशित किया तो कुछ पाठक नाराज हो गए और उनके मन में ये ख़याल आया कि ओम थानवी की बातों को प्रकाशित कर हम उनका पक्ष ले रहे हैं. लेकिन हम अपने पाठकों को बताना चाहते हैं कि वामपंथ और दक्षिणपंथ से इतर ये एक तटस्थ मंच है और यहाँ सभी पक्षों के मीडिया से संबंधित विचारों को समान रूप से जगह दी जाती है. इसी वजह से उनके विचारों को यहाँ जगह दी जाती है और ऐसा आगे भी किया जाता रहेगा. लेकिन यदि कोई पाठक उन विचारों के प्रतिरोध में कुछ कहना चाहेगा तो उसे भी उतनी ही तरजीह दी जायेगी.

इस क्रम में हम अभय सिंह नाम के मीडिया खबर के पाठक का मेल यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं जो उन्होंने हमें भेजा है.

अभय सिंह

महोदय

खुद की करतूत देखे दुराग्रही ओम् थानवी

मैं कई वर्षो से मीडिया खबर का पाठक रहा हूँ।आप मीडिया में दूसरों को नसीहत देते हो ये प्रशंसनीय है।लेकिन मीडिया को नसीहत देने से पहले खुद को देखिये।बड़ी शर्म आएगी आपको।मीडिया में कोई दूध का धुला नहीं है क्योंकि बिना अर्थ के कुछ नहीं होता।

आप ऐसे दुराग्रही ,मुर्ख, ओम थानवी के कसीदे पढ़ते है जरा उसकी भी कारगुजारियां भी लिखा करिये ।ओम थानवी कुंठित है खाली दिमाग शैतान का तो अनाप शनाप जहर उगलेगा।और वो कौन सा दूध का धुला है जो दुसरो को उपदेश झाड़ता है मेरा आपसे निवेदन है ऐसे लोगो से ब्लॉग मत लिखवाये कृपया।टीवी डिबेट में इसका घटिया रूप देखिये तो आप भी कहेंगे इसको संपादक किसने बनया।
मीडिया खबर का प्रशंशक हूँ पर मुर्ख ओम थानवी का नहीं।

अकबर पर शाजी ज़मा का उपन्यास

शाजी ज़मा का उपन्यास 'अकबर'
शाजी ज़मा का उपन्यास 'अकबर'
एबीपी के घोषणापत्र में शाजी ज़मा
एबीपी के घोषणापत्र में शाजी ज़मा

एबीपी न्यूज़ के पूर्व एडिटर-इन-चीफ शाजी ज़मा के साहित्य प्रेम से पूरी न्यूज़ इंडस्ट्री परिचित हैं. साहित्य और भाषा की ये उनकी समझ ही थी कि पहले स्टार न्यूज़ और बाद में एबीपी न्यूज़ का कलेवर दूसरे चैनलों की तुलना में बिल्कुल अलग ही नज़र आता था.बहरहाल अब न्यूज़ इंडस्ट्री से फूर्सत पाकर वे पूरी तरह से साहित्यिक दुनिया में आ गए हैं. जल्द ही उनका नया उपन्यास ‘अकबर’ प्रकाशित होकर आने वाली है. राजकमल प्रकाशन समूह इसे प्रकाशित कर रहा है. खास बात ये है कि साहित्यकार बनने की चाह में टीवी न्यूज़ के कई दूसरे पत्रकारों की तरह उन्होंने आनन-फानन में उपन्यास नहीं लिखा है,बल्कि लंबे अरसे से इसपर काम करते रहे हैं. पूरा रिसर्च किया है, संग्रहालयों की ख़ाक छानी और तब जाकर ‘अकबर’ प्रकाशित होने की राह पर है.उम्मीद करते हैं कि जिस तरह अपने कंसेप्ट से उन्होंने न्यूज़ इंडस्ट्री पर छाप छोड़ी, ठीक उसी तरह अपने उपन्यास के जरिए वे साहित्य की दुनिया में भी छाप छोडेंगे.

बहरहाल राजकमल प्रकाशन ने इस संबंध में सोशल मीडिया पर जानकारी दी है. राजकमल प्रकाशन के संपादक सत्यानंद निरुपम में ‘अकबर’ के जल्द प्रकाशित होने की खबर देते हुए लिखा –



सत्यानंद निरुपम

शाजी ज़मा का उपन्यास 'अकबर'
शाजी ज़मा का उपन्यास ‘अकबर’

किसी लेखक की 20 सालों की मेहनत मायने रखती है। जाने वह एक ही विषय पर सामग्री का संधान किस जतन और धैर्य से करता है! 8 सालों की लिखाई-मंजाई के बाद वह उपन्यास का एक फाइनल ड्राफ्ट तैयार करता है। अब वही उपन्यास ‘अकबर’ नाम से छपने की राह में है। अकबर, जिसकी तलवार ने साम्राज्य की हदों को विस्तार दिया, जिसने मज़हबों को अक़्ल की कसौटी पर कसा, जिसने हुकूमत और तहज़ीब को नए मायने दिए, उसी बादशाह की रूहानी और सियासी ज़िन्दगी की जद्दोजहद का सम्पूर्ण खाका पेश करते इस उपन्यास को शाज़ी ज़माँ ने लिखा है।

शाज़ी ज़माँ दिल्ली के सेंट स्टीफ़ेंस कॉलेज से इतिहास में स्नातक हैं। बरसों से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में हैं। राजकमल से उनके दो उपन्यास ‘प्रेमगली अति सांकरी’ और ‘जिस्म जिस्म के लोग’ पहले से प्रकाशित हैं। अब तीसरा उपन्यास ‘अकबर’ जल्द ही सामने आने वाला है।

इस उपन्यास को लेखक ने कल्पना के बूते नहीं, बाज़ार से दरबार तक के ऐतिहासिक प्रमाण के आधार पर रचा है। शाज़ी साहेब ने कोलकाता के इंडियन म्यूज़ियम से लेकर लंदन के विक्टोरिया ऐल्बर्ट तक बेशुमार संग्रहालयों में मौजूद अकबर की या अकबर द्वारा बनवायी गयी तस्वीरों पर ग़ौर किया है। बादशाह और उनके क़रीबी लोगों की इमारतों का मुआयना किया है और ‘अकबरनामा’ से लेकर ‘मुन्तख़बुत्तवारीख़’, ‘बाबरनामा’, ‘हुमायूंनामा’ और ‘तज़्किरातुल वाक़यात’ जैसी किताबों का और जैन और वैष्णव संतों और ईसाई पादरियों की लेखनी का भी अध्ययन किया है। बतौर संपादक मैं लेखक की इस तैयारी से गहरे मुत्मइन हूँ। उपन्यास पढ़ कर पाठक किस हद तक संतुष्ट होते हैं, यह आने वाले समय में देखना है।

पिछले 6 महीनों में लेखक-संपादक की हुई तमाम बैठकियों में उपन्यास के बहुत सारे बारीक रेशे सुलझाए गए। कई पहलुओं पर बात हुई। हम दोनों एकराय होते और आगे बढ़ते रहे। उपन्यास का आवरण इस दौरान Puja Ahuja ने तैयार किया है। इस पर आप जिस ढाल को देख रहे हैं, वह अकबर की असल ढाल है जो फ़िलहाल छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय (मुम्बई) में संरक्षित है। हमने वहीँ से इसका प्रकाशनाधिकार लिया है। पृष्ठभूमि में जो दीवार है वह फतेहपुर सिकरी के एक हिस्से का है। यह फोटो अनिल आहूजा के सौजन्य से हमें प्राप्त हुआ है। टाइटल की कैलिग्राफी Rajeev Prakash Khare ने की है। उपन्यास के अंदर न केवल कुछ दुर्लभ रंगीन चित्र होंगे, बल्कि पहली बार अकबर की जीवन-यात्रा को समझने के लिए एक संग्रहणीय नक्शा भी सामने आएगा। परिशिष्ट में और भी इंफोग्राफिक्स मुमकिन हैं।

उपन्यास के पेपरबैक और सजिल्द संस्करणों की प्री-बुकिंग अगले हफ्ते से शुरू होने वाली है। इसकी सूचना राजकमल प्रकाशन समूह के पेज से आपको सही समय पर मिल जाएगी। अक्टूबर महात्मा गाँधी और लालबहादुर शास्त्री का ही नहीं, अकबर का भी महीना है। देश की मिट्टी, हवा और पानी का हक़ अदा करने वालों में अकबर का नाम भी अग्रणी है। अकबर अक्टूबर में ही जन्मे, इसी महीने में मरे। यह पूरा महीना ‘अकबर’ उपन्यास के नाम!




साक्षात्‍कार करने से पहले बिहार का कारोबारी इतिहास तो पढ़ लेते ईटीवी रिपोर्टर

इटीवी के ब्‍यूरो प्रमुख कुमार प्रबोध अभी वेदांता के मालिक और बिहार के पुत्र अनिल अग्रवाल से साक्षात्‍कार ले रहे हैं। पत्रकार महोदय कह रहे हैं कि अपनी एक तिहाई संपत्ति दान करनेवाले अग्रवाल अकेले हिंदुस्‍तनी हैं। अग्रवाल ने करीब 20 हजार करोड की संपत्ति दान करने का एलान किया है। बडा आश्‍चर्य लगता है कि बिहार के सबसे बडे कारोबारी डॉ कामेश्‍वर सिंह की आज पुण्‍यतिथि है। डॉ कामेश्‍वर सिंह 1962 में ही अग्रवाल से करीब तीगूनी ज्‍यादा संपत्ति जनता को दान दे चुके हैं। प्रबोध जी, देश की छोडिए..अग्रवाल ने एक बिहारी कारोबारी के इतिहास को ही दोहराया है। कम से कम इतने बडे अादमी से साक्षात्‍कार करने से पहले बिहार का कारोबारी इतिहास ही पढ लिया कीजिए। अग्रवाल 1975 में कारोबारी बने, कामेश्‍वर सिंह 1962 में स्‍वर्गवासी हो गये। बाकी उनकी संपत्ति का मूल्‍याकण आप खुद कर लीजिए।

(कुमुद सिंह के फेसबुक वॉल से)

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टीवी न्यूज मीडिया पूरी तरह पागल हो चुका है – दिलीप मंडल

aajtak-war-predicionटीवी न्यूज मीडिया पूरी तरह पागल हो चुका है

और ये ज्योतिषी? ये भिखारी कहीं भी पहुँच जाते हैं। बच्चा पैदा हो, आदमी मर जाए, देशों के बीच तनाव हो…हर जगह पहुँच जाते हैं।

हिंद महासागर के ऊपर एक युद्धक विमान लापता है। इन मूर्खों से पूछिए कि खोजकर बताओ।

Nikhil Anand लिखते हैं-

इन्ही चिरकुट पंडितों को बॉर्डर पर ले जाकर पाकिस्तान के खिलाफ मंतर फूँकवा ले नरेन्द्र मोदी। क्यों सीमा के अग्रणी मोर्चे पर गरीब- कृषक व दलित- पिछड़े समाज के बेटे को गोली चलाने और.गोली खाने के लिये तैनात कर रखा है। ऐसे डिस्कोर्स देश के शहीदों की शहादत का अपमान है। मिडिया रेगुलेशन देश में क्यों नहीं है जो ये लोग अंधविश्वास, प्रोपोगंडा फैलाने व बरगलाने में लगे हैं आवाम को।

Nikhil Anand देश को अंधविश्वास, आतंक व अराजकता की ओर ढकेलने की साजिश है। इसमें मिडिया की सबसे बड़ी भूमिका है जो धर्म और इतिहास के झूठे किस्सागोई को परोसकर एक खास मकसद से जनमानस तैयार करने में लगी है। लोकतंत्र में सबसे बड़े मूल सवालः सामाजिक न्याय, समानुपातिक प्रतिनिधित्व एवं भागीदारी के सवालों से जनता का दिमाग हटाकर घोर धर्मांन्धता, कर्मकांड, पुरोहितवाद में जनता का विश्वास स्थापित करना है। इन सबका मूल मकसद मनुवाद- ब्राह्मणवाद को जिंदा रखना ही है।

Maheh Okok जबतक भारत के मीडिया मे, एक भी ब्राह्मणवादी सोच का पत्रकार संपादक रहेगा तबतक, भारतीय लोकतंत्र का चोथा खम्भा मीडिया ब्राह्मणों का गुरुकुल बना रहेगा ओर गुरुकुलों के द्रोणाचार्य एकलव्य के अगुठे काटते रहेंगे ।

(दिलीप मंडल के एफबी से साभार)

अब तो नींद में भी न्यूज़ चैनल सर्जिकल स्ट्राइक करने लग गए

कार्टूनिस्ट- कीर्तिश




ध्रुव गुप्ता

कार्टूनिस्ट- कीर्तिश
कार्टूनिस्ट- कीर्तिश
ख़बर मिली है कि पाकिस्तान में भारतीय न्यूज़ चैनलों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। यह तो प्रत्याशित ही था। असली ख़ुशी तब होगी जब भारत में भी दूरदर्शन के सिवा दूसरे सभी भारतीय न्यूज़ चैनलों को प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। इनके उन्मादी समाचार वाचकों, बड़बोले, असभ्य एंकरों और किसी भी विमर्श में शामिल मूर्ख, झगड़ालू पैनलिस्टों ने देश का अमन-चैन छीन लिया है। इन्हें घंटे, दो घंटे देख लीजिए तो रात भर बुरे-बुरे सपने आते हैं।

भर दिन हिंदी न्यूज़ चैनल बदल-बदलकर देखने के आदी मेरे एक मित्र की मानसिक दशा ऐसी हो गई है कि पिछली कई रातों से सपने मे भी सर्जिकल स्ट्राइक करने लगे हैं। रात-रात भर उनके ‘पकड़ो-पकड़ो’, ‘मारो-मारो’, ‘फोड़ो-फोड़ो’ की चीख से उनकी पत्नी का सोना मुहाल है।

दूसरों का क्या कहूं, इन न्यूज़ चैनलों के कारण दो दिन पहले एक दुर्घटना मेरे घर में भी घट चुकी है। एक समाचार वाचिका द्वारा पाकिस्तान के ख़ात्मे का बुलंद, नाटकीय ऐलान सुन कर उत्तेजना में मेरी बेगम ने प्याज की जगह अपने हाथों पर ही चाकू चला लिया था।

जिस दिन ई ससुरा न्यूज़ चैनलवा सबके मुंह पर ताला लगेगा, देश में सचमुच की शांति आ जाएगी।

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