वरिष्ठ पत्रकार शाजी ज़मा का उपन्यास ‘अकबर’ जल्द ही बाजार में आने वाला है और इसी वजह से न्यूज़ इंडस्ट्री से उन्हें लगातार बधाइयाँ और शुभकामनाएं मिल रही है. पहले अजीत अंजुम ने उन्हें बधाई दी तो अब इंडिया न्यूज़ के मैनेजिंग एडिटर राणा यशवंत ने उन्हें शुभकामनाएं देते हुए लिखा –
शाजी ज़मा का उपन्यास ‘अकबर’शाज़ी से जुड़ाव-लगाव के १७ साल हो गए. हर लिहाज से थोड़े अलग हैं. रिश्ता जताते नहीं, निभाते हैं. बातें कम लेकिन कम में ज़्यादा बातें करते हैं. पिता का साहित्यिक संस्कार खूब रचा-बसा है. सन २००० का साल था – ज़ी न्यूज़ में शाज़ी आउटपुट हेड थे और तभी मेरी पहली मुलाकात हुई. साहित्यिक चर्चा ने पहली ही बैठक में एक-दूसरे से हमें जोड़ा. फिर दफ्तर के अंदर हमारा ऐसा संबंध बना जिसकी बुनियाद – कमोबेश एक- सा स्वभाव और पसंद थी. हम दोनों कम बोलने और ज्यादा करने में यकीन रखनेवाले. साहित्य में एक-सी रुचि और भाषा को लेकर सजग रहनेवाले. संकोच और कम बोलने की आदत के चलते यूं भी बातचीत कम ही होती. आज भी वैसे ही है. खैर, उन दिनों शाज़ी अपने पिता बदीउज़्ज़मां साहब के अधूरे उपन्यास आदिपर्व को पूरा करने की कोशिश में थे. पूरा हुआ भी. बदीउज़्ज़मां हिंदी के उन साहित्यकारों में है जिनकी रचनाएं एक काल-खंड का आईना लिए खड़ी हैं. हिंदी साहित्य में बदीउज़्ज़मां का छाको की वापसी, राही मासूम रज़ा का आधा गांव, अब्दुल बिस्मिल्लाह का छीनी छीनी बीनी चदरिया, गुलशेर ख़ान शानी का काला जल और मंज़ूर एहतेशाम का सूखा बरगद – वो उपन्यास हैं जिन्होंने विभाजन और उसके बाद के भारतीय मुस्लिम समाज के अंदर-बाहर की सारी परतों को पसार रखा है. बदीउज़्ज़मां साहब की कलम छाको की वापसी पर जैसी चली है, वो उन्हें आला दर्जे का साहित्यकार ठहराती है. शाज़ी, अकबर के ज़रिए उस जमात तक पहुंचने की कोशिश में ज़रुर दिखेंगे. उनकी कलम पानी के अंदर पानी की सतहों-सी चलती है. बारीक़, मुलायम और लय में. उपन्यास के आने से पहले ही शाज़ी को ढेरों शुभकामनाएं.
मीडिया आलोचना दशकों से चली आ रही है. लेकिन आजकल इसके निशाने पर टीवी न्यूज़ मीडिया रहता है. अक्सर आलोचक कहते हैं कि टीवी न्यूज़ के पत्रकारों में रचनात्मकता नहीं है. साहित्य और समाज को लेकर वे उदासीन है. कुछ वक्त तक ऐसा माहौल बना भी था लेकिन आलोचकों के मिथक को आजकल टेलीविजन पत्रकार लगातार तोड़ रहे हैं. इंडिया न्यूज़ के प्रबंध संपादक और वरिष्ठ टीवी पत्रकार राणा यशवंत ने ताजा मिसाल पेश करते हुए कविता की दुनिया में कदम रखा तो बड़े-बड़े कवि और साहित्यकारों ने भी उनके लिए तालियाँ बजायी और साहित्य की दुनिया में उनका स्वागत किया और इस मौके का गवाह बना दिल्ली का कंस्टीट्यूशन क्लब.
शुक्रवार 29 सितम्बर को दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब का स्पीकर हॉल खचाखच भरा था. ‘सर्जिकल अटैक’ के माहौल के बावजूद राणा यशवंत की कविताओं को सुनने पत्रकार,साहित्यकार और बुद्धिजीवी पहुंचे और उनकी कविताओं का पहला संग्रह ‘अंधेरी गली का चांद’ का विमोचन ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कवि केदारनाथ सिंह ने किया. केदारनाथ सिंह के अलावा मंच पर अरुण कमल, उदय प्रकाश, मंगलेश डबराल और दिनेश कुशवाह थे. इस मौके पर केदारनाथ सिंह ने राणा यशवंत को विलक्षण कवि बताते हुए कहा कि उनकी कविता कई बार चकित करती है और यही उनकी ताकत भी है.
राणा यशवंत ने आभार प्रकट करते हुए कहा कि केदारनाथ सिंह जैसे महान कवि द्वारा उनकी कविताओं के बारे में इतना कुछ कहा जाना उनके लिए सबसे बड़ा सम्मान है. गौरतलब है कि 29 सितम्बर को राणा यशवंत का जन्मदिन भी था. इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव, शैलेश, कमर वहीद नकवी, आलोक वर्मा, सतीश के सिंह, एनके सिंह, इंडिया न्यूज़ के प्रमोटर और एमडी कार्तिकेय शर्मा, शिवराज सिंह, राजेश शर्मा, अनुरंजन झा, निमिष कुमार,यशवंत(भड़ास),पुष्कर पुष्प(मीडिया खबर),आशुतोष(कशिश न्यूज़),धीरज(इंडिया टीवी), हितेंद्र(सहारा), रितेश(इंडिया न्यूज़) आदि बड़ी संख्या में मौजूद थे. देखिये कार्यक्रम की एक झलक :
आसाराम जब से जेल गए हैं तबसे उनके समर्थकों के निशाने पर मीडिया रहती है. समर्थकों को लगता है कि मीडिया की वजह से ही उनके बापू जेल गए और अब उनका मीडिया ट्रायल हो रहा है. इसी सिलसिले में आसाराम समर्थकों ने दैनिक भास्कर को निशाने पर लिया है. पिछले दिनों ट्विटर पर ट्रेंड कराने के बाद अब दैनिक भास्कर का पुतला जलाने का कार्यक्रम हो रहा है. आज चंडीगढ में युवा सेवा संघ , पंजाब ने दैनिक भास्कर का पुतला फूंका और अखबार के खिलाफ नारे लगाये. समर्थकों का कहना है कि इस आंदोलन को वे देशव्यापी बनायेंगे क्योंकि अखबार आसाराम के खिलाफ दुराग्रह से झूठी ख़बरें छाप रहा है. देखें वीडियो –
राहुल गांधी आजकल किसान रैली कर रहे हैं.उत्तरप्रदेश में घूम रहे हैं.खाट लगा रहे हैं.लेकिन मुश्किल ये है कि कभी कोई उनकी खाट उठा ले जाता है तो कभी खुद वे अपनी खाट खड़ी कर लेते हैं. ताजा मामला आलू की फैक्ट्री लगाने का है. किसान आलू खेत में उपजाते हैं लेकिन अब आलू राहुल गांधी की फैक्ट्री में बनेंगे.सुनिए क्या कहते हैं युवराज 🙂
वरिष्ठ पत्रकार और एबीपी न्यूज़ के पूर्व संपादक शाजी ज़मा का उपन्यास ‘अकबर’ जल्द ही बाजार में आने वाली है. सो इसके प्रचार-प्रसार का काम भी शुरू हो गया. न्यूज़ इंडस्ट्री के लोगों की भी खासी रूचि इस किताब में है और उनकी प्रतिक्रियाएं भी आने लगी है. इसकी कड़ी में हमेशा की तरह पहली प्रतिक्रिया इंडिया टीवी के प्रबंध संपादक अजीत अंजुम की आयी है. पढ़िए शाज़ी ज़मा की किताब के बारे में उनकी भविष्यवाणी –
अजीत अंजुम,प्रबंध संपादक,इंडिया टीवी
शाजी ज़मा का उपन्यास ‘अकबर’शाजी ज़मां हिन्दी टीवी चैनलों के सबसे संजीदा और संवेदनशील पत्रकारों में से एक हैं ..शाजी कम बोलते हैं ,कम दिखते हैं , कम लिखते हैं , कम लिखते हैं , कम मिलते हैं लेकिन जो भी सोचते और रचते हैं , वो सबसे अलहदा होता है..शायद इसलिए भी कि वो कहने – बताने से ज़्यादा चुपचाप करते रहने में यक़ीन करते हैं … शाजी को मैं क़रीब पंद्रह सालों से जानता हूँ और जितना जानता हूँ ,उसके आधार पर कह सकता हूँ कि उनकी ये किताब साहित्य की दुनिया में हलचल मचाएगी ..अकबर जैसे किरदार पर शाजी ने इतना काम करके कुछ रचा है तो ये हर साल छपने वाले उपन्यासों की भीड़ से अलग होगा ..