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बरखा दत्त और नरेंद्र मोदी में सवाल-जवाब का पुराना रिश्ता

वक्त का पहिया तेजी से घूमता है. गुजरात के मुख्यमंत्री देश के प्रधानमंत्री बन जाते हैं और बरखा दत तेज तर्रार पत्रकार से पत्रकारिता की आयकॉन बन जाती है. ये बात अलग है कि राडिया आकर इस आयकॉन को ध्वस्त कर देती है. बहरहाल आज मीडिया खबर के पाठकों के लिए एक पुराना इंटरव्यू लेकर आए हैं जिसमें बरखा दत्त जिस तत्परता से सवाल करती हैं उसी हाजिरजवाबी से मोदी भी जवाब देते हैं. उस समय दोनों का कद इतना बड़ा नहीं था और किसी को क्या पता था कि गुजरात से शुरू हुआ टकराव दिल्ली तक पहुंचेगा. बहरहाल देखिये एक पुराना इंटरव्यू –

रेंगते हुए एनडीटीवी पर चिदंबरम गायब, अमित शाह लाइव !

(मुकेश कुमार,वरिष्ठ पत्रकार) –

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तो अब एनडीटीवी को भी घुटने टेकने पड़ गए हैं। सर्जिकल स्ट्राइक से जुड़े कवरेज को सेंसर करने के जो तर्क उसने दिए हैं वे न पत्रकारिता की कसौटी पर खरे उतरते हैं और न ही लोकतंत्र की। सर्जिकल स्ट्राइक पर राजनीति करने या सेना पर संदेह करने वाली सामग्री नहीं दिखाने का ऐलान उसकी संपादकीय समझदारी के बजाय उसके भय को ज्यादा प्रतिध्वनित कर रहा है।




प्रश्न और संदेह करना पत्रकारिता का बुनियादी काम है, मगर वह उसी से खुद को अलग कर रहा है। ये और कुछ नहीं राष्ट्रभक्ति का पाखंड है, जो दूसरे चैनल पहले से उससे बेहतर ढंग से कर रहे हैं। सरकार या सेना दोनों सही या ग़लत काम कर सकते हैं और मीडिया का ये दायित्व है कि वह दोनों ही को वस्तुपरक ढंग से रिपोर्ट करे।
और हाँ, राजनीति को परे धकेलने का ये प्रयास भी राजनीति से ही प्रेरित लगता है।

ये शर्मनाक है कि उसने पी. चिदंबरम का इंटरव्यू और राहुल गाँधी का बयान नहीं दिखाया, जबकि इसी मसले पर अमित शाह की प्रेस कांफ्रेंस को लाइव किया। ये उसके डर जाने का सबूत तो है ही, उसके दोहरे रवैये का भी परिचायक है।

उसे अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। हो सकता है कि उसे तनकर खड़े होने की सज़ा भुगतना पड़े और अंधराष्ट्रवादी उसे देशद्रोही घोषित कर दें (जो कि वे कर भी चुके हैं) मगर देश के प्रति वह अपनी जवाबदेही साबित तो कर सकेगा।अघोषित इमर्जेंसी अब अपने पैर पसारती जा रही है। मीडिया झुकते-झुकते अब रेंगने की मुद्रा में आ गया है। @fb




रवीश जी अपने चैनल के भांड पत्रकारों पर भी गौर फरमाइएगा

एनडीटीवी इंडिया के प्रख्यात टीवी पत्रकार रवीश कुमार ने हाल में अपने ब्लॉग पर ‘भांड पत्रकारिता के दौर में देश का मनोबल बढ़ा है’ नाम से एक लेख लिखा है जिसमें उन्होंने सरकारपरस्त चैनलों और पत्रकारों की लानत-मलानत की है. इसी लेख के जवाब में ‘विनय हिन्दुस्तानी’ की प्रतिक्रिया :

भांड पत्रकारिता के दौर में देश का मनोबल बढ़ा हुआ है/ रवीश कुमार का सुधीर चौधरी पर हमला !

ravish-barkhaप्रिय रवीशजी से सादर कुछ कहना चाहता हूं। लेख में कही गई बातें मुझे भी सही प्रतीत होती हैं। पहले बात मीडिया की सरकार परस्ती की। क्या ये रवायत पिछले ढाई वर्ष की पैदाइश है? छोड़िये जनाब, सत्ताधारी दल के आलाकमान, सरकार और ताकतवर लोगों केे तलुए चाटते ही देखा है आज तक मीडिया को। सत्ता और मीडिया का नापाक गठबंधन दशकों से देश को खोखला कर रहा है। हालांकि, मीडिया की दलाली का सबूत नीरा राडिया प्रकरण से जगजाहिर हुआ, लेकिन क्या हम नहीं जानते कि ये खेल तो बरसों पुराना है।




किसी दल विशेष के हाईकमान की वो महिमा कि आज तक कोई चैनल उन्हें 10नंबर के मकान से स्टूडियो में बुलाकर इंटरव्यू तक नहीं कर सका। दस में रहने वालों के खिलाफ दस शब्द लिखने-बोलने में तो पत्रकार क्या मीडिया मालिक की भी औकात नही हुआ करती थी। और ये किसान का कर्ज? ये किसकी दी हुई विरासत है? करोड़ों किसानों को कर्ज का दर्द दिया किसने? क्यों पिछले ७० सालों में एक सर्वग्राही कृषि नीति बनाकर किसानों का दुःख दूर करने का प्रयास नहीं किया गया। सिर्फ कर्ज माफी का झुनझुना ( न मालूम उस कर्ज माफी का लाभ बैंंकोंं से मिलता किसे था?) पकड़ाकर अपना पल्लू झाड़ लिया जाता था।

रही बात मनोबल कि, तो यह सिर्फ और सिर्फ भारतीय सेना के करारे जवाब के चलते पैदा हुआ भाव है, जो करोड़ों लोगों को बेचैन कर रहा था। समस्याएं तो रहेंगी ही, समाधान भी होगा, नई समस्याएं भी आएंगी… लेकिन इन सबके बीच क्या सेना के शौर्य की सराहना करना भी हम छोड़ दें? सवाल, मोदी सरकार की प्रशंसा, कांग्रेस की आलोचना का भी नहीं। सवाल यह है कि देश के लोगों की नाच देखने और पत्रकारों की भांडगिरी वाली इस मानसिकता का जन्म कब हुआ? कितने बरसों तक यह विकसित होती रही? आवाज उठाना हमेशा सही ही होता है। लेकिन उसे उठाने का वक्त ये बताता है कि आपकी मंशा और सोच क्या है। माना (हां, बिल्कुल माना) आपने दलाली नहीं की होगी। आप किसी राडिया के रडार में नहीं फंसे होंगे, लेकिन जो फंसे थे उनमें से एक तो आपके ही चैनल की थीं। क्या आपने तब या बाद में इस बारे में आवाज मुखर की? नहीं। जाने भी दीजिए साहब, देश तो पिछले ७० वर्षों से यह सब देख और सह रहा है। दिक्कत यह है कि चंद लोग ये चाहते हैं कि ये पीड़ा, ये दर्द देने का हक सिर्फ 10 नंबर मकान वाले को ही है। कोई और भला कैसे दर्द दे सकता है? हजम नहीं हो रहा।

रवीश बाबू, मैं शुरूआती दिनों से आपकी रिपोर्टिंग का कायल रहा हूं। अच्छा लिखते हैं। रिपोर्टिंग तो लाजवाब होती थी। आप व्यक्तिगत तौर पर ईमानदार भी होंगे, सिर्फ सैलरी से गुजर-बसर करने वाले। लेकिन देखिए, अपने नजदीक से लेकर दूर तक बैठे आपकी ही जमात के लोगों को… दुःख होता है।




ऑपरेशन जिंजर के बहाने ओम थानवी का भाजपा पर सर्जिकल स्ट्राइक

ओम थानवी,वरिष्ठ पत्रकार
ओम थानवी,वरिष्ठ पत्रकार

ओम थानवी,वरिष्ठ पत्रकार

hindu-gingerभाषणबाज़ी, नारों और पोस्टरबाज़ी में कुछ ऐसा संदेश देने की कोशिश हुई मानो सैनिक कार्रवाई देश ने नहीं, भाजपा ने की हो! लेकिन ‘पहली बार सर्जिकल स्ट्राइक’, ‘पहली बार पाकिस्तान को घर में घुस कर मारा’ वाले बड़बोलेपन की पोल “ऑपरेशन जिंजर” के दस्तावेज़ी सबूतों ने खोलकर रख दी है। मनमोहन सिंह शासन में सेना ने 2011 में बदले की वह सनसनीखेज़ कार्रवाई अंजाम दी थी। हाँ, उस पर शासन का बड़बोलापन नहीं दिखा; न सबूत माँगे गए न दिए गए। जबकि हाल की ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ का इतना हल्ला ख़ुद सरकार ने मचा दिया कि लोग (देश में भी, विदेश में भी) दावों की पुष्टि की माँग करने लगे।

“ऑपरेशन जिंजर” की सर्जिकल स्ट्राइक (उसे नाम कुछ भी दिया गया हो) की विस्फोटक ख़बर को हमारा मडिया इतना दबकर क्यों दिखा रहा है? ज़्यादातर अख़बारों में उसका फ़ालोअप भी नहीं है। कल रात को बस वीर सांघवी ‘पैनल’ चर्चा करते नज़र आए। बाक़ी दहाड़ने वाले एंकर शायद इतवार की छुट्टी मना रहे थे।
जो हो, इस स-सबूत ख़ुलासे ने सैनिक कार्रवाई के चुनाव प्रचार में इस्तेमाल के भाजपाई मंसूबे पर पानी फेर दिया है।

“ऑपरेशन जिंजर” पर ‘हिंदू’ ख़बर का ब्योरा आज हिंदी में ‘भास्कर’ ने इस तरह प्रकाशित किया है:
नई दिल्ली. इंडियन आर्मी ने 2011 में पाकिस्तानी आर्मी के खिलाफ बड़ा ऑपरेशन चलाया था। यह दावा ‘द हिंदू’ अखबार ने अपनी रिपोर्ट में किया है। इसमें कहा गया कि इंडियन कमांडोज ने एलओसी पार करके 6 जवानों की शहादत का बदला लिया था। इसे ‘ऑपरेशन जिंजर’ नाम दिया गया था। इसमें 8 पाकिस्तानी जवानों को मार गिराया गया था। हमारे जवान तीन के सिर काटकर भारत लाए थे।इस ऑपरेशन के लिए तीन पोस्ट को चुना था…

– अखबार ने 2011 के इस ऑपरेशन के ऑफिशियल डॉक्युमेंट्स, वीडियो और फोटोग्राफ्स के आधार पर पुख्ता सबूत होने का दावा किया है। इसमें एम्बुश, ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने, सर्जिकल स्ट्राइक और निगरानी के लिए अलग-अलग टीमें बनाई गई थीं।

– जिंजर ऑपरेशन के लिए पाकिस्तान की तीन पोस्ट को चुना गया था।

– बता दें कि 18 सितंबर को उड़ी के आर्मी ब्रिगेड हेडक्वार्टर पर आतंकियों ने हमला किया था। इसमें 19 जवान शहीद हो गए थे। चारों आतंकियों को मार गिराया गया।

– इसकी जवाबी कार्रवाई में 28-29 सितंबर की रात भारत ने एलओसी पार कर पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक किया। 38 आतंकी मारे गए।

– तब से ऐसी कार्रवाई के दावे हो रहे हैं। एनसीपी चीफ शरद पवार ने कहा था कि यूपीए के दौरान चार बार सर्जिकल स्ट्राइक हुआ था। कुछ कांग्रेसी नेताओं ने भी ऐसे ही दावे किए।
क्यों किया गया था यह ऑपरेशन?

– अखबार के मुताबिक, 30 जुलाई, 2011 को कुपवाड़ा की गूगलधर चोटी पर स्थित इंडियन आर्मी पोस्ट पर पाकिस्तानी बॉर्डर एक्शन टीम (बीएटी) ने हमला किया था। इस हमले में 5 भारतीय जवान मौके पर शहीद हो गए थे। बीएटी दो भारतीय जवान हवलदार जयपाल सिंह अधिकारी और लांस नायक देवेंंद्र सिंह के सिर काटकर ले गई थी। इसकी जानकारी 19 राजपूत बटालियन के जख्मी जवान ने दी थी। ये जवान भी हॉस्पिटल में शहीद हो गया था।

आर्मी के किस अफसर ने बनाई थी स्ट्रैटजी
– अखबार के मुताबिक, कुपवाड़ा बेस 28 डिवीजन के चीफ रहे रिटायर्ड मेजर जनरल एसके चक्रवर्ती ने भारत की सर्जिकल स्ट्राइक की प्लानिंग की थी। चक्रवर्ती ने कार्रवाई की पुष्टि की है, लेकिन ज्यादा जानकारी देने से इनकार कर दिया।

मंगलवार का दिन चुना था?
– अखबार ने ऑपरेशन जिंजर को अंजाम देने वाले आर्मी अफसर के हवाले से लिखा- “हमने इसके लिए 30 अगस्त को मंगलवार का दिन चुना था, क्योंकि पहले हमने इस दिन कारगिल वॉर समेत हमेशा जीत हासिल की थी। यह ऑपरेशन ईद से एक दिन पहले किया गया, क्योंकि पाकिस्तान को इस वक्त हमले की उम्मीद ना के बराबर थी।”

कैसे दिया इस ऑपरेशन को अंजाम
– अखबार के मुताबिक, इस कार्रवाई को 25 पैरा कमांडो ने अंजाम दिया था। ये लोग उनके लॉन्च पैड पर सुबह 29 अगस्त को 3 बजे पहुंच गए थे और दूसरे दिन 30 अगस्त सुबह तक रहे। यहां इन्होंने लैंड माइंस बिछाईंं और 30 अगस्त को सुबह 7 बजे तक इंतजार किया। जब इन्हें तीन पाकिस्तानी जवान दिखे और सुनिश्चित किया कि एम्बुश वाली जगह की तरफ आ रहे हैं। तब तक कमांडो इंतजार करते रहे। लैंडमाइंस धमाके में वह चारों जख्मी हो गए। उसके बाद ग्रेनेड और गोलियां दागी गईं।

– रिपोर्ट के मुताबिक, एक पाकिस्तानी जवान भागने में सफल रहा। इंडियन कमांडो ने दौड़कर बचे तीन जवानों के सिर काट लिए। ये अपने साथ उनके हथियार और पर्सनल चीजें भी ले आए। इसके बाद जवानों की बॉडी के नीचे आईईडी बिछा दी। यह ऑपरेशन करीब 45 मिनट चला।

– रिपोर्ट के मुताबिक, ऑपरेशन को अंजाम देने के बाद इंडियन आर्मी की पहली टुकड़ी सुबह 7.45 तक लौट आई। इसके बाद दूसरी टीम दोपहर 12 बजे और तीसरी टुकड़ी 2.30 बजे तक लौटी। इस हमले में कुल 8 पाकिस्तानी जवान मारे गए थे, जबकि दो या तीन गंभीर रूप से जख्मी हुए।

(लेखक के एफबी से साभार)

टीचर लड़की देखो,पत्रकार लड़की का सपना देखना छोड़ दो

रिचा साकल्ले

साल 2001…दैनिक भास्कर भोपाल में सब एडिटर थी…लड़का देखने आ रहा था…मेरी डिमांड के मुताबिक पापा ने एक पत्रकार लड़का ढूंढा वो भी किसी अखबार में था ध्यान नहीं है किसमें था…मैंं ऑफिस से बिड़ला मंदिर पहुंची…क्योंकि यही जगह तय हुई थी देखने के लिए..

बातचीत शुरु हुई…लड़का बोला- ‘बहुत अच्छी बात है तुम इस फील्ड में आईं लेकिन सच बताऊं तो मुझे लड़कियों के लिए ये फील्ड अच्छी नहीं लगती। मैंने कहा अरे तो फिर आप मिलने क्यों आए। लड़का- अरे वो बायोडाटा अच्छा लगा।

फिर वो बोला अखबार में तो नाइट शिफ्ट लगती है आपकी लगती है क्या…मेरी उस वक्त नाइट शिफ्ट नहीं लगती थी लेकिन फिर भी महज उसका मगज (दिमाग) जानने के लिए मैने कहा हां लगती है…तो वो बोला अरे फिर कैसे होगा, आप नाइट शिफ्ट से आकर काम कैसे करेंगी। मैने कहा- वैसे तो कामवाली रखी जा सकती है..वो बोला अरे माताजी को कामवाली का काम पसंद नहीं।

मैने कहा अच्छा आप नाइट शिफ्ट से आकर क्या करते हैं वो बोला- मैं तो आते ही सो जाता हूं। मैने कहा मैं भी ऐसा ही करती हूं। वो बोला- तुम ये जॉब छोड़ दो टीचिंग कर लो…मैने उससे कहा आप पत्रकार लड़की देखना छोड़ दीजिए। मैं उसके रिश्तेदारों से मिले बिना जगह छोड़कर स्कूटी उठाकर घर वापस आ गई। पापा ने उन लोगों को मना कर दिया।

(टीवी पत्रकार रिचा साकल्ले के फेसबुक वॉल से साभार)

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