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अजीत अंजुम का केजरीवाल पर सर्जिकल स्ट्राइक

अजीत अंजुम,प्रबंध संपादक,इंडिया टीवी

#IndiaTVExposed के खिलाफ इंडिया टीवी के मैनेजिंग एडिटर अजीत अंजुम की खरी – खरी

(अजीत अंजुम, प्रबंध संपादक, इंडिया टीवी)-

इंडिया टीवी को लेकर अरविंद केजरीवाल का ट्वीट
इंडिया टीवी को लेकर अरविंद केजरीवाल का ट्वीट

इंडिया टीवी के खिलाफ सोशल मीडिया पर #IndiaTVExposed का हैशटैग क्रिएट करके बेबुनियाद और तथ्यहीन Propaganda चलाया जा रहा है .. इंडिया टीवी के खिलाफ मुहिम चलाने वाले लोग इंडिया टीवी के एक पूर्व रिपोर्टर इमरान शेख की एक चिट्ठी को हथियार बनाकर सोशल मीडिया में चैनल के खिलाफ झूठा और तथ्यहीन दुष्प्रचार कर रहे हैं इंडिया टीवी से बाहर होने के एक साल बाद इमरान शेख ने पीएम मोदी के नाम चिट्ठी लिखकर चैनल पर मनगढ़ंत आरोप लगाया है कि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी के पक्ष में False and Fabricated खबरें करने को कहा गया . इससे परेशान होकर उन्होंने चैनल छोड़ दिया . इसी चिट्ठी को मुद्दा बनाकर #IndiaTVExposed हैशटैग के जरिए दुष्प्रचार करने वालों के लिए कुछ जरुरी तथ्य…

india-tv-reporter1 ) इमरान शेख मुंबई में एक साल पहले तक इंडिया टीवी के क्राइम/लोकल रिपोर्टर थे . जो लोग न्यूज चैनल की Functioning को थोड़ा भी जानते हैं , उन्हें पता होगा कि मुंबई के क्राइम रिपोर्टर का पीएम और केन्द्र सरकार की खबरों से कोई लेना-देना नहीं होता..मुंबई का क्राइम रिपोर्टर पीएम के पक्ष में न तो कई खबर कर सकता है, न ही उसे करने को कहा जा सकता है.

2 ) इंडिया टीवी से बाहर होने के एक साल तक तो इमरान शेख ने कभी ऐसी कोई बात नहीं कही. न ही ऐसा कोई आरोप लगाया. एक साल बाद अचानक ऐसा आरोप लगाना इस बात का सबूत है कि कुछ लोगों ने या तो उसे साजिश का मोहरा बनाया या फिर उनकी मंशा संदिग्ध है.

3 ) मुंबई ब्यूरो में काम करने के दौरान डियूटी में उनकी लापरवाही की कई बार शिकायत मिली थी और खबरें मिस करने पर इंडिया टीवी के सीनियर एडिटर्स की तरफ से उन्हें लिखित और मौखिक चेतावनी भी दी गई थी. बार –बार चेतावनी के बाद उन्हें 8 अक्तूबर 2015 को दो दिन के लिए सस्पेंड कर दिया गया था. फिर भी उनका रवैया नहीं बदला और वो अपने वरिष्ठ सहयोगियों से बदसलूकी करते रहे .

4 ) इमरान शेख को कई बार उनके काम न करने /अपनी साथियों के साथ बदसलूकी करने और डियूटी पर लापरवाही वरतने के लिए चेतावनी दी गई. ये सारे तथ्य सितंबर – अक्तूबर 2015 में दिल्ली और मुंबई के कई सहयोगियों के बीच मेल पर हुए Chain of communication में मैजूद है.

5) 17 अक्तूबर 2015 को इमरान शेख ने अपने वकील से माध्यम से एक नोटिस भेजा , जिसमें उन्होंने तीन वरिष्ठ सहयोगियों के खिलाफ परेशान करने का आरोप लगाया लेकिन उस नोटिस में भी ऐसी कोई बात नहीं लिखी गई जो इंडिया टीवी से बाहर होने के एक साल बाद उन्होंने सनसनीखेज ढंग से अपनी चिट्ठी में लिखी है . जो बात उन्होंने एक साल पहले के नोटिस और एडिटर को लिखी चिट्ठी में नहीं लिखी , वो आज क्यों लिख रहे हैं ? इसके पीछे क्या साजिश है ?

6 ) चिट्ठी से साफ पता चलता है कि इंडिया टीवी से अलग होने के एक साल बाद इमरान शेख किसी के इशारे पर बहकावे में आकर बिल्कुल आधारहीन आरोप लगाकर इंडिया टीवी को बदनाम करने की साजिश का हिस्सा बन रहे हैं .

@fb

इंडिया टीवी पर मोदी के पक्ष में खबर चलाने का आरोप

इंडिया टीवी पर आरोप लगा है कि मोदी सरकार के पक्ष में खबर चलाने के लिए वहां रिपोर्टरों पर दबाव बनाया जाता है. पूरा मामला इंडिया टीवी के एक पूर्व रिपोर्टर इमरान शेख की एक चिट्ठी से शुरू हुआ और उसके बाद सोशल मीडिया पर हैशटैग चलने लगा #IndiaTVExposed. आम आदमी पार्टी के नेताओं और समर्थकों द्वारा भी इसे खूब शेयर किया गया.खुद अरविंद केजरीवाल ने भी इसे शेयर करते हुए आश्चर्य व्यक्त किया. उन्होंने ट्वीट किया –

नामुरादों अमिताभ से सवाल पूछ रहे हो या बाढ़ की रिपोर्टिंग कर रहे हो?

पत्रकारिता में भी बहुत सारी ख़बरें रूटीन वर्क के तहत होती है, उसी में से एक काम हो गया है अमिताभ बच्चन के जन्मदिन पर रिपोर्टरों के सवाल.उनके हरेक जन्मदिन पर रिपोर्टर मिलते हैं और वही घिसे-पिटे सवाल पूछकर वापस लौट जाते हैं.इसी पर पत्रकार सुशांत झा और सुरेश चिपलूनकर की दिलचस्प टिप्पणी :

सुशांत झा

अमिताभ के जन्मदिन पर रिपोर्टर-गण जो सवाल पूछते हैं तो लगता बाढ़ की रिपोर्टिंग कर रहे हैं! हर साल वही सवाल. मसलन-
“अमितजी इस नए साल में आप के क्या संकल्प हैं? आप क्या-क्या करना चाहेंगे?
“अमितजी, इस नए साल आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
“अमितजी, पिछले साल और इस साल आप क्या बदलाव देखना चाहेंगे?
_________________
नामुरादों, सवाल तो ठीक से फ्रेम कर जाओ कि दांत निपोड़ने जाते हो कि टेढ़ा सवाल पूछने से कहीं दरवाजा न दिखा दे!
सिर्फ एक मोहतरमा ने पूछ लिया कि उनके राष्ट्रपति बनने की बातें हवा में तैर रही हैं! अमिताभ ने कहा कि लोग मजाक करते रहते हैं और वे जानते हैं कि ऐसा कभी नहीं होगा!
हां, उन्होंने उस पद से कत्तई इनकार नहीं किया!

Suresh Chiplunkar
1) क्या आपके रेखा से अभी भी सम्बन्ध बने हुए हैं??
२) अभिषेक के निकम्मे रह जाने और ऐश्वर्या जैसी बीबी मिलने पर आपका क्या कहना है?
३) आप विग लगाते हैं लेकिन जया भाभी हेयर डाई तक नहीं करतीं, ऐसा क्यों??
४) यूपी की जमीन बेच दी या रखी हुई है… मतलब आप अब भी किसान हो या कुछ और??

यदि मैं पत्रकार होता, तो मेरे सवाल ऐसे होते… 😛

@fb

मोदी सरकार का एनडीटीवी पर सर्जिकल स्ट्राइक

रेंगने को मजबूर क्यों हुआ एनडीटीवी? मोदी सरकार का साम, दाम, दंड, भेद हुआ कारगर ! मोदी सरकार के सर्जिकल स्ट्राइक से पस्त हुआ एनडीटीवी

एस.एन.विनोद

तब आपातकाल का अंधा युग था। ‘सेंसर’ के तलवार के नीचे प्रेस कराह रहा था।नागरिक मौलिक अधिकार छीन लिए गये थे।प्रेस को झुकने के लिए कहा गया, वह रेंगने लगा।सभी नहीं।कुछ अपवाद थे जिन्होंने सरकारी तानाशाही के आगे झुकने की जगह जेल जाना पसंद किया।तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के काले कानून, तानाशाही को उन पत्रकारों ने अस्वीकार कर जेल के सींखचों का वरण किया।पत्रकारीय मूल्य को जीवित रखने वाले वे अपवाद कालान्तर में आदर्श के रुप में पूज्य हुए।पत्रकारिता के विद्यार्थियों के ‘रोल मॉडल’ बने।

sushant-singh-ndtvआज आपातकाल नहीं है।सत्ता में वे राष्ट्रभक्त हैं जो इंदिरा गांधी के “कुशासन और भ्रष्टाचार” के खिलाफ जय प्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति के झंडाबरदार बने थे।आपातकाल में बंदी बन जेल में रहे।भारत की दूसरी आज़ादी की सफल लड़ाई के सिपाही थे आज के ये शासक।ओह!फिर आज ये प्रेस अर्थात् मीडिया को पंगु क्यों बना रहे हैं?मीडिया पर साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपना उन्हें रेंगने को मजबूर क्यों किया जा रहा है?पत्रकारिता के स्थापित मूल्यों, मान्य सिद्धांत के साथ उन्हें बलात्कार करने को मजबूर क्यों किया जा रहा है?विरोध के स्वर को दबा कर, सच/तथ्य को सतह के नीचे दबा कर लोकतंत्र की नींव को कमजोर क्यों किया जा रहा है? सत्ता-स्तुति, एकपक्षीय जानकारी के लिए मीडिया को मजबूर कर कोई शासक जनता के दिलों पर राज नहीं कर सकता।इतिहास के पन्ने इसके गवाह हैं।

इस शाश्वत सत्य की मौजूदगी के पार्श्व में अगर वर्तमान सरकार, जे पी के अनुयायियों की सरकार, मीडिया को कुचलने का प्रयास करती है, तो इसे’विनाश काले, विपरीत बुद्धि’की अवस्था निरुपित करने को मैं मजबूर हूँ।हाँ, चूँकि अन्य देशवासियों की तरह मैंने भी2014 में विश्वास व आशा के साथ नरेंद्र मोदी के “परिवर्तन” के आह्वान का साथ दिया था, चाहूँगा कि मेरे इस आकलन, इस आशंका को सत्ता गलत साबित कर दे।क्या देश के’प्रधान सेवक’ पहल करेंगे?

पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय सेना के सफल “लक्षित हमले” (सर्जिकल स्ट्राइक) के बाद शुरु सर्वथा अवांछित, अशोभनीय राजनीतिक बहस को क्रूर विस्तार दिया मीडिया ने।कुछ ऐसा कि अपने घर में ही विभाजन का खतरा पैदा हो गया-सेना के मनोबल को दांव पर लगा दिया गया।पाकिस्तान के खिलाफ राजदलों की एकजुटता के बावजूद मीडिया सन्देश ऐसा मानो विपक्ष देश का दुश्मन है !मुद्दा आधारित टिप्पणी करने वाले,सत्याधारित विश्लेषण कर निष्पक्ष निष्कर्ष के कतिपय पक्षधरों ने जब कर्तव्य निर्वाह करते हुए सचाई प्रस्तुत करने की कोशिश की तो उनके खिलाफ चाणक्य की नीति-साम, दाम, दंड, भेद अपनाई गई।

एन डी टीवी इसी नीति का शिकार हुआ प्रतीत हो रहा है।सच के पक्ष में अपवाद की श्रेणी के इस खबरिया चैनल को झुकता-रेंगता देख पत्रकारिता की आत्मा कराह उठी है।सच जानने को इच्छुक देश तड़प उठा है।पत्रकारिता के विद्यार्थी हतप्रभ हैं, एन डी टीवी के नये बदले चरित्र और चेहरे को देख कर।चैनल ने घोषणा की थी अपनी वरिष्ठ, हाई प्रोफाइल पत्रकार बरखा दत्त द्वारा ली गई पी. चिदम्बरम के साक्षात्कार के प्रसारण की।अंतिम समय में कार्यक्रम रद्द कर दिया गया।शर्मनाक तो ये कि चैनल ने ऐसा राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर किया।बात यहीं ख़त्म नहीं होती।चैनल ने घोषणा कर दी कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रतिकूल रुप से प्रभावित करने वाली किसी खबर या कार्यक्रम का प्रसारण नहीं करेगा।”राष्ट्रभक्त”और”सिद्धांतवादी” के इस मुखौटे के पीछे का सत्य भयावह है।सच ये कि एन डी टीवी भी झुक गया, एन डी टीवी को भी झुका दिया गया।हाँ, कड़वा सच यही है।मुलायम सरीखे राजनेता की तरह प्रणब रॉय भी अंततः टूट गये।

देर-सबेर प्रणब को झुकाने वाले, तोड़ने वाले हाथ-हथियार भी सामने आ जायेंगे।लेकिन,लोकतांत्रिक भारत का स्वाभिमानी मीडिया आज निर्वस्त्र कोठे पर बैठ जिस प्रकार रुदन को विवश है, क्या कोई हाथ उसकी “लाज” के रक्षार्थ अवतरित होगा ? भारत, भारतवासी प्रतीक्षारत हैं कि प्रणब रॉय भी करवट लें !और, प्रतीक्षा इस बात की भी कि जे पी के शिष्यों की आत्मा भी अंततः करवट लेने को मजबूर होगी-आज़ाद मीडिया के हक़ में।

@FB

टीवी पर बहस में उन्माद भरने वाले रिटायर्ड फौजियों पर गुस्सा मत कीजिए

armyman-old-aajtakटीवी पर बहस में उन्माद भरने वाले रिटायर्ड फौजियों पर गुस्सा मत कीजिए। उनकी दिमाग़ी बनावट ही मरने-मारने वाली होती है। वे इससे आगे सोच ही नहीं पाते।

और ये उनके लिए ज़रूरी भी है क्योंकि अगर वे ऐसे नहीं होंगे तो न तो खुद अच्छे से लड़ सकेंगे, न ही सैनिकों को प्रेरित कर सकेंगे।

गुस्सा उन पर कीजिए, जो उन्हें बुलाते हैं और स्टूडियो को युद्ध का मैदान बनाकर खुद को अति बुद्धिमान और साहसी समझते हैं। वे न तो पत्रकार हैं और न ही इंसान। वे सत्ताधारियों और मुनाफ़ाखोरों के मंदबुद्धि चाकर हैं, इससे अधिक कुछ नहीं।

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