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मोदी की पुराने दोस्त को मनाने की पहल

मोदी ने कहा - दो नये दोस्तों से एक पुराना दोस्त बेहतर
मोदी ने कहा - दो नये दोस्तों से एक पुराना दोस्त बेहतर

ओंकारेश्वर पांडेय,संपादक,न्यू ऑब्जर्वर पोस्ट

मोदी ने कहा - दो नये दोस्तों से एक पुराना दोस्त बेहतर
मोदी ने कहा – दो नये दोस्तों से एक पुराना दोस्त बेहतर

स्तारीय द्रुग लुछे नोविख़ द्वुख – यानी दो नये दोस्तों से एक पुराना दोस्त बेहतर। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यही कहते हुए बातचीत शुरु की और पिछले कुछ समय से उखड़े उखड़े से नज़र आ रहे रूस को मनाने की पहल की। सात दशक पुराने भारत-रूस के अप्रतिम संबंधों को आज इस वाक्य से एक नयी उर्जा और ताज़गी मिली। ब्रिक्स सम्मेलन से पहले भारत-रूस के शीर्ष नेताओं की यह मुलाकात कई मायनों में खास थी। राष्ट्रपति पुतिन से प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात में उरी में आतंकी हमले और उसके बाद भारत की ओर से की गई सर्जिकल स्ट्राइक पर भी चर्चा हुई और रक्षा के क्षेत्र में 16 बड़े करार भी हुए। रूस के साथ ऐसे करार नये नहीं हैं। नया है रूठे रूस को मनाने की यह पहल।

ओंकारेश्वर पांडेय
ओंकारेश्वर पांडेय

हाल ही में रूसी सेनाओं के पाकिस्तान के साथ सैन्य-अभ्यास की खबरें आयी थीं। और ये खबर ऐसे समय में आयी जब भारत सरकार जम्मू-कश्मीर में लगातार बढ़ते पाकिस्तान समर्थित आतंकी हमलों से परेशान है और इसके जवाब में भारतीय सेना ने पाक कब्जे वाले कश्मीर में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक भी किया। और तभी खबरें आयीं कि रूसी सेना पाक के साथ पीओके में ही सैन्य अभ्यास करने जा रही है। खैर बाद में रूस ने इसका खंडन कर दिया कि वह पीओके में नहीं बल्कि अन्यत्र अभ्यास करेगी। दो देशों के बीच सैन्य अभ्यास चलते रहते हैं। पर पाकिस्तान के साथ रूस के सैन्य अभ्यास की खबर भारत के लिए इसलिए पीड़ादायक थी, क्योंकि भारत और रूस के संबंध इतने प्रगाढ़ रहे हैं और समय की कसौटी पर इतने खरे उतरे हैं कि जिसकी तुलना ही नहीं हो सकती।

देखिये, इतिहास कैसे करवट लेता है। याद करिये – 16 दिसंबर 1971 की तारीख को। जब भारत ने पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश से अलग कर दिया था और जिस लड़ाई में रूस ने हमारा पूरा साथ दिया था। यह वह ऐतिहासिक दिन था, जब मात्र 14 दिनों की लड़ाई के बाद पाकिस्तानी फौज के 93 हजार सैनिकों ने ढाका (बांग्लादेश) में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। पाकिस्तान पर हुई ऐतिहासिक जीत के इस दिन को भारत विजय दिवस के रूप में मनाता है।

यह वह लड़ाई थी, जिसमें जब भारतीय सेना कराची पर कब्जे की तैयारी करने लगी थी तो तब उसके रहनुमा रहे अमरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने बौखला कर 8 दिसंबर 1971 को भारत के खिलाफ किंग क्रूज मिसाइलों, सत्तर लड़ाकू विमानों और परमाणु बमों से लैस अपने सातवें युद्धक बेड़े यूएसएस एंटरप्राइजेज को दक्षिणी वियतनाम से बंगाल की खाड़ी की ओर कूच करने का आदेश दे डाला था। दस अमरीकी जहाजों वाले इस नौसनिक बल को अमरीका ने टास्क फोर्स 74 का नाम दिया था। तब अमरीका के इशारे पर ब्रिटेन ने भी अपने विमानवाहक पोत ईगल को भारतीय जल सीमा की ओर रवाना कर दिया था। भारत को घेरने के लिए अमरीका ने चीन को भी उकसाया। लेकिन चीन सामने नहीं आया। कई अन्य देशों के माध्यम से पाकिस्तान को लड़ाकू विमानों और हथियारों की मदद करवायी गयी थी। फिर भी भारत घबराया नहीं।

यह वह समय था, जब अमरीकी नेता इंदिरा गांधी के लिए अपनी बातचीत में गालियों का प्रयोग करते थे। एक बार तो निक्सन ने अपने गृह सचिव हेनरी किसिंजर से फोन पर बातचीत में इंदिरा गांधी को कुतिया तक कहकर संबोधित किया था।

इस मौके पर रूस (तब सोवियत संघ) ने यादगार तरीके से भारत का साथ दिया था। सोवियत राष्ट्रपति ब्रेझनेव ने 13 दिसंबर को अपनी परमाणु संपन्न पनडुब्बी व विमानवाहक पोत फ्लोटिला को एडमिरल ब्लादीमिर क्रुग्ल्याकोव के नेतृत्व में भारतीय सेना की रक्षा के लिए भेजा तो अमरीकी – ब्रिटिश सेना ठिठक गयी। इस लड़ाई से महज तीन माह पहले 9 अगस्त 1971 को भारत ने रूस के साथ एक बीस वर्षीय सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किये थे। अमरीका का सातवां बेड़ा जब बंगाल की खाड़ी में घुसा, तो रूसी नौसेना को भारत के बचाव में पहले से खड़ी देखकर अमरीकी नौसैनिक कमांडर ने पेंटागन को संदेश दिया – सॉरी सर ! वी आर लेट। दे हैव (रूसी सेना) ऑलरेडी एराइव्ड !!

आखिरकार बांग्ला मुक्ति वाहिनी के आंदोलन को कुचलने के लिए 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने ‘ऑपरेशन चंगेज’ के कोड नाम से पूर्वी पाकिस्तान समेत अनेक भारतीय ठिकानों पर हवाई हमला बोल दिया। भारत ने इसका करारा जवाब दिया और महज 14 दिनों में ही पाक को घुटने टेकने को मजबूर कर दिया। युद्ध के ऐसे नाजुक मौके पर रूस का भारत के साथ पूरी ताकत से खड़ा होना एक ऐसा तथ्य है, जिसका भारत हमेशा ऋणी रहेगा।

अगर अमरीका पर 9/11 का हमला नहीं होता और आतंकवाद फैलाने में पाकिस्तान की भूमिका उजागर न हुई होती, तो शायद अमरीका आज भी पाकिस्तान के ही पक्ष में खड़ा होता। हकीकत देखिये कि जिस पाकिस्तान को अमरीका आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अपना अहम साझीदार बनाकर चल रहा था, उसी पाकिस्तान ने अमरीका के सबसे बड़े दुश्मन ओसामा बिन लादेन को अपने घर में छुपा रखा था। अमरीका के दिये धन और हथियारों का इस्तेमाल वह भारत के खिलाफ आतंकवाद फैलाने में ही कर ही रहा है।

प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अमरीका को अपना स्वाभाविक सहयोगी करार देकर भारत-अमरीका संबंधों के एक नये युग का सूत्रपात किया था। पर अमरीका को भारत की दोस्ती की अहमियत जरा देर से समझ में आयी। साथ ही उसे भारत-रूस की दोस्ती से हमेशा ईर्ष्या भी रही है। अमरीका नहीं चाहता कि भारत कोई हथियार रूस से खरीदे। बीते वर्ष राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारत-रूस के बीच रक्षा सौदों पर यह कहकर क्षोभ जताया था कि यह रूस के साथ सामान्य संबंधों का समय नहीं है। तब प्रधानमंत्री मोदी ने यह कहकर अमरीका को जवाब दिया था कि रूस से हमारे संबंध बहुत पुराने और अतुलनीय हैं, और वह हमारा सबसे महत्वपूर्ण रक्षा सहयोगी बना रहेगा।

भारत ने अमरीका को तो समझा लिया था। लेकिन रूस बुरा मान गया। उसकी नाराजगी की बड़ी वजह ये थी कि पिछले दस बारह सालों से भारत ने रूस से इतर कई अन्य देशों से रक्षा सौदे करने शुरु कर दिये। जबकि इससे पहले भारत कई दशकों से रूस के रक्षा उपकरणों का सबसे बड़ा आयातक रहा है। हाल के वर्षों में अमरीका ने भारत को रूस के मुकाबले बेहतर हथियार मुहैया कराने के जो सौदे हासिल किये, उसका सीधा नुकसान रूस को ही हुआ।

सन् 2013 में रूस ने भारत को 4 अरब 70 करोड़ डॉलर के हथियार दिये थे, जो उसके कुल हथियार निर्यात का 35 फीसदी हिस्सा था। लेकिन दिसंबर 2015 में प्रधानमन्त्री मोदी की रूस यात्रा के दौरान भारत ने जब रूस से सैन्य साजो-सामान की खरीद का कोई खास समझौता नहीं किया, तो रूस ने भी पैंतरे बदल लिये और भारत के साथ दोतरफा खेल खेलना शुरु कर दिया। एक तरफ उसने पाक के साथ सैन्य अभ्यास शुरु किया तो दूसरी तरफ भारत के साथ भी संयुक्त सैन्य अभ्यास जारी रखा। भारत-पाक युद्ध के 45 साल बाद रूसी सेनाओं को पाक के साथ गलबंहियां करते देख भारत में चिंता हुई। क्योंकि रूसी भारत के सच्चे मित्र रहे हैं।

दरअसल चाहे रूस हो या अमरीका या अन्य देश, सभी भारत को बाजार मानते हैं। भारत ने उनके साथ बड़े सौदे किये तो वे खुश, नहीं तो नाराज। इसीलिए भारत ने अपनी रणनीति में दो बड़े बदलाव किये हैं। एक – किसी एक देश पर रक्षा संबंधी सौदों के लिए निर्भर नहीं रहना और दो – देश में स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देकर रक्षा मामलों में आत्म निर्भरता।

आज अमरीका और भारत के सामने असली चुनौती चीन ही है। चीन को संतुलित करने के लिए अमरीका और भारत को एक दूसरे का साथ चाहिए। पर भारत अपने पुराने साथी रूस को पाक-चीन के पाले में डालने की गलती भी नहीं कर सकता। लिहाजा इन सबके बीच एक संतुलन कायम करना होगा।

गनीमत है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने समय रहते रूस के साथ बिगड़ते संबंधों को संभाल लिया। भारत-रूस की दोस्ती में आयी इस नयी ताज़गी से चीन-पाकिस्तान का परेशान होना लाज़िमी है। पुतिन से बातचीत के आखिर में मोदी ने कहा – इंडियाई रस्सीया-रुका अब रुकु व स्वेतलोय बदूशीय यानी सुनहरे भविष्य के लिए भारत और रूस साथ साथ। उम्मीद की जानी चाहिए कि दोनों देश पूर्ववत करीबी दोस्त और साझीदार बने रहेंगे।

गोइन्का पुरस्कार के लिए प्रविष्टियां आमंत्रित

(प्रेस विज्ञप्ति)-




MK-300-X-250कमला गोइन्का फाउण्डेशन के प्रबंध न्यासी श्री श्यामसुन्दर गोइन्का ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करके सूचित किया है कि हिन्दी से बंगला व बंगला से हिन्दी अनुवाद के लिए नामचीन चिंतक, दार्शनिक व लेखक की स्मृति में सद्य घोषित “श्री प्रभात रंजन सरकार स्मृति पुरस्कार” के लिए प्रविष्टियां आमंत्रित की है।

श्री गोइन्का जी ने जानकारी दी है कि जिन साहित्यकारों की बंगला से हिन्दी में या हिन्दी से बंगला में किसी पुस्तक का पिछले दस वर्षों में अनुवाद किया है, वे इस प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। प्रविष्टियां मिलने की अंतिम तिथि 30 नवंबर 2016 है।

नियमावली एवं प्रस्ताव-पत्र के लिए हमारी वेब साइट : kgfmumbai.com का अवलोकन करें। अधिक जानकारी के लिए बैंगलोर दूरभाष 9900020161 (कमलेश) इ-डाक : kgf@gogoindia.com या साधारण पत्र द्वारा संपर्क किया जा सकता है।




युद्ध की ऐसी रिपोर्टिंग आपने कभी देखी न होगी

war-reportingटेलीविजन न्यूज़ चैनलों में तकनीक और एनीमेशन का खूब प्रयोग होता है लेकिन रूस के एक टीवी चैनल ने न्यूज़रूम को स्टूडियो में तब्दील करने के लिए एनीमेशन का जैसे प्रयोग किया वो अपने आप में अनोखा है.

देखिये वीडियो –

 







पुण्य प्रसून ने फेसबुक पर डाली दो तस्वीरें,व्यंग्य करना नहीं भूले

पुण्य प्रसून बाजपेयी देश के चोटी के पत्रकार हैं. टेलीविजन स्क्रीन पर उनकी अपनी साख है. हालाँकि आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल वाले इंटरव्यू के चक्कर में उनकी साख पर बट्टा तो जरूर लगा, लेकिन फिर भी लोग उन्हें शिद्दत से देखते, सुनते और पढ़ते हैं.

राजनीतिक मुद्दों पर उनकी समझ बेमिसाल है और यही वजह है कि जब भी कोई इस तरह का मुद्दा आता है तो आजतक के स्टूडियो में पुण्य प्रसून ही पुण्य प्रसून नज़र आते है. उनका कोई विकल्प ही नहीं दिखता.

बातचीत करते हुए सामने वाले नेता-प्रवक्ता पर उनका कटाक्ष भी बेहतरीन होता है और इस मामले में उनकी टक्कर का पूरे देश में कोई टेलीविजन पत्रकार(हिंदी) नहीं है.

पुण्य प्रसून टेलीविजन की राजनीतिक दुनिया में कुछ ऐसे रमे रहते हैं कि सोशल मीडिया पर उनकी उपस्थिति कम नज़र आती है. लेकिन आज लंबे अरसे के बाद उन्होंने अपने फेसबुक एकाउंट पर दो तस्वीरें अपलोड की तो उसमें भी व्यंग्य करने से नहीं चुके और उनका ये अंदाज़ हमें भा गया. पढ़िए उनका कमेंट और देखें उनकी तस्वीर –

मोम के मोदी से मन की बात ! गूंगी गुडिया से दिल की बात ! (पुण्य प्रसून का फेसबुक स्टेटस)

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निकाह को विवाह नहीं बनाया जा सकता




(दिलीप मंडल)-

nikah-marriageहिंदू शादी और मुस्लिम निकाह में अंतर है।

हिंदू शादी जन्म जन्मांतर का संबंध है। जोड़ियाँ स्वर्ग में बनती है। शादी कर्मफल है। विवाह के समय दूल्हा और दूल्हन की सहमति नहीं ली जाती।

इसलिए रिश्ता सड़ जाए, वफ़ादारी ख़त्म हो जाए, वैवाहिक बलात्कार हो रहा हो, तो भी रिश्ता निभाना होता है। इसलिए आप जनगणना में पाएँगे कि हिंदू सेपरेटेड हो जाते हैं, पर तलाक़ नहीं देते।

मुसलमानों का निकाह कॉन्ट्रैक्ट है। एक क़रार। दोनों पक्ष से एक नहीं, तीन बार पूछा जाता है कि मंज़ूर है या नहीं।

कॉन्ट्रैक्ट है तो उसे तोड़ने की भी व्यवस्था है। इसमें समस्या सिर्फ़ इतनी है कि तलाकशुदा महिलाओं के दोबारा निकाह का आँकड़ा ख़राब है। मुसलमान मर्द अक्सर आसानी से फिर निकाह कर लेते हैं। मुसलमान महिलाओं की कमज़ोर आर्थिक हालत से मामला और बिगड़ जाता है।

लेकिन समस्याओं की वजह से निकाह को विवाह नहीं बना दिया जा सकता।

समाज ज़बरदस्ती नहीं बदलता।

(फेसबुक एक्टिविस्ट और पत्रकार दिलीप मंडल के एफबी वॉल से)




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