सृष्टि का विस्तार हुआ, तो पहले स्त्री आई और बाद में पुरुष। सर्वाधिक सम्मान देने का अवसर आया, तो मां के रूप में एक स्त्री को ही सर्वाधिक सम्मान दिया गया। ईश्वर का कोई रूप नहीं होता, पर जब ईश्वर की आराधना की गयी, तो ईश्वर को भी पहले स्त्री ही माना, तभी कहा गया त्वमेव माता, बाद में च पिता त्वमेव। सुर-असुर में अमृत को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया, तो श्रीहरि को स्त्री का ही रूप धारण कर आना पड़ा और उन्होंने अपने तरीके से विवाद समाप्त कर दिया, मतलब घोर संकट की घड़ी में स्त्री रूप ही काम आया। देवताओं को मनोरंजन की आवश्यकता महसूस हुई, तो भी उनके मन में मेनका व उर्वशी जैसी स्त्रीयों की ही आकृति उभरी। रामायण काल में गलती लक्ष्मण ने की, पर रावण उठा कर सीता को ले गया, क्योंकि स्त्री प्रारंभ से ही प्रतिष्ठा का विषय रही है, इसी तरह महाभारत काल में द्रोपदी के व्यंग्य को लेकर दुर्योधन ने शपथ ली और द्रोपदी की शपथ को लेकर पांडवों ने अपनी संपूर्ण शक्ति लगा दी, जिसका परिणाम या दुष्परिणाम सबको पता ही है, इसी तरह धरती की उपयोगिता समझ में आने पर, धरती को सम्मान देने की बारी आई, तो उसे भी स्त्री (मां) माना गया। भाषा को सम्मान दिया गया, तो उसे भी स्त्री (मात्र भाषा) माना गया। आशय यही है कि सृष्टि के प्रारंभ से ही देवता और पुरुष, दोनों के लिए ही स्त्री महत्वपूर्ण रही है। स्त्री के बिना जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती। मां, पत्नी, बहन या किसी भी भूमिका में एक स्त्री का किसी भी पुरुष के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान होता है। बात पूजा करने की हो या मनोरंजन की, ध्यान में पहली आकृति एक स्त्री की ही उभरती है, इसलिए विकल्प स्त्री को ही चुनना होगा कि वह किस तरह के विचारों में आना पसंद करेगी। वह लक्ष्मी, सरस्वती, पार्वती, सीता, अनसुइया, दुर्गा, काली की तरह सम्मान चाहती है या मुन्नी की बदनामी और शीला की जवानी पर थिरकते हुए मनोरंजन का साधन मात्र बन कर रहना चाहती है।
हिंदुस्तान,मोतिहारी के बदले तेवर से खलबली
हिंदुस्तान,मोतिहारी के बदले तेवर व कलेवर से जिले के दुसरे बैनर वाले अखबारों में हडकंप मच गया है. बिहार की राजधानी पटना के बाद आबादी की लिहाज से सबसे बड़े जिले पूर्वी चंपारण में अख़बार का सर्कुलेशन 25000 से ऊपर है.
इसके मुकाबले प्रतिद्वंदी अख़बारों दैनिक जागरण,प्रभात खबर, राष्ट्रीय सहारा आदि का प्रसारण एक तिहाई भी नहीं है. जिले के अनुभवी खबरचियों की मानें तो कुछ वर्ष पहले यहाँ के प्रभारी संजय उपाध्याय के जाने के बाद अख़बार में उठा-पटक की स्थिति रही. इसका असर अख़बार में छपे कंटेंट पर भी पड़ा.
हालाँकि इसी बीच मुजफ्फरपुर यूनिट से सुमित सुमन व बेतिया के हरफन मौला पत्रकार अमिताभ रंजन के आने के बाद हालत कुछ सुधरे भी. पर इनके जाते ही स्थिति जस की तस हो गई.
फिर डैमेज कंट्रोल के लिए यूनिट से मनीष सिंह को भेजा गया. लेकिन स्वभाव से दब्बू होने व आपसी राजनीति के चलते कार्यालय कर्मियों पर इनका नियंत्रण ना के बराबर रह गया था.
न्यूज़ चैनलों का एसिड टेस्ट, मातम में नये साल का जश्न
आज न्यूज़ चैनलों का एसिड टेस्ट है. हम उन चेहरों को देखने के लिए बेताब हैं जो एक दिन पहले तक खबरें पढते हुए गमगीन दिख रहे थे. क्या आज उन्हीं एंकरों के चेहरे पर नए साल का जश्न दिखेगा?
यदि ऐसा होता है तो फिर जो भी संशय था वह खतम हो जाएगा और यकीन हो जाएगा कि कठपुतली से ज्यादा इनकी कोई हैसियत नहीं. चैनलों के घडियाली आंसू का सच भी सामने आ जाएगा.
मीडिया खबर डॉट कॉम अपील करता है कि नए वर्ष का जश्न जो मनाना चाहते हैं, जरूर मनाएं. लेकिन उसका उसका सार्वजनिक प्रदर्शन न करें. नए साल की शुभकामना न दें. ये सेलिब्रेशन नहीं रेवलूशन का समय है.
उन चैनलों का बहिष्कार कीजिये जो नए साल पर गोवा की रंगीनिया और मल्लिका, बिपाशा या सन्नी लियोन के ठुमके दिखायेंगे. उसकी चिता की राख पर हम जश्न कैसे मना सकते हैं?
याद रखिये ये सेलिब्रेशन नहीं रेवलूशन का समय है और न्यूज़ चैनलों को भी रेवलूशन ही दिखाना चाहिए. नहीं तो चैनलों की नीयत पर भी संदेह होगा.
न्यूज़ चैनलों पर बलात्कार की खबरें पहले कहाँ थी ?
समाचार चैनलों पर बलात्कार की खबरें लगातार चल रही है. अचानक से ऐसी खबरों की बाढ़ आ गयी है. पश्चिम बंगाल से लेकर गुजरात तक यानी देश के चप्पे – चप्पे से दुष्कर्म और सामूहिक दुष्कर्म के नए – नए मामले सामने आ रहे हैं.
एनडीटीवी इंडिया ने देश में दुष्कर्म की तस्वीर दिखाई. कमाल खान ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि यूपी में अबतक चालीस नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार हुआ और उसके बाद उनकी हत्या कर दी गयी.
गुजरात में बारह साल की बच्ची के साथ सामूहिक दुष्कर्म. उसने अस्पताल में आत्महत्या की कोशिश की और अब जिंदगी – मौत के बीच झूल रही है.
पश्चिम बंगाल में 40 साल की महिला के साथ 8 लोगों ने पहले सामूहिक दुष्कर्म किया और फिर हत्या करके तालाब में फेंक दिया. उसके पति को भी बुरी तरह से जख्मी कर दिया.
एनडीटीवी इंडिया ही क्या बाकी के न्यूज़ चैनलों पर भी ये ख़बरें लगातार चल रही है. आईबीएन – 7 पर खबरें देखेंगे तो वहां भी आपको आधे घंटे में 20 मिनट की खबर दुष्कर्म से ही संबंधित मिलेगी. एबीपी न्यूज़ और आजतक पर भी कुछ – कुछ ऐसा खबरों का फ्लेवर मिलेगा. खबरों को देखते हुए ऐसा लगता है कि हम बलात्कारियों के देश में रह रहे हैं जहाँ हर पल किसी की अस्मत लुटी जा रही है.
लेकिन अहम सवाल पैदा होता है कि ये ख़बरें पहले कहाँ थी और आचानक से कैसे आ गयी? ऐसा तो हो नहीं सकता कि अचानक से बलात्कार की ख़बरों में इजाफा हो गया हो?
दिल्ली में हुए सामुहिक दुष्कर्म मामले के बाद ही दुष्कर्म से संबंधित खबरों में इजाफा हुआ और कई घिनौने मामले सामने आये. इनमें से कुछ ख़बरें पुरानी है जो पहले सामने नहीं आये या आये तो चलताऊ ढंग से , जिसे किसी ने नोटिस ही नहीं किया.
ऐसे में ये सवाल जायज है दुष्कर्म से संबंधित ये खबरें न्यूज़ चैनलों ने पहले क्यों नहीं दिखाई? वैसे उस अनामी लड़की की चिता की राख अभी ठंढी भी नहीं हुई थी कि कल न्यूज़ चैनलों पर क्रिकेट का जश्न शुरू हो गया था. आगे नया साल है ही. उसकी मौत के मातम और अपने उत्सव के बीच न्यूज़ चैनल एक दिन भी इंतजार कर सके. संवेदना शब्द ही बनकर रह गए?
फिर ऐसा क्यों न लगे कि दुष्कर्म पर न्यूज़ चैनल घड़ियाली आंसू बहा रहा है.? इसके अलावा समाचार चैनलों की खबरों में दिल्ली का महत्व ज्यादा होता है और वहां हुआ दुष्कर्म सबसे बड़ा दुष्कर्म. यह दोहरा मापदंड क्यों?
तभी पत्रकार आलोक पुंज सवालिया लहजे में कहते हैं कि क्यूँ ये खबर नहीं है मीडिया के लिए, एक और शर्मनाक वाकया जो बिहार के समस्तीपुर जिले का है. कल्याणपुर थाना के वासुदेवपुर गांव में इंटर की एक छात्रा को अगवा कर उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किये जाने का मामला सामने आया है. ये खबर कल शाम की है पर किसी भी राष्ट्रीय चैनल ने इस खबर को अबतक उठाया नहीं है. शायद प्रोफाइल लो होगा या फिर बिहार के समस्तीपुर का मामला है जो जगह हाय प्रोफाइल नही हो राष्ट्रीय चैनल के लिए. खैर एक और मामला तो है जो बेहद शर्मनाक है.