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छत्तीसगढ़ वालों टीआरपी देते नहीं, खबर मांगते हो !

children-trpये आप भी कहां-कहां की बात सामने ले आते हैं छत्तीसगढ़ वालों..? आपके पूरे राज्य में टैम का एक भी बक्सा नहीं है.. किस मुंह से आप हाई टीआरपी वाले दिल्ली मुंबई की बराबरी करने चले आए..? आप भ्रष्टाचारियों, बलात्कारियों के बीच रह रहे हैं तो इसमें टीवी चैनलों का क्या कुसूर..?

आपके राज्य में इतनी बड़ी नक्सली समस्या है ही.. हमारे चैनलों के सूरमा स्ट्रिंगरों से फुटेज मंगवा कर आपके जंगलों का आंखों देखा हाल दिखा ही देते हैं.. नक्सलवाद ऐसा मुद्दा है जिसमें करोड़ों-अरबों की फंडिंग है.. पब्लिक नहीं तो मिनिस्टर साहब खुश हो ही जाते हैं.. कुछ सरकारी विज्ञापन भी मिल जाते हैं.. महानगरों की पब्लिक के लिये भी जंगल में मंगल टाइप शो हो जाता है.

न्यूज चैनल आसाराम की गाली बर्दाश्त कर सकते हैं, राजस्व का घाटा नहीं.

asharam media

एक कुत्ता भौंकता है तो उसे देखकर और कुत्ते भौंकने लगते हैं। कुत्तों का भौंकना लागातार जारी रहता है। – आसाराम : ये कोई पहली बार नहीं है कि आसाराम ने मीडिया को कुत्ता कहा. वक्त-वेवक्त वो पहले भी ऐसा कह चुका है. लेकिन मीडिया है कि उसी गति से हीरो बनाते रहे. अभी निर्मल बाबा का बयान आना बाकी है. चैनल पर प्रोमोशन जारी है. आप फिर कहेगे तो आखिर आप उन्हें इतनी इज्जत देते और पूजते क्यों हैं ?

लेकिन ये क्या सवाल नहीं है कि ऐसे पाखंडियों,व्यभिचारियों को घर-घर पहुंचाने का काम किसने किया ? इन दिनों मंदिरों के पास बड़े-बड़े हॉर्डिंग लगे हैं जिनमे बाबाओं का परिचय लिखा होता है- फलां जी महाराज, आजतक टीवी चैनलवाले, फलां शास्त्री इंडिया टीवीवाले. इस तरह अपनी बची-खुची क्रेडिबिलिटी को जब मीडिया इन बाबाओं की मार्केटिंग के लिए दान करेगा तो कुत्ता-कमीना..सुनने तो पड़ेंगे ही न.

समाज की सनक को बापू,महाराज,गुरुजी बनाने से आपको(मीडिया) यही सब सुनने को मिलेगा..और बनाइए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ललित पैकेज. क्यों हनी सिंह से ज्यादा बुरा तो नहीं कहा आसाराम ने.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा तो यहां भी होनी चाहिए. आखिर जब एक रैपर को, फिल्मकार को,लेखक और पत्रकार को अपने तरीके से बातें कहने का हक है तो आसाराम के इस तर्क के साथ आप क्यों नहीं है ?

एक तरफ मोटे माल लेकर ऐसे लंपट बयानबाजी करनेवाले को सुबह-सुबह घर में घुसाएंगे और जब वो समाज में न केवल जहर घोलेगा बल्कि समाज को धीरे-धीरे जहर ही करन देने के फिराक में होगा तो नतीजे तो ऐसे ही निकलेंगे न.

कहिए हम फन्डामेंटलिस्ट, शुचितावादी, संकीर्ण और मन करे तो दक्षिणपंथी भी. लेकिन आप अगर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तर्क के साथ हैं तो अफने भीतर के दुचित्तेपन से तो टकराना ही होगा. हमारी छोडिए. आज से तीन साल पहले आसाराम ने खुलेआम आपको कुत्ता कहा, उनके गुंड़ों ने चैनल के कैमरे तोड़े, धमकियां दी, आश्रम में दो बच्चे की संदेहास्पद ढंग से मौत हो गई, किन्नरों को खुलेआम अपमानित किया. कौन सी लड़ाई लड़ी आपने इन सबके लिए?

अपने लिए कैसी लड़ाई लड़ी आपने. आपने आइबी मिनिस्ट्री,बीइए के आगे इस बात की अपील की कि किसी भी तरह से ऐसे बाबाओं के प्रवचन यानी टीवी के जरिए घर में प्रवेश नहीं होगा जो धर्म के नाम पर धंधे की दूकान खोलकर बैठा है..आप नहीं कर सकते क्योंकि आप इसकी गाली बर्दाश्त कर सकते हैं, राजस्व का घाटा नहीं. (विनीत कुमार )

ये च्यवनप्राश पत्रकारिता का काल है.

1. ये च्यवनप्राश पत्रकारिता का काल है. कोशिश है कि किसी तरह कड़ाके की ठंड के बीच गर्माहट पैदा हो. मेनस्ट्रीम मीडिया के लिए मोहन भागवत और आसाराम बापू जैसों के अंट-शंट बयान मुलेठी,दालचीनी का काम कर रहे हैं. इन सभी बुद्धि-दूहन में होड़ इस बात की है कि मुलेठी,अदरक से निकलकर अश्वगंधा कौन बने.

आप सबों से अपील है कि आजतक, जी न्यूज और एबीपी च्यवनप्राश के बजाए घर के बने च्यवनप्राश का सेवन करें. अर्थात् खबर अगर धंधा है तो प्लीज खबरों की कुटीर उद्योग की तरफ लौटिए और ऐसी वाहियात बयानबाजी से एफबी की दीवारें रंगने के बजाय इन्हें इग्नोर कीजिए. बिना वजह इन्हें जातिवाचक से व्यकितवाचक संज्ञा न बनाएं.

2.क्या मीडिया में व्यक्तिगत स्तर की ईमानदारी की कोई जगह नहीं होती ? मीडिया संस्थान अगर खुद ही इतने घोटालों,बेईमानी,धोखाधड़ी,चालबाजी और शोषण के अड्डे के रुप में आरोपों से घिर चुका है तो वहां साफ-सुथरी छवि के मीडियाकर्मी के होने-न होने के कोई खास मायने नहीं होते. आप सवाल करेंगे कि जब वो सिस्टम को सुधार ही नहीं सकता तो हम उनकी ईमानदारी का अचार डालेंगे ?

बीजेपी का मतलब टीआरपी

बेंगलुरु।। भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि बीजेपी का मतलब टीआरपी है। बीजेपी के खिलाफ खबरें दिखाकर टीवी चैनल टीआरपी बटोर रहे हैं।

पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता निर्मला सीतारमण ने बताया कि 24 घंटे चलने वाले टीवी चैनलों के आने से मीडिया हमेशा राजनेताओं और कार्यकर्ताओं पर नजर रखता है। खासकर आप अगर बीजेपी नेता हों तो आप पर अधिक नजर रहती है।

कर्नाटक बीजेपी की ओर से आयोजित एक मीडिया कार्यशाला में निर्मला ने कहा, ‘मैं मीडिया की मौजूदगी में कहूंगी कि बीजेपी का मतलब टीआरपी है।

उनके मुताबिक बीजेपी के पक्ष में दिखाई जाने वाली खबरों को 30 फीसदी दर्शक देखते हैं जबकि पार्टी के खिलाफ दिखाई जाने वाली खबरों को शत प्रतिशत दर्शक देखते हैं।

निर्मला ने कहा कि बीजेपी से लोगों की उम्मीदें अधिक हैं इसलिए आम आदमी सोचता है कि बीजेपी कैसे खराब प्रदर्शन कर सकती है और गलत काम कर सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि मीडिया को दोष देने के बजाय बीजेपी को सतर्क रहना चाहिए। (भाषा)

पुण्य प्रसून बाजपेयी 'आपातकाल' के असर से निकले, बीईए पर बरसे

aaj tak rape charges नव वर्ष में एक अच्छी खबर है. पुण्य प्रसून बाजपेयी आपातकाल से निकल आये हैं और तलवार खींच कर मैदान में भी आ गए हैं. आते ही बीईए की खबर ली. बीईए के स्वनियमन के पैटर्न से वे नाराज हैं और इसलिए दिल्ली सामुहिक दुष्कर्म मामले में न्यूज़ चैनलों के कवरेज को लेकर अपने लेख में संस्थान की खूब लानत – मलानत की है.

पुण्य प्रसून लंबे समय से चुप्पी साधे हुए थे. तब भी चुप थे जब उगाही मामले में ज़ी न्यूज़ पेड न्यूज़ के सबसे बड़े दलदल में धंस चुका था और जब बोले तो उगाही के आरोपी संपादक की गिरफ्तारी को आपातकाल करार दिया और अंतर्ध्यान हो गए. मानों आपातकाल में वे खुद ही भूमिगत हो गए हों. हो – हल्ले के बाद भी उनकी तरफ से एक लाइन का कमेंट तक नहीं आया. लेकिन अब जब उन्होंने पत्रकारिता से संबंधित लेख लिखा है तो बीईए की लानत – मलानत की है और ब्लैकमेलिंग के आरोपी सुधीर चौधरी की एक तरह से तारीफ़ की है.

सोशल मीडिया पर मीडिया खबर

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