एक कुत्ता भौंकता है तो उसे देखकर और कुत्ते भौंकने लगते हैं। कुत्तों का भौंकना लागातार जारी रहता है। – आसाराम : ये कोई पहली बार नहीं है कि आसाराम ने मीडिया को कुत्ता कहा. वक्त-वेवक्त वो पहले भी ऐसा कह चुका है. लेकिन मीडिया है कि उसी गति से हीरो बनाते रहे. अभी निर्मल बाबा का बयान आना बाकी है. चैनल पर प्रोमोशन जारी है. आप फिर कहेगे तो आखिर आप उन्हें इतनी इज्जत देते और पूजते क्यों हैं ?
लेकिन ये क्या सवाल नहीं है कि ऐसे पाखंडियों,व्यभिचारियों को घर-घर पहुंचाने का काम किसने किया ? इन दिनों मंदिरों के पास बड़े-बड़े हॉर्डिंग लगे हैं जिनमे बाबाओं का परिचय लिखा होता है- फलां जी महाराज, आजतक टीवी चैनलवाले, फलां शास्त्री इंडिया टीवीवाले. इस तरह अपनी बची-खुची क्रेडिबिलिटी को जब मीडिया इन बाबाओं की मार्केटिंग के लिए दान करेगा तो कुत्ता-कमीना..सुनने तो पड़ेंगे ही न.
समाज की सनक को बापू,महाराज,गुरुजी बनाने से आपको(मीडिया) यही सब सुनने को मिलेगा..और बनाइए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ललित पैकेज. क्यों हनी सिंह से ज्यादा बुरा तो नहीं कहा आसाराम ने.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा तो यहां भी होनी चाहिए. आखिर जब एक रैपर को, फिल्मकार को,लेखक और पत्रकार को अपने तरीके से बातें कहने का हक है तो आसाराम के इस तर्क के साथ आप क्यों नहीं है ?
एक तरफ मोटे माल लेकर ऐसे लंपट बयानबाजी करनेवाले को सुबह-सुबह घर में घुसाएंगे और जब वो समाज में न केवल जहर घोलेगा बल्कि समाज को धीरे-धीरे जहर ही करन देने के फिराक में होगा तो नतीजे तो ऐसे ही निकलेंगे न.
कहिए हम फन्डामेंटलिस्ट, शुचितावादी, संकीर्ण और मन करे तो दक्षिणपंथी भी. लेकिन आप अगर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तर्क के साथ हैं तो अफने भीतर के दुचित्तेपन से तो टकराना ही होगा. हमारी छोडिए. आज से तीन साल पहले आसाराम ने खुलेआम आपको कुत्ता कहा, उनके गुंड़ों ने चैनल के कैमरे तोड़े, धमकियां दी, आश्रम में दो बच्चे की संदेहास्पद ढंग से मौत हो गई, किन्नरों को खुलेआम अपमानित किया. कौन सी लड़ाई लड़ी आपने इन सबके लिए?
अपने लिए कैसी लड़ाई लड़ी आपने. आपने आइबी मिनिस्ट्री,बीइए के आगे इस बात की अपील की कि किसी भी तरह से ऐसे बाबाओं के प्रवचन यानी टीवी के जरिए घर में प्रवेश नहीं होगा जो धर्म के नाम पर धंधे की दूकान खोलकर बैठा है..आप नहीं कर सकते क्योंकि आप इसकी गाली बर्दाश्त कर सकते हैं, राजस्व का घाटा नहीं. (विनीत कुमार )
ये च्यवनप्राश पत्रकारिता का काल है.
1. ये च्यवनप्राश पत्रकारिता का काल है. कोशिश है कि किसी तरह कड़ाके की ठंड के बीच गर्माहट पैदा हो. मेनस्ट्रीम मीडिया के लिए मोहन भागवत और आसाराम बापू जैसों के अंट-शंट बयान मुलेठी,दालचीनी का काम कर रहे हैं. इन सभी बुद्धि-दूहन में होड़ इस बात की है कि मुलेठी,अदरक से निकलकर अश्वगंधा कौन बने.
आप सबों से अपील है कि आजतक, जी न्यूज और एबीपी च्यवनप्राश के बजाए घर के बने च्यवनप्राश का सेवन करें. अर्थात् खबर अगर धंधा है तो प्लीज खबरों की कुटीर उद्योग की तरफ लौटिए और ऐसी वाहियात बयानबाजी से एफबी की दीवारें रंगने के बजाय इन्हें इग्नोर कीजिए. बिना वजह इन्हें जातिवाचक से व्यकितवाचक संज्ञा न बनाएं.
2.क्या मीडिया में व्यक्तिगत स्तर की ईमानदारी की कोई जगह नहीं होती ? मीडिया संस्थान अगर खुद ही इतने घोटालों,बेईमानी,धोखाधड़ी,चालबाजी और शोषण के अड्डे के रुप में आरोपों से घिर चुका है तो वहां साफ-सुथरी छवि के मीडियाकर्मी के होने-न होने के कोई खास मायने नहीं होते. आप सवाल करेंगे कि जब वो सिस्टम को सुधार ही नहीं सकता तो हम उनकी ईमानदारी का अचार डालेंगे ?