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बिग बॉस की विजेता बनी उर्वशी ढोलकिया

urvashi-big-bossबिग बॉस-6 की विजेता उर्वशी ढोलकिया बन गयी हैं. ग्रैंड फिनाले में आज इसकी घोषणा हुई. महिलाओं में पिछले सीजन में जूही परमार और चौथे सीजन में श्वेता तिवारी ‘बिग बॉस’ की विजेता रहीं थीं. अंतिम तीन में उर्वशी, सना और इमाम पहुंचे थे. इमाम ने कड़ी टक्कर दी लेकिन दर्शकों ने उर्वशी के पक्ष में ज्यादा वोट देकर उन्हें विजेता बना दिया.


दैनिक जागरण की रिपोर्ट :

‘बिग बॉस’ के छठे सीजन में एक बार फिर महिला के नाम का डंका बजा। उर्वशी ढोलकिया ने छठे सीजन का खिताब जीत लिया। लोनावाला स्थित ‘बिग बॉस 6’ के सेट पर शनिवार को शो के होस्ट सलमान खान ने उनकी जीत की घोषणा की। उनसे पहले पिछले सीजन में जूही परमार और चौथे सीजन में श्वेता तिवारी ‘बिग बॉस’ की विजेता रहीं थीं।

बलात्कार, बाजार और मीडिया

दिल्ली गैंग रेप को लेकर हुयी अविवादी प्रतिक्रिया में बाजार और बजारू मीडिया की भूमिका को भी समझा जाना चाहिये। एक दलित, गरीब या मजदूरी करने को मजबूर महिला के साथ होने वाला बलात्कार एवं भयानक उत्पीड़न युवा पीढ़ी,मीडिया एवं ​अभिजात वर्ग को क्यों परेशान नहीं करता है। यह समझने की जरूरत है।

दिल्ली गैंग रेप पर हुयी प्रतिक्रिया का चरित्र अगर समझ लें तो बाजार का खेल समझ आ जाता है। एक लडकी अपने प्रेमी के साथ सिनेमा देख कर निकलती है और उसके साथ बलात्कार हो जाता है और उसके साथ ऐसी भयानक बर्बरता होती है। किसी समाज में ऐसी किसी भी हाल में नहीं होनी चाहिये। इसका विरोध होना चाहिये, लेकिन उसी तरह से और उसी जोरदार तरीके से उस बर्बरता का भी विरोध होना चाहिये जो गांवों में, शहरों में अन्य श्रमजीवी, गरीब और दलित महिलाओं के साथ होता है।

सागरिका घोष आप ‘इंकार’ कीजिये, लेकिन सीएनएन –आईबीएन पर पेड न्यूज़ चला

cnn-ibn-inkarविज्ञापन अब कंटेंट का हिस्सा होती है. दर्शकों को पता भी नहीं चलता और विज्ञापन हो जाता है. दबंग-2 में सलमान जिस सरिया से गुंडों की धुनाई करते हैं उसमें एक सरिया कंपनी का विज्ञापन छुपा है. कल शुक्रवार को रिलीज हुई फिल्म में मटरू की बिजली का मंडोला में शक्तिभोग आटा का विज्ञापन कंटेंट के साथ शामिल होकर दिखता है. सिनेमा तो सिनेमा न्यूज़ चैनलों में भी ये प्रयोग धड़ल्ले से होने लगा है. ताजा उदाहरण सीएनएन –आईबीएन पर सागरिका घोष का शो फेस द नेशन है जिसमें पोर्ट्रेऐल ऑफ वूमेन इन सिनेमा पर परिचर्चा के बहाने ‘इंकार’ फिल्म का प्रोमोशन किया गया और शायद ढेरों दर्शकों को पता भी नहीं चला होगा. मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार की एक टिप्पणी :

छत्तीसगढ़ वालों टीआरपी देते नहीं, खबर मांगते हो !

children-trpये आप भी कहां-कहां की बात सामने ले आते हैं छत्तीसगढ़ वालों..? आपके पूरे राज्य में टैम का एक भी बक्सा नहीं है.. किस मुंह से आप हाई टीआरपी वाले दिल्ली मुंबई की बराबरी करने चले आए..? आप भ्रष्टाचारियों, बलात्कारियों के बीच रह रहे हैं तो इसमें टीवी चैनलों का क्या कुसूर..?

आपके राज्य में इतनी बड़ी नक्सली समस्या है ही.. हमारे चैनलों के सूरमा स्ट्रिंगरों से फुटेज मंगवा कर आपके जंगलों का आंखों देखा हाल दिखा ही देते हैं.. नक्सलवाद ऐसा मुद्दा है जिसमें करोड़ों-अरबों की फंडिंग है.. पब्लिक नहीं तो मिनिस्टर साहब खुश हो ही जाते हैं.. कुछ सरकारी विज्ञापन भी मिल जाते हैं.. महानगरों की पब्लिक के लिये भी जंगल में मंगल टाइप शो हो जाता है.

न्यूज चैनल आसाराम की गाली बर्दाश्त कर सकते हैं, राजस्व का घाटा नहीं.

asharam media

एक कुत्ता भौंकता है तो उसे देखकर और कुत्ते भौंकने लगते हैं। कुत्तों का भौंकना लागातार जारी रहता है। – आसाराम : ये कोई पहली बार नहीं है कि आसाराम ने मीडिया को कुत्ता कहा. वक्त-वेवक्त वो पहले भी ऐसा कह चुका है. लेकिन मीडिया है कि उसी गति से हीरो बनाते रहे. अभी निर्मल बाबा का बयान आना बाकी है. चैनल पर प्रोमोशन जारी है. आप फिर कहेगे तो आखिर आप उन्हें इतनी इज्जत देते और पूजते क्यों हैं ?

लेकिन ये क्या सवाल नहीं है कि ऐसे पाखंडियों,व्यभिचारियों को घर-घर पहुंचाने का काम किसने किया ? इन दिनों मंदिरों के पास बड़े-बड़े हॉर्डिंग लगे हैं जिनमे बाबाओं का परिचय लिखा होता है- फलां जी महाराज, आजतक टीवी चैनलवाले, फलां शास्त्री इंडिया टीवीवाले. इस तरह अपनी बची-खुची क्रेडिबिलिटी को जब मीडिया इन बाबाओं की मार्केटिंग के लिए दान करेगा तो कुत्ता-कमीना..सुनने तो पड़ेंगे ही न.

समाज की सनक को बापू,महाराज,गुरुजी बनाने से आपको(मीडिया) यही सब सुनने को मिलेगा..और बनाइए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ललित पैकेज. क्यों हनी सिंह से ज्यादा बुरा तो नहीं कहा आसाराम ने.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा तो यहां भी होनी चाहिए. आखिर जब एक रैपर को, फिल्मकार को,लेखक और पत्रकार को अपने तरीके से बातें कहने का हक है तो आसाराम के इस तर्क के साथ आप क्यों नहीं है ?

एक तरफ मोटे माल लेकर ऐसे लंपट बयानबाजी करनेवाले को सुबह-सुबह घर में घुसाएंगे और जब वो समाज में न केवल जहर घोलेगा बल्कि समाज को धीरे-धीरे जहर ही करन देने के फिराक में होगा तो नतीजे तो ऐसे ही निकलेंगे न.

कहिए हम फन्डामेंटलिस्ट, शुचितावादी, संकीर्ण और मन करे तो दक्षिणपंथी भी. लेकिन आप अगर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तर्क के साथ हैं तो अफने भीतर के दुचित्तेपन से तो टकराना ही होगा. हमारी छोडिए. आज से तीन साल पहले आसाराम ने खुलेआम आपको कुत्ता कहा, उनके गुंड़ों ने चैनल के कैमरे तोड़े, धमकियां दी, आश्रम में दो बच्चे की संदेहास्पद ढंग से मौत हो गई, किन्नरों को खुलेआम अपमानित किया. कौन सी लड़ाई लड़ी आपने इन सबके लिए?

अपने लिए कैसी लड़ाई लड़ी आपने. आपने आइबी मिनिस्ट्री,बीइए के आगे इस बात की अपील की कि किसी भी तरह से ऐसे बाबाओं के प्रवचन यानी टीवी के जरिए घर में प्रवेश नहीं होगा जो धर्म के नाम पर धंधे की दूकान खोलकर बैठा है..आप नहीं कर सकते क्योंकि आप इसकी गाली बर्दाश्त कर सकते हैं, राजस्व का घाटा नहीं. (विनीत कुमार )

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