वेद उनियाल
ओम थानवीजी अरविंद केजरीवाल के हनुमान बन गए हैं। कह रहे हैं कि अरविंद और पुण्य प्रसून वाजपेयी की बातचीत औपचारिक थी। उसे तूल नहीं देना चाहिए।
मगर साथियों . अगर पर्दे की पीछे की यही बातचीत पुण्यप्रसून और नरेंद्र मोदी के बीच होती तो.. ओमथानवी जी क्रांतिकारी बन गए होते। फेसबुक पर उनके विचारों की कड़ियां चल गई होती। तीर बऱछे निकल गए होते।
अब लग रहा है कैसे अग्रज हैं हमारे, जिस पुण्य प्रसून पर शर्मिंदा होना चाहिए था, जिस केजरीवाल को पत्रकारों को लाइजनिंग कराते देख हैरत में पड़ना था, उन्हीं का पक्ष ले रहे हैं। कैसी अंध भक्ति हैं। अंध भक्ति हैं या राज्यसभा के मोह ने इन्हें धृतराष्ट्र बना दिया है।
(स्रोत-एफबी)