ओम थानवी,वरिष्ठ पत्रकार-
चुनाव में मेरा क़यास ग़लत निकला और गाली-ब्रिगेड सक्रिय हो गई। एक ने लिखा आपका सर चाहिए, ग़लत भविष्यवाणी क्यों की?
भाईजान, भविष्यवाणी की थी – आकाशवाणी तो नहीं की थी? फ़ेसबुक की “भविष्यवाणी” है, सही भी निकल सकती है, ग़लत भी। उसमें गारंटी कैसी, और क्यों?
हालाँकि, सचाई यह है कि ग़लत अंदाज़े का अफ़सोस हमेशा कचोटता है कि चूक कहाँ हुई। पर उसमें जो बेईमानी देखता है, वह ख़ुद बेईमान है या समझिए पेशेवर ट्रोलिया है।
ज़्यादातर झल्लाए भक्तों की शब्दावली भी कितनी सीमित है, निपट मुट्ठी भर जुमलों वाली: कांग्रेसी एजेंट, ‘आप’ के एजेंट, वामपंथी या सेक्यूलर दलाल, राज्यसभा इच्छुक, पद्मश्री के ख़्वाहिशमंद! भाई, थोड़ी नई शब्दावली भी गढ़ो!
फ़ेसबुकिया क़यास पर लोग इतने बौखला सकते हैं, तो अंदाज़ा लगाइए उनके साथ क्या होता होगा जो पत्र-पत्रिकाओं में आकलन करते हैं, टीवी, पोर्टल आदि पर रिपोर्टिंग करते हैं?
प्रसंगवश ख़याल आया कि राजदीप सरदेसाई भी इन ट्रोलियों के ख़ूब निशाने पर रहे हैं। पर इस बार उन्होंने भाजपा की जीत का दो-टूक दावा किया था। वह सही निकला। तो अब ट्रोल-समुदाय राजदीप की वाहवाही क्यों नहीं करता? ग़लत अंदाज़े पर सर चाहिए, तो सही विश्लेषण पर कम-से-कम आभार के दो शब्द तो मुँह से झड़ें!
(सोशल मीडिया से साभार)