विजय श्रीवास्तव,रिपोर्टर/सब एडिटर, दैनिक जागरण(मुजफ्फरपुर)
पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में गहरा चुके राजनीतिक संकट पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बयानबाजी कई बड़े मायने रखती है। नीतीश ने कहा है कि अगर यूपी में शराबबंदी हुई तो वे विधानसभा चुनाव में अखिलेश का साथ देंगे। पिता-पुत्र के पारिवारिक झगड़े में नीतीश का उतरना और मुलायम के बदले अखिलेश को समर्थन देने का बयान दरअसल नीतीश की दुखती रग को कुछ राहत पहुंचा सकता है। यह जख्म वह है जिसे मुलायम सिंह यादव ने नीतीश को एक झटके में दिया था। हालांकि जख्म लालू को भी मिला था लेकिन वे पारिवारिक कारणों से उसे कुरेदने से परहेज करते दिख रहे हैं।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी राष्ट्रीय छवि बनाने और पीएम पद के लिए लॉबीइंग करने की कोशिश पिछले कई सालों से कर रहे हैं। यह सबसे बड़ा कारण था जिसने बिहार में नीतीश को भाजपा से 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ने को मजबूर किया था। लोकसभा चुनाव में बिहार की जनता ने उन्हें नकार दिया। इससे छटपटाए नीतीश अपने पुराने प्रतिद्वंदी लालू से जा मिले थे। इस मेल का फायदा उन्हें बिहार विधानसभा चुनाव में मिला। लालू-नीतीश की जोड़ी बिहार की सत्ता में आ गई। उसके बाद नीतीश इतने उत्साहित हुए कि वे फिर से पीएम की कुर्सी का ख्वाब देखने लगे।
उत्साह से लबरेज नीतीश ने सबसे पहले अपना कद बढ़ाया। उन्होंने शरद यादव को जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटने पर मजबूर किया और खुद पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बन बैठे। उन्होंने बिहार की तर्ज पर देश भर में एक महागठबंधन बनाने के लिए पुराने जनता दल के नेताओं और उनके उत्तराधिकारियों को एक मंच पर लाने की कोशिश की। यह महागठबंधन बनते-बनते टूट गया क्योंकि ऐन मौके पर सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव इससे पीछे हट गए। दरअसल मुलायम को केंद्र में बैठी भाजपा से यह डर था कि कहीं इसका खामियाजा यूपी की राजनीति में न भुगतना पड़े। राजनीति के धुरंधर मुलायम ने कई अन्य कारणों से नीतीश को आखिरी समय में तगड़ा झटका दे दिया।
नीतीश के लिए यह बहुत बड़ी हार थी। राष्ट्रीय छवि बनाने की कवायद पर बड़ा ब्रेक लगा था। तभी से वे मुलायम सिंह यादव और यूपी की राजनीति पर गहरी दृष्टि जमाए हुए थे। उन्होंने यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर वहां कई सभाएं की। जब से यूपी में मुलायम और अखिलेश के बीच तनातनी शुरू हुई नीतीश उत्साह से लबरेज होते गए। आखिरकार जब पिता-पुत्र आमने-सामने आ गए तो उन्होंने अपना सबसे बड़ा दाव चल दिया। वह था अखिलेश को शराबबंदी की शर्त पर खुला समर्थन देने का। हालांकि यह दाव कितना सटीक लगता है यह तो वक्त ही बताएगा।
फिलहाल यूपी में जो हालात हैं उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि समाजवादी पार्टी वहां पिता और पुत्र के धड़ों में विभाजित हो जाएगी। लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है। नेताजी ने अपने लंबे राजनीतिक जीवन में कई बड़े संकटों को हल किया है। वे नीतीश जैसे बाहरी लोगों को इसका फायदा इतनी आसानी से नहीं लेने देंगे। दूसरी बात ये कि नीतीश कुमार की पार्टी जदयू यूपी में ठीक वैसी ही स्थिति में है जैसी की सपा बिहार में। जिसका बड़ा फायदा अखिलेश को नहीं मिल सकता। नीतीश के दाव की एक काट बिहार में भी मौजूद है। वह हैं लालू प्रसाद। लालू अखिलेश के बजाए मुलायम के हिमायती हैं और वे परिवार को टूट से बचाना चाहते हैं। ऐसे में नीतीश का यह राजनीतिक दाव सटीक बैठेगा इसमें संदेह है।
(लेखक के ब्लॉग से साभार)