‘हलो, निमिष भाई, कहां हो दोस्त, क्या खबर है..यार सब बुरा बुरा ही सुनने में आ रहा है।….हलो सर, कब मिल रहे हो, साथ चाय पिए जमाना हो गया, आपसे कुछ बात करनी है, सर आगे क्या होगा, चिंता हो रही, परिवार है, बीबी-बच्चे हैं….हलो भैया, क्या कुछ किजिए ना, कब तक ऐसे ही ज़िंदगी निकालते रहेंगे हम…हाय सर, मेरा मास्टर पूरा हो रहा है, उसके बाद आपको मेरे लिए जॉब बताना होगा…
फोन कॉल्स जो कभी कभी मन को झकझोरकर रख देते हैं। खासकर तब जब उड़ती-उड़ती खबर मिलती है कि एक औऱ न्यूज़ चैनल में ताला लगने वाला है। वैसे वहां सैलरी को लेकर मुश्किलों की खबरें थी। जब वो चैनल शुरु होने वाला था, तो मुंबई से अपनी दिल्ली यात्रा के दिनों में वहां ऊंचे पद पर पहुंचे अपने एक पुराने साथी से मिलने पहुंचा। हम दोनों एक दशक पहले एक ही चैनल में थे, औऱ जुबान रखने वाले जर्नलिस्ट माने जाते थे, गधे समान यस सर, यस सर वाले नहीं। चैनल में पूरे तामझाम थे। पूछताछ ऐसे हो रही थी, जैसे सीबीआई का ऑफिस हो। थोड़ी देर तक तो अपन दोस्त का लिहाज कर चुप रहे, फिर आ गए अपने जर्नलिस्ट तेवर पर। फ्रंट डेस्क पर बैठी मोहतरमा को समझाया कि पहले तो मैं नौकरी के लिए अपने चड्डी बड्डी यार से मिलने आया हूं। दूसरा देश के सबसे बड़े मीडिया नेटवर्क का बाशिंदा हूं, जितनी सैलरी पाता हूं, आप लोग दे नही पाओगे। तीसरा, आपके संस्थान के मदर संस्थान में 5-6 साल पहले ही उच्च पद पर काम कर चुका हूं, तो अब समझ जाओ। वो समझ गए। आदर होने लगा। बाद में चैनल के सारे उच्चाधिकारी अपने दोस्त ही बने। अब वो बंद होने जा रहा है।
दूसरे चैनल को लेकर पत्रकार हड़ताल पर हैं। तीसरे चैनल के बारे में सुनने में आया कि वहां के पत्रकारों ने अपने ही चैनल पर चैनल बंद होने की ब्रेंकिंग चला दी थी। कुछ दिन पहले ही एक और बंद हुआ। एक मुंबई में बड़े जोरशोर से शुरु हुआ चैनल भी बंद हो सकता है, ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं। एक बड़े मीडिया ग्रुप की हालत नाजुक है, क्योंकि मालिक की जमानत के लिए हजारों करोड़ जुटाने हैं। एक की सरकार नहीं है और विरोधी पॉवर में हैं। एक जो किसी जमाने में हर टीवी पत्रकार का सपना हुआ करता था, टीआरपी की दौड़ से बाहर निकलता दिख रहा है।
कुल जमा जल्दी ही देश के न्यूज़ चैनलों की दुनिया के बुरे दिन आने के लक्षण साफ दिख रहें हैं। लेकिन में नीचे लगाए फोटो को देखकर सोच रहा हूं कि जब न्यूज़ चैनलों की दुनिया के भीष्म पितामह कहे जाने वाले एसपी याने सुरेंद्र प्रताप सिंह सर ने आजतक शुरु किया था, तो अपने एक इंटरव्यहू में कहा था कि आने वाला जमाना न्यूज चैनलों का होगा। एसपी सर, वो जमाना आया और अब बुरी तरह से ध्वस्त हो रहा है। जिम्मेदार कौन है, इस पर मंथन भी होगा शायद, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी, क्योंकि तब फोन आने बंद हो चुके होंगे..तब तक हजारों सपने टूट चुकें होंगे। वो युवा जो कलम या माइक लेकर देश-दुनिया बदलने की सोचतें होंगे, कहीं अंधकार भरे कोने में अपना सर धुन रहे होंगे, ये सोचकर कि आखिर मैंने क्यों जर्नलिस्ट बनने का सपना देखा। वो जो इसके ग्लैमर को देखकर आ रहे होंगे, वो इसकी नग्न सच्चाई को देखकर सदमें में चले जाएंगे। और मेरे जैसा कोई बिजनेस जर्नलिस्ट कहेगा- अरे ये तो शेयर मार्केट की तरह करेक्शन का टाइम लग रहा है..क्योंकि सपने टूटेंगे वैसे ही जैसे शेयर मार्केट तोड़ता है…हां इतना जरुर है इन सपनों के टूटने की आवाज किसी को सुनाई नहीं देगी, दर्द किसी और को महसूस नहीं होगा..शायद सपनों के टूटने का वक्त आ गया है..