विकास मिश्र
शौक तो कई चीजों का रहा, लेकिन लत किसी भी चीज की नहीं पड़ी। पड़ती दिखाई दी, तो एक झटके में छोड़ दी, लेकिन टीवी पर दो सीरियल हैं, जिनकी शायद मुझे लत पड़ गई है। एक है जोधा अकबर (जी टीवी) और दूसरा बालिका बधू। जोधा अकबर नई लत है। दरअसल जब ये शुरू हुआ तो मेरी पत्नी देखती थीं, नहीं देख पाईं तो रिकार्ड कर लेती थीं। रात में कई बार मजबूरन मुझे भी देखना पड़ जाता था, बीवी मार्केटिंग अलग से कर रही थी कि अच्छा है देखा कीजिए।
खैर देखना शुरू किया तो बस लत सी लग गई। कई मामलों में सीरियल की कहानी, अभिनय, किरदार, कॉस्ट्यूम, लोकेशन सब आशुतोष गोवारिकर वाली जोधा अकबर से भी बढ़कर लगता है। सीरियल है, लिहाजा विस्तार में जाने की पूरी छूट है राइटर को। जब ये सीरियल आता है, तब मैं दफ्तर में होता हूं, घर में रिकार्ड होता है, रात में जाकर देखता हूं। कभी शहर से बाहर गया तो हर दिन का एपीसोड रिकार्ड रहता है। जिस दिन साजिश वगैरह दिखती है, मन खिन्न हो जाता है, जिस दिन जोधा अकबर का रोमांस होता है, हंसी-मजाक होता है, वो रात अच्छी गुजरती है। कहने में ही बड़ा अजीब लग रहा है, तो आपको भी अजीब लगा होगा।
खैर दूसरा सीरियल है बालिका वधू, जब ये सीरियल शुरू हुआ था तो मैं न्यूज 24 में था, लगा कि इसमें टीआरपी मैटेरियल है, फिर तो इस पर प्रोग्राम बनाने लगा। हर हफ्ते और कभी तो हफ्ते में दो बार। सौ प्रोग्राम तो बनाए ही होंगे बालिका वधू पर। एक दिन तो अनुराधा जी (अनुराधा प्रसाद, चेयरपर्सन बीएजी ग्रुप) भी मीटिंग में बोलीं- ये तुम सब क्या चलाते रहते हो बालिका वधू। मैंने कहा-मैडम ये टीआरपी का भंडार है। खैर न्यूज 24 छूटा, तबसे तो कोई शो नहीं बनाया बालिका वधू पर, लेकिन सीरियल देखने की लत सी पड़ गई। तब कोर्स तैयार करने के लिए (प्रोग्राम बनाने के लिए) देखता था, अब अच्छा लगता है, इस नाते देखता हूं। कई बार देखकर परेशान होता हूं तो कई बार देख न पाने के नाते परेशान होता हूं। उन महिलाओं की परेशानी सोचकर हैरान होता हूं, जो दर्जन भर सीरियल रोज देखती हैं, रोज फालो करती हैं। कहती हैं-लत ये गलत लग गई।
(स्रोत-एफबी)