मनीष कुमार,पत्रकार,चौथी दुनिया
आम आदमी पार्टी और केजरीवाल के लिए जहां यह एक ऐतिहासिक जीत है वहीं, भारतीय जनता पार्टी के लिए यह एक ऐतिहासिक हार है. अब सवाल यह है कि आखिर दिल्ली में क्या हुआ? लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की हार से कार्यकर्ता निराश थे. वो टूट चुके थे. पार्टी के नेताओं को यह यकीन था कि अगर विधानसभा चुनाव में हार हो गई तो पार्टी ही खत्म हो जाएगी. लेकिन इस बात की दाद देनी होगी कि केजरीवाल ने छह महीने तक जबरदस्त कैंपेन किया. उसने अपने कैंपेन की शुरूआत माफी से की थी. केजरीवाल ने यह कह कर आम मतदाताओं का दिल जीत लिया कि दिल्ली की सत्ता को छोड़ना उसकी सबसे बड़ी गलती थी. भाजपा केजरीवाल को भगोड़ा भगोड़ा कहती रही. केजरीवाल हर सप्ताह एफएम रेडियो पर नए-नए प्रचार के जरिए माफी मांगते रहे. लोगों से गुस्सा थूक देने की गुहार लगाते रहे. इस माफी से आम आदमी पार्टी के 33 फीसदी वोटर्स चट्टान की तरह अडिग हो गए, जिन्होंने लोकसभा चुनाव में केजरीवाल को वोट दिया था. इसके बाद केजरीवाल ने लोकप्रिय घोषणाओं का तांता लगा दिया. इससे भी लोगों का झुकाव आम आदमी पार्टी की ओर होता गया. जो मुद्दे उठाए वो जनता से जुड़े थे. मुफ्त पानी और मुफ्त बिजली का वादा भी आम आदमी पार्टी के काम आया. टिकट बंटवारे में भी जाति और धर्म को ध्यान में रखा गया, जिससे पार्टी को फायदा हुआ. आम आदमी पार्टी के लिए यह चुनाव ऐसा ही हुआ जैसे किसी बैट्समैन का अच्छा दिन हो. बैट से निकलने वाला हर शॉट बाउंड्री के पार.. बैट से निकला हर कैच विरोधियों ने छोड़ दिया.. और हर गेंदबाज की लाइन-लेंथ खराब हो गई.. ऐसे में सेंचुरी तो लगनी ही थी.
इन सब से भी ऐतिहासिक जीत संभव नहीं थी. इससे तो आम आदमी पार्टी को ज्यादा से ज्यादा 32-35 सीटें ही मिलतीं. बहुमत भी नहीं मिलता. इसके अलावा ऐसा क्या हुआ कि पार्टी 60 का आंकड़ा पार कर गई? भारतीय जनता पार्टी ने जो भी दांव खेले वो उल्टे पड़ गए. चुनाव के आखिरी दौर में रणनीति को बदलना इस बात का संकेत था कि पार्टी को यह पता चल गया था कि दिल्ली चुनाव में भाजपा की स्थिति ठीक नहीं है. केजरीवाल का मुकाबला करना एक कठिन काम है. इसलिए बीजेपी ने किरण बेदी को सामने लाने का रिस्क लिया. रिस्क तो रिस्क ही होता है. अगर क्लिक कर गया होता तो बल्ले-बल्ले वर्ना जो रिजल्ट आया है इसमें कोई बदलाव नहीं होता. बीजेपी से यह गलती हुई कि वह आखिर तक समझ नहीं पाई कि केजरीवाल की ताकत क्या है? और कमजोरी क्या है? यही वजह है कि बीजेपी आम आदमी पार्टी के वोट-बैंक के किले को नहीं भेद सकी. पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं में बाहरी उम्मीदवारों को लेकर खासी नाराजगी थी, जो चुनाव के आखिर तक बरकरार रही. जिसका नुकसान पार्टी को भुगतना पड़ा. किरण बेदी का कृष्णा नगर जैसी सुरक्षित सीट से हारना इस बात का सबूत है. लेकिन इससे भी आम आदमी पार्टी की ऐतिहासिक जीत को नहीं समझा जा सकता है.
आम आदमी पार्टी की ऐतिहासिक जीत को समझना आसान है. आम आदमी पार्टी को इस बार 52 फीसदी वोट मिले जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में उसे 28 फीसदी वोट मिले थे. केजरीवाल के प्रचार से आम आदमी पार्टी का वोटबैंक बरकरार रहा, साथ ही उसे 24 फीसदी अतिरिक्त वोट मिले. सवाल यह है कि ये अतिरिक्त 24 फीसदी वोट कहां से आया? दिल्ली में जितनी भी बीजेपी-विरोधी ताकतें थीं, उन्होंने बीजेपी को हराने के लिए वोट दिया. यही वजह है कि कभी 15 फीसदी वोट पाने वाली बीएसपी का सारा वोट आप की झोली में जा पहुंचा. इस बार बीएसपी को महज 1.4 फीसदी वोट मिले हैं. पिछले चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 24 फीसदी वोट मिले थे, इस बार कांग्रेस को 10 फीसदी से भी कम वोट मिले हैं. ये सारे वोट आम आदमी पार्टी को मिला है. इस बार पूरा का पूरा मुस्लिम वोट आम आदमी पार्टी को ट्रांसफर हुआ है. इससे आप को 14 सीटों का सीधा फायदा हुआ है. दिल्ली में 5-6 बड़े बड़े कांग्रेसी मुस्लिम नेता भी चुनाव हार गए. मतलब साफ है कि वोटिंग बीजेपी को हराने के लिए की गई. इसके अलावा हर सीट पर 4-5 हजार मुस्लिम वोट हैं. इसके अलावा चुनाव से पहले चर्चों पर हुए हमले की वजह से क्रिश्चियन कम्यूनिटी भी आम आदमी पार्टी की तरफ चली गई. यह कम्यूनिटी दिल्ली के हर विधानसभा क्षेत्र में फैली हुई है. दिल्ली में 2.5 फीसदी ईसाई हैं. मतलब यह कि औसतन 4500 वोटर हर विधानसभा में हैं. इसके अलावा दिल्ली में जितने भी वामपंथी और आरजेडी, जेडीयू, त्रिणमूल और समाजवादी पार्टी के समर्थक थे उन सभी लोगों ने आम आदमी पार्टी को वोट दिया. कहने का मतलब यह कि आम आदमी पार्टी को हर तरफ से वोट मिला. इन कारणों की वजह से सारी सीटें आम आदमी पार्टी की झोली में चली गई. बीजेपी को पिछली बार 33 फीसदी वोट मिले थे और 32 सीटें आई थी. इस बार भी बीजेपी को 33 फीसदी वोट मिले हैं लेकिन सीटों की संख्या 32 से घट कर 3 पर पहुंच गई. यही दिल्ली चुनाव में बीजेपी की ऐतिहासिक हार का राज है.
दिल्ली में जिस तरह का माहौल तैयार हुआ उसमें बीजेपी चुनाव जीत भी नहीं सकती थी. ऐसा माहौल जिन जिन राज्यों में तैयार होगा वहां बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी. ऐसा माहौल बनाने के लिए आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं को बधाई. साथ में मीडिया को भी बधाई देना जरूरी है जिन्होंने ऐसा माहौल तैयार करने में मदद की. अब दिल्ली में एक सशक्त सरकार है. जितनी बड़ी जीत उतनी बड़ी जिम्मेदारी होती है. इसलिए उम्मीद करना चाहिए कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने सारे वादों को पूरा करेंगे और एक अच्छा शासन देंगे. वर्ना जनता तो जनता होती है, आज सिर पर बिठाया है तो कल धूल भी चटा सकती है.
महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि केजरीवाल दिल्ली में एक आदर्श सरकार देने में सफल होते हैं तो यकीन मानें 2019 का लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी बनाम अरविंद केजरीवाल होगा. क्योंकि देश के बाकी सारे तथाकथित सेकुलर व समाजवादी नेताओं का साइड हीरो बनना अब तय हो गया है.
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