सेकुलर पॉलिटिक्स की मेरी एक परिभाषा है। यह परिभाषा सिर्फ भारत के लिए है।
“भारत में मुसलमान जिस पार्टी को वोट देता है, वह सेकुलर है।”
इस परिभाषा को विस्तार से समझें। किसी पार्टी को जब तक मुसलमान वोट मिले, वह सेकुलर है। मुसलमान वोट बंद यानी उनका सेकुलरिज्म ख़त्म।
इसका एक अपवाद है। मुसलमान अगर मुसलमानों की पार्टी को वोट देगा तो उसे कम्युनलिज्म कहा जाएगा।
मिसाल के तौर पर, कांग्रेस से टूटी ममता बनर्जी को लगा कि मुसलमान उन्हें वोट नहीं देगा। वे बीजेपी सरकार में आईं और रेलमंत्री बनीं। तब तक वे सेकुलर नहीं थी। इस बीच सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आ गई। मुसलमानों को समझ में आया कि सीपीएम ने ख़ूब मूर्ख बनाया है। उन्होंने विकल्प के तौर पर ममता को देखा। ममता सेकुलर बन गईं।
नीतीश कुमार में लालू से अलग होकर 1995 का विधानसभा चुनाव लड़ा। 8 सीटें आईं। नीतीश कुमार को लगा मुसलमान वोट नहीं देगा। बीजेपी के साथ गए। लगभग 10 साल सरकार चलाई। फिर 2015 में मुसलमानों ने नीतीश के लिए वोट डाला, अब वे सेकुलर हैं।
भारतीय राजनीति में मैं आपको दर्जन भर मिसालें दे सकता हूँ जब सेकुलर नेता का ग़ैर-सेकुलर नेता में और ग़ैर-सेकुलर नेता का सेकुलर नेता में परकाया प्रवेश हुआ। बड़े बड़े नेता और मुख्यमंत्री सेकुलर और नॉन-सेकुलर बनते रहे हैं। दक्षिण में तो बड़ी आसानी से हो जाता है।
यह लगातार चलने वाली प्रक्रिया है।
(वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल के फेसबुक वॉल से साभार)