प्रधानमंत्री मोदी ने ‘मन की बात’ से मन को छू लिया

प्रधानमंत्री मोदी ने 'मन की बात' से मन को छू लिया
प्रधानमंत्री मोदी ने 'मन की बात' से मन को छू लिया

एक अभिभावक के मन की बात

जयराम विप्लव , राष्ट्रीय प्रभारी – भाजयुमो स्टडी सर्किल

प्रधानमंत्री मोदी ने 'मन की बात' से मन को छू लिया
प्रधानमंत्री मोदी ने ‘मन की बात’ से मन को छू लिया

रविवार की सुबह AIR पर “मन की बात” कार्यक्रम में प्रधानमंत्री को सुन रहा था | ऐसा लगा जैसे देश का प्रधान मंत्री नहीं,प्रधान सेवक नहीं बल्कि प्रधान अभिभावक अपने घर के सदस्यों से खाने की मेज पर संवाद कर रहा है |

पुराने समय की एक कहावत है ;एक राजा को “पिता” की भांति अपनी प्रजा को “संतान” मानकर शासन करना चाहिए | ठीक ऐसी ही दूसरी कहावत में राजा को प्रजा का “सेवक” बताया गया है | वर्तमान लोकतान्त्रिक व्यवस्था में भी ये दोनों शर्तें प्रासंगिक है | और इसे चरितार्थ करते दिखाई दे रहे हैं हमारे नये प्रधानमंत्री |

घर का अभिभावक सक्षम हो ,साहसी हो, संवाद कला में निपुण हो, संघर्षशील हो ,ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ हो तो उस घर की सुख,शांति और समृद्धि बनी रहती है | प्रधानमंत्री के दिलो-दिमाग में “ मन की बात “ जैसे कार्यक्रम की कल्पना आई , संवाद की इस प्रक्रिया को उन्होंने शुरू किया है , श्रोताओं के सुझाव को भी शामिल कर रहे हैं तो कहीं न कहीं नागरिकों को संतोष हो रहा होगा कि देश की बागडोर योग्य हाथों में है |

दिल को छू लेने वाले अपने 20 मिनट के संबोधन में प्रधानमंत्री ने यह जता दिया है कि वे देश से जुड़े हर मुद्दे पर भारत रुपी इस घर के सारे सदस्यों को विश्वास में लेकर आगे बढ़ने को संकल्पित हैं |

आजादी के बाद के सरकारों को देखा जाए तो उसमें प्रधानमंत्री का संवाद जनता से 15 अगस्त या फिर 26 जनवरी अथवा यदा-कदा किसी तीज-त्यौहार और किसी बड़े हंगामे पर ही हो पाता था | वो भी एक स्टीरियोटाइप भाषण वाले अंदाज़ में ! कई प्रधानमंत्री भी खुद को जनता से दूर रखना ही अपनी शान समझते थे | एक दौर तो ऐसा आया कि देश के प्रधानमंत्री जरुरी विषयों पर भी बोलने के बजाय चुप रहना ही उचित समझने लगे | परिणाम यह हुआ कि लोकतंत्र में जनता द्वारा चुनी गयी सरकार के मुखिया का जनता से ही कोई सम्बन्ध ना रहा ! क्या एक लोकतंत्र में ऐसा होना लोकतंत्र का अपमान नहीं था ?

वक्त बदला तो भागीदारीयुक्त लोकतंत्र के बढ़ते प्रभाव में जनता ने अपने पसंद का प्रधान चुना जो ना सिर्फ प्रधान है बल्कि उसके घर का अभिभावक भी है | प्रधान होना और अभिभावक होना दोनों दो चीज है | प्रधान सिर्फ आदेश दे सकता है , अभिभावक आपकी जरूरत भी सुन सकता है | प्रधान सिर्फ अपनी बात करेगा अभिभावक सिर्फ आपकी बात करेगा | प्रधान सिर्फ बड़ी समस्याओं का ही हल देख सकता है पर अभिभावक को छोटी-बड़ी समस्या में भेद नहीं करना आता | नया प्रधान , प्रधान भी है ,सेवक भी है और अभिभावक भी |

एक अभिभावक के तौर पर नरेंद्र मोदी को देश के हर समस्या की फ़िक्र है | उन्हें काले धन की भी फ़िक्र है और उन युवाओं की भी , जो नशे के आदि हो चुके हैं | मानसिक और शारीरिक रूप से विशेष सक्षम बच्चों के जीवन को आसान बनाने का उपाय भी सोचते हैं | वर्षा के अभाव में अन्न नहीं उगा पाए किसानों के साथ-साथ उन घरों की भी चिंता करते हैं जिन्हें दो वक्त की रोटी नसीब नहीं हो पाती |

“मन की बात “ कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री हर दिल को टटोलते हैं | हर किसी की बात करते हैं | हर घर के देखभाल में अपना योगदान देना चाहते हैं | हर खुशी में वो खुश होना चाहते हैं और हर दुःख में शामिल होना चाहते हैं | रेडियो संवाद का एक ऐसा माध्यम है जिससे वे भारत के हर घर में बात कर रहे हैं , जहाँ वो अपने मन की भावना , अपनी सोच हर नागरिक से बाँट रहे हैं | हर घर का अभिभावक बन रहे हैं |

(यह लेखक के अपने विचार है)

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